मिले त मारीं ना त बाल ब्रह्मचारी

भउजी हो !

का बबुआ ? कइसे फुरसत मिल गइल भउजी से बतियावे के ?

तुहूं नू भउजी एको मौका बाँव ना जाए देलू. जानबे करेलू कि भोजपुरी में दुनिया के पहिलका वेबसाइट अंजोरिया पर लागल रहीलें. संसाधन नइखे कि ओकरा ला कवनो कर्मचारी राखीं. कुछ समय पहिले निहोरा कइले रहीं त कुछ भामाशाह सहजोग कर दिहलें. ऊँट का मुँह में जीरा का बरोबर मिलल. बाकिर ओह लोग के आभार कि कुछ सहजोग त कइल लोग.

ऐ बबुआ, अनका धन पर कनवा राजा बने के सपना आम आदमी खातिर ना हो के राजा भा आजु के जमाना के सरकारन ला कहत गइल बा. सरकार के आपन कमाई त अलगा से होखे ना. ओकरा त जनता का कमाई में से आपन बखरा काटे के पड़ेला.

त एकर मतलब ई त ना होखे के चाहीं कि ऊ आदमी के मुअला पर ओकर संपति हड़पे के कोशिश करो.

ई त हमेशा से होत आइल बा. भोजपुरी के ई कहावत त सुनलहीं होखब कि मिले त मारी, ना त बाल ब्रह्मचारी. सरकार आ राजनीति के गोल एही सिद्धान्त पर काम करेली सँ. कउवा कान ले गइल सुनते कउवा का पाछे भगला के जरुरत ना होखी अगर धावे से पहिले एक बेर अपना कान पर हाथ घुमा लीं त. ट्वीटर पर त रउरो बड़ले बानी. देखलहीं होखब कांग्रेसी बोलतुआ पवन खेड़ा के बयान –

जब मोदी के सरकार बनल त साल 2018 में भाजपो कोशिश कइले रहल संपति भा विरासत टैक्स फेर से लगावे के. ना तगवलसु त ओकरा पाछे मिले त मारी, ना त बाल ब्रह्मचारी वाला हालात रहुवे. कांग्रेसे के एगो दोसर ज्ञानी बतावत बाड़न कि संपति कर त कांग्रेसे सरकार हटवलसि. ओकर कवनो प्लान नइखे कि सरकार बनला पर एह तरह के टैक्स वापस ले आई. बाकिर उहो पूरा साँच नइखन बतावत. पूरा साँच त कहीं सुने के मिलते नइखे. आ मीडिया त हमेशा से अश्वत्थामा हतो कहि के अतना हल्ला मचा देले कि ओकरा बाद के बात सुनइबे ना करे केहू के कि पता ना मराइल अश्वत्थामा आदमी रहल कि एही नाम के हाथी. अब पूरा साँच हमरा से सुनीं –
इन्दिरा गाँधी के सरकार ले अपनो देश में संपति कर लागत रहुवे आ 55 फिसदी ना, 85 फिसदी. उनुका सरकार का दौर में इन्कमो टैक्स के सीमा 97 फिसदी ले रहल. आखिर उनुका गरीबी हटावे के रहल. अब पता ना ऊ आपन गरीबी हटावे के बात करत रही कि देश के. देश के गरीबी हटल कि ना ई बतवला के कवनो जरुरत नइखे आ उनुकरो गरीबी हटल कि ना एहू पर बोलल मधुमक्खी का छत्ता पर ढेला फेकल जइसन हो जाई. बाकिर जब इन्दिरा गाधी के हत्या साल 1984 के 31 अक्टूबर के क दीहल गइल त उनुकर ‘गरीबी’ उनुका वारिसन में बाँटे के समय आ गइल. आ तब राजीव गाँधी सरकार वारिसन के पूरा हक बिना टैक्स दिहले भेंटा जाव एहसे 1985 में संपति कर हटा ले लिहलसि. आ इंदिरा गाँधी के पूरा ‘गरीबी’ उनुका वारिसन का कपारे आ गइल.

तब त भउजी कांग्रेस ठीके कहत बिया कि ओकर कवनो प्लान नइखे संपति टैक्स लगावे के. बाकिर ओकरो डर बा कि कहीं मोदिए सरकार संपति कर फेरु से लगा मत देव. आ मोदी के कवनो भरोसा नइखे कि लगाइओ देसु.

ई का, बड़ा जल्दी पलटी मार दिहनी ?

हँ भउजी. काहे कि साँच हमरो नजर में आ गइल. अनेसा बा कि एगो अउर ‘गरीबी’ बाँटे के मजबूरी जल्दिए मत आ जाव. तबियत खराब चलते बा आ पाकल आम डाढ़ी से कब टपक जाई के जानत बा. बाकिर हो सकेला कि मोदी के अगिलकी सरकार परिवारवादी राजनीति के समूल नाश करे खातिर संपति कर लगाइए देव. जनतो के अपार समर्थन मिल जाई अगर ई टैक्स ओही लोगन पर लगावल जाव जिनका लगे कम से कम एक खरब के संपति बिना कवनो कत-कारखाना तगवले आ गइल होखे.

बड़ा दुष्ट विचार बा राउर !

शठे शाठ्यम समाचरेत का सिद्धान्त मानिलें भउजी.

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