– आशुतोष कुमार सिंह
राम जी के चिरई,
राम जी के खेत.
खा ल चिरई
भर-भर पेट.
ई लाइन हमनी का लइकाइएं से सुनत आ रहल बानी जा. एह लाइन प धेयान से सोचला प ई महसूस होखेला कि ई एगो पंक्ति में हमनी के संस्कार आ संस्कृति के सार छुपावल बा. एह पंक्ति से ई बहुते आसानी से अंदाजा लगावल जा सकेला कि हमनी के भोजपुरिया समाज सांस्कृतिक आ सामाजिक रूप से केतना बरियार रहल बा. एह से ईहो साफ हो रहल बा कि भोजपुरिया लोग शुरुए से प्रकृति के नीयरा रहल बा. प्रकृति के हर चीज से इनकर लगाव रहल बा.
बाकिर समय के संगे-संगे बदलाव के अइसन दौर चलल कि भोजपुरिया लोग आपन मूल संस्कार से भटके लागल. शांति के केन्द्र मानल जाए वाला बिहार अशांति के गिरफ्त में आ गइल. अउर हाल ई हो गइल कि आज ना त राम जी के चिरई लउकत बाड़ी स ना राम जी के ऊ खेते
लउकत बा.
राम जी के चिरई राम जी का लगे धीरे-धीरे जा रहल बाड़ी अउर जवन खेत बा ओकरा खातिर हमनी के अपने में खून के होली खेल रहल बानी जा. चारो-ओर हाहाकार मचल बा. अइसन नइखे कि हमनी के नइखी स जानत कि ई सब काहे हो रहल बा? बलुक जानबूझ के हमनी के समस्या के उत्पन्न क रहल बानी जा.
आज हमनी के जल-जंगल आ जमीन से आपन नाता खतम करत जा रहल बानी. बाकिर का प्रकृति से दूर रह के विकास के परिकल्पना कइल जा सकेला? हम भोजपुरियन में प्रकृति के नीयरा रहे के आदत रहल बा. हमनी के पुरनिया गाछ लगावे के शिक्षा देत आइल बाड़न आ ओह लोगन के बात प हमनी के अमलो करत आइल बानी जा. बाकिर अब धीरे-धीरे पुरनिया लोगन का लगे बइठे से हमनी का कतराए लागल बानी. बुजुर्ग लोग अब बोझ हो गइल बा. उनकर बात हमनी का कूड़ा के टोकड़ी में डाल देले बानी जा. उनका के उनका हाल प अकेले छोड़ देले बानी जा. हमनी के एह बेरूखी से हमनी के भीतर धीरे -धीरे भोजपुरिया संस्कार के लोप हो रहल बा. हमनी के भुला गइल बानी जा कि जेतना ज्ञान बुजुर्गन के लगे बा ओतना ज्ञान हमनी के कवनो लाइब्रेरी में ना मिली. अनुभव के जवन पूंजी होखेला ओकर मुकाबिला केहू नइखे कर सकत. एह से नया पीढ़ी के चाहीं कि अपना बुजुर्ग लोगन का नीयरा बइठस आ उनका से जिनिगी जिए के गुरू मंत्र लेस. अउर अइसन खेत के तइयार करस जहवां राम जी के चिरई भर-भर पेट खा सको.
हमनी से नीमन ऊ भाई लोग बा जे एह देश के छोड़ के दोसर देश में बस गइल बाड़न. एकरा बादो ऊ आपन माटी के नइखन भुलाइल. आपन पुरखा-पुरनिया के आजो इयाद क रहल बाड़न. जवना के एगो नीमन उदाहरण त्रिनिदाद आ टोबैको में देखे के मिलल. जहवां भारतीय मूल के, खासतौर से बिहार के, लोग भोजपुरी के पहिला कवि संत कबीर दास के 613वां जनम दिन बहुते धूम-धाम से मनवलन. दोसरा ओर हमनी के बानी जा जे अपना पुरखा-पुरनिया के भुलात जा रहल बा.
खैर एह सब बातन के अलावा भोजपुरी खातिर एगो नीमन खबर ई बा कि कान फिलिम फेस्टीवल में एगो भोजपुरी फिलिम आपन झंडा गाड़े में सफल रहल. अइसन पहिला हाली भइल जब कान फिलिम समारोह में कवनो भोजपुरी फिलिम के एंट्री मिलल. एकरा बाद ई मानल जा रहल बा कि एह से भोजपुरी फिलिमन के विश्व सिनेमा में आपन उपस्थिति दर्ज करावे में मदद मिली. भोजपुरी फिलिम के कान तक ले जाए में अभिनेता रवि किशन के अहम योगदान रहल बा. रवि किशन के भोजपुरी फिलिम ‘जला देब दुनिया तोहार प्यार में’ एह बरिस के कान फिलिम समारोह के ऑफिशियल एंट्री में शामिल भइल बिया. रोचक तथ्य ई बा कि एह फिलिम के एगो अमेरिकी कंपनी पन फिल्म्स के सहयोग मिलल बा, जवना का वजह से एह भोजपुरी फिलिम के कान समारोह स्थित भारतीय मंडप में स्थान मिलल. भोजपुरी फिलिम जगत खातिर ई एगो बड़ उपलब्धि बा. एह सफलता के बाद भोजपुरी सिनेमा के एगो नया दिशा त मिलबे करी.
अब समय आ गइल बा जब हमनी के ई संकल्प ली जा कि हमनी के राम जी के खेत के राम जी के चिरई के भर भर पेट खाए लायक उपजाऊ बनाइब जा. आज अतने.. अगिला हफ्ता फेर मिलब.
राउर
आशुतोष कुमार सिंह
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भोजपुरिया मशाल के नाम से ई कॉलम बिहारी खबर साप्ताहिक पत्र में छप रहल बा.
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