(दयानंद पाण्डेय के लिखल आ प्रकाशित हिन्दी उपन्यास के भोजपुरी अनुवाद)
पन्दरहवाँ कड़ी में रउरा पढ़ले रहीं
कि कइसे गणेश तिवारी झूठ के साँच आ साँच के झूठ बनावे का तिकड़म में लागल रहेले. अबकी उनुका तिकड़म के माध्यम बनल बा पोलादन जे आपन जमीन गणेश तिवारी के एगो पटीदार के बेचले रहुवे आ अब गणेश तिवारी लागल बाड़े कि ओकर जमीन ओकरा वापिस मिल जाव बिना दाम लवटवले. पोलादन के विश्वास त नइखे होत बाकिर तबहियो ऊ गणेश तिवारी के खेवा खरचा खातिर कई हजार रूपिया दे आवत बा आ लवटति घरी सोचत बा कि पता ना जमीनवा मिली कि ना कि पइसवो डूबी ? अब आगे पढ़ीं…
हफ्ता, दू हफ्ता बीतल. कुछ भइबे ना कइल. ऊ गणेश तिवारी का लगे जाव आ आंखे-आंखि में सवाल फेंके. त ओने से गणेशो तिवारी ओकरा के आंखे-आंखि में जइसे तसल्ली देसु. बोलत दुनु ना रहले. गणेश तिवारी के त ना मालूम रहे पोलादन का, बाकिर ऊ ख़ुदे सुलगत रहल. मसोसत रहल कि काहें एतना पइसा दे दिहनी ? काहें गणेश तिवारी जइसन ठग आदमी का फेर में पड़ गइनी ? ऊ एही उभचुभ में रहे कि एक राति गणेश तिवारी ओकरा घरे अइलन. खुसुर-फुसुर कइलन आ गांव छोड़ के कहीं चल गइले. ओही रात फौजी तिवारी का घर पर पुलिस के छापा पड़ल आ उनुका दुनु बेटा समेत उनुका के थाना उठा ले आइल. दोसरा दिने ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट का सोझा ऊ आ उनुकर दुनु बेटा पेश कइल गइले. उनुकर नाते रिश्तेदार, गोतिया पट्टीदार आ शुभचिंतक लोग बहुते दउड़ धूप कइल बाकिर जमानत ना मिलल काहे कि उनुका पर हरिजन एक्ट लाग गइल रहे. बड़का से बड़का वकील कुछ ना कर पवले ! कहल गइल कि अब त हाईये कोर्ट से जमानत मिल पाई. आ जाने जमानत मिली कि सजाय?
जेल जात-जात फौजी तिवारी रो पड़ले. रोवते-रोवत बोलले, “ई गणेश तिवारी गोहुवन सांप हवे. डंसले इहे बा. पोलदना तो बस इस्तेमाल भइल बा औजार का तरह.” फेर ऊ एगो खराब गारी दिहलन गणेश तिवारी के. कहले, “भोसड़ी वाला के पचीस हजार के दलाली ना दिहनी त एह कमीनगी पर उतर आइल !”
“त दे दिहले होखतऽ दलाली !” फौजी तिवारी के साला बोलल, “हई दिन त ना देखे पड़ीत !”
“अब का बताई ?” कहिके फौजी तिवारी पहिले मूछ में ताव दिहले फेर फफक के रो पड़ले.
साँझ हो गइल रहे से उनुका आ उनुका बेटवन के पुलिस वाले पुलिस ट्रक में बइठा के जेहल ओरि चल दिहले. एह पूरा प्रसंग में फौजी तिवारी टूटल, रोआइन आ बेचारा जइसन कुछ ना कुछ बुदबुदात रहलन आ उनुकर बेटा निःशब्द रहले स. लेकिन ओकनी का चेहरा पर आग खउलत रहे आ आंखिन में शोला समाइल रहे.
जवने होखे बाकिर गांव भर का पूरा जवार के जानत देर ना लागल कि ई सब गणेश तिवारी के कइल धइल ह आ एही बहाने गांव जवार में एक बार फेरू गणेश तिवारी के आतंक पसर गइल, कवनो गुंडे भा कवनो आतंकवादी के आतंक का होखत होई जे गणेश तिवारी के आतंक होखत रहुवे. जवन आतंक ऊ खादी पहिर के , बिना हिंसा के आ ख़ूब मीठ बोल के बरपावत रहले.
एह भा ओह तरह से लोग आतंक में जिये आ गणेश तिवारी के विलेज बैरिस्टरी चलत जात रहुवे.
कई बेर ऊ एह सभका बावजूद निठल्ला हो जासु. लगन ना होखे त गवनई के सट्टो ना होखे. मुकदमा ना होखे त कचहरीओ जा के का करीतें ? कबो-कभार मुकदमो कम पड़ जाव. त ऊ एगो ख़ास तकनीक अपनावसु. पहिले ऊ ताड़सु कि केकरा-केकरा में तनातनी चलत बा भा तनातनी के अनेसा बा भा उमेद हो सकेला. एहमे से कवनो एक फरीक से कई-कई बइठकी में मीठ-मीठ बोलि के, ओकर एक-एक नस तोल के ऊ ओकरा मन के पूरा थाह लेसु. कुछ “उकसाऊ” शब्द ओकरा कान में अइसहीं डालसु. बदला में ऊ दोसरा फरीक खातिर कड़ुआ शब्दन के भंडार खोल बइठे, कुछ राज अपना विरोधी पक्ष के बता जाव आ आखिर में ओकर अइसन तइसन करे लागे. फेर गणेश तिवारी जब देखसु कि चिंगारी शोला बन गइल बा त ऊ बहुते “शांत” भाव से चुप करावसु आ ओकरा के बहुते धीरज आ ढाढ़स का संगे समुझावसु, “ऊ साला कुकुर ह त ओकरा से कुकुर बनि के लड़बऽ का ?” ऊ ओकरा के बिना मौका दिहले कहसु, “आदमी हउव आदमी का तरे रहऽ. कुत्ता का साथे कुत्ता बनल ठीक हवे का ?”
“त करीं का?” अगिला खीझियात पूछे.
“कुछु ना आदमी बनल रहऽ. अउर आदमी का पाले बुद्धि होले, सो बुद्धि से काम लऽ !”
“का करब बुद्धि ले के ?” अगिला अउड़ बउराव.
“बुद्धि के इस्तेमाल करऽ !” ऊ ओकरा के बहुते शांत भाव से समुझावसु, “खुद लड़े के का जरूरत बा ? तू खुद काहे लड़ऽतारऽ ?”
“त का चूड़ी पहिर के बइठ जाईं ?”
“नाहीं भाई, चूड़ी पहिने के के कहत बा ?”
“त ?”
“त का !” ऊ गँवे से बोलसु, “ख़ुद लड़ला ले नीमन बा कि ओकरे के लड़ा देत बानी.”
“कइसे?”
“कइसे का?” ऊ पूछसु, “एकदम बुरबके हउव का ?” ऊ जोड़सु, “अरे कचहरी काहें बनल बा ! कर देत बानी एक ठो नालिश, दू ठो इस्तगासा !”
“हो जाई !” अगिला खुशी से उछलत पूछे.
“बिलकुल हो जाई.” कहिके गणेश तिवारी दोसरा फरीक के टोहसु आ ओकरा खिलाफ पहिला फरीक के कइल कड़ुआ टिप्पणी, खोलल राज बतावसु त दोसरको फरीक लहकि जाव त ओकरो के धीरज धरावसु. धीरज धरावत-बन्हावत ओकरो के बतावसु कि, “खुद लड़े के का जरूरत बा ?” कहसु, “अइसन करत बानी कि ओकरे के लड़ा देत बानी.”
एह तरे दुनु फरीक कचहरी जा के भिड़ जासु बरास्ता गणेश तिवारी. कचहरी में उनुकर “ताव” देखे लायक होके. सूट फाइल होखे, काउंटर, रिज्वाइंडरे में छ-आठ महीना गुजर जाव. साथ ही साथ दुनु फरीक के जोश खरोश अउर “तावो” उतरि जाव. नौबत तारीख़ के आ जाव. आ जइसन कि हमेशा कचहरियन में होला न्याय कहीं, फैसला कहीं मिले ना, तारीख़े मिले. आ ई तारीख़ो पावे खातिर पइसा खरचे पड़े. एह पर पक्ष भा प्रतिपक्ष विरोध जतावे त गणेश तिवारी बहुते सफाई से ओकरा के “राज” के बात बतावसु कि, “अबकी के तारीख़ तोहर तारीख़ ह. तोहरा मिलल बा आ तोहरे तारीख पर ओकरो आवे के पड़ी !”
“अउर जे ऊ ना आइल त ?” अगिला असमंजस में पड़ल पूछे.
“आई नू !” ऊ बतावसु, “आख़िर गवर्मेंट के कचहरी के तारीख़ हवे. आई कइसे ना. अउर जे ऊ ना आइल त गवर्मेंट बन्हवा के बोलवाई. अउर कुछु ना त ओकर वकिलवा त अइबे करी.”
“आई नू !”
“बिलकुल आई !” कहि के गणेश तिवारी ओकरा के निश्चिंत करसु. आ भलही जेनरल डेट लागल होखे तबहियो गणेश तिवारी ओकरा के ओकर तारीख बतावसु आ ओकरा से आपन फीस वसूलसु. इहे काम आ संवाद ऊ दोसरको फरीक पर गाँठसु आ ओकरो से फीस वसूलसु. दुनु के वकीलन से कमीशन अलगा वसूलसु. कई बेर मुवक्किल उनुका मौजूदगीए में वकील के पैसा देव त हालांकि ऊ अंगरेजी ना जानसु तबहियो मुवक्किल के सोझा ट्वेंटी फाइव फिफ्टी, हंडरेड, टू हंडरेड, फाइव हंडरेड, थाउजेंड वगरैह जइसन उनुकर जरूरत भा रेशियो जवने बने बोलि के आपन कमीशन तय करवा लेसु. बाद में अगिला पूछे कि, “वकील साहब से अऊर का बात भइल?” त ऊ बतावसु, “अरे कचहरी के ख़ास भाषा ह, तू ना समुझभऽ.” आ हालत ई हो जाव कि जइसे-जइसे मुकदमा पुरान पड़त जाव दुनु फरीक के “ताव” टूटत जाव आ ऊ लोग ढीला पड़ जाव. फेर एक दिन अइसन आवे कि कचहरी जाए का बजाय कचहरी के खरचा लोग गणेश तिवारी का घरे दे जाव. मुकदमा अउरी पुरान होखे त दुनु फरीक खुल्लमखुल्ला गणेश तिवारी के “खर्चा-बर्चा” देबे लागसु आ आखिरकार कचहरी में सिवाय तारीख़ के कुछु मिले ना से दुनु फरीक सुलह सफाई पर आ जासु आ एगो सुलहनामा पर दुनु फरीक दस्तखत करि के मुकदमा उठा लेसु. बहुते कम मुकदमा होखे जे एक कोर्ट से दूसरका कोर्ट, दूसरका कोर्ट से तिसरका कोर्ट ले चहुँपे. अमूमन त तहसीले में मामिला “निपट” जाव.
सौ दू सौ मुकदमन में से दसे पांच गो जिला जज तक चहुँपे बरास्ता अपील वगैरह. अउर एहिजो से दू चार सौ मुकदमन में से दसे पाँच गो हाइकोर्ट के रुख़ करि पावे. अमूमन त एहीजे दफन हो जाव. फेर गणेश तिवारी जइसन लोग नया क्लाइंट का तलाश में निकल पड़े. ई कहत कि, “खुदे लड़ला के का जरूरत बा, ओकरे के लड़ा दिहल जाव.” आ “ओकरे के” लड़ावे का फेर में आदमी खुद लड़े लागे.
लेकिन गणेश तिवारी का ई नयका शिकार पोलादन एकर अपवाद रहल. फौजी तिवारी के ऊ साचहु लड़ा दिहलसि काहे कि गणेश तिवारी ओकरा के हरिजन ऐक्ट के हथियार थमा दिहले रहन. हरिजन एक्ट अब उनुकर नया अस्त्र रहे आ साचहु उहे भइल जइसन कि गणेश तिवारी पोलादन से कहले रहले, “खेत बोवले जरूर फौजी पंडित बाकिर कटबऽ तूं.” त पोलादन ऊ खेत कटलसि, बाकायदा पुलिस का मौजूदगी में. खेत कटला ले फौजी तिवारी आ उनुकर दुनु बेटा जमानत पर छूट के आ गइल रहले बाकिर दहशत का मारे ऊ खेत का ओरि झाँकहु ना गइले. खेत कटत रहल. काटत रहल पोलादन खुद. दू चार लोग फौजी तिवारी से आ के खुसुर फुसुर बतइबो कइल, “खेतवा कटात बा!” बाकिर फौजी तिवारी कवनो प्रतिक्रिया ना दिहलन, ना ही उनुकर बेटा लोग.
एह पूरा प्रसंग पर लोक कवि एगो गानो लिखलन. गाना त ना चलल बाकिर लोक कवि के पिटाई जरूर हो गइल एह बुढ़ौती में. फौजी तिवारी के छोटका बेटा पीटलसि. उहो फौज में रहल आ गणेश तिवारी अउर पोलादन के हथियार हरिजन एक्ट ओकर फौजी नौकरी दांव पर लगा दिहले रहे.
बहरहाल, जब खेत वगैरह कट कटा गइल, पोलादन पासी के बाकायदा कब्जा हो हवा गइल खेतन पर त एक रात गणेश तिवारी खांसत-खंखारत पोलादन पासी का घरे खुद चहुँपले. काहे कि ऊ त बोलवलो पर उनुका घरे ना आवत रहे. खैर, ऊ चहुँपले आ बाते बाति में दबल जबान से फौजी तिवारी मद में बाकी पइसा के जिक्र कर बइठले. तवना पर पोलादन दबल जबान से ना, खुला जबान गणेश तिवारी से प्रतिवाद कइलसि. बोलल, “कइसन पइसा ?” ऊ आंख तरेरलसि आ जोड़लसि, “बाबा चुपचाप बइठीं. नाई अब कानून हमहूं जानि गइल हईं. कहीं आपहु के खि़लाफ कलक्टर साहब के अंगूठा लगा के दरखास दे देब त मारल फिरल जाई.”
सुन के गणेश तिवारी के दिल धक् हो गइल. आवाज मद्धिम हो गइल. बोलले, “राम-राम! ते त हमार चेला हऊवे! का बात करत बाड़े. भुला जो पइसा वइसा !” कहिके ऊ माथ पर गोड़ धइले ओहिजा से सरक लिहलन.
रास्ता भर ऊ कपार धुनत अइलन कि अब का करीहें ? बाकिर कुछ बुझात ना रहे उनुका. घरे अइलन. ठीक से खाइयो ना पवले. सूते गइलन त पंडिताइन गोड़ दबावे लगली. ऊ गँवे से कहलन, “गोड़ ना, कपार बथत बा.” पंडिताइन कपार दबावे लगली. दबावत-दबावत दबले जुबान से पूछ बइठली, “आखि़र का बात हो गइल?”
“बात ना, बड़हन बात हो गइल !” गणेश तिवारी बोलले, “एकठो भस्मासुर पैदा हो गइल हमरा से !”
“का कहत हईं ?”
“कुछ नाहीं. तू ना समझबू. दिक् मत करऽ. चुपचाप सुति जा !”
पंडिताइन मन मार के सूति गईली. लेकिन गणेश तिवारी का आंखिन में नींद ना रहे. ऊ लगातार सोचत रहलन कि भस्मासुर बनल पोलादन से कइसे निपटल जाव ! भगवान शंकर जइसन मति भा बेंवत त रहे ना उनुका में बाकिर विलेज बैरिस्टर त ऊ रहबे कइलन. आ अब उनुकर इहे विलेज बैरिस्टरी दांव पर चेल रहे. ओने उधर फौजी तिवारी के छोटका बेटा के फौज के नौकरी दांव पर रहुवे पोलादन पासी के हरिजन ऐक्ट के हथियार से. से ऊ ओकरे के साधे के ठनलन. गइलन ओकरा लगे मौका देखि के. बाकिर ऊ गणेश तिवारी का मुँह पर थूक दिहलसि आ अभद्दर गारी देबे लागल. कहलसि कि तोरा नरको में ठिकाना ना मिली. बाकिर गणेश तिवारी ओकरा कवनो बाति के खराब ना मनलन. ओकर थूकल पोंछ लिहलम. कहले, “अब गलती भइल बा त प्रायश्चितो करब. आ गलती कइला पर छोटको बड़का के दंड दे सकेला. हम दंड के भागी बानी.” फेर अपना बोली में मिसिरी घोरत कहले, “हम अधम नीच बड़ले बानी एही लायक ! तबहियों तोहरा लोगन का साथे भारी अन्याय भइल बा. इंसाफो कराएब हमहीं. आखि़र हमार ख़ून हउव तू लोग. हमनी का नसन में आखि़र एके ख़ून दउड़त बा. अब तनिका मतिभरम का चलते ई बदलि त ना जाई. आ ना ही ई चमार-सियारन भा पासियन-घासियन का कुटिलता से बदल सकेला. रहब त हमनी का एके ख़ून. ऊ कहले, “त ख़ून त बोली नू नाती !” एह तरह आखिरकार फौजी तिवारी के छोटका बेटा गणेश तिवारी के एह “एके ख़ून” वाला पैंतरे में फंसिये गइल. भावुक हो गइल. फेर गणेश तिवारी आ ओकर छने लागल. उमिर के दीवर तूड़त दुनु साथे-साथ घूमे लगले. गलबहियां डलले. पूरा गांव अवाक रहे कि ई का होखत बा ? विचलित पोलादन पासीओ भइल ई सब देखि सुनि के. ऊ तनिका सतर्को भइल ई सोचि के कहीं गणेश तिवारी पलट के ओकरे के ना डंस लेसु. बाकिर ओकरा फेर से हरिजन एक्ट, कलक्टर अउर पुलिस के याद आइल. त एह तरह हरिजन एक्ट के हथियार का गुमान में ऊ बेख़बर हो गइल कि, “हमार का बिगाड़ लिहें गणेश तिवारी !”
दिन कटत रहल. एक मौसम बदल के दोसरका आ गइल बाकिर पोलादन पासी के गुमान ना गइल. ओह घरी ओकर बेटा बंबई से कमा के लवटल रहे. बिटिया के शादी बदे. शादी के तइयारी चलत रहे. पोलादन के नतिनी अपना सखियन का साथे फौजी तिवारी वाला ओही खेत क मेड़ पर गन्ना चूसत रहे कि फौजी तिवारी के छोटका बेटा ओने से गुजरल. ओकरा के देखि पोलादन के नतिनी ताना कसलसि, “रसरी जरि गइल, अईंठन ना गइल !”
“का बोललिस ?” फौजी के बेटा डाँड़ में बान्हल लाइसेंसी रिवाल्वर निकाल के हाथ में लेत भड़क के बोलल.
“जवन तू सुनलऽ ए बाबा !” पोलादन के नातिन ओही तंज में कहलसि आ खिलखिला के हँस दिहलसि. साथे ओकर सखियो हँसे लगली सँ.
“तनी एक बेर फेर से त कहु !” फौजी तिवारी के बेटा फेर भड़कत ओही ऐंठ से बोलल.
“ई बंदूकिया में गोलियो बा कि बस खालिए भांजत हऊव ए बाबा !”
एतना सुनल रहेकि फौजी तिवारी के बेटा “ठांय” से हवा में फायर कइलसि त सगरी लड़की डेरा के भागे लगली. ऊ दउड़ के पोलादन के नातिन के कस के पकड़ लिहलसि, “भागत काहे बाड़ी ? आव बताईं कि बंदूक में केतना गोली बा !” कहिके ऊ ओहिजे खेत में लड़की को लेटा के निवस्तर कर दिहलसि. बाकी लड़की भाग चलली सँ. पोलादन के नातिन बहुते चीखल चिल्लाइल. हाथ गोड़ फेंकत बहुते बचाव कइलसि बाकिर बाच ना पवलसि बेचारी. ओकर लाज लुटाइये गइल. फौजी तिवारी के बेटा ओकरा देहि पर अबही ले झुकले रहला का बाद अबगे निढाले भइल रहुवे कि पोलादन पासी, ओकर बेटा आ नाती लाठी, भाला लिहले चिल्लात आवत लउकले. ऊ आव देखलसि ना ताव. बगल में पड़ल रिवाल्वर उठवलसि. रिवाल्वर उठवते लड़की सन्न हो गइल. बुदबदाइल “नाई बाबा, नाई, गोली नाहीं.”
“चुप भोंसड़ी!” कहिके फौजी के बेटा रिवाल्वर ओकरा कपारे पर दे मरलसि, साथही निशाना साधलसि आ नियरा आवत पोलादन, ओकरा बेटा, ओकरा नाती पर बारी-बारी गोली दाग दिहलसि. फौजी तिवारी के बेटवो फौजी रहल से निशाना अचूक रहे. तीनों ओहिजे ढेर हो गइले.
अब तीनों के लहुलुहान लाश आ निवस्तर लड़िकी खेत में पड़ल रहे. एकनी के केहु तोपत रहुवे त बस सूरज के रोशनी !
पूरा गांव में सन्नाटा पसर गइल. गाय, बैल, भैंस, बकरी सब के सब ख़ामोश हो गइले. पेड़ के पत्तो खड़खड़ाइल बंद कर दिहले.बयार जइसे थथम गइल रहे.
ख़ामोशी टूटल फौजी तिवारी के जीप का गड़गड़ाहट से. फौजी तिवारी, उनुकर दुनु बेटा आ परिवार के सगरी बेकत घर में ताला लगा के जीप में बइठ गांव से बहरी चलि गइले. साथ में पइसा, रुपिया, जेवर-कपड़ा-लत्ता सगरी ले लिहलन. फौजी तिवारी के बेटा जइसे कि सब कुछ सोच लिहले रहुवे. शहर पहुंचिके ऊ अपना वकील से मिलल. पूरा वाकया सही-सही बतवलसि आ वकील के सलाह पर दोसरा दिने कोर्ट में सरेंडर कर दिहलसि.
ओने गांव में पसरल सन्नाटा फेर पुलिस तूड़लसि. फौजी तिवारी के घर त भाग चुकल रहुवे. पुलिस तबहियो “सुरागरशी” कइलसि आ गणेश तिवारी को धर लिहलसि. लेकिन “हजूर-हजूर, माई-बाप” बोल-बोल के ऊ पुलिसिया मार पीट से अपना के बचवले रहले आ कुछु बोलले ना. जानत रहले कि थाना के पुलिस कुछु सुने वाली नइखे. हँ, जब एस.एस.पी. अइले तब ऊ उनुका गोड़ पर लोट गइले. बोलले, “हजूर आप त जानते हईं कि हम गरीब गुरबा के साथी हईं.” ऊ कहले, “ई पोलादन जी का साथे जब फौजी अन्याय कइलें तब हमही त दरखास ले-ले के आप हाकिम लोगन का लगे दउड़त रहीं. आ आजु देखीं कि बेचारा ख़ानदान समेत मार दिहल गइल !” कहि के ऊ रोवे लगले.कहले, “हम त ओकर मददगार रहनी हजूर आ दारोगा साहब हमहीं के बान्ह लिहलें.” कहिके ऊ फेरु एस.एस.पी. का गोड़ पर टोपी राखत पटा गइले.
“क्या बात है यादव?” एस.एस.पी. दारोगा से पूछले.
“कुछ नहीं सर ड्रामेबाज है.” दारोगा बोलल, “सारी आग इसी की लगाई हुई है.”
“कोई गवाह, कोई बयान वगैरह है इस के खि़लाफ?”
“नो सर!” दारोगा बोलल, “गांव में इस की बड़ी दहशत है. बताते भी हैं इस के खि़लाफ तो चुपके-चुपके, खुसुर-फुसुर. सामने आने को कोई तैयार नहीं है.” ऊ बोलल, “पर मेरी पक्की इंफार्मेशन है कि सारी आग, सारा जहर इस बुढ्ढे का ही फैलाया हुआ है.”
“हजूर आप हाकिम हईं जवन चाहीं करीं बाकिर कलंक मत लगाईं.” गणेश तिवारी फफक के रोवत बोलले, “गांव के एगो बच्चो हमरा खि़लाफ कुछु ना कहि सके. राम कसम हजूर हम आजु ले एगो चिउँटिओ नइखीं मरले. हम त अहिंसा के पुजारी हईं सर, गांधी जी के अनुयायी हईं सर !”
“यादव तुम्हारे पास सिर्फ इंफार्मेशन ही है कि कोई फैक्ट भी है.”
“अभी तो इंफार्मेशन ही है सर. पर फैक्ट भी मिल ही जाएगा.” दारोगा बोलल, “थाने पहुंच कर सब कुछ खुद ही बक देगा सर !”
“शट अप, क्या बकते हो!” एस.एस.पी. बोलल, “इसे फौरन छोड़ दो.”
“किरिपा हजूर, बड़ी किरिपा!” कहिके गणेश तिवारी एस.एस.पी. के गोड़ पर फेरु पटा गइले.
“चलो छोड़ो, हटो यहां से !” एस.एस.पी. गणेश तिवारी से गोड़ छोड़ावत कहले, “पर जब तक यह केस निपट नहीं जाता, गांव छोड़ कर कहीं जाना नहीं.”
“जइसन हुकुम हजूर !” कहिके गणेश तिवारी ओहिजा से फौरन दफा हो गइले.
बाकिर गांव में सन्नाटा अउर तनाव जारी रहुवे. गणेश तिवारी समुझ गइले कि केस लमहर खिंचाइल त देर सबेर उहो फंसि सकेले. से ऊ बहुते चतुराई से पोलादन पासी, ओकरा के बेटा आ नाती का लाशन का लगे से लाठी, भाला के बरामदगी दर्ज करवा दिहले. अउर फौजी तिवारी के वकील से मिलिके पेशबंदी कर लिहले. आ भइल उहे जे ऊ चाहत रहले. कोर्ट में ऊ साबित करवा लिहले कि हरिजन एक्ट का नाम पर पोलादन पासी वगैरह फौजी तिवारी आ उनुका परिवार के उत्पीड़न करत रहले. ई सगरी मामिला सवर्ण उत्पीड़न के ह. बाकिर चूंकि सवर्ण उत्पीड़न पर कवनो कानून नइखे से ऊ एकर ठीक से प्रतिरोध ना करि पवले आ हरिजन एक्ट का तहत पहिले जेहल में भेजा गइले. तब जब कि बाकायदा नकद पांच लाख रुपिया दे के होशोहवास में खेत के रजिस्ट्री करववले रहले. पोलादन के ई पांच लाख रुपिया देबे के सुबूतो गणेश तिवारी पेश करवा दिहलन आ खुदे गवाह बनि गइलन. बात हत्या के आइल त फौजी तिवारी के वकील ने एकरा के हत्या ना, अपना के बचावे के कार्रवाई स्टैब्लिश कर दिहलन. बतवलन कि तीन-तीन लोग लाठी भाला लिहले ओकरा के मारे आवत रहले त उनुका मुवक्किल के अपना रक्षा ख़ातिर गोली चलावे के पड़ल. कई पेशी, तारीख़न का बाद जिला जजो वकील के एह बात से “कनविंस” हो गइले. रहल बाति पोलादन के नातिन से बलात्कार के त जांच अउर परीक्षण में उहो “हैबीचुअल” पावल गइल. आ इहो मामिला ले दे के रफा दफा हो गइल. पोलादन के नातिनो चुपचाप “मुआवजा” पा के “ख़ामोश” हो गइल.
बेचारी करबो करीत त का ?
सब कुछ निपट गइला पर एक दिन गणेश तिवारी चहुँपले फौजी तिवारी का घरे. खांसत-खखारत. बाते बाति में गांधी टोपी ठीक करि के जाकेट में हाथ डालत कहले, “आखि़र आपन ख़ून आपने ख़ून होला.”
“चुप्प माधरचोद !” फौजी तिवारी के छोटका बेटा बोलल, “जिंदगी जहन्नुम बना दिहलऽ पचीस हजार रूपए के दलाली ख़ातिर आ आपन ख़ून, आपन ख़ून के रट लगवले बइठल ना.” ऊ खउलत कहलसि, “भागि जा माधरचोद बुढ़ऊ नाहि त तोहरो के गोली मारि देब. तोहरा के मरला पर हरिजन एक्टो ना लागी.”
“राम-राम! बच्चा बऊरा गइल बा. नादान हवे.” कहत गणेश तिवारी मनुहार भरल आंखिन से फौजी तिवारी का ओरि देखलन. त फौजीओ तिवारी के आंख गणेश तिवारी के तरेरत रहल. से “नारायन-नारायन!” करत गणेश तिवारी बेआबरू होइये के सही ओहिजा से खिसकिये गइला में आपन भलाई सोचलन.
फेरु अगिला कड़ी में
लेखक परिचय
अपना कहानी आ उपन्यासन का मार्फत लगातार चरचा में रहे वाला दयानंद पांडेय के जन्म ३० जनवरी १९५८ के गोरखपुर जिला के बेदौली गाँव में भइल रहे. हिन्दी में एम॰ए॰ कइला से पहिलही ऊ पत्रकारिता में आ गइले. ३३ साल हो गइल बा उनका पत्रकारिता करत, उनकर उपन्यास आ कहानियन के करीब पंद्रह गो किताब प्रकाशित हो चुकल बा. एह उपन्यास “लोक कवि अब गाते नहीं” खातिर उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान उनका के प्रेमचंद सम्मान से सम्मानित कइले बा आ “एक जीनियस की विवादास्पद मौत” खातिर यशपाल सम्मान से.
वे जो हारे हुये, हारमोनियम के हजार टुकड़े, लोक कवि अब गाते नहीं, अपने-अपने युद्ध, दरकते दरवाजे, जाने-अनजाने पुल (उपन्यास, बर्फ में फंसी मछली, सुमि का स्पेस, एगो जीनियस की विवादास्पद मौत, सुंदर लड़कियों वाला शहर, बड़की दी का यक्ष प्रश्न, संवाद (कहानी संग्रह, सूरज का शिकारी (बच्चों की कहानियां, प्रेमचंद व्यक्तित्व और रचना दृष्टि (संपादित, आ सुनील गावस्कर के मशहूर किताब “माई आइडल्स” के हिन्दी अनुवाद “मेरे प्रिय खिलाड़ी” नाम से प्रकाशित. बांसगांव की मुनमुन (उपन्यास) आ हमन इश्क मस्ताना बहुतेरे (संस्मरण) जल्दिये प्रकाशित होखे वाला बा. बाकिर अबही ले भोजपुरी में कवनो किताब प्रकाशित नइखे. बाकिर उनका लेखन में भोजपुरी जनमानस हमेशा मौजूद रहल बा जवना के बानगी बा ई उपन्यास “लोक कवि अब गाते नहीं”.
दयानंद पांडेय जी के संपर्क सूत्र
5/7, डाली बाग, आफिसर्स कॉलोनी, लखनऊ.
मोबाइल नं॰ 09335233424, 09415130127
e-mail : dayanand.pandey@yahoo.com
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