लोक कवि अब गाते नहीं – १९

(दयानंद पाण्डेय के लिखल आ प्रकाशित हिन्दी उपन्यास के भोजपुरी अनुवाद)

अठरहवाँ कड़ी में रउरा पढ़नी कि कइसे मीनू अपना भतार से झगड़ा क के लोक कवि के लगे रखैल बने चल अइली आ लोक कवि उनुका के ठाँव दिहलें बाकिर रखैल बनावे से मना कर दिहलें. अब ओहसे आगा पढ़ीं…..


ई कैंप रेजिडेंस लोक कवि अबहीं नया नया बनवले रहलें. काहें कि उ गराज अब उनुका रहे आ रिहर्सल दुनु काम लायक ना रह गइल रहुवे आ घर बाकिर जवना “स्टाइल” अउर “शौक” से उ रहत रहलें, रह ना सकत रहलें. आ रिहर्सल त बिलकुले संभव ना रहे से ऊ ई तिमंजिला कैंप रेजीडेंस बनवले रहलें. नीचे क एक हिस्सा लोग के आवे-जाए, मिले जुले ला रखलन. पहिला मंजिल रिहर्सल वगैरह खातिर आ दुसरका मंजिल बाकिर अपना रहे के इंतजाम कइलन. जब ई कैंप रेजीडेंस ऊ बनवलें तब मुस्तकिल देख रेख ना कर पवलें. उनुकर लड़िका आ चेलाचाटी इंतजाम देखले सँ. कवनो आर्किटेक्ट, इंजीनियर वगैरहो ना रखलन. बस जइसे-जइसे राज मिस्त्री बतावत-बनावत गइल वइसहीं-वइसे बनल ई कैंप रेजीडेंस. सुन्दरता के बोध त छोड़ीं, कोठरियन आ बाथरूम के साइजो बिगड़ गइल. ज्यादा से ज्यादा कमरा बनावे-निकाले का फेर में. से सगरी कुछ पहिला तल्ला, दूसरा तल्ला में बिखर-बिटुरा के रह गइल. नक्शा बिगड़ गइल मकान के. लोक कवि कहबो करसु कि, “एह बेवकूफन के चलते पइसा माटी में मिल गइल.” लेकिन अब जवन रहे, से रहे आ एही में काम चलावे के रहल. लोक कवि बाहर आत जात बहुते कुछ देखले रहलें. वइसने में से बहुत कुछ ऊ अपना एह नयका रेजीडेंस में देखनल चाहत रहलें. जइसे कई होटलन में ऊ बाथटब के आनंद ले चुकल रहले, लेतो रहलें. चाहत रहलें कि बाथटब के ई आनंद ऊ अपना एह नयको घर में लेसु. बाकिर उनुकर ई सपना टूटल एहले कि बाथरूम एतना छोट बनले स कि ओहनी में बाथटब के फिटिंग होइए ना सकत रहल. आखिरकार ऊ बाथटब ले अइलें आ बाथरूम का बजाय ओकरा के छते पर खुला में रखवा दिहलें. ऊ ओहमें पहिले पाइल से पानी भरवावसु, फेर पटा जासु. लड़िकी भा चेला भा बहादुर भा जेही सुविधा से मिल जाव ऊ ओही में पटाइल-पटाइल ओकरा से आपन देह मलवावसु. लड़िकी होखऽ सँ त कई हाली ऊ ओकनियो के ओहमें खींच लेसु आ जल क्रीड़ा के आनंद लेबे लागसु. कई बेर रतियो में. एह ख़ातिर परदेदारी का गरज से ऊ छत बाकिर रंग बिरंगा बाकिरदा टंगवा दिहलें. लाल, हरियर, आसमानी, पीयर. ठीक वइसने जइसन कुछ होटलन का सोझा कई रंग के झंडा टंगाइल होला.

बाकिर ई सुरूर ढेर दिन ले ना चलल. ऊ जल्दिए अपना देसीपन बाकिर आ गइले. आ भरल बाथटबो में बइठ के लोटा-लोटा अइसे नहासु कि लागे पानी बाथटब से ना बाल्टी से निकाल-निकाल के नहात होखसु. लेकिन ई सुरूर उतरत-उतरत उनुका एगो नया शौक चर्राइल, धूप में छतरी के नीचे बइठे के. साल दू साल ऊ सिरिफ एकर चरचा कइलन आ आखिरकार एगो छतरी मय प्लास्टिक के मेज समेत ले अइले. इहो शौक अबहीं उतरल ना रहे कि पेजर के दौर आ गइल. त ऊ पेजरो उनुका बहुत काम के ना निकलल. बाकिर ऊ सभका के बतावसु कि, “हमरा लगे पेजर बा. हमार पेजर नंबर नोट करीं. ” बाकिर अबहीं पेजर क खुमारी ठीक से चढ़बो ना कइल कि मोबाइल फोन आ धमकल. जहां-तहां ऊ एकर चर्चा सुनसु. कहीं-कहीं देखबो करसु. आखिर एक दिन अपना महफिल में एकर जिक्र ऊ चलाइए दिहलें. बोलले, “इ मोबाइल-फोबाइल के का चक्कर बा?” महफिल में दू तीन गो कलाकारो बइठल रहलें. कहलें स, “गुरु जी ले लीहीं. बड़ा मजा रही. जहें से चाहीं ओहिजे से बतियाईं. ट्रेन में, कार में. आ पाकिट में धइले रहीं. जब चाहीं बतियाईं, जब चाहीं काट दीं.” एह महफिल में चेयरमैन साहब आ ऊ ठाकुर पत्रकारो जमल रहलें. बाकिर जतने मुँह ओतने बात रहल. चेयरमैन साहब “मोबाइल-मोबाइल” सुनत-सुनत अकुता गइलें. ऊ लोक कवि से मुख़ातिब भइलें. देखत घुरियात कहले, “अब तूं मोबाइल लेबऽ? का होखी तोहरा लगे ओकर?” ऊ कहलें, “पइसा बहुत काटे लागल बा का?” बाकिर लोक कवि चेयरमैन साहब के बात सुनिओ के अनसुन बन गइलें. कुछ कहले ना. त चेयरमैन साहबो चुप लगा गइले. ह्विस्की के चुस्की अउर सिगरेट के कश में भुला गइले. लेकिन तरह-तरह के बखान, टिप्पणी अउर मोबाइल के खरचा के चरचा चलत रह गइल. पत्रकार बतवलें कि, “बाकी खरचा त अपना जगह, एहमें सबले बड़का आफत बा कि जवन फोन काल आई ओकरो पर पइसा लागी, हर मिनट का हिसाब से.” सभे हं में हँ मिलावल आ एह इनकमिंग काल के खरचा के सभे अइसे अरथियावल जइसे गोया हिमालय अस बोझा होखे. लोक कवि सभकर बात बहुते धेयान से सुनत रहल. सुनते-सुनत अचानक ऊ कूद के खड़ा हो गइले. हाथ कान पर अइसे लगवलन कि लागे कि हाथ में फोन होखे आ लइकन जइसन सुरूर आ ललक भर के कहले, “त हम ना कुछ कहब, ना कुछ सुनब. बस मोबाइल फोन पासे धइले राखब. तब त खरचा ना नू बढ़ी?”
“मतलब ना काल करबऽ ना सुनबऽ?” चेयरमैन साहब भड़कले, “तब का करे खातिर मोबाइल फोन रखबऽ जी?”
“सिरिफ एह मारे कि लोग जानें कि हमरो लगे मोबाइल बा. हमरो स्टेटस बनल रही. बस !”
“धत चूतिया कहीं के.” चेयरमैन साहब के एह कहला का साथ ही महफिल उखड़ गइल. काहें कि चेयरमैन साहब सिगरेट झाड़त उठ खड़ा भइलन आ पत्रकारो.
तबहियो लोक कवि मनले ना. मोबाइल फोन के उधेड़बुन में लागल रहले.

एगो वकील के बिगड़ैल लड़िका रहल अनूप. लड़िकीयन का फेर में ऊ लोक कवि के फेरा लगावल करे. बाहर के लड़िकीयन के लालच देव कि लोक कवि किहाँ आर्टिस्ट बनवा देब आ लोक कवि किहाँ के लड़िकीयन के लालच देव कि टी.वी.आर्टिस्ट बनवा देब. एह ख़ातिर ऊ कुछ टेली फिल्म, टेली सीरियल बनावे के ढोंगो पसरले रहुवे. किराया पर कैमरा ले के ऊ शूटिंग वगैरहो के ताम-झाम जब तब फइलावल करे. लोक कविओ ओकरा एह ताम-झाम में फंसल रहले. दरअसल अनूप लोक कवि के एगो कमजोर नस ध लिहले रहुवे. लोक कवि जइसे शुरुआती दिनन में कैसेट मार्केट में आवे ला परेशान, बेकरार, आ तबाह रहलें ठीक वइसही अब के दिन में उनुकर परेशानी सी.डी. आ वीडियो एलबम के रहल. एह बहाने ऊ टी.वी. चैनलन पर छा गइल चाहसु. जइसे कि मान आ दलेर मेंहदी जइसन पंजाबी गायक ओह घरी अपना एलबमन से चैनल पर चैनल छपले रहसु. बाकिर भोजपुरी क सीमा, उनुकर जुगाड़ आ किस्मत तीनो उनुकर साथ ना देत रहे आ ऊ मन ही मन छटपटाइल करसु आ शांत ना हो पावसु. काहें कि सी.डी. आ एलबम के द्रौपदी ऊ हासिल ना कर पावत रहले. खुल के सार्वजनिक रूप से आपन छटपटाहट देखाइओ ना पावसु. लोक कवि के एही छटपटाहट के छांह दिहले रहुवे अनूप.

अनूप, जेकर बाप एडवोकेट पी.सी. वर्मा अपना जिला के मशहूर वकील रहल. आ ओकरा वकालत के एगो ना कई गो किस्सा रहल. लेकिन एगो ठकुराइन पर दफा 604 वाला किस्सा सगरी किस्सन पर भारी रहल.

मुख़्तसर में ई कि एगो गांव के एगो ठकुराइन भरल जवानी में विधवा हो गइल. बाल बच्चो ना रहल. लेकिन जायदाद ज्यादा रहल आ सुंदरतो भरपूर रहल. उनुकर पढ़ाई लिखाई हालां कि हाईए स्कूल ले रहल तबो ससुराल आ नइहर में उनुका बराबर पढ़ल कवनो औरत उनुका घर में ना रहे. औरत त औरत कवनो मरदो हाई स्कूल पास ना रहल. से ठकुराइन में अपना अधीका पढ़ल लिखल होखे के गुमानो कपारे चढ़ के चिल्लाव. एहसे सुंदर त ऊ रहले रही तवना पर “पढ़लो लिखल”. से नाक पर माछीओ ना बइठे देसु. लेकिन उनुकर दुर्भाग्य कि दुर्घटना में पति के मरला का बाद जल्दिए विधवा हो गइली. महतारी बने के सुखो उनुका ना मिल पावल. शुरू में त ऊ सुन्न पड़ल गुमसुम बनल रहसु. बाकिर धीरे-धीरे उनुकर सुन्न टूटल त उनुका लागल कि उनुका जेठ अउर देवर दुनु के नजर उनुका देह पर बा. देवर त मजाके मजाक में कई हाली उनुका के धर दबोचे. उनुका ई सब नीक ना लागे. ऊ अपना मर्यादा में रहत एकर विरोध करसु. लेकिन बोलसु ना. फेर एक दुपहरिया जब अचके उनुका कोठरी में जेठो आ धमकले त ऊ खउल पड़ली. हार के ऊ चिल्ला पड़ली आ जेठानी के आवाज दिहली. जेठ पर घइलन पानी पड़ गइल आ ऊ “दुलहिन-दुलहिन” बुदबुदात सरक लिहले. जेठ त मारे शरम सुधर गइले बाकिर देवर ना सुधरल. हार के ऊ सास आ जेठानी से ई समस्या बतवली. जेठानी तो समझ गइली आ अपना पति पर लगाम लगा दिहली लेकिन सास घुड़प दिहली आ उलुटे उनुके पर छिनार होखे के अछरंग लगा दिहली. सास कहली, “एगो बेटा के डायन बन के खा गइल आ बकि दुनु के परी बन के मोहत बिया. कुलटा, कुलच्छनी!”

ठकुराइन सकता में आ गइली. बात लेकिन थमल ना. बढ़ते गइल. बाद के दिन में खाए, पहिरे, बोले बतियावहु में बेशऊरी आ छिनरपन छलके के अछरंग पोढ़ होखे लागल. हार मान के ठकुराइन अपना पिता आ भाई के बोलवली. बीच-बचाव रिश्तेदार, पट्टीदारो कइले-करवले. लेकिन ऊ जवन कहला नू कि, “मर्ज बढ़त गइल, जस जस दवा कइनी. ” आ आखि़रकार ठकुराइन एक बेर फेरू अपना बाप भाई के बोलवली. फेर जमीन जायदाद आ मकान पर आपना कानूनी दावा ठोंक दिहली.

आखिरकार पूरा जायदाद में तिसरी अपना नांवे करवा के ऊ अलगा रहे लगली. अब जेठ आ देवर उनुका खिलाफ खुल के सामने आ गइले. उनुका के तरह-तरह से परेशान करसु, अपमानित करसु. लेकिन ऊ चुप लगा के सब कुछ पी जासु. लेकिन एक दिन ऊ चुप्पी तूड़ली आ अइसन तूड़ली कि पूरा गांव हैरान रह गइल.

ऊ सगरी लाज-हया, परदा-लिहाज तूड़ली आ अपना पति के कुरता पायजामा पहिर लिहली. अपना पति के लाइसेंसी दुनाली बंदूक, जवन अब उनुका नांवे हो गइल रहे, उठवली आ घर से बहरि निकल के अपना जेठ आ देवर के ललकार दिहली. बाकिर जेठ, देवर घर से बहरी ना अइलें, घरे में दुबकल रहले. ठकुराइन के चीख़ल चिचियाइल सुन के एक बेर देवर तमतमा के उठबो कइल बाकिर महतारी हाथ जोड़ के ओकरा के रोक लिहली. कहली, “ऊ तो हाथी नीयर पगलाइल बिया, कहीं गोली, वोली दाग दी त का होई?” देवर अफना के रहि गइल. रह गइल घरही में.

ठकुराइन थोड़े देर ले चीख़त चिल्लात रहली, हाथ में दुनाली बंदूक लहरावत रहली. सगरी गांव बिटोरा गइल. ठकुआ मरले देखत रह गइल. बाकिर जेठ-देवर, सास-जेठानी घर से बहरी ना निकलले. घूंघट कढ़ले कुछ बूढ़ अधेड़ औरत ठकुराइन के कवनो तरह समुझा बुझा के घर का भीतर कइली. कुरता पायजामा उतरवा के फेरू से साड़ी ब्लाउज पहिरवली. शील-संकोच, मान-मर्यादा जइसन कुछ हिदायत दिहली. आ जब ई हिदायत अधिका होखे लागल त ठकुराइन बोलली, “ई सब कुछ हमरे ला बा, ओह लोग खातिर कुछु ना ?” अतना कहि के एगो औरत के कान्ह धे बाकिर सिर रख कर उ फफक क रोवे लगली.

बाहर भीड़ छँटे लागल. भितरी भलही ठकुराइन रो पड़ल रही बाकिर बहरि एगो बूढ़ सभका से कहत रहे, “दुलहिन पर दुर्गा सवार हो गइल बाड़ी.” जवन होखे अब ठकुराइन गांवे में ना जवारो में ख़बर रहली. उनका कुरता पायजामा आ बंदूक लहरावे के चरचा सगरो रहे. मिर्च-मसाला क साथे.

दिन फेर धीरे-धीरे गुजरे लागल. अब ठकुराइन के जेठ आ देवरो उनुका से घबरासु. आ कतहीं कवनो मोर्चा ना बांधसु. तबहियो उन का हिया के चोट अबहीं बाचल रहे. सास त खुले आम कहसु, “हमरा करेजा पर लिट्टी ठोंकत बिया.” जेठ, देवरो एह बात के समुझस. फेर धीरे-धीरे ठकुराइन के खि़लाफ व्यूह रचे में ऊ लोग लाग गइल. अबकी सीधे कुछ करे-करवावे का बजाय वाया-वाया खुराफात शुरू भइल. कवनो छोट जाति के आदमी के ठकुराइन का खि़लाफ लगा दिहल, कवनो पट्टीदार के भड़का दिहल वगैरह. ठकुराइन सब समुझस बाकिर पहिलहीं का तरह फेर चुपचाप सभ कुछ टार जासु. लेकिन जब उनुका हरवाह के जेठ, देवर भड़कवले त ऊ एक हाली फेर खउल गइली. लेकिन अबकी पति के कुरता पायजामा ना पहिरली. नाही दोनाली बंदूकवे उठवली. अबकी ऊ कुछ ठोस कार्रवाई करे चहली.

लेकिन तबहिए उनकर दुर्भाग्य फेरू उनुका के घेर लिहलसि.

घर के अँगना में धोवल गेहूं सुखवावे खातिर पसरले रहुवी. बाहर के दरवाजा कवनो काम से खुलल रह गइल. कि तबहिए दू तीन गो बकरी दउड़त-कूदत घर में आ गइली सँ. आ आंगन में पड़ल गेहूं चबावे लगली सँ. ठकुराइन वइसही खदकत रहली, बकरियन के गेहूं में मुंह मारत देखली त भड़क गइली. घर में राखल एगो डंडा उठवली बकरियन के मारे ला. बाकी बकरी त डंडा उठावते फुदुक के भाग गइली सँ. बाकिर एगो बकरी फंस गइल. ठकुराइन सगरी खीस, सगरी खदकल ओही बकरी पर उतार दिहली. डंडा के वार अतना मजगर रहल कि ऊ बकरी बेचारी ओहिजे छटपटा के छितरा गइल. थोड़िके देर में ओकर साँसो रुक गइल आ ओहिजे आंगने में दम तूड़ दिहलसि.

ठकुराइन डेरा गइली. माथ पकड़ के बइठ गइली. पहिला चिंता जीव हत्या के रहल. एह अपराध बोध में एह पाप बोध में त ऊ रहबे कइली दोसर आ ओहु ले बड़ चिंता रहल कि जाने केकर बकरी रहुवे ई. आ जेकरे बकरी होखी ओकरा के जेठ, देवर चढ़ा भड़का के जाने का-का करवाई ?

आ उनकर ई डर साचहु साँच साबित भइल. ऊ बकरी एगो खटिक के रहुवे. ऊ आसमान कपारे उठा लिहलसि. ठकुराइन समुझ ना पावत रही कि का करसु ऊ. काहे कि ऊ खटिक अब छिटपुट गारिओ देबे लागल रहे. ऊ अपना जेठ आ देवर से ना त हार मानल चाहत रही ना ही ओह लोग का सोझा झुके ला तइयार रही. नइहरो में बार-बार ऊ लोर बहावत, शिकायत करत आजिज़ आ गइल रही. से हार मान के ऊ घर में ताला लगवली आ चुपचाप शहर के रास्ता धइली. शहर चँहुंप के पता कइली कि सबले बड़का वकील के ह? फेर ओह वकील के घर के पता लगा के ओहिजा चहुँपली. सुंदर रहबे कइली से से घर में एंट्री मिले में मुश्किल ना भइल, ना ही वकील से मिले में. वकील के चैंबर में गइली त कुछ अउरिओ लोग ओहिजा बइठल रहे. से ऊ तनिका संकोच घोरत कहली, “माफ करीं हम तनिका प्राइवेट में बतियावल चाहत बानी. ” सुंदर आ जवान औरत खुद ही प्राइवेट बतियावल चाहत होखे त भला कवन मरद मना कर पाई ? वकीलो साहब इंकार ना कर पवले. ओहिजा बइठल लोग के जतना जल्दी संभव भइल निपटवलन आ जब सब लोग चैंबर से बाहर निकल गइल त मुंशी के बोला के बता दिहलन कि, “थोड़ देर ले केहु के भितरी मत आवे दीहऽ.” फेर ठकुराइन से कहले, “हँ, बताईं मैडम!” फेर मैडम बकरी वाली मुश्किल आ खटिक के पट्टीदारी के लोग के चढ़वला भड़कवना के बात विस्तार से बतवली आ कहली, “जवन पइसा खरच होखी, हम करब.” फेर ऊ हाथ जोड़ विनती करत कहली, “लेकिन हमरा के बचा लीं वकील साहब!” फेर अपना जगह से उठ के उनका लगे ले गइली आ गोड़ छूवत कहली, “हमरा के बचा लीं.” फेर जोड़ली, “कवनो कीमत पर.” वकील साहब मौका देख के उनुकर पीठ पर हाथ फेरलन, तोस दिहलन आ कहलन, “घबराईं जन, बइठीं कुछ सोचत बानी.”

फेर थोड़ देर ले ऊ चिंतित मुद्रा में मौन रहलन. माथ पर दू-चार हाली हाथ फेरलन. कानून के दू चार गो किताब अलटन-पलटन आ लगभग परेशान हो गइलन.
उनकर परेशानी देख ठकुराइन बेकल हो गइली. कहली, “का ना बच पाएब?”
“रउरा तनी शांत बइठीं. ” कहिके वकील साहब अपना लिलार पर परेशानी के कुछ अउर रेघारी गढ़लन. फेर कुछ अउर कानून के किताब अलटले-पलटले. आ अब उनुका अपना सोझा बइठल मेम साहिब के बुड़बकाही भरल गंभीरता पर पूरा यकीन हो गइल आ इहो कि अब चूके के ना चाहीं. माथ पर हाथ फेरत कहलें, “दरअसल रउरा कवनो आदमी के हत्या कइले रहतीं त आसान रहीत, बचा लेतीं. काहें कि तब सिरिफ धारा तीन सई दूइए लागीत. लेकिन रउरा जीव हत्या कर दिहले बानी से मामिला डबल हो गइल बा आ 302 क बजाय मामिला दफा छह सई चार के हो गइल बा.” वकील साहब तनिका अउर गंभीर भइलें, “दिक्कत इहे होखत बा तवना पर ई बकरी खटिक के रहल. आ शायद रउरा नइखीं जानत कि खटिक अनुसूचित जाति में आवेला. से एगो पेंच इहो पड़ी.”

ठकुराइन अब अउर घबरा गइली. कहली, “लेकिन हम त राउर बड़ा नाम सुनले बानी. तबहिए रउरा लगे आइल बानी.” ऊ तनिका अउर खुलली, “जवने कीमत देबे होखी हम देब. खरचा-बरचा के रउरा फिकिर मत करीं, हम सब करब. चाहीं त रउरा जज-वज सब सहेज लीं. ” ऊ लगभग घिघियइली, “बस कइसहूं रउरा हमरा के बचा लीं. गांव में हमार बेइज्जती जन होखे, पट्टीदारन का सोझा मूड़ी ना नवे.”
“घबराईं जन.” वकील साहब भरपूर तोस देत कहलन, “अब रउरा हमरा लगे अतना भरोसा ले के आइल बानी त कुछ त करहीं के पड़ी.” ऊ निशाना अउरी दुरुस्त करत कहलें, “अब समुझीं कि अगर रउरा के ना बचा पवनी त हमार वकालत त बेकारे गइल. हमारथू-थू होखी आ हम वकालत छोड़ देब.” ऊ कहलें, “त रउरा निश्चिंत रहीं हम जी जान लगा देब. रउरा कुछ ना होखी. उलटे ओह खटिकवे के फंसवा देब. कि आखि़र ओकर बकरी रउरा घर में घुसल कइसे? ओकर हिम्मत कइसे भइल एगो शरीफ आ इज्जतदार अकेल औरत के घर में बकरी घुसावे के.”

ठकुराइन वकील साहब के एह कहला से बहुते आश्वस्त भइली. उनुका चेहरा पर खुशी के कुछ रेखा लउकल. ऊ बुदबुदइली “राउर बहुते कृपा.” फेर वकील साहब कुछ स्टाम्प पेपर आ वकालतनामा पर उनुका से दस्तख़त करवलें. खटिक के आ उनकर पूरा पता लिखलन. एक हजार रुपए फीस के वसूललन. आ कहलें, “मैडम रउरा निफिकिर रहीं. राउर इज्जत सम्हारल अब हमार काम बा.” बाकिर एहतियातन उनुका से इहो कह दिहलन कि, “रउरा इज्जतदार आ प्रतिष्ठित औरत हईं से रउरा के कचहरी, इजलास दउड़हू धूपे से छुट्टी दिअवा देब जज साहब के दरख्वास्त दे के. नाहक ओहिजा अइला से बेइज्जती होखी. रउरा बस एहिजे आके सीधे हमरे से मिलत रहब.” फेरु वकील साहब आगाह कइलन कि, “हमरा मुंशी भा कवनो जूनियर वकीलो से एह केस के चरचा मत करब. भूलाइओ के ना. ना त एक मुँह से दू, दू से चार, चार से चालीस मुँहे बात पसर जाई. ख़ामख़ा जगहंसाई होखि आ केसो में हो सकेला कि नुकसान हो जाए. से धेयान राखब, ई बात हमरा रउरा बीचे प्राइवेटे रहे.”

बिलकुल कवनो आज्ञाकारी बचवा जइसन ठकुराइन वकील साहब के सगरी बात मान गइली. आ निफिकिर भाव से खुशी-खुशी गांवे लवट गइली. गाँवे अइला पर खटिक फेरू हल्ला दंगा कइलस. बाकिर दोसरके दिन पुलिस आइल आ ओह खटिक के पकड़ ले गइल. भइल ई रहे कि वकील साहब ठकुराइन क ओर से पुलिस में खटिक के खि़लाफ एगो दरखास्त दे के जान माल के ख़तरा बता दिहलन आ पुलिस वालन के पटिया के धारा 107 आ 151 में खटिक के बंद करवा दिहलन. अपने एगो जूनियर लगाके दोसरा दिने ओकरा के जमानत पर छुड़वाइओ दिहलन. ओकरा के कचहरी में अपना तख्ता पर बोलववलन, दू सौ रुपिया दिहलन आ आपन बात समुझवलन.

खटिक गांवे वापिस आइल आ ठकुराइन से माफी मांगे के बात कहलसि. ठकुराइन उलटे ओकरा के झाड़ दिहली. कहली, “जो कचहरी में नाक रगड़. माफी ओहिजे माँग.” ठकुराइन बिलकुल वीर रस में रहली. खटिक चल गइल. लेकिन कुछ दिन बादे फेरू भाव खाए लागल. ठकुराइन भाग के शहर गइली. वकील से मिलली. वकील उनुका के तोस दिहलन, फीस लिहलन. बाद के दिन में त जइसे ई रुटीन बन गइल. खटिक ठकुराइन से कबो गिड़गिड़ाव, कबो भाव खा जाव. ठकुराइन फेरू शहर जासु आ बात खतम हो जाव. लेकिन फेरु कुछ दिन में उपट जाव. काहे कि होत इ रहे कि ठकुराइन के खि़लाफ कवनो मुकदमा त असल में रहल ना बाकिर खटिक के खि़लाफ 107 आ 151 क मुकदमा त रहबे कइल. से ऊ पेशी पर शहर जाव, वकील से मिले, सौ पचास रुपिया लेव आ वकील के कहे मुताबिक गांव में “ऐक्ट” करे. कबो कहे कि, “अबकी त हम फंस गइनी. लागत बा मुकदमा हमरा उलटा जाई.” त कबो कहे, “अब त ठकुराइन बचीहें ना, सजा इनके होखी.” काहे कि वकील साहब किहां से अइसने कुछ कहे के निर्देश होखे. जब जइसन इशारा मिले खटिक गांवे आ के वइसने ऐक्ट करे. ठकुराइन के जेठ, देवर, सासो मामिला का तह में गइले बिना ठकुराइन के फजीहत के आनंद लेसु.

ठकुराइन के अब शहर गइल बढ़े लागल रहे. वकील साहब उनुका से फीस त लेते रहले. फंसावतो रहले. ठकुराइन के ई सब ठीक ना लागे. बाकिर गांव में उनुकर इज्जत वकील साहब बचवले रहलन से ऊ एकरा के बेमने से सही शुरू-शुरू में बर्दाश्त करत गइली. लेकिन बाद में उनुको ई सन ठीक लागे लागल. वकील साहब के पुरुष गंध में उहो बहके लगली. शुरू-शुरू में त वकील साहब के चैम्बरे में प्राइवेट बातचीत के दौरान नैन मटक्का करसु, उनुका घरे में ठहरसु. लेकिन बाद में वकील साहब के घरे में महाभारत मचे लागल. ऊ कहल जाला नू कि लहसुन के खाइल आ दोसरा के नारी के सोहबत छुपवले ना छुपाए. से बात गँवे-गँवे खुले लागल. काहे कि ठकुराइन पहिले त सिर्फ मुवक्किल रहली, बाद में ख़ास मुवक्किल बनली आ फेर अचानके खासमखास बन गइली वकील साहब के. हालांकि देह के सांकल ठकुराइन वकील साहब ला अबले खोलले बा रही बाकिर आँख का रस्ते मन के सांकल ले त वकील साहब आइए गइलन. ई बाति ठकुराइनो जान गइली. वकील साहब संगे सिनेमा-विनेमा, चाट, पकौड़ीओ ऊ करे लगली. लेकिन बाद में वकील साहब के घर में झंझट जब अधिका बढ़ गइल त वकील साहब उनुका के एगो होटल में टिकावे लगलन. कबो-कभार होटल पहुंच के हालो चाल ऊ ले लेसु. लेकिन जल्दिए मुख्य हाल चाल पर आ गइलन आ ठकुराइन के मीठ-मीठ ना नुकुर के बावजूद ऊ उनकर देहबंध आखि़र लांघिए लिहलन. अब कई बेर वकील साहब होटले में ठकुराइन संगे दिन रंगीन कर लेसु. लेकिन कई हाली होटल दिक्कत होखे से ऊ ठकुराइन के शहरे में घर ख़रीदे के सलाह दिहलन. ठकुराइन घर ख़रीदली त ना बाकिर एगो अलग घर किराया पर ले लिहली. ई कहि के बाद में खरीदिओ लेब. बाद में ऊ आवास विकास के एगो एम.आई.जी. मकान ख़रीदबो कइली. एह बीच दू तीण बेर एबॉर्शनो क दिक्कत उठावे पड़ल ठकुराइन के. आखिरकार वकील साहब एगो प्राइवेट डाक्टर से उनुका के कापर टी लगवा दिहलन. अब कवनो दिक्कत ना रहे. वकील साहब गांव में ठकुराइन के इज्जत बचावे के फीस धन आ तन दुनु में वसूलत रहले. सिलसिला चलता रहल. खटिक के 107 आ 151 के मुकदमा कब के खतम हो गइल बाकिर ठकुराइन के खि़लाफ दफा 604 के मुकदमा ख़तमे ना होत रहे.

लेकिन ठकुराइन के एकर फिकर ना रहे. ऊ त भर गरदन वकील साहब के जीयत रहली. हँ वकील साहब जरूर उनुका के जीयत ना रहले. ऊ त भोगत रहले. कबो-कबो कवनो बाति ला दुनु क बीच खटपटो होखे लेकिन कुछुए दिन के तनातनी के बाद वकील साहब उनुका के “मना” लेसु. हालां कि तनातनी के दिन में ठकुराइन गांव चल जासु. खेती बारी बटईया दे दिहले रही. बखरा में जवन अनाज मिले ओकरे के बेच बाच के खरचा चलावसु. कुछ आगा दिन ला बैंको में जमा करत रही. धीरे-धीरे समय बीतत गइल. ठकुराइन भले देह सुख में डूबल कुछ देखत सुनत ना रहली. बाकिर लोग त सब कुछ देखत सुनत रहे. गांव में जवना इज्जत के बचावे का फेर में ऊ एह फांस में फंसली ओहिजो लोग दबल जुबान आ फुसुरे फुसुर से सही जानिए चलल कि जेठ, देवर के धूर चटावे वाली ठकुराइन शहर में एगो वकील के रखैल बन गइल बाड़ी. बात ठकुराइन के नइहरो ले चहुँपल. उनुकर भाई एकाधबेर ऐतराजो जतवलसि बाकिर बाद के दिन में ऊ सिंगापुर चल गइल कमाए. बाप के निधन हो गइल. देवर, जेठ के ऊ माछियो-मच्छर बराबर ना समुझत रहली. गांव में ज्यादातर रहबो ना करसु कि ताना सुनस. दोसरे, घर में काम धाम करे वाला, देखभाल करे वालन के पइसा, अनाज के मदद दे के एतना उपकृत कइले रहसु कि ऊ होंठ खोलल त दूर डट के आंख मूंद ल सँ. आ जे केहू ठकुराइन के गैरमौजूदगी में कबो कभार एहनी से चरचा चलइबो के त ई सब तरेर देसु. कहसु, “ठकुराइन मलकिन पर अइसन अछरंग के बात हमरा सोझा करबो मत करीहऽ ना त जीभ खींच लेब.”
लोग प्रतिवाद करे, “त शहर में रहेली काहे ला?”
“इहां के नरक से ऊब के. ” आदमी जोड़सु, “फेर मलकिन के एहिजा सुविधो का बा ? शहर में बड़ी सुविधा बा. सड़क बा, बिजली बा, दुकान बा, सनीमा बा. आ एहूले बड़ बात कि ओहिजा फटीचर नइखन एहिजा जइसन छोट-टुच्च बात करे खातिर.”
“हँ भई, जेकर खइबऽ ओकर त बजावहूं के पड़ी.” कह के लोग बात ख़तम कर देव.
लेकिन बात ख़तम कहाँ होखे भला?
दिन गुजरत गइल. अब ठकुराइन के चेहरा से चमक छुट्टी लेबे लागल. विधवा जीवन के अवसाद आ अनैतिक जीवन जीए के तनाव उनुका चेहरा पर झलके लागल. हालां कि शहर में ऊ पड़ोसियन से कवनो खा़स संपर्क ना रखत रही आ पूरा शिष्टता, भद्रता से माथ पर सलीके से पल्लू राखिए के घर से बाहर निकलस तबहियो ताड़े वाला आंख ताड़िए लेव. हालां कि घर में काम करे खातिर एगो बुढ़िया आ एगो छोट लइको के ऊ अपना नइहर से ले आइल रही तबहियो अकेल औरत लगे जब एगो मरद आवत जात रहे त केहू सवाल भले मत उठावे बाकिर उठिए जाला. फेर उनकर अकेला औरत के ठप्पा ! लोग कहे बे पतवार के नाव हवे जे चाहे, जेने चाहे चाहे बहा ले जाव. बाकिर अब दिक्कत ई रहे कि बढ़ती उमिर के साथे-साथ उनुकर अकेलापन अब उनुका साले लागल रहल. एह अकेलापन से उबिया के दू एक बेर वकील साहब से दबल जबान शादी कर लेबे के कहबो कइली. बाकिर वकील साहब टार दिहले. उनुकर दलील रहे कि, ऊ बाल बच्चेदार बाड़ें, शहर में उनुकर हैसियत आ रुतबा बा. से लोग का कही ? दोसर दलील उमिर के अंतर के रहल, तिसरका दलील ई कि रउरा क्षत्रिय जाति के हईं आ हम कुर्मी. एहू पर समाज में बखेड़ा हो सकेला. एहसे जइसे चलत बा वइसहीं चले दीं. एही में हमनी दुनु के भलाई बा आ समाजो के. ठकुराइन जबान पर त लगाम लगा गइली बाकिर मने मन कसमसाहूं लगली. ऊ सोचली कि अब वकील साहब से पूरा किनारा कर लेसु. बाकिर ऊ अबहीं सोचते रहली कि पइली कि अब वकील साहब खुद ही उनुका से किनारा करे लागल बाड़े. अब उनुका घर में आइलो गइल कम से कम हो गइल. ऊ सब कुछ छोड़ के अब गांवे वापिस जा के रहे के सोचे लगली. लेकिन उनुकर दफा 604 वाला बकरी के हत्या वाला केसो फंसल पड़ल रहे. ऊ इहो गौर कइली कि अब वकील साहब उनुका केसो पर खास धेयान ना देत रहलें. ना उनुका पर ना उनुका केस पर.
ठकुराइन के चिंता के अब कवनो पार ना रहुवे.
बाद में ऊ जब एकरा तह में जा के पता लगवली त एक बात त साफ हो गइल कि एगो लड़िकी वकील साहब के जूनियर बनके आ गइल रहे, वकील साहब के दिलचस्पी अब ओह जूनियर वकील में बढ़ गइल रहे. ई त ऊ समझली. बाकिर उनुका केस में ऊ कवनो दिलचस्पी नइखन लेत ई बात ना समुझ पावत रहली. ऊ सोचली कि कवनो दोसरा वकील से एह बारे में दरियाफ्त करसु लेकिन उनुका वकील साहब के हिदायत याद पड़ल कि, “केही से एकर जिकिर मत करब ना त केस बिगड़ जाई.”
से ऊ चुप लगा गइली.
लेकिन कब ले चुप लगवती भला? वकील साहब के चैंबर में उनुकर आना जाना बढ़ गइल. वकिलाइनो अब उनुका के देख नाराज ना होखसु ना ही कुढ़ते रहसु. अब त कुढ़े खातिर उनुका ऊ जूनियर वकील मिल गइल रहुवे. अब वकील साहब चैम्बर में प्राइवेट में ओह जूनियर वकील से मिलस. एह फेर में कई बेर ठकुराइनो के बाहर बइठे पड़ जाव. उनुका ई सब बहुते अखरे बाकिर मन मारि के रह जासु.

अब जब ऊ चैम्बर के बाहर बइठसु त चाहे अनचाहे केहू ना केहू से बातोचीत शुरू हो जाव. एह तरह आवत जात अउरियो लोग से परिचय बढ़े लागल. हालां कि विधवा होखला का चलते ऊ सादा साड़ी पहिरसु. मेकअपो ना करसु. ऊ माथ पर आँचर रखले बहुते अदब से, सलीका अउर शऊर से बतियावसु, गंभीरो रहसु, आंखिन में शील संकोच सहेजले केहू से अधिका हँसबो मुसुकास ना तबहियो पहिले लेखा ऊ सभका के अनदेखीओ ना करसु. पहिले अपना सुंदरता आ जवानी के गुरूरो रहल. से सभके बेदेखले चलसु. बाकिर अब सुंदरता के उ गुरूरो उतार पर रहुवे. ऊ चालीस के उमिर चहुँपत रहली तबहियों ऊ जब रिक्शा से भा पैदल कइसहूँ चलसु, लोग मुड़-मुड़ के उनुका के देखे जरूर. त उनुका लागे कि अबही जवानी बाकी बा. अबहीं उनका देहयष्टि में दम बा आ उनुका अपना पर गुरूर आ जाव.

एही गुरूर में ऊ एक दिन सड़क पर खड़ा होके रिक्शा खोजत रहली कि तबहिए वकील साहब के एगो पुरान जूनियर वकील मोटर साइकिल से ओने से गुजरल. ठकुराइन के देख के थथमल, नमस्कार कइलसि. रुकल आ हाल चाल पूछलसि. कहलसि, “जहां जाए होखे चलीं हम चहुँपा देत बानी.” बाकिर ठकुराइन बहुते शालीनता से आँचर ठीक करत मना कर दिहली. कहली, “जी बहुत मेहरबानी बाकिर हम रिक्शा से चल जाएब. रउरा काहें तकलीफ करब ?” कह कर ऊ वकील के टाल गइली. बाकिर वकील गइल ना रुकल रहल. बोलल, “अच्छा रिक्शा मिले ले त राउर साथ दे सकीलें.”
“हँ, हँ काहे ना ?” हलुका मुसुकात ठकुराइन कहली. वकील एनेर-ओने के बात करत अनायासे उनुका केस का बारे में बतियावे लागल. पूछते-पूछत जिरह करे लागल. हालां कि ठकुराइन ओकर हर जिरह टारत गइली. बाकिर जूनियर वकील जइसे ढिठाई पर उतर आइल, “आखि़र कइसन केस ह राउर जे एतना बरीसन से खतमे नइखे होखत. एक्कै कोर्ट में अटकल पड़ल बा.”
ठकुराइन तबहियो चुप रहली.
“अब ले त केस हाई कोर्ट में पहुंच जाला अपील में अतना बरीसन में आ राउर केस अबहीं डिस्ट्रिक्टो जज का लगे ना पहुंचल ? आखि़र ह का ?”
“रउरा ना जानब वकील साहब! बहुत बड़ मामिला ह. उ त वर्मा जी वकील साहब बानी कि बचवले बानी ना त हम त फंसिए गइल रहीं.”
“लेकिन केस ह का?” ऊ जूनियर वकील बोलल, “राउर कवनो फाइलो नइखे चैम्बर में कि हमनी का देखतीं.”
“केस बड़हन ह एहसे वकील साहब खुद देखीलें.”
“अरे तबहियों फाइल कबो त कोर्ट जाई-आई. तारीख़ लागी.” ऊ माथा के पसीना पोंछत बोलल, “आखि़र केस ह का ?”
“दफा 604 के. ” ठकुराइन आहिस्ता से बोलिए दिहली.
“दफा 604 ?” वकील भड़कल, “इहे बतवनी ह नू रउरा कि दफा 604 ?”
“जी. ” ठकुराइन अइसे बोलली जइसे ई बता के कवनो पाप कर दिहले होखसु. कहली, “जाए दीं. रउरा जाईं.”
“हम तो चल जात बानी मैडम बाकिर दस बारह साल से हमहूं एह कचहरी में प्रैक्टिस करत बानी. थाना, एस.पी. ओ देखत बानी. आ आई.पी.सी.ओ. त भारत के कानून में अइसन कवनो दफा त हइए नइखे अबहीं ले.” ऊ जूनियर वकील बोलल, “बलुक आई.पी.सी. में जवन आखिरी दफा ह ऊ ह दफा 511 बस ! त 604 कहां से आ जाई?”
“लेकिन वर्मा जी त हमरा के इहे बतवले रहीं कि दफा 604 हो गइल.” ठकुराइन हकबकात बोलली.
“हो सकेला कि रउरा सुने में गलती हो गइल होखे. ” जूनियर वकील बोलल, “ख़ैर, छोड़ीं. मामिला रहल का ? भइल का रउरा से ?”
“मतलब?” असमंजस में पड़त ठकुराइन पूछली.
“मतलब ई कि रउरा से अपराध का भइल रहे ?”
“बकरी मर गइल रहे हमरा मरला से. एगो खटिक के रहल.”
“ओ हो!” ताली बजावत जूनियर वकील बोलल, “मुलेसर खटिक के त ना?”
“हँ, लेकिन रउरा कइसे जानीलें ?” ठकुराइन फेर अफनइली.
“जानीले ? अरे पूरा कुंडली जानीले.”
“कइसे?”
“कचहरी में तख्ता पर हमेशा आवेला.” ऊ कहलसि, “मैडम माफ करब, वर्मा साहब रउरा के डंस लिहलन.”
“का कहत बानी रउरा ?”
“बताई चैंबर में रउरा से फीस लेले तख्ता पर ओह मुलेसर खटिक के फीस देले त का फोकट में ?” ऊ कहलसि, “फेर रउरो मैडम अतना सिधवा बानी? घर में आगा पीछा केहू नइखे का?”
“काहें ना. सभे केहू बा.”
“त फेर केहू ई ना बतावल कि बकरी मारल कवनो अपराध ना ह?”
“बाकिर खटिक के रहुवे.” ऊ कहली, “अइसने वकील साहब कहले रहले.”
“अरे लाखन बकरी देश में हर घंटा कटाली सँ. खटिक के होखे भा जोलहा के. कवनो दफा बाकिर लागेला का?” ऊ बोलल, “चलीं गलती से केहू के नुकसान होइए गइल त ओकरा के ओकर खर्चा-मुआवजा आ अधिका से अधिका बकरी के दाम दे दीं. ई का कि फर्जी दफा 604 जवन कहीं हइयै नइखे, ओकरा के सालों साल वकील के चैंबर में लड़ीं.” ओ कहलसि, “रउरा त मैडम फंस गइनी.”
“का बोलत बानी रउरा ? सही-सही बोलीं.” ठकुराइन जइसे अधमर हो गइली. कहली, “वकील साहब त कहले रहलन कि आदमी मारीले त दफा 302 लागेला, आदमी के बकरी मार दिहनी त डबल दफा लागेला दफा 604 आ हमरा के अबहीं ले बचवलहूं बानी उहाँ के.”
“रउरा बहुते सोझबक बानी मैडम. रउरा के बचवले नइखन बेचले बाड़न. रउरा के बरगलवले बाड़न ऊ कानून के बाजार में. जवन दफा कहीं भारतीय कानून में हइए नइखे.” ऊ कहलसि, “हमरा पर विश्वास ना होखे त आईं कचहरी कवनो वकील, कवनो जज से दरियाफ्त कर लीं !”
“अब हम का बताईं, कहां आईं ?” बोल के ठकुराइन फफक के रो पड़ली. रोवते-रोवत ओहिजे सड़क पर माथा पकड़ के बइठ गइली.
“रउरा हमरा पर यकीन ना होखे त चैंबर में आ के वर्मे साहब से पूछ लीं कि ई दफा 604 आई.पी.सी. में कहां बा? आ कि राउर केस कवना कोर्ट में चलत बा? सब कुछ दूध के दूध पानी के पानी हो जाई.” जूनियर वकील बोलल, “बस भगवान खातिर हमार नाम मत बोलब. मत बताएब कि हम ई सब बतवनी.” ऊ बोलल, “हँ, जे हम झूठ साबित हो जाईं त ओहिजे हमरा के अपना एह सैंडिल से मारब, हम कुछ ना बोलब.” कह के ऊ चले लागल. बोलल, “मैडम माफ करब. रउरा साथे बहुते भारी अन्याय कर दिहले वर्मा साहब.” बाकिर ठकुराइन कुछ ना कहली. उनुका मुँह में बकारे ना रह गइल रहे. लोग आसमान से जमीन पर अइसहीं गिरेला बाकिर उनुका लागल कि ऊ आसमान से सीधे पाताल में जा के डूब गइल बाड़ी. उनुका के गुमसुम देख के ऊ वकील बोलल, “हमरा साथे त आप मोटर साइकिल पर बइठब ना. रुकीं हम रउरा ला रिक्शा बोलावत बानी.” कह के ऊ एगो रिक्शा बोला ले आइल. ठकुराइन सड़क से उठली, धूरा झाड़त रिक्शा पर बइठली. ऊ गौर कइली कि कलफ लागल उनुका क्रीम कलर के साड़ी जगह-जगह करिया पड़ गइल रहे, सड़क पर बइठ गइला से. ऊ वकील जात-जात उनुका के फेरू नमस्कार कइलस. बोलल, “मैडम नमस्कार!” बाकिर मैडम के मुंह से शब्द गायब रहे. ऊ भउँचक रहली. ऊ धीरे से दुनु हाथ जोड़ दिहली.
“वर्मा जी ने एतना बड़ धोखा दिहलन.” रिक्शा जब चले लागल त ऊ अपना आपे से बुदबुदइली. ऊ निकलल रही बाजार जाए खातिर बाकिर वापिस घरे आ गइली. बुढ़िया महरी से पानी मँगली, पानी पी के ओठंग गइली. दू दिन ले ऊ घरे में पड़ल रहली. बेसुध!
तिसरा दिने ऊ अपना पति के उहे पुरनका कुर्ता पायजामा फेर से खोजली. मिलल त ऊ जगहे-जगह से कटा पिटा गइल रहे. बाजार गइली, एगो नया कुर्ता पायजामा आ अँगवछा खरीदली. घरे अइली. पहिरली. अंगवछा गरदन में लपेटली, दुनाली बंदूक उठवली आ रिक्शा ले के पहुंच गइली सीधे वर्मा वकील के चैंबर पर. धड़घड़ात घुसली. मुंशी उनुकर वेश देख के रोकबो कइलसि कि, “साहब प्राइवेट बात करत बानी.” बाकिर ऊ मनली ना. बिना कुछ कहले चैंबर में घुस गइली. जब चैंबर में घुसली त सोफा पर बइठल वर्मा वकील का गोदी में उनुकर जूनियर वकील बाल खोलले पटाइल पड़ल रहे आ ऊ ओकरा छाती, गाल से खेलत रहले. ठकुराइन के अचके देख के पहिले त चिन्हिओ ना पवले. दूर छटकत हड़बड़ात पूछले, “के ? के?”
“दफा 604 हईं. चिन्हलऽ ना ?” ठकुराइन बिलबिलइली.
“अरे मैडम रउरा ?” ठकुराइन के हाथ में बंदूक देखते घबराइल वकील साहब के हलक सूख गइल. सूखल गला से बोलले, “बइठीं-बइठीं! बइठीं त पहिले.”
“बइठे नइखीं आइल. दफा 604 का होला, कहां होला जाने आइल बानी.” ऊ घुड़कत कहली.
“बइठीं त.” वकील साहब कहलें, “शरीफ इज्जतदार महिला हईँ आप. बइठीं त.”
“शरीफ आ इज्जतदार ? हम ?” ऊ कहली, “ई रउरा कहत बानी ?”
“अरे बइठीं त!” ऊ कहले तब ले जूनियर वकील लड़की आपन कपड़ा लत्ता ठीक-ठाक कर के धीरे से सरक चैंबर से बाहर निकल गइल. फेर चैंबर में मुंशी आ जूनियर वकीलो आ पहुंचले. हल्ला गुल्ला सुन के घरो के लोग आ गइल. वकिलाइनो. ठकुराइन के ई नया रूप देख उनको ठकुआ मार दिहलसि. बहुते मुश्किल से घर के औरत आ मुंशी मिल के ठकुराइन के काबू कइल. बाकिर ठकुराइन लगातार दफा 604 के किताब मांगत रहली, कवना कोर्ट में उनुकर केस चलत बा आ ओह कोर्ट आ जज के नाम पूछत रहली. बाकिर ठकुराइन के कवनो सवाल के जवाब वकील साहब का लगे ना रहुवे. ऊ कहे लगलन, “मैडम अबहीं रउरा खीसि में बानी. जाईं घरे जा के आराम करीं, जब मन शांत हो जाव त आएब, तब बात कइल जाई.”
“अच्छा छोड़ीं.” ठकुराइन वकिलाइन के खींचत कहली, “रउरे इनका से पूछीं आ तनी शांति से पूछीं कि बकरी मरला के जुर्म का दफा 604 के जुर्म होला? आ ना त फेर का होला?”
“हम कानून ना जानीं.” वकिलाइन डेराइल सहमल बोलली.
“अच्छा झूठही बहला फुसला के कवनो शरीफ औरत के रंडी बना दिहल जाव, रखैल बना लिहल जाव, एह अपराध के का कानून होला? ई त जानत होखब?” ठकुराइन सिसकतो में दहड़ली. बाकिर वकिलाइन सब कुछ समुझतो चुप रह गइली.
“हम हईं एह वर्मा वकील के रखैल!” ठकुराइन कहली, “दफा 604 के मुजरिम जवन ई वर्मा बनवलसि आ हमरा के एह दफा से बचावत-बचावत एह बेवा औरत के रंडी बना दिहलसि, रखैल बना लिहलसि. आ हमरे खरचा पर. उपर से आपन फीसो लेत रहल दफा 604 से बचावे खातिर.” ऊ बिफरत रहली, “बताईं अतना साल से ई दोखी हमरा के लूटत रहल. हम का करीं? हे भगवान.” कह के ऊ फफक के रो पड़ली. फेर बंदूक उठवली. ट्रिगर दबवली वर्मा वकील के निशाना बना के. सब लोग मारे डर के एक ओर हो लिहल. बाकिर गोली चलल ना. एह अफरा तफरी में केहू गँवे से गोली निकाल दिहले रहुवे बंदूक से. ठकुराइन हैरान रहली. ऊ तुरते बूझ गइली कि गोली निकल गइल बा. ऊ ना आव देखली ना ताव बंदूक पलटली आ ओकरा कुंदे से वर्मा वकील पर धड़ाधड़ प्रहार कइली. ओह बकरियो से अधिका जोर के प्रहार ! वर्मा जी के कपार फूट गइल आ मुंहो. दउड़ के लोग ठकुराइन के पकड़ल. वकील साहब के बचा के चैंबर से बाहर ले गइल लोग. ठकुराइन के समुझावल बुझावल लोग. उनुका के उनुका घरे भेजल आ वकील साहब के अस्पताल.

डाक्टर लोग बतावल कि वकील साहब के हेड इंजरी हो गइल बा आ ऊ कोमा में चल गइल बाड़ें. अब वकिलाइन दहाड़ मार के रो पड़ली. डाक्टर लगो उनुका के तोस दिहल. दू दिन बाद वकील साहब होश में आ गइलें.

बाकिर ओने पता चलल कि ठकुराइन पगला गइल बाड़ी आ करिया कोट पहिरले गला में फीता बन्हले केहू के देखसु त पत्थर डंडा जवने मिले चला देसु. दस पंद्रह गो वकील एहमें घवाहिल हो चुकल रहले. इहो पता चलल कि खबर सुनते ठकुराइन के जेठ, देवर फौरन शहर आइल आ उनुका के मानसिक चिकित्सालय में भरती करा दिहल. आर उनुका इलाज पर त ओतना ध्यान ना दिहल जवना एह बात पर कि ऊ लोग उनुका जायदाद के वारिस बा. आ ठकुराइन के जेठ, देवर के एह कानूनी दाँव पेंचो में ठकुराइन का खि़लाफ खड़ भइले इहे वर्मा वकील.

बाद के दिन में पागलपन के बिना पर ठकुराइन के जमीन जायदाद उनुकर जेठ, देवर अपना नाँवे करा लिहले आ ठकुराइन फेरु पागलखाने से बाहर आ गइली. कबो कुर्ता-पायजामा त कबो पैंट कमीज पहिरले ऊ शहर के सड़कन पर नजर आवसु आ जवने तवने वकील के पत्थर ईट मारत रहसु. लोग उनुका के देखते कहे लागे, “भागऽ भइया दफा 604 आ गइल.” आ उहो केहू पर ईटा पत्थर चलावत चिल्लासु, “लऽ दफा 604 हो गइल!”


लेखक परिचय

अपना कहानी आ उपन्यासन का मार्फत लगातार चरचा में रहे वाला दयानंद पांडेय के जन्म ३० जनवरी १९५८ के गोरखपुर जिला के बेदौली गाँव में भइल रहे. हिन्दी में एम॰ए॰ कइला से पहिलही ऊ पत्रकारिता में आ गइले. साल 1978 से पत्रकारिता में. इनकर उपन्यास आ कहानियन के बाइस गो किताब प्रकाशित हो चुकल बा. एह उपन्यास “लोक कवि अब गाते नहीं” खातिर उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान उनका के प्रेमचंद सम्मान से सम्मानित कइले रहे आ “एक जीनियस की विवादास्पद मौत” खातिर यशपाल सम्मान से.

बड़की दी का यक्ष प्रश्न के अनुवाद अंगरेजी में, बर्फ़ में फंसी मछली के पंजाबी में आ मन्ना जल्दी आना के अनुवाद उर्दू प्रकाशित हो चुकल बा.

बांसगांव की मुनमुन, वे जो हारे हुए, हारमोनियम के हज़ार टुकड़े, लोक कवि अब गाते नहीं, अपने-अपने युद्ध, दरकते दरवाज़े, जाने-अनजाने पुल (उपन्यास), 11 प्रतिनिधि कहानियां, बर्फ़ में फंसी मछली, सुमि का स्पेस, एक जीनियस की विवादास्पद मौत, सुंदर लड़कियों वाला शहर, बड़की दी का यक्ष प्रश्न, संवाद (कहानी संग्रह), कुछ मुलाकातें, कुछ बातें [सिनेमा, साहित्य, संगीत और कला क्षेत्र के लोगन के इंटरव्यू] यादों का मधुबन (संस्मरण), मीडिया तो अब काले धन की गोद में [लेख के संग्रह], एक जनांदोलन के गर्भपात की त्रासदी [ राजनीतिक लेख के संग्रह], सूरज का शिकारी (बचवन ला लिखल कहानियन के संग्रह), प्रेमचंद व्यक्तित्व और रचना दृष्टि (संपादित) अउर सुनील गावस्कर के प्रसिद्ध किताब ‘माई आइडल्स’ के हिंदी अनुवाद ‘मेरे प्रिय खिलाड़ी’ नाम से आ पॉलिन कोलर के ‘आई वाज़ हिटलर्स मेड’ के हिंदी अनुवाद ‘मैं हिटलर की दासी थी’ के संपादन प्रकाशित बा.

दयानंद पांडेय जी के संपर्क सूत्र

5/7, डालीबाग आफ़िसर्स कालोनी, लखनऊ- 226001

मोबाइल नं॰ 0522-2207728, 09335233424, 09415130127

e-mail : dayanand.pandey@yahoo.com
dayanand.pandey.novelist@gmail.com

1 Comment

  1. omprakash amritanshu

    बहुत सुन्नर लोक कवि के १९ कड़ी . बहुत नीमन लागल.

    Reply

Submit a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *