(दयानंद पाण्डेय के लिखल आ प्रकाशित हिन्दी उपन्यास के भोजपुरी अनुवाद)
आठवीं कड़ी में रउरा पढ़ले रहीं कि
सम्मानित भइला का बाद जब लोक कवि अपना गाँवे अइलन त उनुकरा स्वागत में लागल औरतन में उनुकर बालसखी राधो रहली. जेकर असल नाम त रहे धाना बाकिर गाँव के लोग मोहन से जोड़ के धाना के राधा बना दिहले रहुवे. राधा आ मोहन के जाति अलग रहे आ राधा के बिआह दोसरा गाँवे हो गइल रहे बाकिर तब गवना ना भइल रहे.
अब ओकरा से आगे पढ़ीं …..
हँ, ऊ सावने के महीना रहल !
धाना सखी सहेलियन का साथे अमवारी में झुलुआ झूलत गावत रहली, “कइसे खेले जइबू सावन में कजरिया, बदरिया घेरि आइल ननदी !” जवना पेड़ पर धाना के झूला पड़ल रहे ओह पेड़ से तीन चार पेड़ छोड़ एगो पेड़ का डाढ़ पर पतइअन का अलोते बइठल मोहनवा धाना के टुकुर-टुकुर तकले जात रहे. ऊ खाली ताकते ना रहल, रहि-रहि के धाना के कुछ इशारो करत जात रहे. बाकिर धाना एह सब से बेखबर “ननदी” के गाना में मस्त रहली. होंठ आ गोड़ दुनु गुलाबी रंग से रंगाइल रहल. अँचरा छाती से हट गइल रहे त मोहना के आँखि ओहिजे अटकल का, टिकल पड़ल रहे. बड़ा देर ले इशारेबाजी का बादो जब धाना के नजर मोहनवा पर ना पड़ त मोहनवा आखिरकार एगो छोटहन ढेला धाना के टिकोरा से आम बन चलल जोबना पर साध के अइसन मरलसि कि झूला जब उपर से नीचे का ओर चले तब लागे. लेकिन ढेला ठीक ओहि तरह मरले रहे जइसे कबो ऊ आम का पेड़ पर ढेला मार के धाना के कोइलांसी खिआवत रहे. फरक बस अतने रहल कि तब ऊ ढेला नीचे से उपर ओर मारत रहे, आजु उपर से नीचे का ओर मरलसि. निशाना एकदम सही रहे. माटी के ऊ ढेला धाना के कड़ा आ बड़ा हो चलल जोबना का बीचे जा के तबहिये फँसल जब ऊ पेंग मारत झूला का साथे उपर से नीचे आवत रहे. निशाना के स्टाइल जानल-पहिचानल रहल से चिंहुक के ऊ उपर तकलसि आ आँखि मून लिहलसि. अइसे कि केहू दोसर ना जाने कि मोहनवा दोसरा पेर का डाढ़ पर बइठल बा. फेर जब झूला नीचे से उपर जाये लागल त ना सिर्फ भर आँखि मोहनवा के देखलसि, बलुक कसके आँखो मरलसि. कुछ देर ले अइसहीं दुनु का बीचे झूला चलत रहल आ आँख झूला झूलत रहली स.
बदरी त घेरलही रहली स, कि तबहिये झमाझम बरसहू लागल.
सावन के बादर !
झूला छोड़ के सगरी लड़िकी भगली स बाकिर धाना ना भागल. जल्दबाजी में गोड़ में चोट लागे का बहाबे ओहिजे बगल का पेड़ का नीचे भींजत-भागत गोड़ दबवले मोहन के देखत रहल. पेड़ भींच चुकल रहे. भींजल पेड़ से उतरे में खतरा रहे बाकिर ई खतरा मोहन उठवलसि धाना का खातिर. ओकरा के पावे का खातिर. सगरी औरत भाग के आधा फर्लांग दूर एगो पलान में आसरा ले के बइठ गइली स. लेकिन धाना मोहन के आसरा लिहले एगो पेड़ का नीचे भींजत रहल. भींजत रहल भितरी से बहरी ले. एगो बरखा बाहर होत रहे आ एगो धाना का भीतर. बरसत रहुवे मोहन धाना का भीतर. मोहन धाना के गालन के चूमत रहे आ ओकरा ओंठ पर लागल गुलाबी रंग के अपना जीभ से चाटत रहे. धाना के कड़ेर हो चलल जोबन जब मोहन छुअलसि त जइसे ओकरा देह में भारी करंट दउड़ पड़ल आ निर्वस्त्र धाना बेसुध हो के निशब्द हो गइल. आँख बन्द करके ऊ एगो जियत सपना में कैद होके परम सुख का छन में बहे लागल. आ जब मोहन ओकरा के लगभग निर्वस्त्र कर के ओकरा उपर झुक आइल त ऊ खूब कस के अपना से चिपका लिहलसि. झुलुआ के पीढ़ा जइसे ओहनी के बिछवना बनि गइल रहे आ कवचो बनि गइल रहे कीचड़ से बाँचे के. अमवारी के हरियर घासो दुनु का साथे रहल. फेर जवन थोड़ बहुत कीचड़ छुवतो रहल दुनु के देह के, ओकरा के बरखा के बौछार धो देत रहल. संजोवले जात रहुवे धाना आ मोहन के प्यार के पसीना के आपन पानी दे के. छनो भर ना लागल धाना के देहबंद लाँघे में मोहन के आ ऊ देह के प्राकृतिक खेल के भरल बरखा में खेले लागल. मोहन के पुरुष जइसहीं धाना के औरत के दरवाजा खटखटा के घुसल धाना सिहर उठल. चिहुँक के चीखल आ मोहन निढाल हो गइल. सावन के एगो अउर बदरी बरस गइल रहुवे धाना में, बरिस गइल रहुवे मोहन.
छने भर में.
दुनु मदमस्त पड़ल रहले. एक दोसरा के भींचत. भींजत रहले सावन के तेज बौछारन में. बौछार जब फुहार में बदले लागल त मोहन के पुरुष फेर जागल. धाना के औरतो सूतल ना रहे. एक देह के बरखा दोसरा देह में अउरी गाढ़ हो गइल. आ जब मोहन धाना का भीतर फेर बरसल त धाना ओकरा के दुलरावे लागल. तबहिये सावन के फुहार अउर धीमा हो गइल आ साथही बगल का मड़ई से हँसत खिलखिलात आवत औरतन के आवाजो मधिम-मधिम सुनाये लागल रहे. अचके में धाना छिटक के मोहन से अलगा भइल. पेड़ का अलोत में खिसक के जल्दी से पेटीकोट पहिरलस आ ब्लाउज पहिरत बोलल, “अब तू भाग मोहन जल्दी से !”
“काहें ?” मोहन मदहोशी में बोलल.
“सब आवत हईं.” ऊ कहलसि, “जल्दी से भाग.” कहके ऊ जल्दी-जल्दी साड़ी बान्ह के गोड़ पकड़ पेड़ से सट के बइठ गइल. अइसे जइसे गोड़ के चोट अबहीं ठीक ना भइल होखे. तबहिये मोहन ओकरा के फेर से चूमे लागल त ऊ तनी खिसियाइल, “मरवा के मनबऽ का हो मोहन !”
मोहन धीरे से ओहिजा से भागल. अमवारी का दोसरा ओरि. छप छप छप छप.
औरत जुटली स आ तर-बतर धाना के सम्हारे में लाग गइली स. बेसी नादान टाइप सखी त ओफ्फ-ओफ्फ कर धाना का साथ, “बेसी गाव लाग गइल का ?” का सहानुभूति में पड़ गइली स बाकिर पहुँचल आँखि वाली सखी ताड़ गइली स कि आजु एह अमवारी में सावन का बदरी का अलावहू कवनो बदरी बरिसल बा. अइसहीं ना रुक गइल रहे धाना सखी.
“का हो धाना सखी, आजु त तू नीक से भींजि गइलू हो.” कहत एगो औरत, जेकर गवना हो चुकल रहुवे, पूछलसि, “इमनवा बचल कि ना !” फेर अपने जोड़लसि, “तोहार अँखिया बतावत बा कि ना बचल.”
“का जहर भाखत बाड़ू !” धाना एतराज जतवलसि.
“मानऽ चाहे ना. गवनवा त हो गइल एह बरखा में. जाने इमनवा बचल कि ना !” ऊ औरत प्यार भरल तंज कसत बोललसि.
“अरे सीधे पूछ कि जोरनवा पड़ल कि ना ?” एगो तीसर सखी पड़ताल करत बोलल, “हई घसिया बतावति बा !” ऊ आँखि घुमावत होंठ गोल करत बोलल, “हई होठवा के उड़ल लाली बतावति बा, हई साड़ी क किनारी बतावति बा.”
“का बतावति बा ?” धाना बिफर के बोलल.
“कि घाव बड़ा गहिर लागल बा हो धाना बहिनी !” एगो अउर हुसियार सखी बोलल.
बरखा रुक गइल रहल बाकिर धाना के सहेलियन के बात खतम ना होत रहे. आजिज आ के धाना एगो सखी के सहारा ले के उठ खड़ा भइल. ओकर कान्ह पकड़लसि आ घरे चले के आँखे-आँख में इशारा कइलसि. ऊ चले लागल तबहिये झूला के पीढ़ा उठावत एगो सखी बोलल, “ई पीढ़ा त झूलवा से उतरल बा हो.”
“के उतारल ?” एगो दोसर सखी रस लेत पूछलसि.
“हई पायल जे उतरले होई.” ऊ पीढ़ा का लगे गिरल धाना के पायल देखावत बोलल.
“लावऽ पायल ! एहिजा जान जात बा आ तोहनी के मजाक लागल बा.” सकुचात खिसियात धाना बोलल.
“राम-राम !” ऊ सखी बोलल, “ई तोहरे पायल ह का ?” ऊ फेर चुहल कइलसि, “केहू से बतायब ना, के उतारल ? बता द.”
“हई दई उतरलैं !” धाना बदरियन का ओर इशारा करत जान छोड़ावे के कोशिश कइलसि.
“का हो दई, इहै कुल करबऽ !” उपर बदरी का ओर देखत आ ठुमकत ऊ सहेली जइसे बदरिये से कहलसि, “लाज नइखे आवत, धाना के पायल उतारत !”
फेर त घर के रास्ता भर किसिम-किसिम के चुहल होत रहल. घर का लगे चहुँपते एगो सखी बोलल, “हई ल धाना के पायल दई का निकरलें कि इनकर चालो बदलि गइल !”
“काहे ना बदले भला. घाव जवन लागल बा.” ऊ सहेली बोलल, “जानऽ करेजा में लागल बा कि गोड़े में. बाकिर लागल त बा !”
धाना के ओकरा घरे छोड़त सखी धाना के महतारीओ से कहत गइली, “घाव बड़ा गहिर लागल बा. हरदी दूध ढेर पियइहऽ ए काकी !”
जवने होखे बाकिर धाना एह पूरा हालात, ताना-ओरहन अउर दिक्कतन के ब्योरा मोहन से अपना अगिला मुलाकात में, खुसुरे-फुसर करिये के सही, पूरा-पूरा बता दिहली. जवना के बाद में लोक कवि अपना एगो डबल मीनिंग गाना में बहुते बेकली से इस्तेमालो कइलन कि “अँखिया बता रही है लूटी कहीं गई हैं.” फेर आगा दोसरा अंतरा में ऊ आवस, “लाली बता रही है चूसी कहीं गई है” आ फेर गावसु “साड़ी बता रही है खींची कहीं गई है.”
बहरहाल बिना घावे के सही, हरदी दूध पियत घरी धाना के नजर अपना गोड़ के अँगुरी पर पड़ल त धक् रह गइली. देखली कि गोड़ के अँगुरी से बिछिया गायब रहे ! ऊ दबल जबान से माई के ई बात बतइबो कइलस त माई कवनो एतराज ना जतवली. माई बोलली, “कवनो बात नाईं बछिया, तोहार जान-परान अउर गोड़ बचि गइल से कम बा का ? बिछिया फेर आ जाई.”
गोड़ में चोट के बहाना तबहियो भारी पड़ल. एह बहाने कुछ दिन ले धाना घर से बाहर ना निकल पवलसि. आ तब जब ओकर अंग-अंग महुआ जस महकत रहुवे. ओकर मन होखे कि ऊ चोटी खोल, केश के खुला छोड़ खालिये गोड़ कोसो दउड़ जाव. दउड़ जाय मोहना का साथ. भाग जाय मोहना का साथ. फेर लवटि के घरे ना आए. ऊ बस दउड़त रहे. ऊ आ मोहना दउड़त रहें एक दोसरा के थमले, एक दोसरा से चिपटल. केहू देखे ना, केहू जाने ना.
लेकिन ई सब त सिर्फ सोचे आ सपना के बात रहे.
साँच में त ऊ मोहना से भेंट करे खातिर अकुलात रहे. अफनात रहे. गुनगुनात आ गावत रहे, “हे गंगा मईया तोंहे पियरी चढ़इबों, मोहना से कई द मिलनवा हे राम !” सखी-सहेली समुझऽ सँ कि “सईंया से कई द मिलनवा हो राम” गावत बाड़ी धाना. स्वेटर वाला सईंया खातिर. बाकिर धाना त गावत रहे “मोहना से कई द मिलनवा हो राम.” लेकिन “मोहना” अतना होसियारी से फिट करे कि केहू बूझ ना पावे. सिर्फ उहे बूझे. आ ऊ देखे कि मौका-बेमौका मोहनो कवनो गाना टेरत ओकरा घर का लगी से जल्दी-जल्दी गुजर जाव. कनखी से एने-ओने झाँके, देखे. लेकिन ऊ करे त का ? ओकरा गोड़ में “घाव” नू रहे !
“जल्दिये” ओकर “घाव” ठीक हो गइल आ ऊ कुलांचा मारत घर से निकले लागल. अइसे जइसे कवनो गाय के बछड़ा होखो. बाकिर मोहना के देखियो के ना देखे. अनजान बनि जाव. मोहना परेशान हो जाव, धानो. आ फेर रात में ऊ भेंट करे मोहना से चुपके-चुपके. बाकिर सपना में. साँच में ना. अमवारी, बरखा, झूला, मोहना आ ऊ. पाँचो एक साथ होखसु. सपना में बरखत ! भींजत, चिपटत आ फेर सिहर-सिहर एक दोसरा के हेरत. एक दोसरा के जियत. बाकिर सब कुछ सपनवे में होखे.
साँच में ना.
सपना मोहनो देखल करे. धाना के सपना. अमवारी बरखा आ झूला के ना. सिर्फ धाना के. आ बहि जाव सपना के कवनो छोर पर जाँघिया खराब करत.
जल्दिये खतम भइल दुनु के सपना के सफर !
सच में मिलले.
भरल दुपहरिया धाना के भईंसियन का धारी में. भईंस चरे निकलल रही स. आ धाना मोहन धारी में. माछी, मच्छर आ गोबर का बीच एक दोसरा के चरत. जल्दिये दुनु छूट गइले. कैद से. तय भइल कि अब आगा से दिन में ना, राते में कबहू धारी, कबो खरिहानि, कबो अमवारी, कबो खेत भा जहँवे कहीं मौका मिल जाई मिलत रहल जाई. एहिजा-ओहिजा. बाकिर चुपे-चोरी. धाना जल्दी में रहल. धारी से सबसे पहिले भागल फेर मौका देख के मोहनो एने-ओने ताकत गँवे से निकलल.
फेर मौका बेमौका कबो अरहर का खेत में, कबो गन्ना के खेत में, कबो बगइचा त कबो धारी. बारी-बारी जगहा बदलत मिलत रहले धाना मोहन. बहुत बचाइयो के होखे वाली ई मुलाकात पीपर के पतई का तरह सरसराये लागल. लोग का जबान पर आवे लागल. मोहन-धाना भा धाना-मोहन का तौर पर ना. राधा-मोहन का तौर पर. धाना जइसे मोहन खातिर सखी रहे, वइसहीं चरचाकारन, टीकाकारन खातिर राधा बन चुकल रहे. कृष्ण वाली राधा ! त नाम चलल का दउड़ पड़ल. राधा-मोहना !
बाकिर राधा मोहना त बेखबर रहले. बेखबर रहले अपना आपो से. अपना खबर बन गइला का खबर से.
एक रात दुनु बड़ी देर ले एक दोसरा से चिपटल रहले. ओह रात मोहना कम धाना बेसी “हमलावर” रहे. मोहना जब-जब चले के बात करे तब-तब धाना कह देव, “ना, अबहीं ना.” ऊ जोड़े, “तनिक अउरी रुक के.” मोहना करे त का, धाना ओकरा उपरे पटाइल पड़ल रहे. अपना कड़ेर-कड़ेर जोबना से ओकरा के कचारत. आ मोहना नीचे से ओकरा चूतड़ कें रहि-रहि के हाथ से थपकियावत कहे, “अब चलीं नू ?” आ ओकर जबाब रहे, “ना, अबही ना.” ओह रात धीरही-धीरे सही, राधा मोहना से कहलसि, “बड़ा गवईया बनल घूमत फिरे लऽ, आजु हम गाइब !” आ धाना गइबो कइलसि खूब गमकि के, “ना चली तोर ना मोर / पिया होखे द भोर / मारल जइहैं चकोर / आज पिया होखे द भोर.” आ साँचहू ओह राति धाना भोर भइला का बादे छोड़लसि मोहना के. तब ले मोहन धाना का साथे गुत्थम गुत्था हो के तीन चार फेरा निढाल हो चुकल रहे. चलत-चलत ऊ सिसकारी भरत मचल के बोलबो कइलसि, “लागता जे हमें मार डरबू ए धाना !”
“हँ, तोहरा के मार डारबि” धानो शोख होत बोलल रहे तब.
राधा मोहन के ई सिलसिला चलत रहल आ चरचो !
बात मोहना के घर ले चहुँप चुकल रहे बाकिर राधा रुपी धाना के घरे ना. केहू के हिम्मते ना पड़े. राधा के दू गो भाई पहलवान रहले आ लठइतो. जेही खबर चहुँपाइत ओकर खैर ना रहे. एही नाते गाँव में चरचा चलबो करे राधा-मोहन के त खुसुरे-फुसुर में. आ उहो गुपचुप.
बाकिर कब ले छूपीत ई खबर !
आखिर खबर चहुँपिये गइल धाना का घरे, जवन धाने चहुँपवलसि. धाना का, ओकर ओकाईल चहुँपवलसि. बाकिर धाना का घरे खबर चहुँप गइल ई बात धाना का घर वाला कानो कान केहू के खबर ना होखे दिहले. धाना के ढेरे यातना दिहल गइल. बाकिर इहो बाति बाहर ना निकलल. पचवें में गवना जावे वाली धाना के डेढ़ बरीस पहिलही गवना हो गइल. ई खबर जरुर चहुँपल सभका ले बाकिर चरचा एकरो ना भइल.
धाना यातना जरुर सहलसि आ बेहिसाब सहलसि बाकिर मोहना के नाम जुबान पर ना ले आइल.
बाकिर मोहना डेरा गइल रहे. डेरा गइल रहे पहलवानन का लाठी से. ऊ जान गइल रहल कि ऊंच नीच हो गइल बा. घबरा के शहर के राह धइ लिहलसि. ओहिजे चंग ले के गावे बजावे लागल.
धाना का फेर में एने ऊ गवनइयो भुला दिहले रहल.
एक दिने ऊ जिला कचहरी के एगो मजमा में गावत रहल. कलक्टर के जुर्म पर बनावल हाना. बिना कलक्टर के नाम लिहले. तबहियो पुलिस पकड़ि के पीट दिहलसि मोहन के. गनीमत रहल कि जेलवेल ना भेजलसि. लेकिन ऊ ई कलक्टर के जुर्म वाला गाना गावत रहल. एक दिने राह चलते एगो कम्युनिष्ट नेतो मोहन से ई गाना सुन लिहलन. ई कम्युनिष्ट नेता ओहिजा के विधायको रहलन. मोहना के बोलवलन. बात कइलन, चाय पियवलन आ ओकरा बारे में जनलन. ओकर पीठ थपथपवले आ पूछले कि “हमरा पार्टी खातिर गइब ?”
“जे कही ओकरे खातिर गाइब. बस गरीबन का खिलाफ ना गाइब.” मोहन बेखौफ हो के बोलल.
“हमहन गरीबे, मजदूरन आ मजलूमे के लड़ाई लड़ीले जा.” कम्युनिष्ट नेता मोहन के ई बात बता के ओकर मन साफ कइलन आ ओकरा के अपना साथ अपना टीम के मेंबर बना लिहलन. फेर ऊ पार्टी के मेंबरो बनल आ पार्टी खातिर गावे लागल.
बाकिर ऊ अपना सखी धाना के ना भुलाइल. धाना के खोज खबर लेत रहल. बाद में पता चलल कि धाना के बेटा भइल बा. ओकरा ई समुझत देरी ना लागल कि ई बेटा ओकरे बेटा ह. मोहना आ धाना के बेटा. ऊ रोब से मूंछो अईंठलसि. हालांकि ओकरा मूंछ के अबही ठीक-ठाक पतो ना रहल. हँ नाक का नीचे पातर मूँछ जइसन इबारत जरुर निकलत लउके.
बाद में ओकरा धाना के तकलीफ, “जल्दी” बच्चा पैदा हो गइला का चलते मिले वाला ताना आ तकलीफो के ब्योरा मिलत रहल. पर ऊ बेबस रहे. करबि करीत त का ? कवनो पहल भा दिलचस्पी देखवला के मतलब रहल धाना के अउरी कष्ट, बेइज्जति आ दिक्कत में डालल. से ऊ धाना के तकलीफन के ध्यान करिके अकेलही में रो गा के शांत हो जाव.
एही बीच मोहनो के गवना हो गइल. ऊ शहर से गाँव, गाँव से शहर गावत-बजावत भटकत रहल. बाकिर कवनो टिकाऊ राह ना मिलल. तब ले दू गो बच्चो हो गइल रहन स ओकर. लेकिन रोजी रोटी के ठिकाना दूर दूर ले ना लउकत रहल.
एही बीच ओकरा धाना फेर लउकल. रिक्शा से शहर के अस्पताल जात. ओकर मरदो ओकरा साथे रहल आ ओकर बेटो. रोक ना पवलसि मोहन अपना आप के. सगरी खतरा उठावत ऊ लपकल आ बोलल, “हे सखी !” सखी मोहन के आवाज सुनते सकुचइली बाकिर घबरइली ना. अपना मरद के खोदियवलसि, मोहन के देखवलसि आ बोलल, “का हो मोहन !” मोहन के मन के सगरी पाप मेटा गइल. सखी के मरद रहल त पहलवान बाकिर खिसियाह ना रहल. सखी के मानत जानत बहुते रहल. एक तरह से सखी के गुलाम रहल. ठीक वइसहीं जइसे जोरू के गुलाम ! सखी मरद से कहि के मिठाई मँगवलसि आ खुसफुसा के बतवलसि कि, “तोहरे बेटा के तबियत खराब हवे. सरकारी डक्टरी में देखावे वदे आइल हईं.”
मोहन झट से कम्युनिष्ट नेता से संपर्क सधलसि जे पार्टी आफिस में भेंटा गइले. उनकर बात डाक्टर से करवलसि. डाक्टर लड़िका के ठीक से देखले परखले. निमोनिया बता के इलाज शुरु कइलन. लड़िका ठीक हो गइल, साथही मोहनो. धाना के मरद मोहन के मुरीद बन गइल. मोहन आ ओकर सखी धाना के रास्तो साफ हो गइल. दुनु फेर मिले जुले लगले. कबही धाना के मरद का सामनही त कबो चुपे-चोरी. धाना के अबही ले एके गो बेटा रहल, मोहन का कृपा से. मोहन के धाना से मिलल जुलल शुरु का भइल, धाना के गोड़ फेर भारी हो गइल. कोई आठ बरीस बाद !
कि तबहिये चुनाव के एलान हो गइल. मोहन के ऊ कम्युनिष्ट नेता फेर से चुनाव लड़लन. मोहना एह चुनाव में जान लगा दिहलसि. लोकल समस्या के ले के एक से एक गाना बनवलसि आ घवलसि कि दोसरा नेता लोग के छक्का छूट गइल. नेता लोग के भाषन से बेसी मोहन के गाना के धूम रहल. नेताजी के हर जलसा में त मोहन गवबे करे, जलसा का बाद जीप में बईठ के माइक लिहले गावे, गाँवे-गाँवे घूमे. एह फेर में ऊ गावत अपनो गाँवे गइल आ सखियो का गाँवे.
फेरु अगिला कड़ी में
लेखक परिचय
अपना कहानी आ उपन्यासन का मार्फत लगातार चरचा में रहे वाला दयानंद पांडेय के जन्म ३० जनवरी १९५८ के गोरखपुर जिला के बेदौली गाँव में भइल रहे. हिन्दी में एम॰ए॰ कइला से पहिलही ऊ पत्रकारिता में आ गइले. ३३ साल हो गइल बा उनका पत्रकारिता करत, उनकर उपन्यास आ कहानियन के करीब पंद्रह गो किताब प्रकाशित हो चुकल बा. एह उपन्यास “लोक कवि अब गाते नहीं” खातिर उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान उनका के प्रेमचंद सम्मान से सम्मानित कइले बा आ “एक जीनियस की विवादास्पद मौत” खातिर यशपाल सम्मान से.
वे जो हारे हुये, हारमोनियम के हजार टुकड़े, लोक कवि अब गाते नहीं, अपने-अपने युद्ध, दरकते दरवाजे, जाने-अनजाने पुल (उपन्यास), बर्फ में फंसी मछली, सुमि का स्पेस, एक जीनियस की विवादास्पद मौत, सुंदर लड़कियों वाला शहर, बड़की दी का यक्ष प्रश्न, संवाद (कहानी संग्रह), सूरज का शिकारी (बच्चों की कहानियां), प्रेमचंद व्यक्तित्व और रचना दृष्टि (संपादित), आ सुनील गावस्कर के मशहूर किताब “माई आइडल्स” के हिन्दी अनुवाद “मेरे प्रिय खिलाड़ी” नाम से प्रकाशित. बांसगांव की मुनमुन (उपन्यास) आ हमन इश्क मस्ताना बहुतेरे (संस्मरण) जल्दिये प्रकाशित होखे वाला बा. बाकिर अबही ले भोजपुरी में कवनो किताब प्रकाशित नइखे. बाकिर उनका लेखन में भोजपुरी जनमानस हमेशा मौजूद रहल बा जवना के बानगी बा ई उपन्यास “लोक कवि अब गाते नहीं”.
दयानंद पांडेय जी के संपर्क सूत्र
5/7, डाली बाग, आफिसर्स कॉलोनी, लखनऊ.
मोबाइल नं॰ 09335233424, 09415130127
e-mail : dayanand.pandey@yahoo.com
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