– रामरक्षा मिश्र विमल
(1)
गीत
टनटनात माथ
जहर लागेला घाम
हाय राम
एहू पर दूब के सुतार.
रउँदेले सुबह शाम
घुमवइया लोग
बकरी लगावेलिन
ठाकुर के भोग
तबहूँ ना कवनो गोहार
हाय राम
कइसन ई ममता दुलार.
बीछे बनिहारिन
बेमोह भरल खेत
खुरपी ले घूमे
दुगोड़ा परेत
सहि जाले सभकर प्रहार
हाय राम
धीरज के कवनो ना पार.
(2)
जिम्मेदारी
जिम्मेदारी
सघन बन में
हेभी गाड़ी के रास्ता
खुरपी आ लाठी के बल
नया संसार
स्वतंत्र प्रभार.
जिम्मेदारी
जाबल मुँह भींजल आँखि
फर्ज के उपदेश आ निर्देश
गोपाल के ठन ठन
नपुंसक चिंतन.
जिम्मेदारी
तलवार के धार
मित्रन के दुतरफा वार
आदर्श विचार
साँप आ छुछुंदर के गति
धीर गंभीर आ शांत मति.
जिम्मेदारी
तर तर घी चूअत पूड़ी आ गरम जलेबी
माछी आ चिउँटिन के बहार
प्रतिबंधित लार
रहरी के खेत में हुँड़ार.
जिम्मेदारी
बैमानी के खोंप पर
ईमानदारी के टोपी
स्वारथ के छोटकी दुआर
भूसा के कतने इयार
जवान सुंदर आ शोख
बाघ आ बकरी के परतोख.
bahut sundar rachna badi san…
sundar bimb aa nik proyog…
wah..khub khub
nik..
sadhuvad
santosh
“टनटनात माथ
जहर लागेला घाम
हाय राम!”
राउर कविता के
जे पी लिही जाम
कुछ सिख जाई
कमाए लगी नाम !!
विमल जी राउर दुनो रचना के जवाब नइखे .मन खिलखिला गइल.
धन्यवाद !
ओ.पी .अमृतांशु