– ओम प्रकाश सिंह
आजु भोजपुरी पंचायत के जुलाई अंक पढ़े के मौका मिलल. भोजपुरी पंचायत के अंक जब आवेला तब पहिला बेर में पन्ना पलट चल जानी कि देखीं एहमें भोजपुरी ला का कुछ बा. तब दोसरा बेर पलट के ओह रचनन के देखीलें पढ़ीलें. अबकियो उहे भइल. पूरा अंक पलट गइनी त हमरा हिसाब से भोजपुरी से जुड़ल जवन कुछ लउकल तवना के विवरण नीचे देत बानी :
बावन पेज के पत्रिका पर पहिला भोजपुरी रचना मिलल पेज 10 पर प्रभाकर पाण्डेय के लिखल ‘एक त खाज अउर ओपर मरलसि…’. प्रभाकर जी हिन्दी के विद्वान हईं. एक बेर उहाँ के ब्लाॅग पर सवाल पूछले रहनी कि ‘कि’ आ ‘की’ के इस्तेमाल में कतना सावधानी के जरूरत होखे के चाहीं. प्रभाकर जी हमरा बात के जवाब त नाहिए दिहनी, अपना ब्लाॅग पर ओह सवालो के जगहा ना दिहनी. आजु फेरू एह लेख में कई जगहा ‘की’ के इस्तेमाल देख के फेर सवाल उठावत बानी. वइसे पूरा पत्रिका में हिज्जा के गलती भरल पड़ल बा. बाकिर एह लेख में ‘की’ के इस्तेमाल में टाइप के गलती नइखे, लेखक के फैसला उहे बा. एही तरह ‘भी’ के बात. हिंदी विद्वान जब लिखिहें त उनका बिना ‘भी’ के कामे ना चले. आशा बा कि आजु जब ई सवाल हम एहिजा उठावत बानी त एह सवाल के जवाब मिली.
अगिला पेज पर हिंदी रचना ‘पूरब की बेटियांँ : शिक्षा-व्यापार की मुख्य ग्राहक’ के भोजपुरिया समाज से जुड़ल लेख माने के चाहीं.
एकरा बाद कई एक लेख देश आ बिहार के राजनीति से जुड़ल मिलल. एकरा के मानल जा सकेला कि इहो सब कुछ भोजपुरिया समाज के प्रभावित करेला. खैर बहुत आगे बढ़नी त पेज 28 पर केशव मोहन पाण्डेय के लिखल रचना ‘पारंपरिक भोजपुरी गीतों में वैवाहिक विधान’ मिलल. भोजपुरी संस्कार आ संस्कृति से जुड़ल ई रचना जानकारी भरल बा आ भोजपुरी पर शोध करे वालन के काम जोग बा.
पेज तीस पर उमेश सिंह के लेख ‘विलुप्त हो रही है भारतीय संस्कृति’ में लेखक के पीर झलकत बा. भोजपुरी संस्कार आ संस्कृतिओ एही तरह बिलाए का राह पर बा. पंचन के एह पर चिंता मनन करे के चाहीं.
सबसे काम लायक लेख मिलल पेज 32 पर संतोष कुमार के लिखल ‘भोजपुरी भाषा के मानकीकरण – ओकर शब्दन के एकरूपता’. बाकिर एह लेख के सब स्वाद बिगाड़ देता बा कंपोजिंग के गलती. भाषा के भासा त मानल जा सकेला भाशा माने में दिक्कत होखी. दुर्भाग्य से एह लेख में कई जगहा भाशा के इस्तेमाल हो गइल बा. बाकिर एह लेख के बाति से विरोध ना हो सके. हम त इहे मानीले कि भोजपुरी भोजपुरी होले हिंदी के बिगाड़ल भा भोजपुरियावल रूप ना होखे. दुर्भाग्य से अनेके हिंदी विद्वान जे भोजपुरिओ में लिखेलें एह तरह के विकार के शिकार हो जालें. हम कवनो तरह के अति के पक्षधर ना हईं. देश के देशे रहे दिहल जाव देस बनवला के कवनो खास जरूरत नइखे. भोजपुरी के मानकीकरण एगो बहुते जरूरी मुद्दा बा जवना से निपटल सबके सूची में माथ पर होखे के चाहीं. हम त चाहब कि भोजपुरी के सगरी विद्वान एह बारे में आपन आपन राय जोर शोर से उठावसु. बाद में जवन अधिका लोग का राय में सही लागी तवन अपने आप इस्तेमाल में आवे लागी.
पेज चउँतीस पर बतकुच्चन के एगो कड़ी प्रकाशित बा जवना का बारे में हम कुछ कहीं से ठीक ना लागी.
पेज छत्तीस पर भूत प्रेेत वाली कहानियन के कड़ी में प्रभाकर पाण्डेय के लिखल कहानी बा. मीडिया के टीआरपी बढ़ावे ला एह तरह के कहानियन के बहुते महत्व होला बाकिर हम एह तरह के कहानी से सीधे आगे बढ़ जानी पड़े के जहमत ना उठाईं. बाकिर ई कहानी भोजपुरिए इलाका के ह से इहो मंजूर बा भोजपुरी पंचायत पत्रिका में.
पेज 41 पर संतोष कुमार के भोजपुरी कविता संग्रह ‘भोर भिनुसार’ के समीक्षा छपल बा. किताब कतनो बढ़िया होखे बाकिर खरीददार ना मिलसु त सब कुछ बेकार बा. आदमी रोटीए दाल जुटावे में अतना छितरा गइल बा कि किताब भा पत्रिका खरीदे के बेंवत नइखे रहि गइल आम आदमी में. भोजपुरी प्रकाशन का सामने आजु सबले बड़ समस्या खरीददारन के गैरमौजूदगी बा. जे लोग सरकारी खरीद के जोड़ जुगाड़ जुटा लेबे में सक्षम बा ओह लोग के छोड़ दीं त बाकी लोग के किताब खुद छपवा के हित मितन में बाँट देबे तक सिमट के रहि गइल बा.
पत्रिका के आखिर में छह पेज भोजपुरी सिनेमा से जुड़ल ‘ले दही’ करत समाचारन से भरल बा. हम खुदे परेशान रहीलें एह ‘ले दहियन’ वाला सामग्री से. स्टैंडर्ड नमूना एह तरह के होला :
फलाँ कंपनी के बैनर में फलाँ निर्माता के मशहूर निर्देशक फलाँ निर्देशित फलाँ फिलिम के मुहुर्त भइल. एह फिलिम में फलाँ सुपर स्टार आ फलाँ एक्ट्रेस नंबर वन बाडे/बाड़ी. कहलन भा कहली कि जइसहीं एह फिलिम के प्रस्ताव मिलल हम चिहुँक गइनी आ तुरते हॅ कह दिहनी. फलाॅ निर्देशक कमाल के हउवन. निर्देशक फलाँ सुपर स्टार के बड़ाई करत कहलन कि फलाँ गजब के कलाकार हउवन. फलाँ फिलिम फलाँ तारीख से रिलीज होखत बा. रिलीज हो गइला का अगिला दिने खबर आई कि फिलिम सुपर हिट हो गइल. ई भोजपुरिए सिनेमा में होला कि हर एक्टर अपना पहिलके फिलिम से सुपर स्टार बन जाला, हर फिलिम सुपर हिट होखेले. बाकिर सौ में नब्बे निर्माता फेरू एह लायक ना रहि जासु कि अगिला फिलिम बनावे के हिम्मत करसु.
त बावन पेज के भोजपुरी पंचायत पत्रिका के जुलाई अंक के परिक्रमा पूरा हो गइल. हमरा हिसाब से ई पत्रिका भोजपुरी के पंचन आ पंचायतन के शानदार नमूना माने के चाहीं. धन्य बाड़न एकर संरक्षक डा॰ संजय सिन्हा. भगवान करसु कि उनकर बिजनेस हमेशा फरत फूलात रहे आ ई पत्रिका एही तरह नियमित प्रकाशित होखत रहे. साधुवाद एकरा संपादक कुलदीप श्रीवास्तवो के जिनका मेहनत बिना एह पत्रिका के प्रकाशन संभव ना रहे. बाकिर का कवनो अइसन भामाशाह नइखन जे भोजपुरी खातिर भोजपुरिए में काम करसु, भोजपुरी प्रकाशनन के बढ़ावा देसु.
अलग बात बा कि एह तरह के भामाशाह तब ले ना मिल पइहें जब ले भोजपुरी के पंच अपना पंचायत में भोजपुरी के हक ना दे दीहें. आ हम एह पत्रिके के बात नइखीं करत. हम भोजपुरी के सगरी विश्व, ब्रह्मांड, आ पता ना का का सम्मेलन, संगठन चलावे वालन के बात करत बानी. आखिर में बस इहे कहब कि, ‘सब पंचे के कृपा ह कि भोजपुरी एह हाल में बिया.’
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