– जयशंकर प्रसाद द्विवेदी
कोइला से पटरी पचरल
ले के शीशी घोटल
सांझी खानि घरे मे
माई ले रगड़ के मुंहो पोछल
बा के इहवाँ जे दुलराइल नइखे ।
माई के झिड़की खातिर
माटी मे सउनाइल
खाड़ हँसे बाबूजी
बबुआ बा भकुयाइल
अब्बो ले भुलाइल नइखे ।
लुका छिपी आइस बाइस
ती ती ती ती खेलल
सतहिया सरियावे मे
गेना पीठ पर झेलल
सुन भईया अउंजाइल नइखे ।
गोंइडे ना राखी क घूर
सपना मे देखी गोहरउर
जबले लगल सिवाने भट्ठा
आमो ना लिहलस बउर
चुहाने कुछों बसियाइल नइखे ।
खरिहाने के छोह मे
ना लाइकन के गोल
उघरल दिखे मचान
खोल रहल बा पोल
पहिली बात भुलाइल नइखे ।
चुल्हाने मे माँगल चउकी
केनी बा ओड़िचा भउकी
दुअरे ना बाजत ढोलक
चढ़ल ना छान्ही प लउकी
छन्हियों असों छवाइल नइखे ।
ओरवानी के चुवना
अब ना चढ़ी बड़ेंर
चाहे कतनों उचरे
कागा बइठ मुंडेर
बगियाँ फूल फुलाइल नइखे ।
कहाँ हेराइल आपन गाँव
सून भइल पीपर के छाँव
दीखल नाही इहों भरूका
ना हुरपेटत नन्हकू साव
जोन्हीयो त सुघराइल नइखे ।
जयशंकर प्रसाद द्विवेदी
मैनेजिग एडिटर (वेव ) भोजपुरी पंचायत
इंजीनियरिंग स्नातक ;
व्यवसाय : कम्पुटर सर्विस सेवा
सी -39 , सेक्टर – 3;
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