ज़िन्दगी बा त दर्दो मिली खुशियो मिली – मनोज तिवारी

भोजपुरी फिल्मों के मेगा स्टार मनोज तिवारी के एह बाति के बखूबी इल्म बा कि ज़िन्दगी बा त दर्दो मिली खुशियो मिली. एहसे ऊ आपन हर छोट बड़ खुशी सहेज के राखल चाहेले. सहेजे के त ऊ अपना दिल के रिश्तो के चाहेले लेकिन उनुकर दिल के रानी माने तब नू. मनोज तिवारी का अदाकारी आ गवनई में संवेदना के एगो बड़हन संसार हाजिर बा. प्रेम, सौंदर्य, अवसाद, मिलन, बिछोह, रुसवाई, बेवफाई के गहीरा एहसासन से भरल उनुका ज़िन्दगी पर जबे कवनो तस्वीर बनावल जाई त जिंदगी के तमाम मुश्किल आ दुश्वारियनो में मनोज तिवारी के एगो नया रंग भरत देखल जा सकेला. उनुका अभिनय आ गायन के जिन्दगी एही हजार-हजार रंगन के ओकरा खूबसूरत आ दर्द भरल लमहन के पकड़ लेबे के कलात्मक कोशिश का रूप में देखल जा सकेला. उनुकर अदबी शख्सियत उनुका के दोसरा कलाकारन से काफी अलगा राखेले आ मनोज तिवारी के एगो नया प्रतिमान का रूप में पेश करेले. बचपन गांव का मटमइल राहन पर बीतल. महतारी के अभावन से लोहा लेते देखलन, दिक्कत का साथे संगीतो सीखलन. इहे माहौल रहल जवना में मनोज तिवारी में गायन के प्रति लगाव बढ़ल. पिछला दिने मनोज तिवारी फुर्सत के चंद लमहा हमरा साथे बँटलन आ ओही लमहन के कुछ बाति एहिजा पेश करत बानी.

मनोज जी, इंडिया टुडे देश के चुनिंदा 20 गो सिनेमाई शख़्सियतन में रखलसि, पाकिस्तान के एगो वेबसाईट पाकिस्तान में लोकप्रिय भारतीय सितारन में गिनलसि, आ भोजपुरी सिटी सिने अवार्ड में दशक के सबले बड़ सितारा के अवार्ड दिहलसि, खुशी त मिलले होई ?
– खुशी त मिलल, लेकिन जिम्मेदारीओ बढ़ गइल. लोग के अपेक्षा पर खरो उतरे के बा.

विश्व भोजपुरी सम्मेलन में रउरा के पद्म पुरस्कार देबे के मांग उठावल गइल. आखिर का बात बा कि पिछला बीसियन बरीसन में कवनो भोजपुरी गायक के पद्म पुरस्कार ना मिलल ?
– हमहू कहीं पढ़नी कि हमरा के पद्म पुरस्कार के मांग उठावल गइल बा. हमार मानना बा कि ज़िन्दगी बा त दर्दो मिली खुशियो मिली.

मनोज जी, दर्द के वजह का रउरा पत्नि के रउरा से तलाक माँगल बा ?
– हम अपना बीबी बेटा स अलगा रहे के कल्पने से काँप जात बानी. हम नइखी चाहत कि हमार घर उजड़े. हमरा खातिर ऊ आदमी भगवाने होखी जे हमरा घर के उजड़े से बचा ली. लोग श्वेता के नाम लेत बा बाकिर हमार श्वेता से कवनो लफड़ा नइखे, बिग बॉस में लोग देखलही होखी. रानी के हम आजुओ बेहद प्यार करेनी.

एक वजह इहो हो सकेला कि आप आम आदमी बनके जियल चाहीले ?
– हम जवना पेशा में बानी ओहमें मुखौटा पहिरल कामे आवेला बाकिर सामान्य बनल रहला के अपने आनन्द होला. आजु हमरा लगे एक से एक बेशकीमती गाड़ी बा बाकिर आजुओ हमरा बनारस में रिक्शा पर घूमल नीक लागेला.

राजनीति के त बॉय बॉय कर दिहले होखब ?
– एकदमे ना. झारखंड में प्रचार करे गइनी त लोग हमरा पर भरोसा कइल आ ओह प्रत्याशी को विजयी बना दिहलसि जेकर हम प्रचार कइले रही.

बिहार के एगो अखबार आपके बिहार में लोकप्रियता में नीतीशे कुमार का बाद बतवले रहे.
– बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के हम जबरदस्त फैन हईं आ एक दिन उनुका के प्रधानमंत्री बनत देखल चाहीला.

मनोज जी, अभिनय के पथरीली भूमि आ संगीत के सौम्य सागर में एके साथ विचरण कइल, समुद्र से गंगा आ यमुना के पानी के अलग कइला जइसन दुरुह काम होला. रउरा एह सागर से उर्वरो बनावत बानी आ सागर से मोतीओ चुनत बानी. कइसे कर लिहिले ई सब ?
– हम दुनु का माध्यम से समाज के जगावल आ भोजपुरी भाषा के बढ़ावल चाहीले. लोग में भोजपुरी खातिर समर्पण देखल चाहीले. एहसे अभिनय आ गायन में संतुलन बनल रहेला.

राउर फिल्म ‘ससुरा बड़ा पईसावाला’ भोजपुरी सिनेमा खातिर जन जागृति ले आ दिहलसि. आज भोजपुरी सिनेमा एक बेर फेर नीति आ रणनीति में अझूराइल बा. रउरा का भोजपुरी सिनेमा के एह भंवर जाल से निकाल पायब ?
– राउर सवाल झकझोरे वाला बा बाकिर भोजपुरी सिनेमा के विकास खातिर हम हमेशा लागल रहब.

कई बेर फिल्मन में आपके किरदार निर्धनता का माम‍िला में प्रेमचंद के ‘रंगभूमि’ के सूरदास, भा पूस के रात के हलाकू जइसन होले. कइसे निबाह पाइले अइसन किरदार ?
– जे खुदे घोर गरीबी आ अभाव के जिनिगी जियले होखे आकरा अभिनय में त गरीबी जियतार होइये जाई. हम बहुते कठिनाई देखले बानी. हमार बड़का भाई साधू शरण तिवारी हमरा के एगो राह देखवले, व्यवस्था जुटवले आ हम संगीत के स्वर साधना में रम गइनी.

भोजपुरी के विकास खातिर कवो नया पहल ?
– भोजपुरी के विकास खातिर पूरी दुनिया में गइल बानी. मॉरीशस, सूरीनाम में भोजपुरी के विकास खातिर कई गो समझौते भारत सरकार का साथे हमरा पहल पर भइल बा.

मनोज जी आज भोजपुरी सिनेमा का हर बड़का निर्माता रउरा के लेके फिल्म बना रहल बा, का रउरा फेर पहिले जइसन संजीदा हो गइल बानी ?
– हम अपनानिर्माता निर्देशक के अपना परिवार लेखा मानीले, ओह लोग के प्रतिकार ना करी बलुक सम्मान करीले. आ निर्मातो निर्देशक लोग जानेला कि मनोज तिवारी के विचार, सरोकार आ चिंतन के दायरा कतना बड़हन बा.


(स्रोत – शशिकान्त सिंह)

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