– शिवजी पाण्डेय ‘रसराज’
सावन आइल तूँ ना अइलऽ गइलऽ कवना देस
अँगनवा लागेला परदेस!
हरियर धरती लगे सुहावन, करिया बदरा डोले,
दुअरा पर झिंगुर झँकारे, ताले दादुर बोले,
पानी-भरल बदरिया झूमे, उड़ा के करिया केस.
अँगनवा लागेला परदेस!
राति-राति भर पुरवइया, केहू के राह निहारे,
अँचरा के फहरा-फहरा के, लागे डगर बहारे,
जोहत-जोहत बाट पिया के, होला बहुत कलेस,
अँगनवा लागेला परदेस!
पाँति देखि उड़त बकुला के, मनवा बा अकुलाइल,
बिजुरी तड़पे गाँव के कोना, जियरा मोरा डेराइल,
मनवा जोगी अइसन भइल, बदलि गइल परिवेस,
अँगनवा लागेला परदेस!
झकझोरे जव पछुआ, रिमझिम रिमझिम बुनिया बरिसे,
ना आइल पाती सजना के, हियरा हमरो तरसे,
लागे ना ‘रसराज’ नीक अब, केहू के उपदेस,
अँगनवा लागेला परदेस!
(मैरिटार, बलिया. फोन : 09415682126)
लागे ना ‘रसराज’ नीक अब, केहू के उपदेस,
अँगनवा लागेला परदेस!
पवित्र विरह के भाव के व्यक्त करे वाली ई नीक रचना पढ़ि के मन अकुला गईल. बहुत धन्यवाद अपने के…..