– डॉ. कमल किशोर सिंह
आहार अनोखा लिटी चोखा
का महिमा हम बखान करीं.
ई ‘बर्बाकिउ बिचित्र बिहारी’
बेहतर लागे घर से बहरी,
दुअरा-दालान, मेला-बाज़ार,
कहंवो कोना में छहरी.
नहीं चुहानी चौका-बर्तन
बस चाही गोइठा-लकड़ी.
मरदो का मालूम मकुनी में
मर-मसाला कवन परी.
आलू, प्याज, टमाटर, बैगन
बनेला चोखा चटक तरोपरी.
संतुलित सरल ब्यंजन बिशेष,
ई ह सम्पुष्ट स्वस्थ के गठरी
रजस तमस भा शुद्ध सात्विक,
सहज सुलभ बा जगहा सगरी.
स्वाद सादगी में लपटाइल
कि देखि के देवतो लागे हहरी,
हरि हो गोइलन स्वयम निछावर
एही से नाम परल ‘फुटेहरि’
परेशान कुछ बूढ़ पुरनिया
ई करे बड़ी दाँत से बजरी.
घीव पीयावस कतनो बाकि,
कबो लिटी ना बने फुलवरी.
(2)
फगुआ
बहल बसन्ती बयरिया,
तनी मन बहका ल.
ललका, पियारका, हरियरका,
सब रंग लगा ल.
सब कुछ सुहावन लागे,
दिन मनभावन लागे,
इन्द्रधनुष आपन मनवा,
तू आज बना ल.
अन धन घर भरल,
वन उपवन सज्जल ,
सजी धजी जग के रिझाव
तन मन महका ल .
सब मिली गाव हंस,
प्रेम बरसाव रस.
भरि अंकवारी मिल सबसे ,
भेद भाव भुला द.
डॉ कमल किशोर सिंह, न्यू यॉर्क
कविता, भोजपुरी
दूनो कविता बहुत नीमन बाड़ी सन डॉक्टर साहब ! बधाई !