(दयानन्द पाण्डेय के बहुचर्चित उपन्यास के भोजपुरी अनुवाद)
धारावाहिक कड़ी के दूसरका परोस
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पहिलका कड़ी अगर ना पढ़ले होखीं त पहिलो ओकरा के पढ़ लीं.)
गिरधारी राय के लड़िका सभ अबहीं छोटहने रहलें बाकिर छोटक भाई अब सयान हो गइल रहुवे. इंटरमीडिएट के इम्तिहान भलही पास ना कर पवलसि ऊ बाकिर पिता का रसूख़ क बल ओकर बिआह एगो भल परिवार में तय हो गइल. तब के दिना शादी में बारात तीन दिन के होखल करे. पहिला दिने बिआह, दोसरका दिने मरजाद, आ तिसरका दिने विदाई होखल करे. रामबली राय क छोटका बेटा गंगा रायो के बिआह तीन दिने वाला रहल. मरजाद का दिन के दृश्य गांव के पुरनियन का आंख आ मन में आजुओ जस के तस बसल बा. लोग जब-तब आजुओ ओह बिआह के ज़िक्र चला बइठेलें अकसरहां. बारात के तंबू (शामियाना) बहुते बड़हन रहल. आम के बड़हन आ घन बगइचा में ऊ शामियाना गड़ाइल रहुवे. ओकरा पछिमारा बीचो-बीच कालीन आ ओहपर मसनद लगवले रामबली राय बइठल रहलें. सामने संदूक़ वगैरह सजावल रहल, जइसन कि ओह घरी के बारातन के चलन रहल. रामबली राय दुलहा का साथे अइसे अकड़ के बइठल रहलें जइसे कबो अकबर आपन दरबार लगा के बइठत होखी. आ जब घर के मुखिया कवनो शहंशाह का तरह पेश आवत होखसु त राजकुमार लोग भला कइसे पीछे रहि जासु?
गिरधारी राय शमियाना के दखिनी कोना धइले रहलन त मुनक्का राय उत्तरी कोना. दुनू नहा धो के मूंगा सिल्क क कुरता पहिरले अपना-अपना तख़त पर मसनद लगा-लगा के विराजमान हो गइलें. दुनू का साथे आस-पास बिछावल खटियन पर उनुकर दरबारिओ बइठ गइलें. अब बारात से कवनो रिश्तेदार विदा मांगे जाव भा बारात में आवे त रामबली राय के गोड़ छू के पारा-पारी एहू दुनू जने का लगे अभिवादन करे जाइल करे. अगर केहू पहिले गिरधारी राय का लगे आवे त ऊ बइठले-बइठल मूड़ी नवावत हाथ जोड़ के पूछसु, ‘अच्छा त जात बानीं? प्रणाम!’ आ जे कहीं जाए वाला रामबली राय का बाद पहिले मुनक्का राय का लगे पहिले चल जाव आ ओकरा बाद गिरधारी राय का लगे आवे त उनुक भौंह तना जाव. बोले के लहजा बदलि जाव. बलुक कहीं त तीख हो जाव. बहुते लापरवाही से कहसु, ‘जात बानीं ? प्रणाम !’ आ ऊ प्रणाम अइसन बोलसु जइसे जाए वाला के ऊ प्रणाम ना कइले होखसु, बलुक जूता मरले होखसु. ठीक वइसहीं दृश्य मुनक्को राय ओरि घटल करे. उनुको तरफ जे केहू पहिले आवे त ऊ प्रणाम अइसन अंदाज में करसु कि जइसे प्रणाम ना करत होखसु फूलन के बरखा करत होखसु. आ जे कहीं केहू पहिले गिरधारी राय ओर से हो के उनुका लगे यहुँपे त प्रणाम अइसे करसु मानो भाला घोंपत होखसु. बाकिर ई दृश्य ढेक देर ले ना चलल.
कुछ मुंहलगा लोग मुनक्का राय का लगे बिटोरा गइलें. आ उनुका से मुग़ले आज़म फिलिम के डायलाग्स सुनावे के निहोरा करे लगलें. थोड़ ना-नुकुर का बाद उहो शुरु क दिहलें डायलाग्स सुनावल. कबो ऊ सलीम बन जासु त कबो अकबर त कबो अनारकली के हिस्सा के ब्यौरा बतावे लागसु. आ फेरु ‘सलीम तुझे मरने नहीं देगा और अनारकली हम तुम्हें जीने नहीं देंगे’ सुनावे लागसु. बाकिर जल्दिए ऊ डायलागबाज़ी बंद कर दिहलन. फेरु तरह-तरह के चरचा आ क़यास लगावल शुरू हो गइल मुनक्का राय के ले के.
मुनक्का राय के कई गो बाति जवन कबो उनुका बखरा के अवगुण कहात रहुवे, अब उनुकर गुण बनके ओह शेर के फलितार्थ करत रहल कि, ‘जिन के आंगन में अमीरी का शजर लगता है/उन का हर ऐब ज़माने को हुनर लगता है।’ मुनक्का राय अब एहिजा मुनक्का बाबू हो चलल रहलें. लोग बतियात रहल कि अइसहीं थोड़े, मुनक्का बाबू जब छोटे रहलन, मिडिल में पढ़त रहलन तबे से रात-रात भर घर से भागल रहसु, नौटंकी देखे ख़ातिर. आ जब शहर में पढ़े गइलन त भलहीं एक-एक क्लास में दू साल-तीन साल लाग जाव बाकिर फिलिम त हमेशा ऊ फर्स्ट डे-फर्स्ट शो ए देखल करसु. आ ई मुग़ले आज़म के त ऊ लगातार तीन महीना बिना नागा रोजे देखलन. रिकार्डे रहल भइया। वइसहीं थोड़े आजुओ उनुका ओकर एक-एक डायलाग याद बा. एक बेर त भइया इनकर सार शहर गइल अपना बीवी के इलाज करवावे. डाक्टर-वाक्टर के दिखवलसि. दवाई ले आवे के बाति भइल त मुनक्का बाबू के रुपिया दिहलन ई सोचि कि पढ़ल-लिखल हउवें, दुकानदार घपला ना कर पाई. भेजलन मुनक्का बाबू के दवाई ले आवे. बाकिर मुनक्का बाबू त रुपिया लिहलन आ चलि गइलन मुग़ले आज़म देखे. अइसन नशा रहल मुनक्का बाबू के मुग़ले आज़म क. सार इंतज़ारे करत रह गइल. बीवी के दवाई के. खैनी ठोंकत.
मुनक्का बाबू के मुग़ले आज़म गाथा के तंद्रा तब टूटल जब एगो नवही लईका टोकलसि आ मुनक्का बाबू से पूछलसि कि, ‘अइसन का रहल मुग़ले आज़म में जे तीन महीना लगातार देखे जात रहलऽ ?’ पहिले त ऊ ओह नवही के बात अनसुना कइलन बाकिर ऊ दू तीन बेर इहे सवाल दोहरवलसि त ऊ खिझिया गइलन. बाकिर गँवही से बोललन, ‘अरे मूरख सिरिफ देखहीं ना, समुझे जाता रहनी ओकर डायलाग्स! हिंदी में त रहल ना. उर्दू अउर फ़ारसी में रहल डायलाग्स.’ फेरु बइठले-बइठल बइठे के दिशा बदललन, पदलन आ फेरु ताली पीटत बोललन, ‘त डायलाग्स समुझे जात रहनी. आ जब डायलाग्स बुझाए लागल तो ओहमें मुहब्बत के जवन जादू, जवन नशा रहल आ मुहब्बत के जवन इंक़लाब रहल ओकरा में, ऊ मज़ा देबे लागल.’ कहत ऊ उपर आम के पेड़ निहार् लगलव. फेरु मुग़ले आज़मे के एगो गाना गँवे से बुदबुदइलन, ‘पायल के ग़मों का इल्म नहीं, झंकार की बातें करते हैं।’
एने मुनक्का बाबू के कैंप में मुग़ले आज़म आ मुहब्बत के दास्तान ख़तमो ना भइल रहल कि ओने गिरधारी राय का कैंप में तू-तड़ाक शुरू हो गइल. बुझाइल कि मारपीट हो जाई. गिरधारी राय फुल वैल्यूम में आग बबूला रहल, ‘बताईं ई दू कौड़ी के आदमी के औक़ात बा जे हमरा के झूठा कहे!’
‘झूठ?’ ऊ आदमी चिल्लाइल, ‘सरासर झूठ बोलत बानीं रउआ. जवना के सफ़ेद झूठ कहल जाला.’
‘देखीं फेरु… फेरु हमरा के झूठा कहत बा.’ गिरधारी राय अब लगभग ओह आदमी के पीट दीहल चाहत रहलम. ऊ आदमी कवनो डिग्री कालेज में लेक्चरर रहल आ कनिया पक्ष का ओर से रहुवे. बरात में बस अइसहीं औपचारिक रूप से पूछे आइल रहल कि, ‘बारातियन के कवनो दिक्क़त-विक्क़त त नइखे?’ फेरु बइठ गयइल गपियावे ला. भेंटा गइलन गिरधारी राय. पहिले त सब कुछ औपचारिके रहल। बाकिर जब गिरधारी राय देखलन कि ई डिग्री कालेज के मास्टर उनुका पर कुछ अधिके रौब गांठत बा त ऊ बहुते सुघराई से ओकरा के बतवलन कि उहो इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से पढ़ल हउवें. बाते का रौ में पहिले ऊ झोंकलन कि, ‘ऊहो एल.एल.बी हउवन.’
‘तो वकालत कहां करीलें?’ ऊ पूछलन.
‘वकालत?’ गिरधारी राय बतवलन कि, ‘समय कहां बा वकालत करे के?’
‘का तब अउर का करीलें ?’ लेक्चरर के उत्सुकुता बढ़ गइल रहल.
‘घर के ज़िम्मेदारी बाड़ी सँ. राजनीति के व्यस्तता बा.’ फेरु एही रौ में ऊ अउरी झोंक दिहलन कि, ‘पी.सी.सी. के मेंबरो हउवन ऊ.’
‘पी.सी.सी.?’
‘प्रदेश कांग्रेस कमेटी।’ गिरधारी राय ओकरा के रौब में लीहल चहलन, ‘अतनो ना जानीं मास्टर साहब!’
‘हम मास्टर ना हईं कवनो प्राइमरी स्कूल के, डिग्री कालेज के लेक्चरर हईं।’ तकलिफाह होखत ऊ बोललन.
‘हँ-हँ, उहे-उहे. जवनो होखो.’ गिरधारी राय उनुका के बातचीत के निचला पायदाने पर रखलन.
‘मगर बइठल ठाले पी.सी.सी. के मेंबर होखल त अतना आसान ना होखे राय साहब!’ ऊ अपना राजनीतिक समुझ अउर सूचना के तफ़सील में जात कहलन.
‘काहें आसान नइखे?’ गिरधारी राय बोललन, ‘रउआ मातूम बा हेमवती नंदन बहुगुणा अउऱ नारायण दत्त तिवारी जइसन नेता लोग हमार क्लासफे़लो रहल बा?’
‘अब राय साहब रउरा कुछ अधिके बोलत बानी.’
‘का ?’ गिरधारी राय बमकलन.
‘रउरा सरासर झूठ बोलत बानी.’ ऊ लेक्चररो भड़क गइलन.
‘तोहार ई हिम्मत कि हमरा के झूठा बतावत बाड़ ?’
‘हम बतावत नइखीं.’ ऊ अउरी भड़कलन, ‘रउरा सरासर झूठ बोलत बानी आ बदतमीज़िओ करत बानी.’
‘अब तूं चुपा जा आ फूटऽ एहिजा से.’ गिरधारी राय चिल्लइलन. भीड़ बिटोरा चुकल रही एह चिचिआहट से. सगरी बराती जुट गइलें. कुछ अउरी घरातिओ आ गइलें. मामिला बढ़त देख बारात में आइल एगो वकील खरे साहब बीच बचाव कइलन. गिरधारी राय आ ओह लेक्चरर के बीच क दूरी बढ़वलन आ गते से पूछलन ओह लेक्चरर से कि, ‘आखि़र बाति का बा?’
‘बाति ई बा कि ई दू कौड़ी के मास्टर हमरा के झूठा बोलत बा.’ गिरधारी राय बीचे में कूद पड़लन.
‘अब रउरा बताईं कि काहें इनका के झूठा कहतानी?’ हाथ जोड़ के खरे साहब ओह लेक्चरर साहब से पूछलन.
‘बताईं, ई कहत बाड़न कि हेमवती नंदन बहुगुणा अउऱ नारायण दत्त तिवारी दुनू इनकर क्लासफे़लो रहलन.’
‘ठीक कहत बानी.’ गिरधारी राय किचकिचइलें.
‘का एह सभ का तरह हमरो के रउरा जाहिले बूझत बानी?’ लेक्चरर डपटल, ‘ई संभवे नइखे. दुनू के उमिर के फ़ासला रउरा मालूमो बा ? नाहिओ त दस साल से अधिका के गैप होखी. आ ई कहत बाड़न कि दुनू इनकर क्लसाफ़ेलो रहलें. ई भला कइसे संभव बा?’
‘हम समुझ गइनी, हम बूझ गइनी.’ खरे साहब दुनू हाथ जोड़त ओह लेक्चरर से कहलन, ‘देखीं राउरो दुविधा सही बा, आ इनकरो कहनाम सही बा.’
‘मतलब?’ लेक्चरर अचकचइलन, ‘दुनू कइसे सही हो सकीलें?’
‘बाड़ीं नू ?’ खरे साहब हाथ जोड़त कहलन, ‘देखीं गिरधारी राय जी जब इलाहाबाद यूनिवर्सिटी गइनी त बहुगुणा जी इनिकर क्लासफे़लो रहलें. बहुगुणा जी पढ़ के चल गइलें बाकिर गिरधारी राय जी पढ़ते रह गइलीं. पढ़ते रह गइलें. पढ़तहीं रहलन कि नारायणो दत्त तिवारी जी पढ़े आ गइलन. तब नारायणो दत्त तिवारी इनिकर क्लासफे़लो हो गइलन !’
‘फेरु नारायणो दत्त तिवारिओ पढ़िके चल गइलन आ ई पढ़ते रहलन.’ लेक्चरर बाति पूरा करत मुंह गोल क के मुसुकात कहलन, ‘त ई बाति बा !’
‘तब?’ खरे साहब जइसे समाधान के क़िला जीतत कहलन, ‘मतलब ई कि गिरधारी राय जी झूठ नइखीं बोलत.’ फेरु ऊ तनिका रुक के अंगरेज़ी में उनुका से पूछलन, ‘इज़ इट क्लीयर?’
‘एब्सल्यूटली क्लीयर!’ लेक्चरर मुसुकात बोललन, ‘इनिका सच पर त केहू चाहे त रिसर्च पेपर तइयार कर सकेला.’
‘मतलब गिरधारी चाचा फ़ुल फ़ेलियर हईं !’ एगो नवही टिहिकल.
‘भाग सार एहितो से !’ खरे साहब नवही के भगवलन.
बाद में मुनक्का बाबू एह पूरा प्रसंग के फुल मज़ा लिहलें. आ गिरधारी राय बहुते सूंघलें कि कहीं एह सब का पीछे मुनक्का के साज़िश त ना रहुवे ? काहें कि उनुका लागत रहुवे कि एह पूरा प्रसंग में उनुकर अपमान हो गइल बा. बाद के दिनन में ऊ मुनक्का बाबू आ उनुका परिवार के कई पारिवारिक खु़राफ़ातन से तंग क दीहलन. फेरु त उनुकर खु़राफ़ात गांवो का स्तर पर शुरू हो गइल. गांव हर साल बाढ़ में डूब जात रहुवे. बांध बनावे के योजना बनल, बजट आइल. बाकिर बांध ना बने के रहल ना बनल. जेकर-जेकर खेत बांध में पड़त रहुवे ओहमें से कुछ लोगन के ऊ अइसे कनविंस कइलें कि तोहार खेत त बांध में जइबे करी, गांवो में विनाश आ जाई. तीन चार गो मुक़दमो हो गइल. बहुत बाद में गांव वालन के गिरधारी राय के खु़राफ़ात अउर साज़िश लउकल त उनुको के समुझा-बुझा दिहलें. सब कुछ सुन समुझ के गिरधारी राय बोललन, ‘दू शर्तों पर बांध बन सकेला. एक त हमरा के प्रधान बनवा द लोग निर्विरोध, आ दोसर कि बांध के पेटी ठेकेदारो हमही रहब केहू अउर ना.’
गांव के लोग उनुकर दिनू शर्त नकार दिहलें. उलुटे कुछ नवही उनुका के एक रात राह में घेर लिहले सँ. उनुका साथे बदतमीज़ी से पेश आवत धमकवलें सँ कि, ‘आपन शैतानी दिमाग़ अपने लगे राख ऽ.ना त कवनो दिने मार के नदिए में गाड़ देब सँ. पंचनामो ला लाश ना मिली.’
गिरधारी राय डेरा गइलन. गांव छोड़ि के बांसगांव में रहे लगलन. बांसगांव में उनुकर परिवारो रहल आ मुनक्को राय. अब ऊ मुनक्का राय से खटर-पटर करे लगलन, बाप समुझावलन गिरधारी राय के कि, ‘मुनक्का के परेशान मत करऽ.’
बाकिर गिरधारी राय कहां माने वाला रहलन. मुनक्का परेशान हो गइलें. रामबली राय का लगे गइलन फ़रियाद ले के आ कहलन कि, ‘हम अब फरका रहे के चाहत बानी आ राउर इजाजत चाहत बानी.’
‘देखऽ मुनक्का, तख़ता त तोहार हम पहिलहीं अलग क दिहनी ई सोचि के कि अब तूं लायक़ वकील हो गइल बाड़. कब ले हमार जूनियर बनि के हमरा के ढोअबऽ ?’ ऊ बोललें, ‘बाकिर अबहीं अतनो लायक़ नइखऽ हो गइल कि घरहूं से अलग कर दीं. कम से कम जबले हमनी दुनू भाई ज़िंदा बानीं तबले त फरका होखे के कबो सोचबो मत करीहऽ. सोचऽ कि लोग का कही ? हँ, रहल बाति गिरधारी से तोहार मतभिन्नता के त ओकरो कवनो काट सोचे द. आ फेरु तू त जानते बाड़ऽ कि ख़ाली दिमाग शैतान के घर होला.’
मुनक्का मन मसोस के रह गइलें लेकिन बीच के रास्ता ऊ ई निकललन कि साँझ बेरा कचहरी का बाद ज़्यादातर दिने गांवे जाए लगलें. फेरु त गते-गते ऊ गांवही से आए-जाए लगलें. आए-जाए के दिक्क़त अलगा रहल, मुवक्किलन के अलगा. प्रैक्टिस गड़बड़ाए लागल. एही बीच एगो नया तहसील बन गइल गोला. रामबली राय मुनक्का के बोलवले आ कहलें कि, ‘देखत बानी कि तोहार दिक्क़त एहिजा बढ़ले जात बा. तूं गोला काहें नइखऽ चलि जात?’
मुनक्का बांसगांव छोड़ल ना चाहते रहलन. बाकिर अब चूंकि रामबली राय के संकेत भरल आदेश हो गइल रहे त ऊ बेमन से गोला चलि गइलन. बाकिर गोला में उनुकर प्रैक्टिस ठीक से चलल ना. लड़िका बड़ होखत रहलें सँ आ खरचो. दू अढ़ाई बरीस में ऊ फेरु बांसगांव लवटि अइलें. रामबली रायो अब बूढ़ात रहलें. बाकिर मुनक्का के प्रैक्टिस चल निकलल. ओही घरी मुनमुन जनमल
(आगे ला अगिला कड़ी के इंतजार करीं. जल्दिए ले आएब वादा बा.)
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