– राम पुकार सिंह ‘पुकार‘ गाजीपुरी
प्रकृति कऽ अलगे–अलगे रूप में अनुभूति भइल, ओकरा के मिठास भरल भासा में बखान कइल, अइसन पेंच वाला काम हऽ कि एकरा के उहे करि सकेला जेकरा के प्रकृति के विशेष वरदान मिलल होई. भोजपुरी गीतन कऽ सम्राट का रूप में मशहूर भोला नाथ “गहमरी” जी के सभे लोक धुन के बारे में पूरा पूरा जानकारी रहे. इहे कारन रहे कि उहाँ के लुप्त हो रहल भोजपुरी गीतन के धुनन के नया–नया गीत रचि के फेर से जीवित करे कऽ भगीरथ प्रयास कइनी.
उनुकरा गीतन में जवन प्रवाह, बोधगम्यता आ अभिव्यक्ति लउकेला ऊ आउर केहू के गीतन में शायदे नजर आ सकी. भोजपुरी साहित्य में गहमरी जी का समय के “गहमरी युग” निर्विवाद रूप से मानल जा सकेला. उनुकर गीत पढ़ि के आ सुन के सभई के महसूस हो जाला कि उनुकर लिखल गीत भोजपुरी दुनिया का तहे दिल से निकले वाली सभे भावना के अभिव्यक्ति हऽ. ई पूरा भरोसा से कहल जा सकेला कि स्व. महेन्दर मिसिर जी के बाद वाली पीढ़ी में भोला नाथ जी आपन अलगे पहिचान बनावे में कामयाब हो गइली, जेकरा चलते उनुकर गीत आम मनई के गीत हो गइल. उनुका गीतन कऽ एगो बड़हन खासमखास बात रहल कि उनुकर हर गीत बोधगम्यता का संगे–संगे लयो से जुड़ल बा. एकरे चलते कवनो गवइया बिना बतवले आ बिना समुझवले उनुका गीतन के आसानी से स्वर दे देत रहलें. इहे कारन रहे कि इनकर गीत गा–गा के बहुते लोग के रोजी–रोटी चलत रहे. पटना, गोरखपुर, लखनऊ, इलाहाबाद, वाराणसी, आ अउर रीवाँ तक के आकाशवाणी कलाकारन के माध्यम से कम से कम तीन सौ गीतन कऽ लुत्फ आम श्रोता उठवलें.
गहमरी जी का कलम से पूरबी, कहँरवा, झूमर, खेमटा, बिदेसिया, होली, चइता, कजली, जंतसार, बिआह–गीत आ सोहर के संगे देवी–गीत तक निकलल, जेवन मोटा–मोटी सभे हिट गीत हो गइल. कवि का साथे साथ उहाँ के कला के भी पारखी रहलीं. उहाँ के कबो एह बात से परहेज ना मनलीं कि उनुका गीतन के उँचाई तक पहुँचावे में गायको लोगन के हाथ रहल बा. स्व. मोहम्मद खलील, ललन सिंह “गहमरी“, ठाकुर चन्द्र मोहन सिंह, इलाहाबाद के उमेश चन्द कनौजिया, पूर्वान्चल के पुरुषोत्तम सिंह, कामेश्वर सिंह, आनन्द सिंह, सरोज बाला, संज्ञा तिवारी, सरिता शिवम, निशा श्रीवास्तव, अर्चना श्रीवास्तव, गायत्री पाण्डेय, कनकलता, अउर मधुबाला जइसन गवैया लोगन के अपने गीतन के सुरीली आवाज से सजावें–सवारें खातिर गहमरी जी सब समय खुले मन से आभार मानत रहलीं.
भोजपुरी गीत सम्राट गहमरी जी के जीवन में संघर्ष के सामना सब समय करे पड़ल. बिना संघर्ष के केहूँ कऽ व्यक्तित्व में निखार आ चमक आईए ना सके. उनुकर इहे संघर्ष ताउम्र उनका में शक्ति के संचार कइलस. उन्नीस बरस का उमिर में उनके माई बाबू जी से हजारों मील दूरे नौकरी करे पड़ल. विषमो परिस्थित में छल कपट से दूर रहिके केहूओ के मोह लेबे वाला गुन उनके पास रहुवे. लोक जीवन वाली संस्कृति उनके रोम रोम में रचल बसल रहे. इहो उनुकर खास गुन रहे जवना कारन कवनो कवि सम्मेलन उनके बिना अधूरा लागल करे. कुछ समय बदे सिनेमा का रंगीनो दुनिया से जुड़े के मौका मिलल रहे. अपने गीतन में चटपटा रंग दिहला का बावजूदो साहित्य के दामन से हरमेश जुड़ल रह गइनी. भोजपुरी भासा में उनकरा नियर गीत संकलन शायदे केहू दे पावल. भोजपुरी साहित्य के श्रीवृद्धि में उनुकर सबसे बड़हन योगदान रहे जेकरा कारन उनके सब समय इयाद कइल जाई.
भोजपुरी के महापंडित डा. कृष्णदेव उपाध्याय आ भोजपुरी के मशहूर रचनाकार अउर छंद विद्या के मर्मज्ञ कविवर चन्द्र शेखर जी के सलाह आ सहयोग खातिर उहाँ के तहे दिल से आभार प्रकट कइले बानी. वइसे गीतकार भोला नाथ ‘गहमरी‘ जी प्रकृति श्रृंगार आ विरह के मूल रचनाकार का रूप में अपना के स्थापित करे में सफल रहनी. श्रृंगारिक गीत में उनुकर आध्यात्म असीमित उँचाई तक झंडा फहरावे में सफल भइल बा.
“कवने सुगना पर गोरी तू लुभा गइलू हो!” गहमरी जी का गीत में कही फाँक ना मिले जे केहू कवनो मशविरा देबे के सोच सके. उनुकर एगो विरह के गीत बतौर नमूना देखीं जा :–
“मोरा बिहरेला जीया, पिया तोहरे बिना।
जबसे बंधी तोसे नेहिया के डोरी, बिरहा जगावे दरद चोरी–चोरी,
जियरा जरेला जइसे जरेला जिया.
मोरा बिहरेला ………………..…
गहमरी जी के लिखल बिरह गीत में उहाँ के विशेष प्रतिभा के झलक साफ–साफ मिलेला. प्रेयसी के अपना प्रेमी के नेह के बारे में जवन ख्याल उपजेला ओकर साफ झलक गहमरी जी का गीतन में लउकेला —
महुआ के फूल झरे पलकन के छहिया,
सारी रात महके बलमू तोहरी नेहिया।
गहमरी जी के लिखल एगो खेमटा में खेत में रोपनी करे वाली मजदूरिन जे आपन गोदी के बचवा के घरे छोड़ के रोपनी करत रहे ओकर कतना नीमन बखान करत गीत लिखलें ओके पढ़ले पे केहू महसूस कर सकेला.
बदरा बरिसे त भीजे मोरी धानी चुनरी।
हलर–हलर डोले दूधवां के काँटी,
बूने–बूने अंगिया में चूवे सगरी।
गहमरी जी का गीतन में यथार्थवाद के चित्रण जेतना सुघर तरीका से भइल बा उनकरे बेमिसाल लेखनी के कमाल कहाई –
पात–पात दुअरे के महुआ फुलाई गइल,
अँगना फूलेला कचनार।
कि हो मोरे अँगना फूलेला कचनार।
गहमरी जी के भोजपुरी गीत विशेष रूप से प्रकृति श्रृंगार आ बगरह से प्रभावित रहल. उहाँ के सब समय एगो बात पर धेयान दिहलीं कि पारम्परिक धुनन के दीवार कबो मत ढहे. एही कारन से उहाँ के प्रचलित आ लोकप्रिय रागे पर सब समय आपन गीतन के रचना कइनी. भोजपुरी फिल्म बदे आपन गीतनो के उहाँ के कबो साहित्य से दूर ना रखनी.
गहमरी जी आपन लिखल गीतन से भोजपुरी साहित्य में अमर हो गइल बानी. उहाँ के एगो व्यक्ति ना एगो विचार के रूप में मशहूर हो गइनी. उनुकर लिखल गीत उनुकरा के संबोधन करी त उनुके पे खरा उतरत लउकत बा –
कवना खोतवा में लुकइलू, आहि रे बालम चिरई.
- राम पुकार सिंह ‘पुकार‘ गाजीपुरी
पूर्व प्रधानाध्यापक
बहुत सुनर बात बतवले बानीं रामपुकार सिंह जी भोलानाथ गहमरी जी के बारे में। गहमरी जी के रचना साँचो लोक में बसल बा