लोकसभा चुनाव 2024 पूरा हो गइल. परिणामो आ गइल. सरकारो बन गइल. मंत्रीमंडल बन गइल आ विभागो बँटा गइल. बाकिर राहुल के दुविधा जस के तस बा आ राहुलो के दुविधा से बड़हन हमार दुविधा बा. बुझात नइखे कि कहां से शुरु करीं आ कहां खतम. बाकिर बड़का लोग के बात पहिले.
राहुल एके जगह से ना, दू जगहा से सांसद चुना गइल बाड़न. एगो दुविधा बेचारा का लगे ई बा कि वायनाड छोड़ीं कि रायबरेली. जेकरा के छोड़ीं ओकरा के का बताईं. आ एहू ले बड. दुविधा बा कि नेता विपक्ष बनीं कि ना. आ हमार दुविधा एहिजे से शुरु हो जात बा कि सही शब्द का होखे के चाहीं – नेता विपक्ष आ कि नेता प्रतिपक्ष ! विपक्ष आ प्रतिपक्ष के एही दुविधा से जुड़ल बा विरोध आ प्रतिरोध के फेरा. का विरोध होला का प्रतिरोध ? आ सबले बड़का समस्या बा पक्ष के लेके. पक्ष से जुड़ल कतना शब्द बाड़ी सँ – पक्ष, विपक्ष, निष्पक्ष, प्रतिपक्ष, पक्षधर, पक्षपाती. हो सकेला कि रउरा कुछ अउर शब्द एह सूची में जोड़ सकीं बाकिर आजु हम अतने ले बान्ह के राखब अपना के.
एगो जमाना उहो रहल जब कोलकाता के हिन्दी दैनिक सन्मार्ग में हमार बतकुच्चन हर एतवार के छपल करे. करीब चार बरीस ले ई क्रम चलल. छूटल त ओकरा पाछा के कारण कुछ अउर रहल. सन्मार्ग आ समाज्ञा के दुविधा. पूरी छोड़ आधी को धावे, आधी मिले न पूरी पावे ! सन्मार्ग ला बतकुच्चन करत रहीं त समाज्ञा ला बतंगड़ ! बाकिर दुनू अखबार एक दोसरा के प्रतिद्वन्द्वी. लगले हाथ इहो सवाल कि जब विपक्ष आ प्रतिपक्ष होला त प्रतिद्वन्द्वी आ विद्वन्दी काहे ना ?कहीं एह से त ना कि विद्वन्द्वी कहला में विद्वान के ध्वनि धेयान में आवे लागेला आ अपना प्रतिद्वन्द्वी भा विरोधी भा प्रतिरोधी के केहू कुछऊ कह लेव, विद्वान कहे के मुर्खता त इचिको ना करी. हँ त दू नाव पर गोड़ धइला में केनियो के ना रह पवनी. बतकुच्चन आ बतंगड़ दुनू छूट गइली सँ. छूटे के त अंजोरियो पर कुछ लिखल बहुते दिन ले छूटले रहुवे.
हमेशा का तरह आजहू बात बहक गइल. शुरु कहां से कइनी आ कवना राहे आ गइनी. छोड़ीं बतकुच्चन आ बतंगड़ के बकबक आ लवटल जाव विपक्ष, प्रतिपक्ष, निष्पक्ष, पक्षधर आ पक्षपाती का ओर. इहो हो सकेला कि रउरा दिमाग में सवाल उठे कि भोजपुरी में दुनिया के ई पहिलका वेबसाइट अंजोरिया हिन्दी के शब्दन में काहे अझूराइल बा? त ई सगरी शब्द संस्कृत के हईं स आ ‘हिन्दुस्तान हमरो बाप के हऽ’ का तर्ज पर हम त इहे कहब कि संस्कृत पर भोजपुरी के हक हिन्दी से अधिका होला. काहे कि भोजपुरी के आगम का बरीसन बाद हिन्दी के जनम भइल रहुवे. आ अब एगो पुरान भोजपुरी फिलिम ‘जेकरा चरनवा में लगले परनवा’ में छोटकी बहिन से बिआह करे आइल अपने भतार, भतार पर भड़की जन, पति पतित से बनल जबकी भतार भतृहार से बनल शब्द ह. जे भरण पोषण करे से भतार ! भरण पोषण त बापो करेला अपना बेटा बेटी के त का ओकरो के भतार कहल जा सकेला ? त बेटा-बेटी आपन जनमावल होला आ ओकर भरण-पोषण कइल आपन जिम्मेदारी होखेला. मेहरारू भा पत्नी त दोसरा का घर से आवेले बाकिर तबहियों ओकर भरण-पोषण कइल मरदानगी के काम होला. होला कि ना !
बात फेरू बहक गइल. रउरो मानब कि एकरा से आसान त राहुल के दुविधा बा कि नेता विपक्ष बनसु कि ना. नेता प्रतिपक्ष होखे के योग्यता उनुका में बा कि ना एकरा पर लमहर बहस हो सकेला आ हम एह मामिला पर कवनो बहस कइल नइखीं चाहत. आजु विपक्ष आ प्रतिपक्षे के चरचा पूरा हो जाव त बड़का बात होखी.
बरीसन पहिले एगो दार्शनिक के प्रवचन सुने के मौका मिलल रहुवे. ओह प्रवचन में डॉ लक्ष्मी नारायण लाल बतावत रहीं धर्म, मजहब, रिलीजन, संप्रदाय के फरक. अब ओह बहस के विस्तार में जाये से अधिका मजगर रहे उनुकर एगो कहनाम कि अगर केहू के कन्विन्स ना कर सकी त कन्फ्यूज त कइले जा सकेला. पता ना रउरा सभे के हम कन्विन्स करब कि कन्फ्यूज ई हमहूं नइखीं जानत.
पक्ष माने कवनो विचार. अब ओह पक्ष के विरोध करे वाला विरोधी होखेला अगर ओकरा लगे आपन कवनो पक्ष ना होखे त. आ अगर सामने वाला का पक्ष का सोझा केहू आपन पक्ष रख सके त ऊ प्रतिपक्षी हो जाला. विरोध बिना कुछ सोचले-विचरले कइल जा सकेला बाकिर प्रतिरोध करे ला रउरा लगे कवनो प्रतिविचार होखल जरुरी होला. आ अइसने मौका पर सोझा आ जालें निष्पक्ष. जे दुलहवो के भाई आ कनियवो के भाई बने के कोशिश करेलें. सही विचारक कबो निष्पक्ष होईए ना सके. ओकरा पक्षधर होखहीं के पड़ी. आ लगले हाथ इहो कह लीहल जाव कि पक्षधर आ पक्षपाती में का फरक होला. आखिर दुनू त कवनो पक्ष का ओर खड़े होखेलें. त हमरा विचार से पक्षधर का लगे एगो पक्ष का पक्ष में राय होला जबकि पक्षपाती विचार के पक्ष ना ले के कवनो मनई भा संस्था के पक्ष लेबेला भलहीं ऊ पक्ष सही होखे बा गलत. से पक्षधर होखल नीमन बाकिर पक्षपाती होखल पात भइल हो जाई, पतन कह सकीलें एह पात के.
अब रउरा बताईं कि एह लेख के पक्ष पर राउर पक्ष का बा ? नीचे कमेंट बाक्स दीहल गइल बा. आराम से आपन पक्ष बताईं. आ ना त निष्पक्ष त रउरा होइए जाएब. निष्पक्ष होखल पक्षपाती से नीमन होखी. काहे कि निष्पक्ष कवनो पक्ष ना राखे बाकिर पक्षपाती बिना सोचले विचरले कवनो पक्ष धर लेला. धर लिहला का चलते ओकरा के पक्षधर ना कहल जा सके काहे कि ओकरा लगे त कवनो पक्ष हइए नइखे.
0 Comments