(सामाजिक सरोकार)
जब भगवान झूठ बोललें
– शिवेन्द्र प्रताप सिंह
काहे भगवान कृष्ण महाभारत के लड़ाई में द्रोणाचार्य के मारे खातिर झूठ बोलले कि अश्वत्थामा मर गइले ?
महाभारत युद्ध के दौरान अश्वत्थामा के मौत का बारे में आधा सच्चाई (सोझ से झूठ ना) बतावे के निर्देश युधिष्ठिर के देबे के भगवान श्रीकृष्ण के फैसला एगो जटिल अउरी महत्वपूर्ण प्रकरण बा. एह में धर्म (धर्म) आ अधर्म (अधर्म) के स्थिति में सामना करे वाली नैतिक दुविधा सभ के चित्रण कइल गइल बा. इहाँ संदर्भ आ तर्क दिहल जात बा –
घटना के पृष्ठभूमि द्रोणाचार्य के भूमिका
कौरव सेनापति द्रोणाचार्य एगो दुर्जेय योद्धा रहले. उनकर सैन्य कौशल आ सामरिक नेतृत्व पांडव लोग खातिर बहुत खतरा पैदा करत रहे. द्रोणाचार्य के बेटा अश्वत्थामा उनकर गहिराह प्रिय रहल. द्रोण के बेटा से भावनात्मक लगाव एगो सर्वज्ञात कमजोरी रहे. द्रोणाचार्य कौरव लोग खातिर अथक लड़ाई लड़े के प्रण कइले जब तक कि ऊ या त मारल ना जासु भा अक्षम ना हो जासु.
कृष्ण के रणनीति
द्रोणाचार्य के सीधा लड़ाई में हरावल लगभग असंभव रहल. हथियार अउर धनुर्विद्या में उनकर महारत उनका के अजेय प्रतिद्वंद्वी बना देत रहुवे. द्रोण के अपना बेटा खातिर प्रेम के कृष्ण एगो उपाय का तरह पहचान कइले कि द्रोणाचार्य के संकल्प तूड़े के एकमात्र तरीका उनकर एही कमजोरी के बनावल जा सकेला. इहे सोच के भगवान कृष्ण युद्धिष्ठिर के निर्देश दिहलें कि द्रोणाचार्य के भावनात्मक रूप से अशांत करे खातिर अश्वत्थामा के मौत के खबर फैला देसु. कृष्ण के एहू बात के जानकारी रहल कि सीधे-सीधे झूठ बोलला से धर्म के सिद्धांत के उल्लंघन होखी. एही से उ एगो आधा सच्चाई बोले के योजना बनवले कि भीम अश्वत्थमा नाम के हाथी के हत्या क देसु. अपना अटूट सत्यवादिता खातिर जानल जाए वाला युधिष्ठिर के मना लिहल गइल कि ऊ “अश्वत्थामा मर गइल बा” के घोषणा करसु आ फेर मद्धिम आवाज में “हाथी” जोड़सु.
धर्म (धर्म) के बचावे खातिर आधा सच्चाई के उद्देश्य
कृष्ण के मानना रहे कि धर्म के बड़हन लक्ष्य अधर्मी कौरव लोग के हरावल बा आ न्याय सुनिश्चित कइल बा. एह नैतिक रूप से अस्पष्ट काम के जायज ठहरावे ला आधा सच बोलल जरूरी बा. अनेको अत्याचार करे वाला कौरव लोग के प्रति द्रोण के निष्ठा अधर्म के परास्त करे में बाधा बनत रहे एहीसे संतुलन बनावे खातिर द्रोणाचार्य के हटावल जरूरी बावे.
परिणाम
युधिष्ठिर से ई खबर सुन के द्रोणाचार्य युधिष्ठिर के ईमानदारी के प्रतिष्ठा के चलते एकरा प भरोसा क लिहलें. बेटा के मौत के दुख से अभिभूत होके ऊ आपन हथियार छोड़ दिहलन जवना से ऊ कमजोर हो गइलन आ अंत में उनकर मौत हृदयाघात से हो गइल.
दार्शनिक महत्व : अंत बनाम साधन
एह घटना से ई बहस उठत बा कि धर्म के मामिला में परिणाम साधन के जायज ठहरावेला. एही से धर्म युद्ध में विजय निश्चित करे खातिर कूटनीति के सहारा लिहल जाला. महाभारत में कृष्ण कबो-कबो धर्म से निरपेक्ष ना होके संदर्भ-निर्भर के रूप में चित्रित कइले बाड़न. अन्याय आ अधर्म के सामना करत पूर्ण धर्म के रास्ता पर चलला से धर्म के बजाय खुदे अधर्म हो सकेला, एही से कबो-कबो कूटनीति में अधर्म के सहारा लेवे के पड़ेला.
सन्देश
ई घटना महाभारत के नैतिक जटिलता के उदाहरण बा, जहाँ देखावल गइल बा कि धर्म के रास्ता हमेशा सीधा ना होला. लक्ष्य महत्वपूर्ण होला, मार्ग ना.
(शिवेन्द्र प्रताप सिंह बलिया जनपद के मूल निवासी आ लखनऊ उच्च न्यायालय में ख्यात अधिवक्ता हईं.)
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