भोजपुरी एगो पुरान, समर्थ आ दमगर भाषा
– चंद्रेश्वर
भोजपुरी के बारे में एगो बहुप्रचारित मिथ्या अवधारणा ह कि ई हिन्दी के एगो बोली ह; जबकि ई त सीधे लौकिक संस्कृत, संस्कृत, पाली, प्राकृत, आ अपभ्रंश से जुड़ल भाषा रहल बिया. ई पिछला लगभग बारह-तेरह सौ साल से अस्तित्व में बनल रहके सामान्य जन जीवन के बीच विकसित होत रहल बिया. ई हर सदी में ज्ञानी, गुनी, संत, विचारक, आ कवि-लेखकन के संवाद अवरू अभिव्यक्ति के दमगर माध्यम बनल रहल बिया. एतना कुछ के बादो एकरा के हिन्दी के एगो बोली मान लिहल जात रहल बा. जबकि हिन्दी भोजपुरी के समानांतर स्वयं एगो बोली रहल बिया जेकरा के खड़ी बोलिए कहल जात रहल.
खड़ी बोली दिल्ली आ ओकरा से लागल पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ जनपदन आ क्षेत्रन के बोली रहल बिया. एकरा के सत्ता केंद्र से जुड़ल होखे के कारन विकसित होखे के लाभ मिलल. खड़ी बोली के लेखा ओकरे समानांतर उर्दूओ बोली से भाषा बनल, सत्ता केंद्र से जुड़ला के कारन. भाषा वैज्ञानिक अक्सर एहू तरह के तर्क आ विश्लेषण प्रस्तुत करत रहल बा लोग कि आख़िर एगो बोली कब भाषा में रूपांतरित हो जाले. खड़ी बोली के हिन्दी के नाम से जब साहित्यो में भाषा के दर्जा मिलल त ओकरा पहिले मए उत्तर भारत में कविता लिखे के भाषा ब्रजे भाषा रहल. बाद में चलके ई भाषा ब्रज मंडले तक सीमित होके रह गइल आ ओकरो के हिन्दी के एगो प्रमुख बोली मान लिहल गइल. ईहे हश्र भोजपुरी आ हिन्दी के अन्य सहायक मान लिहल गइल बोलियन के भइल. ऊ सब आपन-आपन मूल जनपद आ क्षेत्र विशेष तक सिमट के रहि गइली स.
असल में हिन्दी के मए देश में विस्तार आ प्रसार के पीछे स्वाधीनता आंदोलनो रहल बा. हिन्दी राष्ट्रीय स्तर प हर क्षेत्र के लोगन के अभिव्यक्ति के दमगर माध्यम बन गइल. हिन्दी के एह विकास में अलग-अलग जनपद में बोलियन से जुड़ल लेखक-पत्रकार सब आपन-आपन बोलियन के किनारे कइ के हिन्दिए के मुख्य धारा में स्थापित करे के काम कइल लोग. हिन्दी साहित्य आ ओकरा इतिहास से परिचित लोग एह बात के बख़ूबी जानत होई कि अधिकांश लेखक लोग आपन-आपन बोलियन में साहित्य सृजन ना कइ के हिन्दिए के एकर माध्यम बनावल.
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, बदरी नारायण चौधरी ‘प्रेमघन’,प्रेमचंद, जयशंकर ‘प्रसाद’, रामचंद्र शुक्ल, हजारी प्रसाद द्विवेदी, कुबेरनाथ राय, विद्यानिवास मिश्र, नामवर सिंह, अमरकांत, काशी नाथ सिंह, दूधनाथ सिंह, मैनेजर पांडेय, विजेन्द्र अनिल, गोरख पाण्डेय, रामचंद्र तिवारी, विश्वनाथ प्रसाद तिवारी, चंद्रभूषण तिवारी, मधुकर सिंह, परमानंद श्रीवास्तव, मिथिलेश्वर, कर्मेंदु शिशिर, अरुण कमल, हृषीकेश सुलभ, चंदन पाण्डेय, आदि हिन्दी के नएका -पुरनका साहित्यकार भोजपुरिए क्षेत्र से आवेला. ई सब लोग भोजपुरी के पीछे कइ के हिन्दी साहित्य के कोष भरे के काम कइले बा. भोजपुरी के पीछे होखे के एगो कारन ईहो रहल बा. सरकारो एकरा के उपेक्षित कइले बिया आ संविधान के आठवीं अनुसूची से एकरा के दूर राखल गइल बा जबकि एकरे समानांतर उत्तरी बिहार के एगो बोली आ भाषा के उपरोक्त अनुसूची में शामिल कइल गइल बा. एकरा पाछा ईहो एगो कारन बा कि मैथिली भाषी लेखकन के भाषायी अस्मिता बोध भोजपुरी भाषी लेखकन से ज्यादा संघनित आ प्रखर रहल बा.
भोजपुरी के जेवन मुख्य क्षेत्र ह ओकरा में पश्चिमी बिहार आ पूर्वी उत्तर प्रदेश के जनपद शामिल बाड़े स. वोइसे भोजपुरी नेपाल के एगो बड़हन भूभागो में बोलल, पढ़ल, आ लिखल जाले. नेपाल के ऊ भूभाग बिहार आ उत्तर प्रदेश के उत्तरी क्षेत्र से लागल बा. भोजपुरी नेपाल के संवैधानिक भाषो बन चुकल बिया. एह घरी नेपाल में भोजपुरी भाषा में साहित्य के हर विधा में प्रचुर आ स्तरीय लेखन हो रहल बा. गद्य-पद्य में, हर विधा में उत्कृष्ट पुस्तक प्रकाशित हो रहल बाड़ी स. भोजपुरी में वोहिजा के भोजपुरी प्रतिष्ठान बारा, कलैया से प्रकाशित होखे वाली साहित्यिक पत्रिका ‘भोजपुरिया माटी ‘ में हर विधा के रचना शामिल कइल जा रहल बाड़ी स. एकर संपादक हंवें रामप्रसाद साह.
एह घरी भोजपुरी में बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड, नोएडा से कई गो साहित्यिक पत्रिका निकल रही रहल बाड़ी स. आनलाइन द्वैमासिक पत्रिका ‘भोजपुरी जंक्शन’ आ ‘मैना’ आदि के नाम लिहल चाहब. एकरो में ‘भोजपुरी जंक्शन’ पिछला कुछ साल में कई गो जरूरी आ दमदार विशेषांक प्रकाशित कइले बा. एने ओकर कइ गो लोक परब, महापुरुष लोगन में वीर कुंवर सिंह, गांधी, मृत्यु, युद्ध, किसान आ राम पर केंद्रित अंक विशेष रूप से चर्चा में रहल बा. ई पत्रिका नियमित निकल रहल बिया आ एकर संपादक हँवें भोजपुरी के सुपरिचित गीतकार-ग़ज़लगो मनोज भावुक जी. भोजपुरी के एगो त्रैमासिक पत्रिका ‘पाती’ त पिछला चालीस-पैंतालीस साल से डा.अशोक द्विवेदी के संपादन में बलिया से प्रकाशित हो रहल बिया. ई भोजपुरी के वर्तमान में शीर्ष साहित्यिक पत्रिका बिया. डॉ.अशोक द्विवेदी भोजपुरी के एगो ख्यातिलब्ध साहित्यकारों हंवन. ऊ भोजपुरी पद्य -गद्य में समान रूप से अभ्यासी हंवन. वाराणसी से चंद्रकांत सिंह के संपादन में ‘संझवाती’ का नाम से एगो त्रैमासिक पत्रिका निकले शुरू भइल बिया. एकर अभी हाले में दोसरका अंक निकलल बा.
भोजपुरी-हिन्दी के सक्रिय लेखक कनक किशोर के ‘जोहार भोजपुरिया माटी’ के कई गो अंक निकल के भोजपुरी साहित्य के प्रेमी जन के बीच आपन नीमन जगह बना चुकल बिया. एने उन्हुका संपादन में एगो पुस्तक आइल बिया -‘आपन-आपन राम कहानी’. एकरा में भोजपुरी के वर्तमान में सक्रिय अधिकांश लेखकन के आत्मकथात्मक निबंध संकलित बा. प्रयागराज से ‘भोजपुरी संगम’ मासिक पत्रिका वोइसे त हिन्दी में निकल रहल बिया, तबहियों भोजपुरी खातिर कुछ पृष्ठ ओकरा में शामिल रहेला. एकर साहित्यिक -सांस्कृतिक पृष्ठ के संपादक बाड़न डॉ.राणा अवधूत कुमार. अब हिन्दी के कई गो दैनिक अख़बारो भोजपुरी खातिर कुछ स्पेस दे रहल बा लोग. ई सब तथ्य भोजपुरी भाषा आ साहित्य के दमखम आ लोकप्रियता के सामने ले आ रहल बा.
जमशेदपुर से गंगा प्रसाद अरुण के संपादन में ‘लकीर’ निकल रहल बिया. हालांकि ई नियमित नइखे. एही तरह से अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन के पत्रिका पटना से महामाया प्रसाद विनोद के संपादन में निकल रहल बिया. नोएडा से ‘भोजपुरी साहित्य सरिता’, मासिक पत्रिका के नियमित प्रकाशन हो रहल बा. एकर संपादक बानीं कवि -गीतकार जयशंकर प्रसाद द्विवेदी जी. भोजपुरी में साहित्यिक पत्रकारिता के एगो लमहर आ संघर्ष से भरल परंपरा रहल बा. एकरा में कबो पटना से आठवां दशक में निकले वाली भोजपुरी अकादमी के पत्रिका ‘भोजपुरी अकादमी पत्रिका’, ‘उरेह’ (पांडेय कपिल), ‘भोजपुरी कहानियां’ (वाराणसी), ‘भोजपुरी माटी'(कोलकाता), ‘अंजोर’, ‘संझवत’ आदि के भोजपुरी साहित्य खातिर अमूल्य योगदान रहल बा. देवरिया से अरुणेश नीरन के संपादन में सन् 1996 में ‘समकालीन भोजपुरी साहित्य’ के प्रकाशन होना शुरू भइल रहे. एकर कई गो बेहतरीन अंक आइल. ई पत्रिका अभी हाले में स्थगित भइल बा.
एने भोजपुरी में गद्य-पद्य में हर विधा में स्तरीय लेखन हो रहल बा आ सुंदर ढंग से पुस्तकन के प्रकाशन हो रहल बा. कविता, कहानी, लघुकथा,उपन्यास , नाटक, एकांकी, संस्मरण, स्मृति आख्यान, जीवनी, आत्मकथा, ललित निबंध, आलोचना आदि विधा में एने कई गो उल्लेखनीय पुस्तकें आइल बाड़ी स. एने भोजपुरी में देशी-विदेशी कुछ भाषा के साहित्यो के अनुवाद हो रहल बा. अनुवाद के क्षेत्र में डॉ.प्रकाश उदय, डॉ.सुनील कुमार पाठक, डॉ.पी.राज सिंह, कनक किशोर जी के काम सराहनीय रहल बा.
भोजपुरी में कविता के परंपरा हज़ार साल से ज्यादा के रहल बा. गोरखनाथ, कबीर, रैदास से लेके हीरा डोम,महेंद्र मिश्र,भिखारी ठाकुर, रघुवीर नारायण, प्रिंसिपल मनोरंजन प्रसाद सिन्हा,भोलानाथ गहमरी,मोती बीए, राम जियावन दास बावला, चंद्रशेखर मिश्र, सर्वदेव तिवारी ‘राकेश’, रमाकांत द्विवेदी ‘रमता’,भुवनेश्वर श्रीवास्तव ‘भानु’, हरिराम द्विवेदी,रामजी सिंह मुखिया,आंजनेय जी, रसिक बिहारी ओझा ‘निर्भीक’, बच्चन पाठक ‘सलिल’, रामेश्वर सिंह कश्यप,परमेश्वर द्विवेदी शाहबादी,अक्षयवर मिश्र , कैलाश गौतम, चौधरी कन्हैया प्रसाद सिंह, हरेराम त्रिपाठी ‘चेतन’,आनंद संधिदूत,अशोक द्विवेदी, सुरेश कांटक, कमलेश राय,प्रकाश उदय, जयशंकर प्रसाद द्विवेदी तक भोजपुरी कविता के गौरवशाली परंपरा के बढ़ावे के काम कइले बा लोग. आलोचनात्मक लेखन में डॉ. ब्रजभूषण मिश्र,तैयब हुसैन पीड़ित, डॉ.अशोक द्विवेदी, डॉ.विष्णु देव तिवारी, डॉ.बलभद्र, डॉ.सुनील कुमार पाठक, कनक किशोर, डॉ.प्रमोद कुमार तिवारी, राणा अवधूत आदि के नाम स्मरण में आ रहल बा.
बहरहाल,भोजपुरी कविता के भीतर आइल आम आदमी के दर्द, दुःख-सुख आ संघर्ष से गहिरार नाता आ सरोकार रहल बा. ऊ आपन हज़ार -बारह सौ साल के सफ़र में कबो कुलीन नइखे भइल. जेवना भाषा के ज़मीन प आरम्भे में कविता के खेती-बारी करत गोरखनाथ दिखाई परत बाड़न आ बाद में भरथरी, कबीर, रैदास,पलटू साहेब, भिनकराम, लछिमी सखी, ओकर कंवनो ज़वाब नइखे ! एह लोग के कविताई के शब्द सीधे दिल आ दिमाग़ में उतर के छा जाला जइसे सावन-भादो के आसमान में तैरत बादर होखऽ स. असल में एहिजा कुछऊ बनावटी भा नकली भा गढ़ल नइखे; बलुक दिल के सच्चा, गहिर करुण पुकार बा, जेकरा में हमनी सब के दरद ,भरोसा आ करेज़ा (हिम्मत ) शामिल बा. आज़ादी के बाद के भोजपुरी के एगो बड़हन कवि मोती, बी.ए.(देवरिया) आपन कविता ”मृगतृष्णा ”में लिखत बाड़न कि हैं ”तनी अउरी दउरा हरिना पा जइब किनारा ”. एकरा में हिरना (हिरण ) मए भोजपुरी लोक जीवन के अनथक आ अदम्य जीजिविषा के प्रतीक बन जाता बा. एह कविता के अब त लोकगीत के दर्जा हासिल हो चुकल बा.
पहले प्रकाशक लोग भोजपुरी के पुस्तक प्रकाशित ना करत रहे. अब एने बड़हनो प्रकाशक भोजपुरी पुस्तकन के प्रकाशन में दिलचस्पी ले रहल बाड़ें. भोजपुरी पुस्तकन के एगो पाठक समाजो बनल बा जे वन देश आ विदेश तक फइलल बा – मारीशस, फीजी, सूरीनाम, त्रिनिदाद, नीदरलैंड, गुआना तक. एकरा अलावा भोजपुरिया अंचल के लोग रोज़ी- रोज़गार के कारण दुनिया के चाहे जेवना देश में होखे वोहिजे भोजपुरी आपन जड़ के फइला रहल बिया. हिन्दी के सहायक बोलियन में भोजपुरी एकमात्र बोली बिया जेवन हिन्दी के बरअक्स फइल रहल बिया. एने भोजपुरी में पचास -साठ से ज्यादा पुस्तक प्रति वर्ष प्रकाशित हो रहल बाड़ी स. आ एहनी के एगो पाठक समुदायो खरीद के पढ़ रहल बा. बेशक, भोजपुरी आवे वाला समय में भारतीय भाषा आ बोलियन में एक नवकी ऊंचाई प स्थित दिखाई दे सकत बिया. आज़ादी के बादो भोजपुरी भाषा के सतत उपेक्षा मिलल बा सरकार से आ भोजपुरी अंचल में रहे आ बाहर निकल के जाए वाला हिन्दी लेखक समाज से. अब जाके भोजपुरी भाषा आ साहित्य के पक्ष में एगो माहौल बन रहल बा. क क गो संस्था भोजपुरी के ले के काम कर रहल बाड़ी स. ओह सबके नामोल्लेख आ विस्तार में जाए के गुंजाइश एह लेख में नइखे. जे होखे, सरकार प एकरा के आठवीं अनुसूची में शामिल करे खातिर दबाव बन रहल बा. हर तरह से संपन्न आ उर्वर एह प्राचीन भाषा के संवैधानिक मान्यता ज़रूर मिले के चाहीं.
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पूर्व विभागाध्यक्ष /प्रोफेसर ,हिन्दी विभाग,
महारानी लाल कुँवरि स्नातकोत्तर महाविद्यालय,
बलरामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल नंबर -7355644658
ई-मेल :
cpandey227@gmail.com
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