गलीज़ पत्रकारिता के एगो नमूना

 गलीज़ पत्रकारिता के एगो नमूना

example-of-filthy-journalism

– अंजोरिया डेस्क

#गलीज़-पत्रकारिता

एगो जमाना रहल जब पत्रकारिता सम्मान के अध्यवसाय होखल करे. जब तोप मुकाबिल हो तो अखबार निकालो! वाला अंदाज में पत्रकार जनता के सही समाचार चहुँपावे के कोशिश कइल करसु. एह काम खातिर उनुका पता ना कतना पापड़ बेले के पड़त रहल आ कई बेर त आपन जानो जोखिम में डाल देत रहलें पत्रकार. बाकिर अब के पत्रकारिता अतना घटिया आ गलीज़ हो चुकल बा कि गलीज़ शब्दो ओकरा ला सम्मानजनक लागे लागल बा.

हमार एगो आदत बन गइल बा कि बीच बीच में यूट्यूब झाँकत रहीलें. बाकिर ओहिजा वीडियोज के थम्बनेल – thumbnail के समानार्थी हिन्दी शब्द ना मिलल एहसे ओकरे के संज्ञा का रूप में ले लिहले बानी – अतना गलत होखल करेला कि ओकरा में आ वीडयो में कवनो नाते रिश्ता ना लउके. सोशल मीडिया के एह कुकर्म के जतना निंदा करे के होखे कर लीं बाकिर जब इहे काम प्रसिद्ध आ बड़हन प्रसार वाला अखबारो करे लगीहें त पत्रकारिता से विश्वास उठे लागेला. खेत खइलसि गदहा आ मार खइलसि ओकर मालिक वाला कहावत एह पत्रकारन पर सटीक बइठ जाई.

बिहार विधानसभा चुनाव का पहिले चुनाव आयोग ओहिजा के मतदाता सूची के अद्यतन करे के गहन प्रयास कर रहल बा. आ हर सही काम के विरोध करे वाला विघ्नसंतोषी तत्व एकरा खिलाफ देश के सर्वोच्च न्यायालय ले चहुँप गइले. गलत के परिमार्जन कइला से बेसी जरुरी एह लोग के गलत के सही ठहरावे खातिर हो रहल बा. एहनी के पूरा कोशिश बा कि भारत में गलत तरीका से आ चुकल घुसपैठियनो के मतदाता बना दीहल जाव जेहसे ऊ वोटबैंक बन के देश के विरोधी गिरोहन के साथ दे सकसु.

आजु एह लेख के मकसद गहन मतदाता सूची पुनरीक्षण के विषय पर चरचा करे के नइखे एहसे ओकरा बारे में कुछ कहे के नइखे. आजु के मुद्दा बा गलीज़ पत्रकारिता. जवना से पत्रकारन पर से भरोसा उठे लागल बा. अइसनका पत्रकार मुट्ठी भर हो सकेलें बाकिर ई सगरी पत्रकारिता के बेइज्जत करे में लागल बाड़ें सँ.

त आजु अलग अलग अखबारन के वेबसाइटन पर झांकत एगो प्रसिद्ध हिन्दी समाचार पत्र पर प्रकाशित एगो समाचार हमार धेयान खींच लिहलसि. समाचार के मथैला रहल –

“‘आधार को बनाएं 12वां दस्तावेज…’, बिहार में SIR पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा आदेश”

हमहूं चउँकनी कि ई का कइलसि सुप्रीम कोर्ट! पहिले त कहत रहल कि आधार कार्ड नागरिकता के प्रमाण ना मानल जा सके आ आजु ओकरे के आधार बनावे के आदेश कइसे दे दिहलसि! बाकिर जब से न्यायालयन से न्यायमूर्तियन का जगहा न्यायाधीशन के राज आ गइल बा तबसे ई कुछऊ कर सकेलें. संविधान के मनमाफिक परिभाषा कर सकेलें, संविधान में बदलाव कर सकेलें. जवन संविधान में कतहीं नइखे ओकरा के कानून बना सकेलें. आम आदमी के भाषा में कहल जाव त ई लोग न्यायालयन में अपना बाप के राज चला रहल बा. आ एह लोग पर कवनो बंधन नइखे. कहले जाला कि एक बेर बेहया बन जाईं त रउरा कुछऊ कर सकीलें.

बाकिर आजु अदालतो हमरा चरचा के विषय नइखे. आज त गलीज़ पत्रकारिता पर चरचा करे बइठल बानी.

त खबर के मथैला पढ़ते क्लिक कइनी आ खबर वाला पन्ना पर चहुँप गइनी. मथैला के स्क्रीनशॉट त एह लेख में दे दिहले बानी बाकिर ओहमें से ओह हिस्सन के हटा दिहले बानी जवना से एह समाचार पत्र के सहज पहचान हो सको. आ बात बस एही अखबार के नइखे, करीब करीब सगरी अखबार, हर भाषा के अखबार एही तरह के गलीज़ पत्रकारिता कर रहल बाड़ें.

आ संगही संगे इहो बतावल जरुरी लागत बा कि सब कुछ का बादो ई लोग ईमानदारिओ बरत लेला.

हँ त मथैला में लिख के कि सुप्रीम कोर्ट 12वां दस्तावेज का रूप में आधार कार्ड के जोड़े के आदेश दे दिहलसि ई बतावल ना भुलाइल ई अखबार कि सुप्रीम कोर्ट कहले बा कि – ‘आधार कार्ड नागरिकता का प्रमाण नहीं: SC’ बाकिर मथैला पढ़ला से त इहे लागत बा कि अब मतदाता होखे के आधार का रूप में आधार कार्ड के मान्यता दे दिहलसि सुप्रीम कोर्ट.

गलीज़ पत्रकारिता आ पूरा ईमानदारी का साथे करे खातिर अखबार खबर का आखिर में साफ जोड़ दिहलसि कि सुप्रीम कोर्ट के कहना बा कि आधार कार्ड के सूची में जगह दीहल जा सकेला आ चूंकि एकरा के नागरिकता के प्रमाण ना मानल जा सके से चुनाव आयोग अगर चाहे त आधार कार्ड के प्रामाणिकता आ वास्तविकता के जांच कर सकेला.

‘अश्वत्थामा हतो : नरो वा कुञ्जरो वा’ वाला अंदाज में दीहल एह खबर के ‘अश्वत्थामा हतो’ पर पूरा जोर दिहला का बाद ओकरा बारे में विस्तार से बतावे के कोशिश के शंखनाद में दबा दीहल गइल बा.

हम त सभका से इहे कहीलें कि आजु का जमाना में कृत्रिम बुद्धि अतना खतरनाक तरीका से काम कर रहल बा कि कवनो सोशल मीडिया पर लउके वाला कवनो फोटो कवनो वीडियो के साँच मानल जोखिम लेबे वाला बात होखी. एहसे जबो कबो अइसन फोटो भा वीडियो लउके त पहिला सवाल अपना मन में ई करीं कि – लोचा कहाँ बा?

बाकिर जब अइसने काम प्रतिष्ठित मानल जाए वाला समाचार पत्र करे लगीहें त आम जनता का करी!

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