– – डॉ. रामरक्षा मिश्र विमल
#भोजपुरिया-चिट्ठी
आइल भोजपुरिया चिट्ठी
ई कइसन बिरोध हटे ?
काकी आजु पता ना काहें खोनसाइल रहली. लभेरन भइया पूछिए लिहले- का बात बा ए काकी, आजु मन ठीक नइखे का ? काकी रोसे में बोलली- का कहीं एह मुँहझौंसन के ? बिरोध के कवनो कारन नू होखे के चाहीं ? कवनो बात पर बिरोध, कुछऊ रहो तब बिरोध, कुछु ना रहो तब विरोध ? अब बताव भला, जे आदमी मरि गइल बा, ओकर नाँव भोटर लिस्ट में काहें रही ? आ जे कहीं दोसरा जगह चलि गइल बा आ ओहिजा भोटर लिस्ट में ओकर नाँव आइए गइल बा त ओकर नाँव गाँवो का भोटर लिस्ट में काहें रही ? अउर जेकर कवनो पते ठेकान नइखे, अइसन उधियाइल सातू भोटर लिस्ट में रहिके का करी ? आ एही नाम पर बिरोध पर बिरोध! ई कइसन लफंगई ह ? भोजपुरिया कतनो बिगरि जइहें बाकिर अइसन लफंगा त नाहिंए होइहें.
अब जाके लभेरन बात बुझले. लभेरन बोलले- जानतारू काकी, तुलसी बाबा लिखले बाड़े कि संसार में अइसनो लोग नीमन तादाद में बाड़े, जे बिना कारने के बिरोध करत चलेलन. अइसना लोगन के खल कहल जाला, ऊहे खल जवना के मूसर धमाधम कूँटत रहेला. इहाँ सभ कुँटाए में बिसवास राखींले. तुलसी बाबा के कहनाम बा कि खलन का हृदय में बहुत जेआदा संताप रहेला. ऊ लोग जहाँ पराया माल देखल कि जीभ कस में ना रहे, लपलपाए लागेले. पराया संपत्ति देखते जरे लागेला लोग. जो कहीं दोसरा के सिकाइति सुनल लोग कि अइसे गील होखेलन, जइसे रास्ता में गड़ल खजाना भेंटा गइल होखे.
खलन्ह हृदयँ अति ताप बिसेषी.
जरहिं सदा पर संपति देखी॥
जहँ कहुँ निंदा सुनहिं पराई.
हरषहिं मनहुँ परी निधि पाई॥
अइसन लोग काम, क्रोध, मद आ लोभ के परायण अउर निर्दयी, कपटी, कुटिल का सङहीं पाप के घर होखेलन. ई लोग बिना कारन सभका से दुश्मनी सधले रहेलन. जे भलाई करेला, ओकरो संग़े बुराई करे से ना हिचकेलन.
काम क्रोध मद लोभ परायन.
निर्दय कपटी कुटिल मलायन॥
बयरु अकारन सब काहू सों.
जो कर हित अनहित ताहू सों॥
काकी कहली- त माने ई लोग खाली झूठे बोली ? साँच ना बोले के किरिया खा लेले बाड़न ? लभेरन फेरु शुरू हो गइले- इहाँ सभ के झूठे लीहल आ झूठे दीहल होला. इहाँ सभ झूठे खाईंले आ झूठे चबाईंला. माने इहाँ सभ लेन-देन का बेवहार में झूठ के आँचर पकड़ि के दोसरा के हक मार लिहींले आ डींग त अइसे हाँकींले कि हम ने लाखों रुपए ले लिहलीं आ करोड़ों के दान कर दिहलीं. एही तरह से खाईंले बूँट के रोटी आ कहींले कि आज खूब माल उड़ाके आवतानी. मतलब हर बात में झूठे झूठ. जइसे मोर साँपो के खा जाला ओइसहीं इहाँ सभ ऊपर से मीठे बोलींले. बाकिर होखींले हृदय के बहुत बड़ निर्दयी.
झूठइ लेना झूठइ देना.
झूठइ भोजन झूठ चबेना।
बोलहिं मधुर बचन जिमि मोरा.
खाइ महा अहि हृदय कठोरा॥
आहो लभेरन, माने ई लोग मायावी बा ?
जी, मायावी ना साक्षात् राक्षस! तुलसी बाबा ईहन लोग के राछछे कहले बाड़न.
पर द्रोही पर दार रत पर धन पर अपबाद।
ते नर पाँवर पापमय देह धरें मनुजाद॥
माने जे लोग दोसरा से द्रोह करेला अउर पराई स्त्री, पराया धन आ दोसरा का निंदा में आसक्त रहेला, ऊ पामर आ पापमय मनुष्य नर शरीर धारण कइले राक्षसे बाटे.
काकी के मन अब ले बिरोध पर से उतरि गइल रहे. ऊ अब जिज्ञासु हो गइली. ए लभेरन, ऊ रछछवा सही में बहुत बड़-बड़ होत रहन सन, बड़हन नोह आ सींघि वाला ?
लभेरन अब फुल फॉर्म में चालू हो गइले- आकार में बड़हन आ बरियार त होते रहन सन बाकिर रहन स त कुल्हि आदिमिये नू! अपना के अउरी बिकराल बना के देखावे के कोशिश करत रह सन. अब सभ्य आदिमी त डेराइए नू जाई!
काकी चिहइली. माने राक्षस अलगा से ना रहन स ?
नाहीं अइसन बात नइखे. अलगो से होइबे करिहें सन.
अब तक लभेरन गंभीर हो गइल रहन. गोस्वामी जी लिखतारे कि रावन अपना भुजा का बल से संपूर्ण विश्व के वश में कर लेले रहे, केहू स्वतंत्र ना रहे. ओकरा ओर से राक्षसन के समूह देखे में बहुत भयानक, पापी अउर देवता लोगन के दुख देत रहन स. जइसे धर्म जरि-सोरि से खतम हो जाउ, ओइसने वेदविरुद्ध काम करत रहन स. ऊ जहाँ-जहाँ गाइ आ ब्राह्मण के पावत रहन स, ओह नगर, गाँव आ पुरवा में आगि लगा देत रहन स. खाली अत्याचार प अत्याचार.
तब सवाल ई बा कि राक्षस रहे के ? त बाबा स्पष्ट करतारे कि पराया धन, पराई स्त्री पर मन चलावेवाला दुष्ट, चोर आ जुआरी बहुत बढ़ गइल रहन. लोग माता-पिता आ देवता के मानल बंद क देले रहन अउर साधू लोग के सेवा का करिहें, उल्टे ओही लोगन से सेवा करावत रहन. भगवान शिव कहतानी कि हे भवानी! जेकर अइसन आचरन बा ओही लोगन के राक्षस बुझिह.
अब सचमुच केकरा के राक्षस बतावल गइल बा, तले बूझऽ, अब हम विस्तार में बताइबि अगिला अंक में…
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संपर्क : डॉ. रामरक्षा मिश्र विमल, निकट- पिपरा प्राइमरी गवर्नमेंट स्कूल, देवनगर, पोल नं. 28
पो.- मनोहरपुर कछुआरा, पटना-800030 मो. 9831649817
ई मेल : rmishravimal@gmail.com
विमल जी के लिखल ई स्तम्भ महाराष्ट्र के हिन्दी समाचार पत्र यशोभूमि में सोमार का दिने छपल करेला. हमरा निहोरा पर विमल जी एह सामग्री के एहिजो अंजोर करे ला भेजत रहब. चूंकि ई सगरी लेख एहिजा देरी से आइल बा त कुछ कड़ी हो सकेला कि हाल-फिलहाल से कटल होखो. बाकिर कुछ समय बाद ई साथ धर ली एकर उमेद बा.
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