बांसगांव की मुनमुन – 20 वीं कड़ी

बांसगांव की मुनमुन – 20 वीं कड़ी

( दयानन्द पाण्डेय के बहुचर्चित उपन्यास के भोजपुरी अनुवाद )

धारावाहिक कड़ी के बीसवां परोस
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( पिछला कड़ी में पढ़ले रहीं कि मुनमुन के ससुराल वालन आ मुनमुन के घर वालन का बीच विवाद सलटावे खातिर मिले के दिन समय आ जगहा तय हो गइल. एकरा बाद के कहानी नीचे दीहल जा रहल बा. अगर पिछला कड़ी नइखीं पढ़ले त पहिले पिछलका कड़ी पढ़ लीं.)

मुलाकात के दिन समय जगहा तय हो गइला का बाद जब दीपक अपना पत्नी से ई सब बतावत घनश्याम राय के वकील, स्टैम्प पेपर आ सुलहनामा वाली तफ़सील बतवलन त पत्नी बोलल, ‘तब त ई आदमी बहुते काइयां हवे आ डरपोको.’

‘मतलब?’

‘ऊ एके तीर से दू गो निशाना साधत बा.’

‘का मतलब?’

‘पहिला काम ऊ ई कइल चाहत बा कि विदाई के मामला आन रिकार्ड आ जाव. जेहसे आगे चल के कभी बात बिगड़े त मुनमुन के परिवार दहेज वाला मुकदमा लिखवावे त ओकरा में जमानत के आधार बन जाव कि मामला दहेज के ना विदाई के बा. दूसरे विदाई ना भइल त ऊ एही आधार पर तलाक के केस फाइल कर दी.’

‘बड़ धूर्त बा सार!’ दीपक खीझिया के बोलल.

‘रउरा असल में हर मामला भावुकता में ले लिहिलें. आ ई मामला भावुकता वाला नइखे लागत हमरा. अब ई दांव-पेंच वाला मामला बन गइल बा. अब ऊ दहेज विरोधी मुकदमा से बाचे आ तलाक के आधार बनावे में लाग गइल बा.’ दीपक के पत्नी बोलली, ‘अब ऊ मुनमुन नाम के झंझट से छुटकारा पावल चाहत बा.’

‘त अब का कइल जाव?’ दीपक माथा पकड़ के बोलल.

‘कुछ ना. हमार मानीं त अबहीं जाए-वाए के कार्यक्रम कैंसिल कर दीं. ना त यश मुश्किल से मिलेला आ अपयश बहुते जल्दी.’ दीपक के पत्नी बोलली, ‘कुछ दिन ला मामला अइसहीँ लटकले छोड़ दीं. भुला जाईं सब कुछ. ठीक होखे के होखी त अपने आप सब ठीक हो जाई. समय बहुते कुछ करवा देला. ना त अबहीं हड़बड़ी में ऊ तलाक़ के ग्राउंड बना के तलाक़ के मुक़दमा दायर कर दी आ ठीकरा रउरा कपारे फूटी कि रउरा तलाक करवा दिहनी.’

‘एतना जल्दी तलाक़ मिलेला का कहीं हिंदू विवाह में?’

‘दुनू फरीक तइयार हो जाव त मिलियो जाला.’

‘त?’

‘कुछ ना. सब कुछ भुला के सूत जाईं.’ दीपक की पत्नी बोलली बाकिर पर दीपक सूतला का बजाय जा के कंप्यूटर पर बइठ गइल. नेट कनेक्ट कइलसि आ राहुल के सगरी बात का मद्देनज़र तफ़सील में एगो चिट्ठी लिखलसि. बतवलसि कि तनी कुछ दिन शांत रह गइले ठीक होखी. दोसरा दिने राहुल के संक्षिप्त आ हताशा भरल चिट्ठी आइल. लिखले रहल कि, ‘जइसन रउरा ठीक समुझीं.’ आ ओही दिने मुनमुन के मिस काल आइल. दीपक तुरते फ़ोन लगवलसि. मुनमुन ओने से एकदम अगिया बैताल बनल रहुवे, ‘भइया रउरा समझौता के बात करत बानी आ ऊ दुष्ट एहिजा रह रह के खुराफात करत बा, आजुओ फेरु आइल रहुवे.’

‘के? राधेश्याम?’

‘हँ, हम त रहनी ना. स्कूल गइल रहीं. बाबूजी कचहरी में रहनी. ऊ अम्मा के अइसन पिटाई कइलसि कि मुंह फूट गइल, हाथ में फ्रै़क्चर हो गइल. एगो पड़ोसन बचावे आइल त ओकरो के पीट दिहलसि. उनुकरो गोड़ टूट गइल. बताईँ अब का करी?’ ऊ बोलल, ‘मन त करत बा कि जाईँ अबहियें ओकरा के गोली मार दीं!’

‘गोली कइसे मरबू?’

‘अरे भइया बांसगांव में रहिलें. कट्टा खुले आम मिल जाला. जवना के रउरा लोग इंगलिश में कंट्री गन कहीलें.’

‘का बेवक़ूफ़ी बतियावत बाड़ू!’ दीपक बोलल, ‘ई सब कइला के जरुरत नइखे तोहरा.’

‘त?’

‘हमहीं कुछ करत बानी.’

‘चलीं कर लीं रउओ!’

‘कुछ अंट शंट मत करीहे मुनमुन. हम तोरा के बाद में फोन करत बानी. फोन का एस.एम.एस. करत बानी.’

‘ठीक बा भइया, प्रणाम.’

दीपक तुरते घनश्याम राय के फ़ोन लगवलसि. उनकर पत्नी फोन उठवली आ बतवली कि, ‘राय साहब त बहरा गइल बानी. रात ले आएब.’

‘आ राधेश्याम?’

‘हँ, ऊ त बा.’

‘तनिका बात कराईं ना?’

‘रउऱा के बोलत बानी?’

‘हम दिल्ली से दीपक राय हईं.’

‘रुकीं बोलावत बानी.’ कहि के ऊ राधेश्याम के आवाज़ दिहली, ‘देखऽ दिल्ली से कवनो फ़ोन आइल बा.’ थोड़ देर में राधेश्याम आइल. बोलल, ‘हलो के बोलत बा?’

‘हम दिल्ली से दीपक राय बोलत बानी.’

‘के हउवऽ? का काम बा?’

‘मुनमुन हमार ममेरी बहीन हीयऽ.’

‘अच्छा बोलऽ!’ ऊ भड़कत कहलसि, ‘का तुहूं ओकर आशिक हउव?’

‘का बेवक़ू़फ़ जस बोलत बाड़ऽ?’ दीपक चिढ़ के बोलल, ‘बतावत त बानी कि हमार बहीन हीय.’

‘अच्छा त बोलऽ.’ कहि के राधेश्याम माई बहीन दुनू गारी दिहलसि.

‘देखऽ गरियाव मत!’

‘चलऽ नइखीं गरियावत. अब बोलऽ.’

‘ई बतावऽ कि आए दिन बांसगांव जा के तूं गाली गलौज आ मार पीट काहेें करत बाड़ऽ?’

‘शौक़ ह हमार. हमरा नीमन लागेेला. तोहरा से मतलब?’ कहि केे फेेर ऊ गारीयन केे बौछार कर दिहलसि.

‘तू अबहियों पियले बाड़ऽ का?’

‘तोहरा ओहसेे मतलब?’ गरियावत राधेश्याम बोलल, ‘तोहार बाप पियवलेे बा का?’

‘ओ़फ़ तोहरा सेे त बतियावले मुश्किल बा.’

‘त मत करऽ.’

‘तोहरा मालूम बा कि तोहरा हरकत केे पुलिस मेें रिपोर्ट कइल जा सकेेला. तूं गिरफ्तारो हो सकेेलऽ?’

‘अबहिये कुछ दिन पहिले ऊ तेलिया मुनेमुन के महतारी केे पटक के मरलसि आ ओकर जनल ओह तेली के कुछ कर ना पवलेे त सार हमार का कर पइहें!’ ऊ फेर चार गो गारी बकलसिआ बोलल, ‘तोहरो जवन उखाड़े के होखे उखाड़ लऽ.’

‘तूं त सचहूं बहुतेे बदतमीज़ बाड़ऽ.’

‘हँ, बानी आवऽ हमार नोच लऽ.’

‘ओ़फ़!’ कहि के दीपक फ़ोन काट दीहलन. कुछ देर अनमनाइल रहला का बाद फेेरु दुबारा घनश्याम राय का घरे फ़ोन मिलवलन. अबकी उनुकर बेेटी फोन उठवलसि.

‘बेटी तनी अपना मम्मी से बात करा देबू?’

‘हां, अंकल होल्ड कीजिए!’ थोड़ देर बाद मम्मी फ़ोन पर अइली त दीपक आपन परिचय देत कहलन कि, ‘अबहीं राधेश्याम जवन गारी हमरा केे दीहलन सेे त रउरो सुनलहीं होखब.’

‘भइया इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के पढ़ल हऽ.तनिका गरियाइए दिहलसि त का भइल?’

‘अरे माई होइओ केे रउरा ई का कहत बानी?’

‘ठीक कहत बानी!’

‘रउरा मालूम बा कि ऊ बांसगांवो जा के गाली गलौज आ मारपीट करेला?’

‘करत होखी.’ ऊ बोलली, ‘ऊहो लोग त विदाई नइखे करत. कतना बेइज़्ज़ती हो रहल बा हमरा ख़ानदान के.’

‘इज़्ज़त बड़लो बा का राउर आ रउरा खानदान केे?’ दीपक भड़क गइलन.

‘अब एकर जबाब रउरा केे त राधेश्याम आ हमार राय साहबे सकेेलेें. हम त औरत हई. रउरा शोभा नइखे देत ई पूछल हमरा सेे. मरदन सेे पूछीं.’ ऊ तनिका देेर रुकली आ भड़क के बोलली, ‘बोला देत बानी राधेश्याम केे. उहे रउरा केे हमरा खानदान केे इज्जत कतना बा बता दी!’

दीपक फ़ोन काट दीहलन. ऊ बूझ गइलेें कि इनारे में भांग घोराइल बावेे. केेहू से बतियावल दीवार पर सिर मारल बा, तबो ऊ राधेश्याम के गारीयन से बहुतेे आहत हो गइल रहल. ऊ राहुल के एगो लमहर ईमेेल लिखलन आ बता दीहलन कि, ‘एह प्रसंग का बाद हम मुनमुन मामला से अपना केे पूरा सेे अलगा करत बानी.’ साथ ही ऊ राहुल से अफ़सोसो जतवलसि कि, ‘बहुत चहला का बावजूद ई मसला सझुराए का जगहा अउरी अझूरा गइल बा. अफ़सोस कइला का अलावे हम करिए का सकीलेें. तूं छोट हउवऽ तबहियों तोहरा सेे माफी मांगत बानी.’

राहुलो केे लमहर जबाब आइल आ पूरा खदकल. ऊ दीपक से राधेश्याम केेे गारीयन ला माफी मंगलसि आ लिखलसि कि, ‘ई राउरे ना, हमहन सभकर अपमान बा.’ ऊ लिखले रहल कि मेल पढ़ला का बाद पहिला काम ऊ मुनमुन केे ससुराल फ़ोनेे करेे के कइलसि. त राधेश्याम के महतारी ओकरो से इलाहाबाद यूनिवर्सिटी सेे पढ़ल होखला के गौरव गान गवली त राहुल उनुका से कहलसि, ‘राउर बेेेटा त इलाहाबाद यूनिवर्सिटी केे टुंटपूंजिया आ फ़र्ज़ी पढ़ाई कइले बावेे जवना केे कवनो मतलब नइखेे. हमार दीपक भइया दिल्ली यूनिवर्सिटी में पढ़ाइलें आ प्रोफ़ेसर हईं.’ त राधेश्याम केे माई बोलली कि, ‘इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से बड़ त ना नू हवेे दिल्ली यूनिवर्सिटी।’ राहुलो एह बात केे अख्खड़ जबाब देे दिहलसि. ऊ लिखलसि कि, ‘ऊ जबाब अतना अख्खड़ आ लंठई भरल रहुवेे कि ओकरा केे हम रउरा केे बताईए ना सकी’

एगो छोटहन जबाब मेें दीपक लिखलन कि, ‘जवन बीत गइल, तवन बात गइल. बहुत भावुक होखला के जरुरत नइखे. हँ, मसला कइसे सलटे आ कवन कवन राह निकल सकेेला एह पर सोचला केे जरुरत बा.’ दीपक के अधिका जोर विकल्प पर रहुवे आ ऊ इशारा करत साफ संकेेत दे दीहलन कि मुनमुन केेे दोसर बिआह का बारे मेें सोचे के चाहीं. आ तर्क दिहलेे रहलन कि, ‘ओकर शादी गलत त होइए गइल बा. आ जब हमनी का राधेश्याम आ ओकरा परिवार केे बात फोनो पर बरदाश्त नइखीं कर पावत त ऊ बेचारी ओहिजा जा केे रहबो करे त कइसे भला?’

बाकिर काहें ना काहेे राहुल दीपक के एह मेल केे जबाब ना दिहलसि. पी गइल एह मेेल केे. शायद ओकरा नीक ना लागल मुनमुन के दोसर बिआह करावे केे सलाह. बाकिर दीपक से राधेश्याम के गारी गलौज करे केे बात ऊ रमेश, धीरज, तरुण, मुनमुन, आ अम्मा बाबू जी सभका के जरुत बता दिहलसि. आ सभेे दीपक के फोन करि केे एह बाति पर अफ़सोस जतावल. राहुल घनश्यामो राय के फोन करि केे एहपर सख्त एतराज जतवलसि आ उनुका केे बतवलसि कि, ‘दीपक भइया हमनी सब में सिर्फ़ बड़े ना हमहन के आन आ मानो हईं. राधेश्याम केे हिम्मत कइसेे भइल उनुका सेे गालीगुफ्ता करेे केे? आ फेर जेे इहे रवैया रहल त हमनी के रिश्ता खतमेे समुझीं आ नतीजा भुगते ला तइयार रही.’ ऊ आगा जोड़लसि, ‘ईंट से ईंट बजा देब जा रउरा राधेश्याम के आ रउरा पूरा परिेवार के.’ राहुल के एह धमकी से घनश्याम राय डेेरा गइलन. ऊ राहुल से त माफी मंगबे कइलन दीपको केे खुद फोन करि के राधेश्याम के व्यवहार ला माफ़ी मंगलन. गनीमत रहल कि ू फोन पर रहलन, ना त सोझा रहतन त गोड़ पकड़ लेतेें. राहुल घनश्याम राय के डपटत कहलसि कि, ‘राधेश्याम के समुझा लीं. ना त अब अगर ऊ बांसगांव जा केे हमनी केे अम्मा बाबू जी भा मुनमुन से बदतमीज़ी कइलसि त ओकर खैर ना रही.

घनश्याम राय राधेश्याम के गोड़ ध केे समुझवलन, ‘अब मत जइहऽ बांसगांव बवाल काटे, ना त बड़हन बवाल हो जाई.’ राधेश्याम तब त मान गइल, बाकिर कब लेे मानीत भला? ओह दिन मुनमुन अम्मा के हाथ के प्लास्टर कटवा के घरे लेे आइल रहुवेे. आंगन में बइठल अम्मा के हाेथ के सिंकाई करत रहुवेेे जब झूमत झामत चहुँपल रहल. मुनमुन ओकरा के देख के अइसे मुसुकाइल जइसेे ओकरे पेेड़ा जोहत होखे. बोलल, ‘ले जाए आइल बानीं?’

‘हँ, चल तुरते.’ कहत राधेश्याम गारी के बरसात कर दिहलसि.

‘बेेसी इतरइला के जरुरत नइखे.’ मुनमुन राधेश्याम के गारियन के इंगित करत बाकिर इतराइल अंदाज में मुसुका केे बोलल, ‘चलीं. चलतेे बानी अब की. रउरो का कहब!’

‘आ गइले नू लाइन पर.’ कहत राधेश्याम फेर ओकरा केे महतारी के गारी सेे नवाज़ दिहलसि.

‘हँ, का करतीं!’ मुनमुन फेरू इठलात बोलल, ‘आवहीं के पड़ल!’

‘त चल!’

‘कपड़ा त बदल लीं?’ मुनमुन बइठले-बइठल इठलाईल, ‘कि अइसहीं चल दीं?’

‘चल, बदेल ले!’ राधेश्याम अकड़ केे बोलल.

‘रउरा बहरी ओसारा मेें बइठीं. हम अबहियें कपड़ा बदलि केे आवत बानी.’

‘बाकिर बेटी!’ मुनमुन के अम्मा तड़पड़इली.

‘कुछ ना अम्मा, अब हम जाएब. जाए द हमरा के.’ मुनमुन फेेर राधेश्याम का तरफ मुड़ के बोलल, ‘रउरा बहरा बइठीं ना!’

‘बइठत बानी. जल्दी आव.’ गरज के राधेश्याम अइसे बोलल जइसे ऊ दिल्ली जीत लिहलेे होखो. फेर बाहर निकल केे ओसारा में बइठ गइल. कवनो गाना गुनगुनावत. ऊ बहरी ओसारा में बइठल गुनगुनावते रहल जब पाछा सेे एगो लाठी लिहलेे मुनमुन आइल आ राधेश्याम के कपार पर निशाना साधत तड़ातड़ लाठी से मारेे लागल. अचकेे मिलल लाठी केे चोट सेे ऊ अकबका गइल. ओकर कपार फूट गइल आ लागल खून बहे. तबहियों ऊ कुर्सी सेे उठत गारी बकत तेजी सेे पलटल आ मुनुमुन ओरी लपकल. बाकिर तब लेे मुनमुन ओकरा गोड़ के साधत लाठी चला दिहलेे रहल. ऊ लेड़खड़ा के गिर पड़ल आ लागल जोर जोर सेे चिचियाए. अतना कि रास्ता सेे जात राहगीर रुक गइलेें. अड़ोसी पड़ोसी जुट गइले. मुनमुन के अम्मा घर में से बाहर आ गइली. बाकिर मुनमुन रुकल ना, ना ही ओकर लाठी बरजल. ऊ मारते रहल. राधेश्याम छटपटात चिचियात रहुवेे, ‘बचावऽ-बचावऽ हमरा के ना त ई हमरा के मुआ दीही.’ दू एक जनेे राहगीर लपकलेें ओकरा के बचावेे ला बाकिर पड़ोसी रोक दिहलेें. मुनमुन मारत गइल लाठी सेे राधेश्याम के आ ऊ हाथ जोड़लेे रहम के भीख मांगत रहल. फ़रियाद करत रहल, ‘तोहार पति हई, तोर सोहाग हईं.’

‘पति ना, तूं पति का नाम पर कलंक हउवऽ.’ हांफत मुनमुन बोलतो रहल आ हीक भर के ओकरा के पीटतो रहल. ऊ चिचियात रहल, ‘तेें धोखा कइलिस हमरा साथ. धोखा सेे पाछा सेे वार कइलिस!’

‘तूं आ तोहार बाप धोखा करेे त ठीक, हम करीं त धोखा!’ मुनमुन हांफत आ ओकरा के मारत बोलल. ऊ तब लेे मारत गइल, जबले ऊ अधमरू ना हो गइल. आखिरकार राधेश्याम मुनमुन के गोड़ छान लिहलसि आ बोलल, ‘माफ़ कर दऽ मुनमुन, हमरा के माफ कर दऽ.’ मुनमुन के दरवाज़ा पर ई उहेे ठाँव रहल जहवां द्वारपूजा में मुनमुन के बाबू जी राधेश्याम के गोड़ धोवलेे रहलन. भलहीं बरसात का चलतेे ताखा पर. आ आजु ओही जगहा खून आ धूरा में सनाइल पिटाई से लथपथ राधेश्याम मुनमुन के गोड़ पकड़ के अपना जान के भीख मांगत रहल. द्वारपूजो बेरा भीड़ रहल, बारात के. आजुओ भीड़ रहल, बांसगांव के. जे जहँवेे सुनल तहँवेे सेे धावत आइल. बाकिर मुनमुन केे रोकल केहू ना. आ मुनमुनवो रहल कि रुकल ना. रुकल तब जब बाबू जी रोकलन. हँ, ई ख़बर जब कचहरीओ में चहुँपल त मुनक्का राय भागत-भागत घरेे अइलन. मुनेमुन के हाथ पकड़ ओकरा केे रोकत बोललन, ‘एह अभागा केे मारिए देबे का?’

‘हँ, बाबू जी, आजु एकरा केे मारिए देबेे दी!’

‘काहेें विधवा हो के जेल जाइल चाहत बाड़ू?’ मुनक्का राय बोललन, ‘आख़िर तोहार सोहाग हऽ!’

‘सोहाग?’ कहत मुनमुन अइसन मुंह बनवलसि जइसे कवनो कड़ुआ चीझु आ गइल होखो मुँह मे. आ राधेश्याम के मुंह पर ‘पिच्च’ से थूकत बोलल, ‘थूकत बानीं अइसन सोहाग पर जवन हमार जिनिगी जहन्नुम बना दीहलस.’ आ फेरु एक लात ऊ राधेश्याम के चूतड़ पर लगा दिहलसि. मुनक्का राय पलट केे भीड़ ओरी देखलन त देखलन कि ख़ामोश खड़ा भीड़ में अधिकांश लोगन का आँखिन में मुनमुन खातिर बड़ाई के भाव रहल. ऊ मन ही मन मंद मंद मुसुकइलन आ बहुतेे गर्व सेे मुनमुन के भर आंख देखलन आ भीड़ का तरफ़ पलटत बोललें, ‘एह नालायक के केहू एहिजा सेे उठा केे लेे जा भाई! कि अइसहीं तमाशा देखत रहब सभेे?’

बाकिर केहू राधेश्याम के उठावेे ला सामने ना आइल. उलुटे सब लोग ओसारा में आ बइठल मुनमुन के घेर लीहल. एगो पड़ोसिन बोलल, ‘वाह मुनमुन बिटिया वाह! ई काम तोहरा बहुतेे पहिलहीं क लीहल चाहत रहुवेे. जीअल हराम क दिहले रहुवेे. जबे मन करेे आ केे दरवाज़ा पीट-पीट के गरिया जात रहल. हमनी का ई सोच के चुपा जात रहीं कि वकील साहब के दामाद ह. बाकिर अइसन पियक्कड़ आ बदतमीज़ आदमी के इहे दवाई ह.’

फेर एक एक कर के सभेे मुनमुन के एह काम के कसीदा पढ़ल. ओनेे राधेश्याम ज़मीन पर पटाइल दरद आ अपमान से छटपटात रह. थोड़ देर बाद ऊ भीड़ में एक आदमी के इशारा सेे बोलवलसि आ कहलसि कि, ‘कवनो रिक्शा भा टैम्पू बोलवा दीं.’

‘हम ना बोलाएब.’ ऊ आदमी मुंह पिचका के बोलल, ‘एहिजे मुअऽ!’ भीड़ गँवेे-गँवेे छंटे लागल. मुनक्का राय, मुनमुन आ ओकर अम्मो घर में जा केे भीतर सेे दरवाज़ा बंद क केे बइठ गइल. थोड़ देर बाद पुलिस मुनक्का राय के घर का दरवाज़ा खटखटवलसि. दरवाज़ा मुनक्का राय खोललन. पूछलन, ‘का बात बा?’

‘कवनो वारदात भइल बा एहिजा ?’ दारोगा पूछलन.

‘ना त.’

‘सुनात बा कि कवनो मारपीट भइल बा?’

‘हँ, हँ. एगो पियक्कड़ आ गइल रहुवेे.’ मुनक्का राय तनिका रुक के बोललन.

‘अच्छा-अच्छा!’ दारोगा पूछलन, ‘त रिपोर्ट लिखवाएब?’

‘ना. हमरा त नइखेे लिखवावेे केे.’ मुनक्का राय बोललन, ‘ऊ पियक्कड़ लिखवावल चाहे त लिख लीं!’

‘ऊ बा कहा?’

‘केे?’

‘ऊ पियक्कड़?’

‘हमरा का मालूम?’

पुलिस चुपचाप चल गइल. बाकिर बांसगांव चुप ना रहल. बांसगांव के सड़कन पर मुनमुन के चरचा रहल. मुनमुन के बहादुरी के चरचा. पान का दुकान पर, मिठाई का दुकान पर आ कपड़ा केे दुकान पर. परचून के दुकान आ शराब के दुकान पर। चहुं ओर मुनमुन, मुनमुन, मुनमुन! सांझ होखत-होखत एगो पान वाला बाक़ायदा वीर रस में गावत रहल ई मुनमुन कथा, ‘ख़ूब लड़ी मरदानी यह तो बांसगांव की रानी है।’ फेेर गँवेे-गँवेे जेनिए देेेखीं तेेनिए, ‘ख़ूब लड़ी मरदानी यह तो बांसगांव की रानी है!’ पूरा बांसगांव के जु़बान पर आ गइल. अगिला दिने जब ई स्लोगन केे बात मुनक्का राय ले चहुँपल त ऊ मंद-मंद मुसुका के रह गइलन. वीर रस के ई स्लोगन चहुँपावे वाला लोग रमेश, धीरज आ तरुणो ले ई बात फ़ोन सेे चहुँपा दीहल. आ तिसरका दिने त एगो लोकल अखबार पूरा घटना बिना केहू के नाम लिहलेे, एगो औरत, एगो पति करि के ख़ूब ललकार के छाप दिहलसि. रमेश आ धीरज बाबू जी केे फ़ोन क के एह घटना पर अफ़सोस जतवले आ कहलें कि, ‘एकरा केेे बेसी तूल ना देबेे केे चाही. एहसेे हमनियो केे बदनामी होखी!’

‘जब तोहरा बहिन आ महतारी केे ऊ नालायक पीटत रहल तब बदनामी ना होखत रहुवेे का कि अब बदनामी हो रहल बा?’ कहत मुनक्का राय दुनू बेटन के डपट दीहलन. आ ई देखीं एह घटना केे बीतल अबहीं हफ्तो भर ना भइल रहुवे कि बांसगांव के बस स्टैंड पर चनाजोर गरम बेचे वाला तिवारी जी अब मुनमुन केे नाम पर आपन चनाजोर गरम बेचेे लगलन, ‘मेरा चना बना है चुनमुन/इस को खाती बांसगांव की मुनमुन/सहती एक न अत्याचार/चनाजोर गरम!’ ऊ एकरा मेें आग जोड़सु, ‘मेरा चना बड़ा बलशाली/मुनमुन एक रोज़ जब खा ली/ खोंस के पल्लू निकल के आई/गुंडे भागे छोड़ बांसगांव बाजा़र/चनाजोर गरम!’ जल्दिए ई मुनमुन नाम से बेेचाएवाला चनाजोर गरम कौड़ीराम आ आस पास के कस्बनो मेेें पसर गइल. आ एनेे बांसगांव बस स्टैंड पर तिवारी एहमें अउरो लाइल जोड़त गइलन, ‘मेरा चना बड़ा चितचोर/इस का दूर शहर तक शोर/इस के जलवे चारो ओर/इस ने सब को दिया सुधार/बहे मुनमुन की बयार/चनाजोर गरम!’ ऊ अउरी जोड़सु, ‘मेरा चना सभी पर भारी/मुनमुन खाती हाली-हाली/इस को खाती जो भी नारी/पति के सिर पर करे सवारी/जाने सारा गांव जवार/चना जोर गरम!’

आ देखते देखत मुनमुन के नाम वाला चनाजोर गरम सागरी हद लांघत शहरो में बिकाए लागल. ना सिरिफ बस स्टैंड पर शहर के मुख्य बाज़ार गोलोघर में. लोग चनाजोर गरम खात पूछल करेे, ‘भइया ई मुनमुन हवेे केे?’

‘बांसगांव की रानी है साहब अत्याचारियों के पिछाड़ी में भरने वाली पानी है साहब!’

‘अबहीं ले त बांसगांव के गुंडन के नाम सुनात रहल, अब ई रानी कहाँ सेे आ गइल?’

‘आ गइल साहब, आ गइल. बड़का-बड़का गुंडन केे पानी पिआवे. ’

‘का?’

‘अउर का?’

लागल जइसेे मुनमुन, मुनमुन ना होके पतियन का अत्याचार का खि़लाफ बिकाए वाला ब्रांड होखो! हां, अब मुनमुन ब्रांड हो चलल रहल. कम से कम बांसगांव में त ूऊ अत्याचार के खि़लाफ ब्रांड रहबेे कइल. खास कर केे बांसगांव के बस स्टैंड भा टैम्पो स्टैंड पर तिवारी जी जब मुनमुन के देख लेसु त आपन आवाज अउर तेज आ ओजभरल बना लेसु . फेर लगभग पंचम सुर में आ के उचारसु, ‘इस को खाती बांसगांव की मुनमुन/सहती एक न अत्याचार/चनाजोर गरम!’ मुनमुन मंद-मंद मुसुकात धीरे-धीरे चलल छोड़ तेज़-तेज़ चलेे लागेे. मुनमुन के पहचान पहिले एगो वकील के बेटी फेरु अधिकारी आ जज के बहिन के रूप में रहल. लोग ओकरा के सम्मान सेे देेखेे. फेरु ऊ अपना शोख़ी ला जनाए लागल. लोग ओकरा केे ललक सेे देखे लगलेें. बिजली गिरावत इतराइल चलल करे ऊ. आ जल्दिए ऊ एगो सताइल औरत हो गइल रहल. लोग ओकरा के सहानुभूति मिलावल करुणा सेे भा अनठिया केे देखेे लागल रहलें. बाकिर अब ओह अनठिअवला का जगहा ओकरा केे सम्मान से देखे लागल बांसगांव। केेेेहू-केहू त ओकरा के बोल्ड एंड ब्यूटीफुल कहेे, केहू झांसी के रानी, केहू कुछ, केेहू कुछ। सब के आपन-आपन मपना रहल. बाकिर परिवार आ समाज में सतावल, वंचित आ अपमानित औरत मुनमुन में अब आपन मुक्ति तलाशल करे. अइसन औरत अब ओकरा से सलाह लेबेे आवेे लगली सँ. गँवेे-गँवेे ऊ शिक्षामित्रेे ना सतावल औरतनो केे मित्रो बन गइल.। लगभग एगो काउंसलर केे छवि बन गइल रहल मुनमुन के.

(परीकऽ ऐ बिलार, एक दिन खइबऽ मूसरी के मार! वाला कहावत शायद राधेश्यामेे जइसन लोगल ला कहाला. अब आगेे चलि केे राधेेश्यामो केे चरचा होखी कि अब सगरी चरचा मुनमुने केे रही, ई देखल जाव. आजु एहिजे रोकत बानी. आगे का भइल ई जाने ला अगिला कड़ी पढ़े जरुर आईं. – संपादक.)

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