– – डॉ. रामरक्षा मिश्र विमल
#भोजपुरिया-चिट्ठी #गोधन #भईया दूज #डॉ.रामरक्षा-मिश्र-विमल
सोस्ती सिरी पत्री लिखी पटना से-11
आइल भोजपुरिया चिट्ठी
ईसर पइससु, दलिद्दर निकलसु
wishing good and bad
काकी के नातिन पूछि-पूछि के उबिया देले रहे. ऊ भोरहीं लभेरन के बोलवली आ कहली कि दीया-दियरी का बाद के गोवर्धन पूजा, दलिद्दर निकाले आ गोधन कुटला का बारे में तनी बताव, हमार नातिन जानल चाहतिया. लभेरन उचरले.
दीपावली के दिन लक्ष्मी जी के पूजा कइल जाला आ घर का कोना-कोना में दीया-दियरी जराके लक्ष्मी जी के बहीनि दरिद्रा देवी के घर से जाए खातिर अल्टीमेटम दे दियाला अउर भैया दूज का एक दिन पहिले राती खा डंका का चोट पर उनुका के राहि देखा दियाला. कवनो लट-पट ना, ओह दिन राती खा चउथा पहर में सभ मेहरारू घर का कोना-कोना में सूप बजाके बोलेलिन- “ईसर पइससु, दलिद्दर निकलसु!”
दीपावली का बादे कातिक का अँजोर में परिवा के गोवर्धन पूजा के तेवहार धूमधाम से मनावल जाला. ओह दिन गाइ डहर लागेला. ओह दिन कवनो ग्वाला दूध के बिक्री ना करेलन, बलुक गोबर के गोवर्धन बनाके पीला फूल, अक्षत, चंदन, धूप-दीप से उनकर पूजा करेलन. एह दिन गौशाला में गाय के नहवा के उनका के नया कपड़ा, रोली चंदन, अक्षत, फूल से पूजा कइला का बाद हरियर घास, भूसा, चारा, गुड़, चना, केला, मिठाई खिआवल जाला.
दीपावली का ठीक अगिला दिने गोवर्धन पूजा मनावल जाला. कहल जाला कि एक बार इन्द्र देवता ब्रज भूमि पर अतना ना खिझिया गइले कि उनका मूसलाधार बारिश कइला से गोकुल आ वृंदावन में बाढ़ि आ गइल. ओइजा के लोग देवराज इन्द्र के खुश करे खातिर जग्गि से हरि कीर्तन तक का ना कइल बाकिर इन्द्र देवता ना मनले. ओइसहीं हाइ-हाइ पानी बरिसावत रहि गइले. तब भगवान कृष्ण गोवर्धन पर्वत के अपना कानी अङुरी प उठा लिहले. गोकुल अउर वृंदावन के लोग अपना जानवरन का सङे गोवर्धन पर्वत का नीचे आके सुरक्षित हो गइल लोग. कहल जाला कि तबे से देवराज इन्द्र के पूजा बन्न हो गइल आ उनुका जगहा गोवर्धन पर्वत के पूजा होखे लागल. साफ बात बा, जब राजा प्रजा का सुख-दुख का ओर से आँखि मूनि ली त एक दिन प्रजो (प्रजा भी) ओकरा के सबक सिखावे खातिर खड़ा होइए सकतिया. हमरा त ईहो लागेला कि भगवान कृष्ण संदेश दे रहल बाड़े कि मुसीबत में परला पर एने-ओने देखला से नीमन बा कि जवन संसाधन उपलब्ध बा, ओही में आपन जोगाड़ बइठावे के सोचल सही होला. जरूर कवनो राहि निकल आई. त्रेता युग में हनुमानजी ईहे नु कइले रहन ? संजीवनी बूटी ना चिन्हाइल त पहाड़े उठाके चल दिहलन.
गोधन
भैयादूज भाई-बहन के मुख्य परब हटे एकरा के गोधनो (गोधन भी) कहल जाला. एहमें बहीनि अपना भाई का लंबा उमिरि खातिर प्रार्थना करेले. कहल जाला कि सूर्यपुत्र यमराज आजु का दिने अपना बहिनि यमुना भीरी जाले आ उनुका घर पर भोजन करेले. एही से ई परंपरा बा कि एह दिन जे भाई अपना बहिनि का घरे जाके खाना खाला, ओकर उमिरि लंबा होखेले.
गोधन पूजा के पीछे एगो कथा सुनावल जाले. ई कथा एगो बहीनि आ ओकरा भाई-भउजाई से जुड़ल बिया. लइकी का भउजी के एगो मिलनुआ (प्रेमी) रहे, जवन वास्तव में इच्छाधारी नाग रहे. लइकी का भाई के एकर जानकारी ना रहे. ऊ ओह इच्छाधारी नाग के मारि दिहलसि. भउजाई ओह नाग के काट-काटके ओकर कुछ अंश खटिया का नीचे, कुछ अंश दीया में आ कुछ अंश अपना जूड़ा में राखि लिहलसि ताकि बाद में ओकरा के जिंदा कर सके. एह बारे में भाई के कुछ पता ना रहे बाकिर बहिनिया के पता चल गइल. ऊ ओकरा के मुसरे मूसर कूटिके पिहुदी बना दिहलसि ताकि ऊ फेरु जिंदा मति हो सके. तबे से मेहरारू आ लइकी एह परब के बहुत धूमधाम से मनावेली सन.
जुग कवनो होखो, गोधन का त कुटाहीं के बा. पुजाइल चाहतारे त नीमन काम करसु, बहीनि का ताकत के अंदाजा एही से लगावल जा सकता कि आजुओ गोधन के खैर नइखे, गोबर के उनुकर आकृति बनाके पता ना कहिया से उनुकर कुटाई होता! एकरा बादो जब महिला सशक्तीकरण के बात कइल जाला त हमरा हँसी आवेला, हम कवनो भ्रम में नइखीं.
हमनी का ‘गोधन’ (भैया दूज) मनावे के तरीका तनी अलगे होला. ओह दिने भोरहीं मए बहीनि अपना भाई के भर मन सरापेली सन आ फेरु जीभि में रेंगनी के काँट गड़ाके प्रायश्चित करत आपन बात लवटावेली सन आ शुभकामना प्रकट करेली सन.
गोधन कुटइला पर बहीनि बजरी खिआवेले. बहीनि बड़ होखे भा छोट, भाई के वज्र नियन बरियार होखे के आसिरबाद देले. ई हटे भोजपुरिया संस्कृति. समूह में मेहरारुन का कंठ से लोकगीत गवा रहल बा-
कवन भइया चलले अहेरिया!
कवन बहिनी देली असीस हो ना…
जिअ भइया लाख बरीस हो ना.
भाई जंगल में शिकार करे जा रहल बा आ बहीनि आसिरबाद दे रहल बिया.
बंगाल में ‘भाई फोटा’ होला. भाई बहीनि का घरे जाला आ बहीनि भाई के तिलक (फोटा) लगावेले. ई बहुत जरूरी बा नया पीढ़ी के जानल, खासकर जे बहरवाँसू बा. तबे ई कुल्हि परंपरा बाँचल रहिहें सन. गोधने से ‘पिड़िया’ जइसन लोक पर्व के शुरुआत हो जाला.
———————————————
(ई रचना बहुत पहिले मिल चुकल रहुवे बाकिर कुछ स्वास्थ्य आ कुछ सामाजिक कारण का चलते विलम्ब से अंजोर कइला ला क्षमा-प्रार्थना का साथ प्रस्तुत बा.)
————————————————
संपर्क : डॉ. रामरक्षा मिश्र विमल, निकट- पिपरा प्राइमरी गवर्नमेंट स्कूल, देवनगर, पोल नं. 28
पो.- मनोहरपुर कछुआरा, पटना-800030 मो. 9831649817
ई मेल : rmishravimal@gmail.com

0 Comments