बांसगांव की मुनमुन – 22 वीं कड़ी

बांसगांव की मुनमुन – 22 वीं कड़ी
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( दयानन्द पाण्डेय के बहुचर्चित उपन्यास के भोजपुरी अनुवाद )

( पिछला कड़ी में पढ़ले रहीं कि मुनमुन कइसे समाज के सतावल औरतन के लड़ाई लड़ल शुरु कर दिहले रहुवे. अगर पिछला कड़ी नइखीं पढ़ले त पहिले पिछलका कड़ी पढ़ लीं.)

धारावाहिक कड़ी के बाइसवां परोस
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(पिछला कड़ी मेें रउरा पढ़ले रहलीं कि गँवेे-गँवेे मुनमुन गाँव जवार के पीड़ित औरतन ला केन्द्र बनल जात रहुवेे. सवाल उठे लागल रहुवेे कि का मुनमुन अब राजनीति केे रुख करी का? अगर पिछला कड़ी नइखीं पढ़ले त पहिले पिछलका कड़ी पढ़ लीं.)

त का मुनमुन राय अब राजनीति केे रुख़ करत ब‌ाड़ी? बांसगांव केे सड़क एक दोसरा से इहे पूछत रही सँ. मुनमुन राय के लोकप्रियता के ग्राफ़ मजबूर करत रहुवेे लोगन केेे ई सोचे ला. बाकिर एक दिन एगो औरत मुनमुन से कहत रहली कि, ‘का बताईं मुनमुन बहिनी, ई बांसगांव के विधानसभा अउर संसद केे दुनूवो सीट अगर सुरक्षित सीट ना रहीत त तोहर केे एहिजा सेे निर्दलीय चुनाव लड़वा देतीं आ तू जीतियो जइतू.’

‘अरे का कहत बाड़ू चाची. आपन घर त चला नइखीं पावत राजनीति का खाक करब?’ मुनमुन बोलली, ‘एह बांसगांव में त रह नइखीं पावत त राजनीति त वइसहूं काजल के कोठरी कहल जाला. मरद मानुस लोग त ओकरा के जब तब वेश्या कहतेे रहेलेें.’

‘मरद त हमेशा के हरामी हउवेें.’ ऊ औरत बोलली, ‘ओहनी के बात पर कान काहे देबे केे?’

‘अइसन?’ मुनमुन बोलली, ‘का तुहूं मरेदन के सताइल हऊ चाची? देखेे में त संतुष्ट आ सुखी लउकेलू?’

‘विधाता त शाायद औरतन केे सुखी आ संतुष्ट रहे खआतिर एह समाज में भेेजबेे ना कइलन.’ ऊ औरत बोलली, ‘सब बाहरी दिखावा होला. ना त कवन औरत एहिजा सुखी आ संतुष्ट बिया?’

‘सेे त बा चाची!’ मुनमुन बोलली, ‘उपेक्षा आ अपमान जब घरे में लोग देबे लागसु त बाहर के का कहावऽ? हमार कहानी त त तोहरा सेे का केहू से अनसुनल नइखे. ने लगें तो बाहर वालों की क्या कहें? मेरी कहानी तो तुम से क्या किसी से छुपी नहीं है। पर वीना शाही का क्या करें?’बाकिर वीणा शाही के का कइल जाई?’

‘का भइल वीणा के? ओकर भाई पुलिस में बड़का अफसर हवेे.’

‘हां, हवे त! आजकल कहीं एस.पी. बावेे. बाकिर बहिन के पूछे ना. इकलौती बहिन हिय. मरद मार पीट के दू गो बच्चा समेेत छोड़ दिहले बा. तलाक केे मुकदमा लड़त बिया. वीणा केे बचवो सभ बाप सेे डेेराइल रहेेलेें. बाप केे नाम सुनते रोवेे लागेलेे सँ – पापा का लगे नइखे जाए केे. बहुत मारेेलन. बेटी बचवन के लेे केे हमरे तरह महतारी-बाप का छाती पर बइठल बिया. इंगलिश मीडियम के पढ़ल बेचारी वीना कहीं के नइखेे रहि गइल.’ मुनमुन हताश भाव मेें बोलली, ‘लागत बा बांसगांव अब गँवे-गँवेे दबंगन के ना बलुक पियक्कड़न आ परित्यकन केे तहसील बनत जात बा.’

जवनेे होखो मुनमुन राय अब ना सिरिफ बांसेेगांव बलुक बांसगांव के अगलो-बगल केे परित्यक्तन, सतावल आ जुलुम केे मारल औरतन केे सहारा बनल जात रहली. एक तरह से धुरी. ओं, सताई और ज़ुल्म की मारी औरतों का सहारा बनती जा रही थी। एक तरह से धुरी। इहमें अधेड़, बूढ़, जवान हर तरह के औरत रहली सँँ. कवनो पति के सतावल, त कवनो बाप भाई केे. एहमेें सेे अधिकतर मध्य वर्ग भा निम्न मध्य वर्ग केे रहली. मुनमुन कहबो करेे कि हमनी का समाज में शोहदन, पियक्कड़न, नाजायज रिश्तन आ परित्यक्तन के अनुपात लगातार बढ़त आ घन होखल जात बा. एह पर ना जानेे काहेे कवनो समाजशास्त्री के नज़र नइखे जात. नजर जाए के चाहीं आ एकरा कारणन के पता लगा केे कवनो ना कवनो निदानो ज़रूर खोजल जाए के चाहीं.

एक दिन सुबह-सुबह सुनीता के पति मुनमुन का घरे आइल. आवते तू-तड़ाक से बात शुरू क दिहलसि. कहे लागल, ‘तूं हमरा बीवी केे भड़कावल बन्द कर दऽ ना त एक दिन तोहरा चेहरा पर तेजाब फेंक देब. भूला जइबू नेतागिरी कइल.’

शुरू में त मुनमुन चुपचाप सुनत रहल. बाकिर जब पानी मूड़ी का ऊपर जाए लागल त बोलल, ‘बेसी हेकड़ी देखईबऽ त अबहियें पुलिस बोला केेे जेल के हवा खिया देब. सगरी हेकड़ी भुला जइबऽ.’

सुनीता के पति तबहियों बड़बड़ाते रहल. त मुनमुन बोलल, ‘तूं शायद हमरा के ठीक से जानत नइखऽ. हमार भाई सभ जज हउवेें, बड़का अफसर हउवेें.’ ऊ मोबाइल उठावत कहलसि. ‘अबहीं एकेे फोन पर पुलिस एहिजा आ जाई. फेर तोहार का हाल होखी सोच लऽ. आ हमहूं बाकी औरतन का तरह चूड़ी नइखीं पहिरले!’ मुनमुन ई सब बोलल आ अतना सर्द अंदाज में कि सुनीता के पति के अकबक बन्द हो गइल. ऊ जाए लागल त मुनमुन ओकरा केे फेरू डपटलसि, ‘आ जे घरेे जा केे सुनीता केे कुछ कहलऽ भा हाथ लगवल त पुलिस तोहरो घरेे चहुँप सकेेलेेे, अतना जान लऽ.’

सुनीता के पति ओकरा के घूरत, तरेरत चल गइल. मुनक्का राय तब घरहीं रहलन. सुनीता के पति केे चल गइला का बाद ऊ मुनमुन से बोललन, ‘बेटी का आपने बिपत कम रहुवेे का जे दोसरो के बिपत अपना कपारेे लेेेत बाड़ू?’

‘का बाबू जी, रउरो!’

‘ना बेटी तूं समुझ नइखू पावत कि तू का करत बाड़ू?’ मुनक्का राय बोललन, ‘तूं बांसगांव के बदनामी का कवना हद ले चहुंपा दिहले बाड़ू तोहर अबहीं एकर खबरेे नइखे.’

‘का कहत बानी बाबू जी रउरा?’ मुनमुन चकित होके बोलल, ‘बांसगांव के बाबू साहब लोग मर गइल बाड़न का जे हम बांसगांव के बदनाम करे लाग गइनी?’

‘अरे ना बेटी. बाबू साहब लोगन के दबंगई से ओतना नुकसान ना भइल जवन तोहरा चलते हो रहल बा.’

‘का?’ मुनमुन अवाक रह गइल.

‘हँ, लोगबाग अकसर हमरा केे कचहरी में बतावत रहेेलें कि तोहरा चलतेे बांसगांव के लड़िकियन के शादी कहीं तय नइखे हो पावत. लोग बांसगांव के नाम सुनते बिदक जात बाडेें. कहेेलें कि अरेे ओहिजा केे लड़िकी त मुनमुन जइसन गुंडी होखेलीं सँ. अपना मरद के पीट देली स. ओहनी सेे के बिआह करी? लोग कहेलें कि बांसगांव के लड़िकियन का नाम से चनाजोर गरम बिकाता. अइसनका लड़िकियन सेे शादी ना हो सकेे.’

‘का कहत बानी बाबूजी रउआ?’

‘बेटी जवन सुनत बानी उहे बतावत बानी.’ मुनक्का राय बोललन, ‘बंद कर दऽ अब ई सब. तूं  कंपटीशन के तइयारी करे वाली रहलू, उहे करऽ. कुछ नइखे धइल वइल एह बेेवकूफी वाला बातन में. फेर तोहरा सोझा त लमहर  जिनिगी पड़ल बा.’

‘कंपटीशन के तइयारी त बाबू जी हम करते बानी.’ मुनमुन बोलल, ‘बाकिर हम जवन करत बानी तवन बेवक़ूफ़ी हऽ, ई रउरा कहत बानी  बाबू जी!’

‘हँ, हम कहत बानी.’ मुनक्का राय बोललन, ‘ई बगावत, ई आदर्श सब किताबी आ फिल्मी बात हईं सँ, ओहिजे नीक लागेली सँ, असल जिनिगी में ना.’

‘का बाबू जी!’

‘ठीके त कहत बानी.’ मुनक्का राय उखड़ के बोललन, ‘तोहरे बगावत का चलते तोहार सगरी भाई घर से बिदक गइलें. एह बुढ़ापा में बेऔलाद बना दिहलू तू आ तोहार बगावत हमरा के. हकीकत त इहे बा.’ ऊ तनिका रुकलन आ आगा जोड़लन, ‘हकीकत त ई बा कि तोहरा चलते एह बुढ़ारिओ में हमरा संघर्ष करे के पड़त बा. साबुन, तेल, दवाई तक ला तड़पे के पड़त बा. लायक बेटन के बाप होखला का बावजूद दिक्कत में जिए के पड़त बा. त सिर्फ तोहरा बगावत का चलते. तोहरा बगावत में तोहर साथ दिहला का चलते.’

‘त बाबू जी का रउरा चाहत बानी कि हम एह कसाईयन का आगा हार मान लीं? बढ़ा दीं आपन गरदन ओहनी का आगे कि लऽ हमार बलि चढ़ा द लोग?’ मुनमुन बोलल, ‘बोलीं बाबू जी, अगर रउरा इहे चाहत बानी त?’

मुनक्का राय कुछ बोललन ना. चादर ओढ़ के खटिया पर लेट गइलन. मुनमुन बाबू जी का गोड़तरिया आ के खड़ा हो गइल, ‘ज़ाहिर बा रउरा ई नइखी चाहत. आ हम अइसन करबो ना करब. रउरा चाहब तबहियों. हम भलहीं मर जाईं एह तरह बाकिर हथियार डाल के ना मरब. लड़ाई करत मुअल पसन्द करब. सगरी कसाईयन के काट के.’ अचानक ऊ रुकल आ फेर बोलल, “आ मरब काहें? मुए हमार दुश्मन. हम त शान से जीयब. जेकरा जवन कहे सुने के होखो कहे सुने.’

फेर तइयार हो के बाबू जी के सूतल छोड़ ऊ स्कूल जाए ला बस स्टैंड पर आ गइल. ओने सुनीता के पति घरे जा के सुनीता से त कुछ ना बोलल बाकिर शहर जा के बेसिक शिक्षा अधिकारी किहां मुनमुन का खिलाफ लिखित शिकायत कर आइल. शिकायत में लिखलसि कि मुनमुन शिक्षामित्र के नौकरी कइला का बजाय नेतागिरी करत बिया आ एह नेतागिरी में तमाम औरतन के भड़का-भड़का के ओहनी का परिवार में बगावत करवा के ओह परिवारन के तूड़त बिया. बतौर नजीर ऊ आपने हवाला दिहलसि कि मुनमुन राय के दखलअंदाजी का चलते ओकरो बीवी नेता बने के कोशिश करत बिया आ हमार घर टूट रहल बा. ऊ इहो लिखलसि कि जवना औरत का नाम से चनाजोर गरम बिकात होखो ऊ अपना स्कूल में पढ़इबो का करी? नेतागिरिए करी. एह से बचवन के भविष्य ख़राब होखी.

ऊ अपना लमहर शिकायती पत्र का आखिर में इहो खुलासा कइलसि कि एही नेतागिरी का फेर में मुनमुन आपनो परिवार तूड़ दिहले बिया आ अपना भतार के घर छोड़ के बाप का घरे रहत बिया. इहां ले को अपना गाँवे रहला का बजाय बांसगांव में रहत बिया आ स्कूल गइला का बजाय इलाका के औरतन के भड़का के नेतागिरी करत बिया. से एह पूरा प्रकरण के उच्च स्तरीय जांच करवा के मुनमुन राय के शिक्षामित्र के नौकरी से तत्काल बर्खास्त कइला के गोहारो लगवले रहल सुनीता के मरद. अपना शिकायती पत्र में ऊ इहो जोड़ले रहल कि मुनमुन राय अपना भाइयन के ऊंच ओहदा पर होखला के धौँस सबके देत रहेले कि हमार भाई जज आ कलक्टर हउवें. वग़ैरह-वग़ैरह. आ इहो कि ऊ एक नंबर के चरित्रहीनो हीय. बाप वकील हउवें से केहू ओकर कुछ बिगाड़ नइखे पावत. बाकिर अगर शिक्षा विभाग ओकरा हरकतन पर अंकुश ना लगाई त बांसगांव इलाक़ा के समाज में एक दिन अइसन भूकंप आ जाई कि सम्हरले ना सम्हरी.

सुनीता के पति के ई शिकायती पत्र रंग देखवलसि आ बेसिक शिक्षा अधिकारी ख़ुद ही एह प्रकरण के जांच करे के सोचलन. चूंकि मुनमुन राय शिक्षामित्र रहल, नियमित शिक्षिका त रहल ना से ओकरा के कवनो नोटिस दिहला का बजाय अपना पी.ए. से फ़ोन करवा के मुनमुन राय के बोलवा लीहलन. मुनमुन आइल त बेसिक शिक्षा अधिकारी ओकरा के एक घंटा बाहरे बइठा रखलन आ तब बोलवलन. तबले इंतजार में बइठल मुनमुन पाक गइल रहुवे. दोसरे घर से खानो खाके ना आइल रहुवे. से भूखो जोर मरले रहल. ऊ भीतर जा के ठाढ़ हो गइल आ बोलल, ‘सर!’

‘त तूहीं मुनमुन राय हऊ?’

‘हँ, त!’

‘गांव में रहला का बजाय बांसगांव में रहेलू?’

‘जी सर, गांव वाला घर गिर गइल बा. बांसगांव में माता-पिता जी का साथे रहीलें.’

‘बिआह हो गइल बा?

‘जी सर!’ ऊ तनिका रुकल आ गँवे से बोलल, ‘बाकिर टूट चुकल बा.’

‘काहें?’

‘सर! ई हमार निजी मामिला हवे, रउरे एह बाबत कुछ नाहिये पूछीँ त उचित होखी.’

‘अच्छा?’ बेसिक शिक्षा अधिकारी ओकरा के तरेरत पूछलन, ‘तोहार व्यक्तिगत व्यक्तिगत हवे, आ दोसरा केहू के व्यक्तिगत व्यक्तिगत ना हो सके?’

‘सर बूझनी ना.’ मुनमुन बोलल, ‘तनी एकरा के साफ कर के बताईं!’

‘तोहरा खि़लाफ शिकायत आइल बा कि तूं स्कूल में पढ़ावे का बजाय नेतागिरी करेलू आ इलाका के औरतन के भड़का के ओहनी के परिवार तोड़त बाड़ू! आपन नेतागिरी चमकावत बाड़ू!’

‘जे ही ई शिकायत कइले बा गलत कइले बा सर! हम नियम से स्कूल जाइलें. हस्ताक्षर पंजिका मंगवा के रउरा देख सकीलें. विद्यार्थियन से, गांव वालन से आ स्टाफ़ से दरिया़त कर सकीलें. हम नियमित आ समय से स्कूल जाइलें आ कतहीं कवनो नेतागिरी ना करीं. केहू के परिवार नइखीं तूड़ले. अगर केहई अइसन कहत बा त ओकरा के पेश कइल जाव.’ मुनमुन राय पूरा सख़्ती से बोलल.

‘सुनऽतानी कि तोहरा नाम से चनाजोर गरम बिकाला.’

‘हम ई व्यवसाय ना करीं सर!’

‘जवन बात पूछल जाव तवना के सीधा जवाब द!’

‘कवना बात के सीधा जवाब दीं?’

‘इहे कि तोहरा नाम से चनाजोर गरम बिकाता?’

‘हम पहिलहीं रउरा के बता दिहले बानी कि हम ई व्यवसाय ना करीं!’ मुनमुन तनिका रुकल आ बेसिक शिक्षा अधिकारी के तरेरत बोलल, ‘अगर रउरा इजाज़त दीं त हम बइठ जाईँ? बइठ के रउरा सवालन के जवाब दीं?

‘हँ, हँ बइठ जा!’

‘थैंक यू सर!’ कह के मुनमुन बइठ गइल. ओकरा बइठते बेसिक शिक्षा अधिकारी का फ़ोन पर केहू के फ़ोन आ गइल. ऊ फोन पर बतियावे लगलन. आ एने मुनमुन पशोपेश में रहल कि आखि़र ओकरा खिलाफ शिकायत कइलसि के? कहीं भइए लोगने में से त केहू शिकायत ना कर दिहलसि ओकर? इहे सोच के ऊ शुरु से मारे संकोच अपना भाईयन के नाम ना लेत रहुवे. फोन पर बेसिक शिक्षा अधिकारी के बातचीत थोड़हीं देर चलल. बात खतम करते ऊ मुनमुन का ओर बिलकुल पुलिसिया अंदाज़ में देखलन जइसे मुनमुन कवनो बड़हन चोर होखे आ उनुका पकड़ में आ गइल होखो. ओकरा ओर देखते ऊ पूछलन, ‘त?’

‘जी?’ मुनमुन बोलल, ‘का?’

‘त तोहरा के एह शिकायत के कवन दंड दीहल जाव?’

‘कवना शिकायत के?’

‘जवन हमरा लगे आइल बा!’

‘हमरा मालूम त होखो कि हमरा खिलाफ शिकायत का बा? शिकायत करे वाला के ह?’ ऊ बोलल, ‘फेर जवन आरोप सिद्ध हो जाव त जवने कार्रवाई विधि सम्मत कार्रवाई होखो कर दीं.’

‘क़ानून मत छांटऽ!’ बेसिक शिक्षा अधिकारी गुरेरत बोललन, ‘जानत बानी कि वकील के बेटी हऊ. ’

‘वकील के बेटिए ना, न्यायाधीश के बहिनो हईं. हमार एगो भाई प्रशासनो में बाड़न.’ मुनमुन अब पूरा फ़ार्म में आ गइल रहुवे, ‘रउरा अन्हारे में तीर चला के कार्रवाई कइल चाहत बानी त बेशक करीं.’ ऊ तनिका रुकल आ बेसिक शिक्षा अधिकारी के ओही तरह तरेरत आपन हाथ देखावत बोलल, ‘हई देखीं कि हमहूं कवनो चूड़ी नइखीं पहिरले!’

‘अरे तूं त कपारे चढ़ल जात बाड़ू?’

‘कपारे नइखीं चढ़त, साफ बात करत बानी.’ ऊ बोलल, ‘हमरा खिलाफ जवने शिकायत होखे हमरा के लिखित रूप में दे दीं. हम लिखित जवाब दे देब. फेर रउरा जवने उचित लागे तवन कार्रवाई कर लेब.’

‘त अपना भाईयन के धौंस देत बाड़ू?’

‘जी ना सर!’ ऊ बोलल, ‘हम अपना भाईयन के जिक्र तब कइनी जब रउरा हमरा के वकील के बेटी कहनी. त हम प्रतिवाद में ई कहनी.’

‘अच्छा-अच्छा!’ बेसिक शिक्षा अधिकारी नरम पड़त बोललन, ‘जब तोहार भाई लोग बड़का ओहदन पर बा त तूं शिक्षामित्र के नौकरी काहें करत बाड़ू?’

‘एहसे कि हम स्वाभिमानी हईं.’ तनिका रुकल आ फेर बोलल, ‘रउरा त शिक्षामित्र के नौकरी एह तरह बतावत बानी जइसे कि शिक्षामित्र ना होखे चोर होखे.’

‘ना-ना. अइसन बात त हम ना कहनी.’ ऊ अब बचाव का मुद्रा में रहलन.

‘सर, रउरा के बतावत चलीं कि हमार एगो भाई बैंक में मैनेजर हउवें आ एगो एन.आर.आई ओ हउवें तबहियों हम शिक्षामित्र के नौकरी करत बानी. आ ई कवनो आखिरी नौकरी ना हवे.’ ऊ तनिका रुक के बोलल, ‘हम कंपटीशंसन के तइयारी करत बानी. जल्दिए कवनो नीमना जगहो देख सकीलें रउरा हमरा के.’

‘ई त बहुते नीक बात बा.’ अधिकारी बोलल, ‘ते फेर बेवजह के काम में काहें लागल बाड़ू?’ अधिकारी के सुर अब पूरा से बदल चुकल रहुवे. सुनीता के मरद के शिकायती पत्र देखावत कहलन, ‘कि अइसनका शिकायतन के नौबत आवे!’

‘हम ई शिकायती पत्र देख सकीलें का सर!’

‘हँ-हँ. काहें ना?’ कह के ऊ शिकायती पत्र मुनमुन का तरफ़ बढ़ा दीहलन.

मुनमुन बहुते ध्यान से ऊ पत्र देखलसि. फेर पढ़े लागल, पढ़ला का बाद बोलल, ‘‘रउरो सर, एह पियक्कड़ का बातन में आ गइनी?’

‘आरोप त बा नू!’

‘ख़ाक आरोप बा.’ ऊ बोलल,‘एगो आदमी अपना बीबी का कमाई से शराब पी के ओकर पिटाई करत बा. बीबी ओकरा पर लगाम लगावत बिया त ऊ ऊल जलूल शिकायत करत बा. आ हैरत एह पर बा कि रउरा जइसन अधिकारी ओह शिकायत के सुन लेत बाड़ें!’

‘अब कवनो शिकायत आई त सुनहीं के पड़ी.’

‘त सर सुनीं!’ ऊ बोलल, ‘एक त ई शिकायत हमरा शिक्षण कार्य लेके नइखे, शिक्षाणेतर काम ले के बा. आ रउरा के बताईं कि हम शिक्षामित्र हईं. आ कवनो शिक्षक के काम सिर्फ़ ओकरा स्कूले ले बन्हाइल ना रहेला. समाजो का प्रति ओकर कुछ दायित्व बनेला. आ हम एही दायित्व के निभावत बानी. अपना सतावल बहीनन के स्वाभिमान आ सुरक्षा के आवाज दे रहल बानी कि ऊ लोग अन्याय बर्दाश्त कइला का बजाय ओकर प्रतिकार करे, डट के मुक़ाबला करे आ पूरा बेंवत से ओकर विरोध करे. आ एकरा ला एक ना हजार शिकायत आवे हम रुके वाला नइखीं.’

बेसिक शिक्षा अधिकारी हकबक के मुनमुन के देखे लगलन.

‘आ सर, रउरा अगर ई चाहत बानी कि हम स्कूल में विद्यार्थियहन के मिड डे मील पकावे आ बंटवावे में जिनिगी बरबाद करीं, त माफ करीँ सर, हम ई नइखीं करेवाला.’ऊ बोलत गइल, ‘अब त अख़बारनो में स्कूलन में बंटाए वाला मिड डे मील का बारे में ख़बरें छपत बाड़ी सँ कि मिड डे मील घटिया रहल. कि मिड डे मील कवनो दलित महिला बनवलसि से सवर्ण बच्चा ना खइले सँ ने नहीं खाया वग़ैरह-वग़ैरह. ई ख़बर ना छपे कि अब एह स्कूलन में शिक्षक नइखन. कि एह स्कूलन में अब पढ़ाई ना होखे. कि एह स्कूलन में छात्रे नइखन. कि एह स्कूलन में पंद्रह-बीस बच्चन के मिड डे मील खिया के सौ-दू सौ बचवन के मिड डे मील खिआवल कागजन में दर्ज हो जाला. कि शिक्षा विभाग आ प्रशासन के अधिकारी स्कूलन में ई जांचे आवेलें कि मिड डे मील ठीक से बँटात बा कि ना. आ एहमें उनुकर बखरा उनुका तक ठीक से चहुँपत बा कि ना? अधिकारी भूलाइलो ई देखे ना आवसु कि एह स्कूलन में पठन-पाठन के स्तर का बा आ कि एकरा के बेहतर बनावे में उनुकर योगदान का हो सकेला?’

‘अरे तूं त पूरा भाषणे देबे लगली. आ उहो हमरे खिलाफ. हमरे चैंबर में.’ बेसिक शिक्षा अधिकारी अउँजा के बोललन.

‘भाषण नइखीं देत सर, रउरा के वास्तविकता बतावत बानी कि प्राथमिक स्कूलन में अब दूइए गो काम रह गइल बा, मिड डे मील पकवाव आ स्कूल के बिल्डिंग बनवाव! मतलब येन केन प्रकारेण धन कमाइल! बताई ई काम भला कवनो शिक्षक के होला कि स्कूल बिल्डिंग बनवावे कि कवनो इंजीनियर के? ई त शासन प्रशासन के सोचे समुझे के चाहीं.’ ऊ बोलत रहुवे, ‘ट्रांसफ़र पोस्टिंग के धंधा त रउरो जानते होखब” सर रउए बताईं कि हमनी का अपना नौनिहालन के का सिखावत बानी सँ?’

‘तूं त बोलते जात बाड़ू!’

‘हँ सर, बोलत त बड़ले बानी.’ ऊ बोलत गइल, ‘रउरो ई पुरनका गाना सुनलही होखब कि ‘इंसाफ़ की डगर पे, बच्चों दिखाओ चल के, यह देश है तुम्हारा नेता तुम्हीं हो कल के!’

‘ओह, अब तूं जा!’

‘जात बानी सर, बाकिर सोचब कबो आ पूछब अपना आप से अकेला में कि एह गाना के का कर दिहले बानी सँ हमहन का, रउरा, हमहन के समाज आ सिस्टम? सोचब जरूर सर!’ कह के मुनमुन राय बेसिक शिक्षा अधिकारी का कमरे से बाहर निकल आइल.

‘रउरो सर, केकरा के बोला लिहले रहीं? पूरा के पूरा बर्रइया के छत्ता हीय ई. अइसहीं एकरा नाम से चनाजोर गरम थोड़हीं बिकाला.’ बड़ा बाबू कुछ फ़ाइल लिहले बेसिक शिक्षा अधिकारी का कमरे में घुसत बोललन.

‘हँ, बाकिर बात कुछ बहुत ग़लतो ना कहत रहुवे.’ बेसिक शिक्षा अधिकारी बोललन, ‘बड़े बाबू ध्यान राखब, ई लईकी बहुत आगे निकल जाई.’

‘से त बा साहब!’

‘हँ, आ ई ढेर दिन ले शिक्षामित्रो नइखे रहे वाला.’ अधिकारी बोललन, ‘अतना निडर लईकी हम पहिले नइखीँ देखले. सोचीं बड़े बाबू कि ओकरा के जांच ला बोलवले रहीं, ओकर नौकरी जा सकत रहुवे आ ऊ हमरे के लेक्चर पिआ गइल.’

‘अरे तो अनुशासनहीनता का आरोप में ससुरी के छुट्टी कर दीं. भूला जाई सगरी नेतागिरी!’

‘अरे ना. एकर भाई सब बड़हन ओहदा पर बाड़ें. कहीं लेबे के देबे के ना पड़ जाव. चनाजोर वइसहूं बेचवावते बिया, हमनियो के बिकवा दी.’

‘हँ, साहब, सब एकरा के बांसगांव के मरदानी-रानी ओ कहेलें.’

‘त?’ बेसिक शिक्षा अधिकारी बोलल, ‘जाए द. जवन करत बिया करे द.’
‘जी साहब!’

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(लमहर उपन्यास बाकी का जिनिगिओ ओतने लमहर बा. कोशिश त इहे बा कि जल्दी से जल्दी एह उपन्यास के पूरा कर दीं. बाकिर कई कारणन से देरी हो जात बा अगिला कड़ी देबे में. रउरा सभे आवत रहीं. अगिला कड़ी हो सकेला कि जल्दिए मिल जाव. – संपादक.)

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