आन्हर कुकुर बतासे भूँके
– – डॉ. रामरक्षा मिश्र विमल
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सोस्ती सिरी पत्री लिखी पटना से-18
आइल भोजपुरिया चिट्ठी

तीन-चार दिन से जाड़ आच्छा गिरे लागल बा. दुपहरिया में तनी घाम निकलत बा. घामा बइठलो पर कुछ ओढ़े के मन करता. ठेहुना से नीचे त लागता जइसे ठंढवा काटत बा. काकी अपना परोसिया से दुख रोवत रही, तले लभेरन पहुँच गइले. ऊ तनी अउर बढ़ा के बोलले- ठंढ अभी अउर गिरी. अबहीं पाला काहाँ परल? सितलहरी त बाकिए बाटे. एह साल पिछलको साल के रिकार्ड टूटी. काकी कपारे हाथ ध लिहली.
अतने में लभेरन का मोबाइल के घंटी बाजलि. गाँवे के पुरान जमाना के एगो मैट्रिक फेल मिसिर जी के कॉल रहे. मिसिर जी बहुत चिंतित रहन- “अब का होई लभेरन, डॉलर का मुकाबले रुपया फेरु गिर गइल. अब त महङाई के कवनो पारे ना रही. ”
लभेरन समुझवले- ‘’निश्चिंत रहीं चाचा, ओतना त नीचे-ऊपर होत रहेला, ओह से हमरा देश के कुछऊ नइखे बिगरेवाला. अब पहिलेवाली बात नइखे, ई मोदीजी के नया भारत ह, सशक्त भारत! करोना में ना देखलीं कि अउर देसन में लोग जहें के तहें घोलटा जात रहन, सभ देश बेहाल रहले सन, ओहू में हमनी के सभसे बड़हन जनसंख्या वाला देश पर तनिका आँचो ना आइल. एह घरी देश मजबूत हाथ में बा, काहें घबरातनी?”
काकी चुपचाप सुनत रहली, उनुका असली बात ना बुझाइल. मोबाइल बगली में धरते ऊ लभेरन से पुछली- “ई डॉलर के का चक्कर बा हो?”
लभेरन बोलले- आन्हर कुकुर बतासे भूँके. काकी के असपष्ट ना भइल- “माने?”
लभेरन समुझावे का मुद्रा में आ गइले- “जाने के ना बूझे के, असहीं बकबक करे के. ई लोग ऊहे ह, एक बेर जे डॉलर एह लोग का मन में ढुकि गइल बा त ऊ अब बहरी ना निकली. अब समय बदलि गइल बा. पहिले भारत पर अमेरिका ताव में बतियावत रहे, चीन आ पाकिस्तान रोज धमकिए देत रहे, बाकिर अब्बो ऊ बात बा का? चीन के बोलती बन्न बा, पाकिस्तान का हाथ में कटोरा आ गइल बा आ अमेरिका…? ऊ त कबो-कबो टैरिफ लगाके आपन चौधरियाँव देखावे के कोशिश जरूर करता, बाकिर मुँहकुड़िए गिरता. अब भारत अपना शर्त पर जिएवाला देश हो गइल बा, अइसन थोरे बा कि जेकरे मन करी ऊहे लतियाके चलि जाई… अबरा के मउगी, भर गाँव के भउजी!”
लभेरन आजु मुडियाइल रहन, एकसुरिए बोले लगलन.
“जानतारू काकी! जेकरा मोदीजी फुटलो आँखि सोहात नइखन, ओह लोगन के दिसाभ्रम हो गइल बा. हर बात में कमिए लउकता. कागभुसुंडी जी गरुड़ जी के समुझावतारे कि
नयन दोष जा कहँ जब होई.
पीत बरन ससि कहुँ कह सोई॥
जब जेहि दिसि भ्रम होइ खगेसा.
सो कह पच्छिम उयउ दिनेसा॥
( रामचरितमानस, उत्तरकांड)
माने जेकरा आँखि में बेमारी होले, ऊ चंद्रमा के पीयर रंग वाला बतावेला. जब केहूँ के दिशाभ्रम हो जाला, तब ऊ दोसरा से कहेला कि सूरुज पच्छिम में ऊगल बाड़े. एह लोगन के ईहे हाल बा. कतहीं एगो मूस के मरल देखि लेता लोग त परेशान हो जाता लोग कि प्लेग आ गइल. आरे, प्लेग कहिए जरि-सोरि से खतम हो गइल भाई, कहिया ले रोवत रहब?”
काकी बीचे में रोकली- “तनी डॉलर वाला माजरा समुझाव. ”
लभेरन अब तनी सुस्तइले- “जइसे हमनी का अपना देश में खरीद-फरोख्त खातिर रुपया के इस्तमाल करींले जा, ओइसहीं अमेरिका में आ संसार का ढेर देसन में आपस का लेन-देन खातिर डॉलर के प्रचलन बा. डॉलर माने अमेरिका के चौधरियाँव. ऊ चाहेला कि हर देश डालरे में बयपार करो. रउआँ लागता कि मोदी जी केहूँ के अधीनता मनिहें? अमेरिका लाख कहत रहि गइल, ऊ रूस से तेल लीहल बन्न ना नु कइले? अब त अमेरिका में ई हाला बा कि जो भारत खिसिया गइल त अमेरिका के अर्थव्यवस्था अगिला दस बरिस तक अपना पैर पर खड़ा ना रह पाई.
हमनी के लेन-देन रुपया में होला. डॉलर के जरूरत तब परेला, जब देश का बाहर सामान बेंचल जाला भा ओने से खरीदल जाला. खरीदत खा तनी अधिका पइसा लागी जरूर बाकिर बेंचे में त फयदे बा. ढेर त तेले नु खरिदाला, त ऊ अब अपना सुविधा वाला मुद्रा से खरीदे शुरू क देले बा भारत आ भविष्य में ई बेवस्था अउर नीमन हो सकेले. त तनी रिस्क त लेबहीं के नु परी? दोसरा देसन से आयात-निर्यात के हमनी के नया संबंध बनल बा, डॉलर पर निर्भरता कम हो गइल बा. अब त ढेर देश हमनी का सङे रूपया भा सोना का तहत लेन-देन पर आपन सहमति व्यक्त कइले बा आ ओही आधार पर आयात-निर्यात शुरू बा. त अब काहें के डर आ चिंता? सबसे नीमन बात त ई बा कि हमरा देश का जीडीपी ग्रोथ में लगातार बढ़ोत्तरिए लउकता, माने भारत का आर्थिक विकास के गति बढ़ंती प बा. मतलब सीधा बा, आवेवाला दिन सिरमौर वाला दिन लउकता. सइँया भए कोतवाल अब डर काहें का? चुपचाप चादर तानिके सूति जाईं, मोदी है तो मुमकिन है. ”
काकी मुसुकइली. ऊ अब तक रुपया आ डॉलर के राजनीतिक खेल बूझि गइल रही.
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संपर्क : डॉ. रामरक्षा मिश्र विमल, निकट- पिपरा प्राइमरी गवर्नमेंट स्कूल, देवनगर, पोल नं. 28
पो.- मनोहरपुर कछुआरा, पटना-800030 मो. 9831649817
ई मेल : rmishravimal@gmail.com

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