बतकुच्चन – ११

पिछला हफ्ता गोबर पथार के बात निकलल रहे त अबकी खर पतवार दिमाग में आ गइल बा. खर पतवार का बारे में सोचते दिमाग में खरखर होखे लागल जइसे कि मूंजियानी से गुजरत घरी आवाज निकलेला. अइसने खरखर से संस्कृत के एगो शब्द बनल रहे खर्पर. खर्पर से खप्पड़ बनल खप्पड़ से खपरा. अब एकरा के सोझई में समुझे के कोशिश करीं त लागी कि जवन खर पर होखे. आ साँचहू खप्पर खरे पर राखल जाला. नरिया खप्पर वाला खप्पर ओही खप्पड़ के बिगड़ल रुप ह. जइसे कि छप्पर वाला गाँव बाद में छपरा नाम से जानल जाये लगले सँ.

गाँव देहातन के त बाते छोड़ दीं, शहरो का बीचे. जूरन छपरा पता ना कतना छपरा मिल जाई. बंशी छपरा, लाकठ छपरा, गोन्हिया छपरा, लाला के छपरा, बाबू के छपरा, जीएन छपरा वगैरह वगैरह. अब देखीं खर पतवार से चलत हम कतना छपरा घूम लिहनी. भोजपुरी में आवाज से, रंग से, मनोभाव से हर तरह से शब्द बनि जाले. खपड़ा से मिलत जुलत शब्द हो गइल कपड़ा. अलगा बाति बा कि दुनु शब्द का बीच ना त ननिऔरा के संबंध बा ना ददिऔरा के. दुनु शब्द अलग अलग व्युत्पति के हउवें सँ बाकिर बतकुच्चन का फेर में खपड़ा से कपड़ा पर उतर आइल आसान लागल. आ एही पर याद आइल कि कुछ लोग ड़ के र आ र के ड़ कह देला. कहल जाला कि मुजफ्फड़पुड़ की सरकों का दुड़भाग्य है कि ओहिजा के सरकन पर घोरा पराक पराक दउड़ेले सँ.

अब एह ड़ आ र का फेर में कपड़ा से कपरा बनो भा ना हमार त कपारे घूम गइल. ठीक वइसहीं जइसे १३ मई के चुनाव परिणाम सुनि के कुछ लोग के कपार लाल हो गइल होखी कुछ लोग कपारे हाथ धर के बइठ गइल होखी. कुछ लोग पहुँच गइल होखी त कुछ पहुँचल लोग बहक गइल होखी. अब पँहुच, पहुँचा, पहुँची, पहुँचल के बात फेर कबो. हो सकेला कि ओही में चहूँपलो के चरचा हो जाव.

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