समय त हमेशा बदलत रहेला. ना बदलल त ऊ समय कइसे कहल जाई. बाकिर जब कवनो बदलाव अचके में भा तेजी से हो जाव त आदमी इहे कहे लागेला कि समय बदल गइल बा. देखीं ना जिम्मेदार पद पर बइठल लोग अपना लाग-डाँट का चलते सामने वाला पर अछरंग लगा देत बा. अइसन अछरंग जवना के कवनो सुबूते अछइत नइखे. खाली अपना निजी भा राजनीतिक लाग-डाँट, माने कि दुश्मनी विरोध, का चलते अइसन अछरंग लगावल जा रहल बा. अब कवनो अछरिकट्टू अइसन काम करे त ओकरा के बकस दिहल जा सकेला. बाकिर पढ़ल-लिखल लोग जब अइसन करे लागे तब का कइल जाई? अतने कहि के नू आदमी अपना मन के तोष दे दी कि चलऽ समय बदल गइल बा. अछरंग माने कि लांछन. अछरिकट्टू बेपढ़ल आदमी के कहल जाला आ तोष संतोष के छोट रुप कहल जा सकेला. अछइत मौजूदगी के. हँ त बात होत रहे अछरंग लगावे के. मंत्री लोग भठियरपन के विरोध करे वाला आ एगो तगड़ा लोकपाल के माँग करे वालन पर बिना देखले-सुनले संघ से जुड़ल होखे के अछरंग लगा देत बा त कांग्रेस के विरोधी लोग कह देत बा कि सरकार बेइमान, बेलज्जत, बेसम्हार हो गइल बिया आ ओह लोग का नजर में हर ऊ आदमी जे ओह लोग पर संघ से जुड़ला के अछरंग लगा रहल बा खुदे भठियारा ह. भठियारा त असल में ओह आदमी के कहल जाला जे शराब के भट्ठी चलावेला बाकिर शराब से जुड़ल काम अतना भठावल काम मानल जाले, गइल गुजरल काम मानल जाले कि कवनो तरह के गइल गुजरल काम करे वाला के भठियारा कह दिहल जाला. एह तरह से देखीं त भठियारा एगो गाली जइसन शब्द बन गइल बा, जइसे कि कांग्रेसी नेता आ सेकूलर जमात संघ शब्द के एगो गाली का तरह इस्तेमाल करेला. बाकिर हम त रउरा सभ से इहे कहब कि हर शब्द वाण का तरह होला. मुँह से निकल गइल त वापिस तरकस में ना लवटि सके. एहसे धेयान राखीं कि कवनो शब्द मुँह से निकले त पूरा सोचला-समझला का बाद. आजु अतने.
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