(बतकुच्चन – ३७)
आन्हर कुकुर बतासे भूंके. भोजपुरी के ई कहाउत पिछला दिने तब याद आ गइल जब देश के एगो बड़का मंत्री इन्टरनेट के सोशल मीडिया का खिलाफ आग उगिले लगलन. कहे लगलन कि ओहिजा जवने मन में आवत बा लोग लिख देत बा. देखा देत बा. अरे भाई त एने ओने तकला झँकला के जरूरत का बा ? रउरा के जनता अगोरिया बना के भेजले बिया अगोरे खातिर आ रउरा अपना के मिलल ताकत से अतना अगरा गइनी कि अगोरे का बदले लगनी अगोटे ! ई ना सोचनी कि रउरा कहला का बाद ढेरे लोग ओह फोटो, ओह साईटन के देखे लागल जेकरा के रउरा लुकावल चाहत रहनी, दबावल चाहत रहनी. आ अब ऊ सगरी बात सभे जान गइल जवना के रउरा ना जनावल चाहत रहनी. नचनिया त आपन गाना गावत रहल कि कह देब हो राजा रात वाली बतिया. आ रउरा समुझनी कि ओकरा ऊ बाति मालूम हो गइल जवन रउरा सभका से लुका छिपा के कइले रहीं. आ बक दिहनी कि का कहबू इहे नू कि रात बगइचा में टट्टी पर गिरल अमरूद खइले रहीं !
खैर बात बहकि गइल. आजु के बतकुच्चन में जवन शब्द चरचा में अइले सँ ओह अगोरल, अगोटल, अगराइल आ अगोरिया पर लवटल जाव. कवनो बात पर खुश भइला भा इतरइला पर आदमी अगराइल हो जाला, अगराये लागेला. आ बिना बात के भा आधार के अगराइल आदमी के घमंडी समुझल जाला. अगोरिया ओकरा के कहल जाला जे अगोरत होखे, पहरेदारी करत होखे. बाकिर कवनो बात के, केहू के इंतजारो कइल अगोरल कहल जाला. अगोरत बानी कि बबुआ कब ले अइहें. आ अगोटल बकोटल जइसन काम हऽ. रोकल, घेरल, छेंकल के अगोटल कहल जाला. आ कवनो बात के सकारलो के. सकार लिहनी मतलब कि घेर लिहनी रोक लिहनी ओह बात के आगा बढ़े से. बाकिर एह अगोरिया मंत्री जी के इरादा सकारे वाला ना हो के घेरे वाला, रोके वाला बा. ऊ चाहत बाड़न ओह पर सेंसर लगावे के जवना पर कवनो सेंसर लगावल कवनो सरकार के बूता के बाहर बा. बतास के केहू बान्हि पवले बा का ? बतास त हवा ह, हनहनात रही. एने से घेरब त लोग ओने से जाये लागी. दुनिया के बहुते तानाशाह लोग इन्टरनेट पर काबू पावे के बेकार कोशिश कइले बा. रउरो कर के देख लीं. आदमी के आजादी के प्रतीक बन गइल बा इन्टरनेट. एह बतास के रोके के बा त सगरी खिड़की दरवाजा बन्द कर लीं. गैरकानूनी काम बात रोकल दोसर चीज ह आ विवाद विचार रोकल दोसर. अगर कहीं कुछ गैर कानूनी होखत बा त आराम से रोकीं बाकिर विवाद आ विचार के रोके कोशिश जन करीं. अनेरे लोग बुड़बक बताह कहे लागी.
आच्छा। ऊहो परयास क लेस। इनको हाल त ऊहे होखे के बा। बतकुच्चन में अबहीं एगो मजा त आवता बाकिर एको बिखराव के दर्सन होत रहSता।
चंदन जी,
हर बतकुच्चन का बाद रउरा प्रतिक्रिया के इन्तजार रहेला.
खुशी त एह बात के बा कि अकसरहाँ रउरा बाति से हम सहमतो रहीले. रहल बाति बिखराव के त रउरो ई बाति मानब कि हर हफ्ता कुछ नया लिखल जवना के शब्द सीमा बान्हल होखे ओतना आसान ना होला. दोसरे बतकुच्चन के सुभाव कुछ अइसन बा कि सामयिक रखला के कोशिश का बादो एकरा के समसामयिक बनवले राखे के कोशिश करीलें.
कहल गइल बा कि “राग रसोई पागड़ी कबो कबो बन जाय”. हर बेर लेख बढ़िये लिखा जाव संभव ना होला. कबो कुछ काम के दबाव त कबो कवनो कारण से अनसाइल मन, ओह पर से निर्धारित तिथि ले सामग्री पठा दिहला के दबाव सब कुछ मिला जुला के अइसनका होत रहेला.
धन्यवाद दिहले के साथ,
राउर
ओम