बतकुच्चन – ६५


बुड़बक बझावल राजनीति में त बहुते होला बाकिर विज्ञानो में कम ना होखे. पिछला हफ्ता सुने के मिलल रहुवे कि मानसून केरल ले आ गइल बा आ अब अवले चाहऽता छपरा बलिया ले. बाकिर आसमान से अबही ले वइसहीं आग बरसत बा आ अब कहल जात बा कि मानसून थथम गइल बा. जइसे देश में बहुते कुछ थथमल बा. खैर आज दिन भर तवत घाम में दहकल बानी से आजु एही दहकल, धधकल, लहकल के चउगोठे के सोचत बानी. हालांकि चउगोठल खेती में होला जब हर जोतत घरी लमहर घेरा में चलल जाला. जइसे आजुकाल्हु देश के राष्ट्रपति चुने खातिर राजनीति में चउगोठल जात बा. दहकल दाह से उपजल शब्द ह. दाह माने गरमी, आग, आग लगावल, अंतिम संस्कार में दाह कर्म कइल वगैरह. एही दाह से मिलल जुलल शब्द दह होला. दह माने ऊ जगहा जहवाँ पानी गहिरा बा. अब ई दह नदीओ में हो सकेला आ बड़का तालाबो पोखरा में. दह से बनल दहल आ दहावल. बाकिर एह गरमी में पानी के सपनो देखे नइखे देत ई दहकावत गरमी. दाह से दाहल, दहक आ दहकावल बनल. दाहल कहल जाला जब केहू के सजा दिहल जाला कवनो गरम चीज से जरा के भा कवनो अइसन बात से कि सुने वाला के तकलीफ होखे. दहकावल ओह दहकवला के कहल जाला जवना में सामने वाला आदमी खीसि लहके लागे. लहकल दु तरह के होला, कबो आदमी खुशी से लहकेला त कबो खीसि से. अंतर संदर्भ के होला. लहोक आग के लपट के कहल जाला जवन लहरत उपर उठेला. एही तरह के शब्द ह धधकल जवना में लपट भा लहोक त ना उठे बाकिर गरमी बहुते होला. जरत लाल कोयला धधकेला, धाह मारेला. माने कि गरमी देला. जइसे कि जब सिविल सोसाइटी नाम के लोग सरकार के मंत्रियन पर अतना धाह मारेला कि ऊ बेचारा लहकेलें कम आ धधकेलें बेसी. बाकिर एह दहकल, धधकल, लहकल में कमो बेस एके बात होला. एगो कहाउत ह कि “बुझेली चिलम जिनका पर चढ़ेला अंगारी”. बाकी लोग त बस आनंद लेला. देश समाज परिवारो में कुछ अइसने चिलम होलें जिनका सब कुछ चुपचाप झेले पड़ेला जेहसे कि देश समाज परिवार चलत रहो, लोग खुशी से जियत रहो. सामने वाला कवना दिक्कत परेशानी में बा एह पर केहू ना सोचे. मनमोहन जी पर ढेरे लोग ढेरे कुछ कहत रहेला बाकिर उनुकर परेशानी त उहे बूझत होखीहें. दहकत करेजा लिहले ऊ चुपचाप सब कुछ झेलत जात बाड़ें. जइसे कि किसान के हाल बा. आसमान से आग बरसत बा, आषाढ़ आधा बीत चलल आ बरखा के कवनो सुनगुनो कतहीं नइखे. खाद के दाम सुने में आवत बा कि कई गुना बढ़ गइल बा. एह सब कुछ का बावजूद ऊ बेचारा लहकत नइखे. ओकरा बर्दाश्त करे के आदत पड़ गइल बा. बाकिर ओकरा दुख के एह दह के पलटि दीं त हद पार करे में देरिओ ना लागी. सब कुछ का बावजूद आजुओ देश किसान आ किसानिए से चलत बा. अलग बाति बा कि किराना का दूकान से सामान खरीदे वालन के पता ना लागे कि किसान के उपज महँग काहे बा जबकि किसान के ओकरा उपज के दाम शायदे भेटाला.

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