– डा॰अशोक द्विवेदी
तुहीं बतावऽ जागी कबलें
केकरा खातिर रात-रात भर?
खाए के बा अखरा रोटी
सूते के बा घास-पात पर!
तुहीं बतावऽ जागी कबलें
केकरा खातिर रात-रात भर?
अपना खातिर, तोहरा खातिर
भा अझुराइल सपना खातिर
विघटब-टूटन-फिसलन वाला
नव समाज के रचना खातिर?
जागत-जागत, मन रिसिआला
जर भुन जाला बात-बात पर!
तुहीं बतावऽ जागी कबलें
केकरा खातिर रात-रात भर?
राजनीति, नित नया तमासा
करे न कुछऊ, देले झाँसा
सत्ता से बा दूध-मलाई
जनता के छितराइल आसा
मंत्री, सैनिक, छुद्र पियादा
राजा खातिर बा बिसात पर!
तुहीं बतावऽ जागी कबलें
केकरा खातिर रात-रात भर?
केकरा खातिर जगल कबीरा
केकरा धुन में जोगिन मीरा
केकरा मंगल खातिर तुलसी
मानस रचलन, सहि-सहि पीरा
जोति जरवलन, भितरी-बहरी,
अपना कवना हीत-नात पर?
तुहीं बतावऽ जागी कबलें
केकरा खातिर रात-रात भर?
लुत्ती से सुनुगे ना आगी
राग रुचे ना, भइल विरागी
दिवस-रैन, जुग सरिस बुझाता
जागत अँखिया, कतना जागी
के रोकी, के नजर गड़ाई
होखे वाला भितरघात पर?
तुहीं बतावऽ जागी कबलें
केकरा खातिर रात-रात भर?
टैगोर नगर, सिविल लाइन्स बलिया – 277001
फोन – 08004375093
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बहुत नीमन, बहुते सुनर -मुनर रचना .
एह में भाव समाईल केतना .
{ एतना ! एतना ! एतना !……………
ओ.पी.अमृतांशु