आखर बिन धरती के दुख दूना

आखर बिन धरती के दुख दूना

– डॉ. रामरक्षा मिश्र विमल

#बच्चू-पांडेय #रामरक्षा-मिश्र-विमल

बच्चू बाबा

छंद मर्मज्ञ आशु कवि बच्चू पांडेय जी अपना समय के प्रतिष्ठित आ बहुचर्चित कवि रहीं. पांडेय कपिल जी उहाँ के सारन जिला का साहित्यिक सक्रियता के मेंह मानत रहीं. उहाँका कविता का सङहीं गद्यो खूब लिखलीं. भलहीं उहाँका जयप्रकाश महिला महाविद्यालय, छपरा में राजनीतिशास्त्र के व्याख्याता रहीं बाकिर उहाँका धमनी में साहित्य के सुरसरिता बहत रहे. डॉ० प्रभुनाथ सिंह महाविद्यालय, छपरा में प्राचार्य भइला का बादो उहाँका भीतर के कवि ओइसहीं सहज आ सुरक्षित रहे. अध्यापन का अलावे राजनीति का क्षेत्रो में उहाँ के दमदार पैठ रहे. उहाँका दस बरिस तक छपरा नगरपालिका के वार्ड कमिश्नरो रहीं. हिंदी आ भोजपुरी का प्रति उहाँका प्रेम के एही बात से सहजे समुझल जा सकत बा कि जहाँ उहाँका सारण जिला हिन्दी साहित्य सम्मेलन के सदस्य रहीं, ओहिजे सारण जिला भोजपुरी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्षो रहीं. भोजपुरी साहित्य में उहाँका सक्रियता के एही से अंदाजा लगावल जा सकता कि उहाँका छपरा से निकलेवाली पहिल भोजपुरी पत्रिका ‘माटी के बोली’ के संपादक रहीं.

भोजपुरी काव्य में पांडेय जी के लेखनी कविता, गीत, गजल- हर फार्मेट में चललि बिया. उहाँका कविता में उहाँ के जीवन-दर्शन का सङहीं जीवन के भिन्न-भिन्न कटु-मधुर अनुभव साफ-साफ लउकत बा. बच्चू पांडेय जी के भोजपुरी कविता-संग्रह ‘नभ में उड़ल कपोत’ में उहाँका दिल आ दिमाग के समग्रता में देखल जा सकता. ओइसे त जीवन आ जगत का हर पहलू पर प्रत्यक्ष भा परोक्ष रूप में उहाँ के कलम अपना ज्ञान आ अनुभव के जादू चलावे में कवनो कोर-कसर नइखे छोड़ले, बाकिर साँच पूछीं त हर कदम पर उहाँ का शिक्षक आ जिंदादिल व्यक्तित्व के दर्शन होता.

बचपन का सुरक्षा के चिंता पांडेय जी का कविता में खूब प्रदर्शित भइल बा. कवि लइकन का स्वतंत्रता पर लगाम लगावे के पक्ष में नइखे. ऊ चाहत बा कि लइकन के कोमल अउर मधुर सपनन के दुलारल आ सहलावल जाउ –

रोकीं मत बढ़वार उमिर के बचपन के उछले दीं
सपना से भींजल, उमंग के धारा के मचले दीं
चिरई जइसन, नाप रहल बा ई फइलाव गगन के
दुलराईं, सहलाईं, एकरा कोमल, मधुर सपन के

कवि चाहत बा कि हर अभिभावक एह बात के समझो कि लइकन के बचपन कोर कागज नियन हटे, ओह पर लिखेवाला काम जइसे-तइसे ना होखे के चाहीं, ओकरा खातिर प्रेम आ विवेक का सङे सजगतो बहुत जरूरी बा. कवि अभी तक मोह आ अशिक्षा में अन्हुआइल लोगन के जगावे का कोशिश में बाटे –

आईं हमनी मिलजुल के कुछ गढ़ीं सुरक्षा घेरा
बचपन के व्यक्तित्व निखारीं जागे के ई बेरा .

लइकन का बचपन के लेके कवि बहुत सचेत बा. ऊ बार-बार आपन चिंता प्रकट करऽता –

ई विकास के दर्पण एह पर धूल, धुआँ मत डालीं
एकरा ओठन पर लाली पसरे दीं, जतना पसरे
टोकीं मत, एकरा विकास के दीं समुचित संरक्षण
शोषण, अत्याचार, भूख से बचपन आज बचाईं
पढ़े-लिखे का बेरा में मत दोसर काम कराईं.

राजनीति का बारे में कवि के विचार पूरी तरह स्पष्ट बा, काहेंसे कि ओकर नीमन अनुभव कवि के रहल बा. ऊ मानऽता कि एहिजा जे पहुँची, ओकरा रावन बनहीं के बा. ऊ पहिलहीं सचेत कइ रहल बा-

छद्म से सींचल सियासत के डगर
जे इहाँ पहुँचल, उहे रावन भइल

जवना प्रजातंत्र के दुहाई देत राजनीति का धुरंधर लोगन के जीभ ना थाके, कवि निर्द्वंद्व भाव से ओकरा छद्म रूप पर टिप्पणी करऽता –

कहँवा के प्रजातंत्र कइसन ई शासन
पेट पर दुलत्ती दे पीठी सहलाये.

दरद, टीस, पीड़ा के गाँव ओझल प्रकाश हो गइल
लंगड़ाइल प्रजातंत्र आज मूल्य सब उदास हो गइल

पढुआ, लिखुआ, ऊफर पड़लें
दमगर बा जाहिल के बात

आदमी त आदमी, मतदान के भी अपहरन
लोक-शासन के अनूठा भेस, कइसे का कहीं

भूख, भय के बात कबसे हो रहल, होते रही
आज ले सुधरल ना आपन देश, कइसे का कही
जात-मजहब के किआरी देश के बाँटत रहल
मंच पर बा मिलन के उपदेश कइसे का कहीं
हाथ में ठेला, फफोला पाँव में, किसमत बनल
भ्रष्ट शासन, गूंग अध्यादेश, कइसे का कहीं

कवि जानता कि साँच बोले-सुने के गुंजाइश अब हर जगह नइखे रहि गइल. अइसना में ऊ बहुत सोचि-समझि के जीवन में संतुलन बनावत लउकऽता. तमाम प्रतिकूल परिस्थितियनो में ऊ अपना जीवन के खोराक खोज लेता, गीत-गजल के आपन पाथेय बनावऽता –

खून-खराबा सनल सियासत
गीत-गजल में दिल के बात

कवि एह बात से चिंतित लागता कि अब गाँवो शहर का देखा-देखी तेजी से सांस्कृतिक विचलन के शिकार हो रहल बा आ जरूरी परंपरा अउर मूल्यन के बँचावल अब खेल ठठ्ठा नइखे रहि गइल –

गँवे-गँवे गउंओ लागल शहराये
दोसरा का करनी पर अपने लजाये,
नाता टूटे लागल करम आ धरम से
अधजल गगरी लेखा छलकत ई जाये

सरल आ सहज लोग अक्सर विश्वासघात के शिकार होले. जीवन सही माने में बिसवासे का गोदी में पले-बढ़ेला आ साँसो लेला. बाकिर तीन-पाँच से अलग जीवन जिए वाला लोग अक्सर एहिजे मार खा जाला. रहीम आदि अनेक कवि पहिलहीं से मना कर रहल बाड़े कि आपन दर्द अनका से जनि बतावल जाउ –

रहिमन निज मन की व्यथा, मन ही राखौं गोय.
सुनि अठिलैहें लोग सब, बाँटि न लइहें कोय.

कवियो एकर समर्थन करऽता –

अगराइले गोड़ मत बढ़ाव
हर राह मंजिल ना सुझावे
बिसवासे का ठेहा पर
जिबह हो जाला जिनगी

कवि ज्ञान आ प्रेम में प्रेम के चुनऽता. तुलसी से सूर तक ईहे होत आइल बा. कवि आपन तर्क देता –

ज्ञान बाँटे हमेसा भरम के धुआँ
प्यार दिअना के नेहिया के बाती हवे
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उधव आपन गेआन-गठरी जनि खोलऽ
राधा का अँखिया में कान्हा के काजर

ऋतु के असर हमनी का जिनिगी पर साफ-साफ लउकेला. के ना प्रभावित होला बसंत, गरमी, बरसात आ जाड़ा से ? फगुआ केकरा के पागल ना बनावेला, चइता से कजरी तक अइसहीं देंहि में कुछ उदबेगले रहेला. फगुआ के त मौसम अपने आप में मादक हटे, केहूँ अपना बस में ना रहे –

जाने कतना रस के गगरी फूट गइल बा फागुन में
रिश्ता, नाता, संयम, सगरी टूट गइल बा फागुन में
कतना रखीं अलोता मन के, धूप, रूप के खींच रहल
धरम-करम के पोथी-पतरा, झूठ भइल बा फागुन में

बाकिर लागऽता कि आधुनिकता के राछछ ई सब सुख आ आनंद ठाढ़े लील गइल बा –

बिरजू काका का मड़ई में अब आल्हा के बोल कहाँ
थिरके अँगुरी, चाँटा चटके जादू के ऊ ढोल कहाँ
कजरी के बोली बसिआइल ठप्पा ठुमरी मरुआइल
नशा पॉप के चढ़ल जवानी फास्ट रिदिम में बउराइल

पता ना ई आधुनिकता कइसन बा कि ओकरा अगुआनी में आदमी अतना भुला गइल बा कि ओकरा एकर तनिको अंदाजा नइखे कि –

जिनगी के अँखुआइल सपना गँवें-गवें बा टूट रहल
कैक्टस का आगे फूलन से रिश्ता-नाता छूट रहल
कम्प्यूटर में रचल-बसल हर लोग अकिल के बाप भइल
हाव विदेशी, चाव विदेशी देशी अब अभिशाप भइल

कविता के जनम हमेशा दरद का कोंखि से होत आइल बा. कवि के अनुभवो एकर समर्थन करऽता –

कविता का कोखी में दरद के जखीरा
बाँझ का समझी परसउती के पीरा

कवि आज का बदलाव से बहुत चिंतित बा. बदलाव हर समय में होत रहल बा बाकिर एह पारी के बदलाव घोंटात नइखे, लागता जइसे सब तहस-नहस हो गइल –

उहे चान बा, उहे गगन बा, धरती काहे बदलल ?
समुझ न आवे, कइसे उपजल जाति धरम के खेती
कवना कारन मानवता के हिया बनल ई रेती…
आँख-आँख में घृणा, करेजा में भय के छाया बा…
जोत अलोत, नेह के दिअना कइसे छन में झपकल

एह भयावह स्थिति का पाछा ऊ राजनीति के करिखाह गलियारा के जिम्मेवार मानता. कवि सियासत का जिनिगी के बहुत करीब से देखले बा. ऊ जानता कि रउआँ अन्हार नीक ना लागी, अँजोर सभका नीक लागेला बाकिर ऊ देखाऊ साह के डाल होला, ओकर असली राहि से गंतव्य तक अन्हारे होला, अँजोर त घलुआ में मिलेला बाकिर ओकरे जे अन्हार के व्यापार करेला, अन्हार के आपन ताकत बनावेला. अन्हरिया के सरपला से कुछ ना होई एकरा आँचर के फइलाव दूर-दूर तक बा. पाप, पुन्न, ऊँच-खाल सब एकरे छाँह में तोपा जाला –

जब-जब सभ्य आ सराहल लोगिन के
मन के हिरना कुछ जागेला
जब-जब, सत्ता के रावन
जनता-सीता का हक पर डाका डालेला
ओकर रथ अन्हारे में हँकाला
मंत्र, अफसर, दलाल सबके
जिअतार बनावेला अन्हार

राजनीति का अन्हरिया वाली ताकत से कवि बहुत परिचित बा. ओकरा लागऽता कि एह दौर में क्रांतिए एकमात्र विकल्प बा. बाकिर ऊ ईहो जानता कि ई राहि खाली काँट-कुश से ना अपरिमित खतरा से भरल बिया एहसे ऊ जुगुति भिड़ावे के बात करऽता –

मँगला से रोटी ना भेंटी छीने के तू जुगत भिड़ावऽ.

दुष्यंत कुमारो क्रांति का राहि में सुरक्षा का लेहाज से अंजामो का ओरि इशारा कइले बाड़े –

तेरा निज़ाम है, सिल दे ज़ुबान शायर की
ये एहतियात ज़रूरी है इस बहर के लिए.

हालांकि साँच पूछीं त कवि अँजोर का विकल्प पर विश्वास राखऽता. एहसे अंत में ऊ तूफान नियन अन्हरिया का तात्कालिक आ बरियार ताकत का सामने अँजोर वाला विकल्प ‘ज्ञान’ के राखऽता. ओकरा विश्वास बा कि एही से आपराधिक दुनिया का अन्हार के सामना कइल जा सकत बा आ ओहके हरावल जा सकत बा –

ई अन्हरिया युगन से रगेदत रहल
रउआ खेदब ना जबले, सतइबे करी
ज्ञान के तीर मारीं, अमावस कटी
चान खुलके खिली, मुसकुरइबे करी

कवि विश्वस्त भाव से ज्ञान-गंगा के ले आवे खातिर चाहऽता कि शिक्षा का दिशा में सभ मिल-जुल के खूब कोशिश करो, एक ना एक दिन बदलाव अइबे करी –

हाथ पर हाथ धरिके ना सोचल करीं रउआ आगे बढीं, लोग अइबे करी
ज्ञान-गंगा के खातिर भगीरथ बनीं धार छलकी त लोगवा नहइबे करी

भलहीं कवि के कतहीं विश्वास लाएक कुछ लउकत नइखे –

कहँवा, केकरा, भरोस पर जाईं
हर पड़ाव पर जमल जुआ बाटे

बाकिर शिक्षा का ताकत पर ओकरा भरोसा बा. बच्चू पांडेय जी के कवि ई संदेश दिहल चाहता कि आईं जा, एकरे अँजोरा में हमनी के आपन हक मिली, अपना नगर, डगर आ गाँव के सभ्यता आ संस्कृति के बँचा पाइबि जा –

ओकरे खातिर हम लहका देनी आखर के असली अलाव
एकरा अंजोरिया में पहचानी आपन हक नगर-डगर गाँव
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आखर कविता के मरम होला
आखर त सबकर धरम होला
आखर बिन जग के आंगन सूना
आखर बिन धरती के दुख दूना
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संपर्क : डॉ. रामरक्षा मिश्र विमल, निकट- पिपरा प्राइमरी गवर्नमेंट स्कूल, देवनगर, पोल नं. 28
पो.- मनोहरपुर कछुआरा, पटना-800030 मो. 9831649817

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