– – डॉ. रामरक्षा मिश्र विमल
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आइल भोजपुरिया चिट्ठी
सोस्ती सिरी पत्री लिखी पटना से-4
गारी के ताकत
काकी के ढेर बेचैन देखिके लभेरन से ना रहाइल. पूछिए बइठले- का बात बा काकी! आजु बहुत परेशान लागतरू ? काकी के गुस्सा फूटल. ई कवन संस्कार हटे भाई ? जब ले केहूँके माई-बहिनि के गारी ना दिहल जाई तब तक जिमदारी पूरा ना होई ? कतना नीचता पर उतरि आइल बा लोग ?
लभेरन काकी के समुझवले- समय बदलि गइल बा काकी. आजु सभ ई माने लागल बा कि ओकरा कुछऊ बोले के आजादी बा. बाकिर काल्हि जे भइल ऊ गारी ना रहे, ऊ गाली-गलौज रहे. बुझाता कि नेता लोगन का पासे अब ईहे आखिरी हथियार बाँचि गइल बा, का करबि ? आईं आजु गारी का नीमन पक्ष पर बात करीं जा. गारी में बहुत ताकत बा. हमनी किहाँ बियाह-ओआह में गारी दियाला कि ना ? मजाल बा कि बिना गारी के केहूँ के बियाह पूरा हो जाउ ? ई कुल नाया से थोरे होता ? सिवो जी का बियाह में गारी गवाइल रहे. शिव विवाह प्रसंग में गोस्वामी जी लिखतानी कि जवना घर में खुद माता भवानी रहत होखीं, ओहिजा का जेवनार के वर्णन कइसे कइल जा सकत बा ? हिमाचल आदरपूर्वक सभ बराती के, माने विष्णु, ब्रह्मा आ सभ जाति का देवता लोगन के बोलववले. भोजन करे वालन के बहुत पंगत बइठली सन. चतुर रसोइया परोसे लगलन. मेहरारू के मंडली देवता लोगन के भोजन करत जानिके कोमल वाणी से चुनि-चुनि के गारी देबे शुरू कइलस.
सो जेवनार कि जाइ बखानी. बसहिं भवन जेहिं मातु भवानी॥
सादर बोले सकल बराती. बिष्नु बिरंचि देव सब जाती॥
बिबिधि पाँति बैठी जेवनारा. लागे परुसन निपुन सुआरा॥
नारिबृंद सुर जेवँत जानी. लगीं देन गारीं मृदु बानी॥
तुलसी बाबा आगे लिखतानी कि सभ सुंदर मेहरारू मिसिरी नियन मीठ सुर में गारी देबे लगली. खाली गारिए ना, एक से एक व्यंगो बोले शुरू कइली आ देवता लोग मुस्किया-मुस्किया के टेस्ट ले-लेके खाए लागल लोग. देवता लोग खाए में देर करे लागल लोग काहें कि गारी सुने में बहुत आनंद आवत रहे.
गारीं मधुर स्वर देहिं सुंदरि बिंग्य बचन सुनावहीं.
भोजनु करहिं सुर अति बिलंबु बिनोदु सुनि सचु पावहीं॥
जेवँत जो बढ्यो अनंदु सो मुख कोटिहूँ न परै कह्यो.
अचवाँइ दीन्हें पान गवने बास जहँ जाको रह्यो॥
साँच पूछीं त गारी गावल एगो पारंपरिक प्रथा हटे. बियाह का उत्सव में खुशी के माहौल बनावे खातिर गारी गावल जाले. काकी आपन शक प्रकट कइली- आजु-काल्हु कुछ भोजपुरिया बुद्धिजीवी अश्लील शब्द का पाछा हाथ धो के परल बाड़न. कहीं अइसन त ना नू होई कि रामायनो के अश्लील कहि दी लोग ?
लभेरन के हाथ अनासे माथ पर चलि गइल- ई कहल त मुश्किल बा, काहें कि ऊहन लोग का बोली के कवनो ठेकाना नइखे. बाकिर हम त ईहे कहबि कि एह अवसर के गारी अपमानजनक भा अश्लील ना होखेली सन. ई प्यार से भरल आ हँसी-मजाक में सुनावल जाली सन. एहसे बियाह के आनंद आ उत्साह दोगुना हो जाला.
काकी के मन अब जाके तनी शांत भइल. ऊ पुछली- ई त ठीक बा. हमनी किहाँ तिलक-बियाह दूनों में जमिके गारी दियाले. माइए से शुरुओ होला- “तहरा माई के अतवार लागेला, सोमार लागेला…तनी सुनि ल तिलकहरू भँड़ुआ, सुनि ल ना, तनी सुनि ल. ” बाकिर ई गारिए काहें गवाला, कुछु भजन ओजन ना गवा सकत रहे ?
अब लभेरनो गंभीर हो गइलन- बात त रउआँ ठीके कहतानी. भजन गावल त नीमन हइए हटे, बाकिर ओकरा से हँसी-मजाक के माहौल ना नू बनी ? जबले तनी व्यंग-विनोद ना होई, चुहल ना होई, तबले उत्साह कइसे आई ? आ एगो बात ईहो बा कि ई कवनो साधारन समय ना नू हटे! जवन लइकी पएदा भइला से लेके जवानी का राहि प डेग धरे लाएक हो जातिया, ओकरा के अपना से दूर करेके, दोसरा का घरे हमेशा-हमेशा खातिर भेंजे के तेयारी हो रहल बा, ई आसान बात बा का ? कवना माई-बाप के करेजा फाटि के दू टुकड़ा ना हो जाई ? एह स्थिति के सामान्य बनावे खातिर गारी गावे के परंपरा बनल बा कि घर-परिवार के लोग एही कुल्हि में अझुराइल रहिहें आ एने बियाह हो जाई आ बिदाइयो हो जाई.
लभेरन आपन बाति आगे बढ़वले- जानतानी काकी, अतने नइखे. एकरा पाछा मनोविज्ञानो काम करेला. अब नु जाके लइकी-मेहरारू घर का चुहानी से निकलि के बाहर जाए लागल लोग पढ़े खातिर, नोकरी करे खातिर, बिजनेस करे खातिर, घूमे खातिर, बाकिर पहिले ई कहाँ होखत रहे ? पहिले अनसाइ के रहि जइहें स मेहरारू घर में. घर से आङन का अलावे अउर कवनो जगहे कहाँ रहे उहन लोग का जाए के ? तरह-तरह के नीक-जबून बाति सुनिके भितरे-भीतर पितपितात रही लोग आ मुँह बन्न राखी लोग. अब ई बताईं, जब केहूँ अपना मन के भड़ाँस कबो निकलबे ना करी त का होई ? धीरे-धीरे रोगिये नु होत जाई, भितरे-भीतर खोखला होत जाई. हमरा त बुझाता कि साल भर के भड़ाँस निकालि के स्वस्थ होखे खातिर सोचि-समझि के गारी देबेवाली परंपरा बनलि बा. एह गारी गीत में मेहरारू-लइकिनि का स्वास्थ्य के राज छिपल बा.
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संपर्क : डॉ. रामरक्षा मिश्र विमल, निकट- पिपरा प्राइमरी गवर्नमेंट स्कूल, देवनगर, पोल नं. 28
पो.- मनोहरपुर कछुआरा, पटना-800030 मो. 9831649817
ई मेल : rmishravimal@gmail.com
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