सोस्ती सिरी पत्री लिखी पटना से- 1

आइल भोजपुरिया चिट्ठी

सीता-राम का अविरल प्रेम

– – डॉ. रामरक्षा मिश्र विमल

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अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के निर्माण का बाद जानकी जी का जन्मभूमि मंदिर के निर्माण के इच्छा हर भारतवासी का हृदय में प्रबल हो गइल रहे. ओह मंदिर के बनावे खातिर बिहार के सीतामढ़ी जिला का पुनौरा धाम में आधारशिला रखा गइल. ई कम खुशी के बात नइखे कि अब ओहू मनोकामना का पूरे के शुरुआत हो गइल बा. ईहे पुनौरा धाम माई सीताजी के जन्मस्थली हटे. खाली मंदिर ना, पुनौरा धाम मंदिर अउर परिसर के समग्र विकास का एगो बड़हन योजना के भूमिपूजन भइल हा. मन खुश हो गइल.

ओइसे त तुलसी बाबा पूरा दुनिये के सीताराममय मनले बानी –

सीयराममय सब जग जानी. करउँ प्रनाम जोरि जुग पानी॥

बाकिर तुलसी बाबा के बात अनासे ना बुझा जाई, जब मानस का भीतर रसे-रसे पइसबि तबे जाके मोती मिली.

अब देखीं, सीताजी के नाम रामजी का पहिले लेबे के दर्शन समाज में अइसहीं थोरे स्थापित हो गइल बा? एकरा पीछे कारन बा. गोस्वामी जी संछेपे में बता देतानी कि मन के निरमल करे के होखे त माई जानकी जी के चरन छुअल जाउ.

जनक सुता जगजननि जानकी. अतिसय प्रिय करुना निधान की॥
ताके जुग पद कमल मनावउँ. जासु कृपा निरमल मति पावउँ॥

तनी आगे बढ़ीं. भगवान राम के कहनाम बा कि –

मोहिं कपट छल छिद्र न भावा. निरमल मन जन सो मोहिं पावा॥

भगवान राम साफे कह देतानी कि हमरा से मिले के बा त निश्छल आ निर्मल मन होखल जरूरी बा काहेंकि हमरा छल-कपट आ कवनो तरह का दोष से परहेज बा. माने पहिले अपना मन से गंदगी हटाईं, शुद्ध बनीं, तब पँजरा आईं. आ मन निरमल करे खातिर रउआँ जाए के परी सीताजी का चरन में. राजा जनक जी के पुत्री माँ जगदंबा करुणानिधान श्रीराम के अतिशय प्रिय हईं आ उहाँके कमल नियन दूनो गोड़न के पुजला का बादे उहाँके किरिपा मिली आ तब जाके बुद्धि निरमल होई.

मतलब साफ बा कि ई क्रम जरूरी बा कि पहिले सीताजी के चरन वंदना कइके निर्मल होखीं आ तब राम जी के चरन-वंदन करीं, एकरा पहिले रामजी किहाँ जाएके सोचल बेकारे बा. एही से पहिले सीता आ तब राम.

त कहे के मतलब ई रहे कि अयोध्या अउर मिथिला – दूनो जगह भगवान राम आ माता सीता का जीवन से जुड़ल बा. अयोध्या में भगवान राम के जनम भइल त मिथिला में माता सीता का सङे उनकर बियाह भइल. भगवान राम अउर माता सीता का जीवन के कथा सभसे महत्वपूर्ण कथा में से एगो बा, जवन हिंदू संस्कृति में बहुत महत्त्व राखेले. एहीसे राम भक्त बिहार के आपन मामा गाँव मानेलन.

कहल जाला कि मिथिला के राजा जनक का खेत में हल चलावत खा एगो हल का नोक से धरती से एगो छोट कन्या निकललि. राजा जनक बहुत खुश भइले आ ओह कन्या के अपना बेटी का रूप में स्वीकार कइले. सीता जी के जनम का बेरा कई गो शुभ संकेत आ भविष्यवाणी भइल, जवन बतावत रहे कि ई कन्या बहुत भाग्यशाली आ महान होई.

मिथिला में माता सीता के पिता राजा जनक का दरबार में भगवान राम शिव धनुष उठवले रहले आ ओकरा बादे सीता जी से उनुकर बियाह भइल.

भगवान राम अउर माता सीता के प्रेम, त्याग, आ बलिदान के कथा सनातन संस्कृति के एगो बहुत बड़हन धरोहर बा. ई कथा हमनी के प्रेम, त्याग, अउर बलिदान के महत्व से हमनी के परिचित करावेले.

बाकिर एगो बात ध्यान देबे लायक बा कि सीतो जी वरमाल प्रसंग में घबड़ा गइल रही.

गोस्वामी जी कहतानी कि राम के देखला का बाद उनुका आकर्षण में अतना ना बन्हा गइली जानकी जी कि मृग, पंछी आ वृक्ष सभ के देखे का बहाना से ऊ बार-बार घूम जासु आ राम के छवि देख-देख के उनकर प्रेम कम ना होके बढ़ते जाए. प्रभु राम जब सुख, सनेह, शोभा आ गुण सभ के खान जानकी के जात जनले, तब परम प्रेम के कोमल स्याही बना के उनका स्वरूप के अपना सुंदर चित्त रूपी भित्ति पर चित्रित कइ लिहले. सीता जी फेरु भवानी जी का मंदिर में गइली आ उनकर चरण वंदना कइली अउर भवानी जी एगो माला खिसका के आपन आसिरबाद दिहली.

सीता-राम का अविरल प्रेम के दरसन उनका विरह वाला समय में देखल जा सकत बा. राम हनुमान जी का माध्यम से जवन संदेश भेंजतारे, ऊ अविस्मरणीय बा –

कहेहू तें कछु दुख घटि होई. काहि कहौं यह जान न कोई॥
तत्व प्रेम कर मम अरु तोरा. जानत प्रिया एकु मनु मोरा॥
सो मनु सदा रहत तोहि पाहीं. जानु प्रीति रसु एतनेहि माहीं॥
प्रभु संदेसु सुनत बैदेही. मगन प्रेम तन सुधि नहिं तेही॥

मन के दुख कहलो से कुछ कम हो जाला बाकिर कहल जाउ केकरा से, ई केहूँ ना जाने. हे प्रिये! हमरा आ तोहरा प्रेम के तत्त्व (रहस्य) एगो हमार मने जानत बा आ ऊ मन हमेशा तहरे भीरी रहेला. बस, हमरा प्रेम के सार अतने में समझि ल. प्रभु के संदेश सुनते जानकी जी प्रेम में मगन हो गइली. उनका शरीर के सुध ना रहल. ई ह सीताराम के प्रेम! जय सीताराम।
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संपर्क : डॉ. रामरक्षा मिश्र विमल, निकट- पिपरा प्राइमरी गवर्नमेंट स्कूल, देवनगर, पोल नं. 28
पो.- मनोहरपुर कछुआरा, पटना-800030 मो. 9831649817

ई मेल : rmishravimal@gmail.com

विमल जी के लिखल ई स्तम्भ महाराष्ट्र के हिन्दी समाचार पत्र यशोभूमि में अतवार का दिने छपल करेला. हमरा निहोरा पर विमल जी एह सामग्री के एहिजो अंजोर करे ला भेजत रहब. चूंकि ई सगरी लेख एहिजा देरी से आइल बा त कुछ कड़ी हो सकेला कि हाल-फिलहाल से कटल होखो. बाकिर कुछ समय बाद ई साथ धर ली एकर उमेद बा.

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