भोजपुरी कोकिल महेन्दर मिसिर

भोजपुरी कोकिल महेन्दर मिसिर

– प्रो.(डॉ.) जयकान्त सिंह ‘जय’

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भोजपुरी कोकिल महेन्दर मिसिर आ उनकर रचना संसार : एगो परिचय

भोजपुरी कोकिल महेन्दर मिसिर आ उनका रचना संसार के मोल-महातम से अपने लोग अंजान रहल बा, त ई कवनो ना बात नइखे. भोजपुरिया लोग अइसहीं अपना भासा, संस्कृति, समाज, साहित्य, परम्परा, विरासत आदि से आ ओकरा मोल- महातम से अधिकतर अंजाने रहल बा आ आजुओ लगभग अंजाने बा. एही से इनका मन में अपना एह कुल्ह उपलब्धियन पर मान-गुमान ना हो के अपना प्रति हेय-हीन भावना भरल रहेला. एही चलते इनका आपन मुर्गी दाल बरोबर आ अनकर राई पहाड़ बरोबर बुझाला. एही से संसार आ सरकार के नजर में एह भासा-भासी समाज का साहित्य आ साहित्यकार के कवनो मोल नइखे रहल आ आजुओ नइखे. एकरा खातिर भोजपुरी समाज के ओकरा सम्पन्न भासा, साहित्य आ साहित्यकार का परम्परा से परिचित करावे के पड़ी. ओकरा भीतर एह सब के प्रति अस्मिताबोध पैदा करेके पड़ी. एही बतिआ के भोजपुरी माटी के अनमोल लाल मोती बी. ए. अपना साहित्यिक अंदाज में कह गइल बाड़ें- ‘ अपना चीजुइया के जे नाहीं बूझी, ओकरा के दुनिया में केहू नाहीं पूछी. ‘ आ ‘ अपने चीजुइया से अपने बेगाना, चारो ओरिया ढ़ूंढ़ अइलऽ, पवलऽ ना ठेकाना. ‘

मतलब समाज, सरकार आ संसार में पूछ करावे आ मोकाम पावे खातिर अपने आप के जाने-माने के पड़ेला. एही मकसद से हम आज भोजपुरी जगत के ओह अनमोल हीरा के बारे में कुछ बतावे-जतावे के चाहत बानी, जेकर सही परिचय आ पहचान भोजपुरियो जन समुदाय का नइखे मिल सकल. हम बात कर रहल बानी भोजपुरी कोकिल महेन्दर मिसिर के. जेकरा के भोजपुरी साहित्य के इतिहासकार लोग पूर्वी के पुरोधा, पूर्वी के जनक भा पूर्वी के सम्राट आदि कहके अपना जिमवारी से पल्ला झार लेले बा. कुछ लोग भोजपुरी गायक, कीर्तनिया आ कथावाचक कहले बा त कुछ लोग उनका के एह रूप में जानेला जे ऊ अंगरेजन के समय में नकली नोट छापे का ममिला के धराइल रहलें आ उनका जेल के सजाय भइल रहे. कुछ लोग एही कुछ तथ्य के कथ्य रूप देके एक्का-दूक्का कुछ आउर काम कइले बा. एही से आज हम भोजपुरी माई का अँचरा के एह बेमिसाल नगीना के सङे-सङे उनका रचना संसार के कुछ हिस्सन के अँजोर में ले आवे के चाहत बानी.

भोजपुरी-हिन्दी के नामचीन बेवहारवादी आलोचक महेश्वराचार्य पूर्वी के पुरोधा भोजपुरी कोकिल महेन्दर मिसिर के भोजपुरी के अप्रतिम प्रतिमान बतावत ई बात अनायासे नइखन कहले कि – ‘ उनका वजन आ जोड़ के भोजपुरी जनपद में दोसर केहू नजर नइखे आवत. ‘( भोजपुरी के अप्रतिम प्रतिमान महेन्दर मिसिर – महेश्वराचार्य; भोजपुरी सम्मेलन पत्रिका; अंक 1- जनवरी 1990, पन्ना-27)

महेन्दर मिसिर आधुनिक भोजपुरी साहित्य के सुरूआती दौर के सबसे जनप्रिय कवि-गीतकार बाड़ें. बाकिर ऊ जेतने बड़ कवि-गीतकार बाड़ें ओतने बड़ गायक आ संगीतकारो बाड़ें. आ ई इतिहास के जानल-मानल सच्चाई बा कि जब कवनो कवि-गीतकार संगीतो के दुनिया में आपन झंडा गाड़ देला तब ओकर कवि-साहित्यकार वाला रूप ओकरा संगीतकार आ गायक वाला रूप से तोपा जाला भा जनता ओकरा गायकीये पर मोहाइल रह जाले. अइसने कुछ भइल बा पंडित महेन्दर मिसिर का साथे. अपना इहाँ संगीत आ साहित्य के महातम बतावत भर्तृहरि कहले बाड़ें कि संगीत आ साहित्य कला से हीन आदमी बेसींघ-पोंछ के जानवर ह- ‘ संगीत साहित्य कला विहीन: साक्षात् पशु पुच्छ विषाणहीन:. ‘ एगो संस्कृत के आचार्य त इहाँ ले कह देले कि एगो आदमिये भइल कठिन बा, जदि आदमी होइयो गइलऽ त विद्या पावल, मतलब विद्वान भइल कठिन बा, जदि आदमी का सङे सङे विद्वानो हो गइल त कवि- साहित्यकार भइल बहुत कठिन बा आ जदि तीनो गुन आ गइल त संगीत के जानकार आ पंडित भइल सबसे कठिन बा –

नरत्वं दुर्लभं लोके विद्या तत्र सुदुर्लभा.
कवित्वं दुर्लभं तत्र संगीतस्तत्र सुदुर्लभा. .

भारतीय साहित्य आ संगीत के पंडित लोग संगीत आ साहित्य के माई सुरसती के दूनो स्तन बतवले बा. संगीत रूपी दूध जेतने मिठास लेले बा ओतने साहित्य रूपी दूध के पान आ आलोचना अमरित जइसन बा-

‘ संगीतमपि साहित्यं सरस्वत्या स्तनद्वयम्.
एकं अपारं मधुरं अन्यत् आलोचनामृतम्. . ‘

महेन्दर मिसिर माई सुरसती के अइसन सपूत-साधक बाड़ें जिनका साहित्य आ संगीत दूनो के बोध रहे. बाकिर एह चीज के परखे आ मूल्यांकन करे खातिर लोचन मतलब आँखि चाहीं. बेआँख के आदमी आलोचनामृत के पान कइसे कर सकऽता. एकरा खातिर महेन्दर मिसिर के कवि-गीतकार आ संगीतकार रूप के जाने का पहिले उनका समय, परिवार, परिवेस आ परिस्थिति के जाने के होई. जवना में पला-पोसा के आ संस्कार- विद्या पाके महेन्दर मिसिर कवि-गीतकार, गायक-संगीतकार आ आजादी का लड़ाई के एगो नया तरीका अपना के अंगरेजी सरकार का कोप के भागी बनलन. एह से उनका कविता, गीत आ संगीत पर विचार करे का पहिले उनका पारिवारिक, सामाजिक, सांस्कृतिक आ धार्मिक माहौल के जान लिहल जाव.

पं. महेन्दर मिसिर के जनम बिहार प्रांत के सारन जिला के कांहीं मिसरवलिया गाँव के एगो सम्पन्न कान्यकुब्ज ब्राह्मन परिवार में भइल रहे. एह परिवार के पुरखा 350 बरिस पहिले उत्तर प्रदेश के लगुनी धरमपुर गाँव से आके बिहार के सारन जिला के जलालपुर नूरनगर गाँव के बगल में बसल लोग. जवना में वेद मिसिर, हिता मिसिर, सुखराम मिसिर के बाद सिवसंकर मिसिर का नाम के प्रसिद्धि मिलल. सिवसंकर मिसिर के कवनो संतान ना रहे त उनकर माई बाबा महेन्दर नाथ के भाड़ा भखली त महादेव महेन्दर नाथ उनका के सपना देलन कि तोहरा बहुत जल्दी पोता खेलावे के मिली आ साल भर का भीतरे सिवसंकर मिसिर के पहिलकी मेहरारू लछमिना देवी के देह से पुत्र रत्न के प्राप्ति भइल. एही से उनकर आजी उनकर नाम महेन्दर नाथ के नाम पर महेन्दर रखली. महेन्दर मिसिर बहुते लाड़-प्यार से पोसाइल-पलाइल रहलें. ऊ अपना माई के देह से तीन भाई बहिन रहलें. इनका से छोट भाई रहलें जलेसर मिसिर आ बहिन राम सखी. सिवसंकर मिसिर के चउथी पत्नी गायेतरी देवी से पाँच बेटा आ एक बेटी रहे लोग- गोरख मिसिर, तिरगुना मिसिर, बिंदा मिसिर, केदार मिसिर, बटेसर मिसिर आ चन्द्रावती देवी. महेन्दर मिसिर के बिआह दस-एगारह बरिस के उमिर में छपरा-खैरा के बीच के तेनुआ गाँव के महावीर ओझा के बेटी रूपरेखा देवी से भइल रहे. मिसिर जी के बेटा भइलें हिकायत मिसिर. हिकायत मिसिर से रामनाथ मिसिर आ रामनाथ मिसिर के बेटा हउवें विनय कुमार मिसिर. एह तरह से महेन्दर मिसिर के परिवार एगो बहुते सम्पन्न संंजुक्त भोजपुरिया परिवार बा. मिसिर जी के परिवार में साहित्य, संगीत, भजन, कीर्तन के साहित्यिक-धार्मिक माहौल बहुत पहिले से रहे. दुआर पर पूजा-पाठ आ भजन-कीर्तन करे खातिर सिवाला आ चबुतरा का सङे पढ़े खातिर बाल पाठशाला रहे. घोड़ा-घोड़सार आ हाथी-हथिसार का सङे सङे कुस्ती लड़े खातिर अखाड़ा आ खेले खातिर बहुते बड़ खुलल मैदान रहे. एही मन माफिक माहौल में महेन्दर मिसिर के दैहिक, मानसिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक आ धार्मिक जीवन आकार लिहलस.

महेन्दर मिसिर के जनम तिथि आ पढ़ाई-लिखाई के लेके विद्वान लोग के मत अलग-अलग बा. महेन्दर मिसिर आ उनका कृतित्व के आधिकारिक विद्वान हउवें डॉ. सुरेश मिश्र. सुरेश मिश्र महेन्दर मिसिर का अगल बगल के गाँव के खोजी प्रवृत्ति के विद्वान हउवें. नब्बे का दसक में इनकर रूचि महेन्दर मिसिर आ उनका गीत-संगीत में जागल आ ऊ उनका परिवार के लोग से सम्पर्क सधलें. उनका परिवार के लोग बतावल कि उनका जनम तिथि के लेके हमनी के पास कवनो सही जानकारी नइखे. बाकिर केहू एगो डायरी में लिखले बा कि उनकर जनम 16 मार्च 1886 ई. के भइल बा. अइसे एकरा के साबित कइल कठिन काम बा. एकरा बाद डॉ. सुरेश मिश्र ओही तिथि के उल्लेख करत आपन अनुसंधान के काम पूरा कइलें. एकरा बाद उनका निर्देशन में रवींद्र त्रिपाठी 2002 में जय प्रकाश विश्वविद्यालय, छपरा से ‘ महेन्द्र मिश्र का व्यक्तित्व एवं कृतित्व ‘ पर शोध करके पी-एच्. डी. के उपाधि लिहलें. ओकरा बाद के हर विद्वान महेन्दर मिसिर के जनम तिथि खातिर 16 मार्च, 1886 ई. के उल्लेख करेला. भोजपुरी लोकनाटक के पुरोधा भिखारी ठाकुर के जनम तिथि 18 दिसम्बर, 1887 ई. बतावल गइल बा. एह तरह से महेन्दर मिसिर भिखारी ठाकुर से एक बरिस जेठ रहलें. बाकिर महेन्दर मिसिर के छोट भाई बटेसर मिसिर के अनुसार भिखारी ठाकुर जब महेन्दर मिसिर से मिले काहीं मिसरवलिया आवस त एकदम नया छवारिक लागस आ महेन्दर मिसिर उनका से कम से कम बीस-एकइस बरिस जेठ लागस. जवना से ई साबित होता कि महेन्दर मिसिर के जनम सन् 1886 ई. से बहुत पहिले भइल रहे. भिखारी ठाकुर खुद छपरा जिला के ढोरलाहीं निवासी स्व. मंगल सिंह मुखिया के बतवले रहस कि महेन्दर बाबा हमरा से बीस-बाइस बरिस जेठ रहलें. भिखारी ठाकुर आ महेन्दर मिसिर के बहुत नजदीक से देखे-सुने आ जाने वाला आधिकारिक विद्वान आलोचक स्व. महेश्वराचार्य के अनुसार ‘ महेन्दर मिसिर के जनम 16 मार्च, 1876 ई. के भइल रहे. ‘( भोजपुरी के अप्रतिम प्रतिमान महेन्दर मिसिर- महेश्वराचार्य; भोजपुरी सम्मेलन पत्रिका, अंक- जनवरी, 1990, पन्ना- 27). त सन् 1977 ई. में सम्पन्न अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन के तिसरका सिवान अधिवेशन के स्मारिका में छपल कटेंया, गोपालगंज के पूर्व प्रखंड विकास पदाधिकारी ब्रजभूषण तिवारी का आलेख ‘ पूर्वी गीतन के जन्मदाता : महेन्दर मिसिर ‘ के अनुसार महेन्दर मिसिर के जनम सन् 1865 ई. में भइल रहे. ‘ (पन्ना-99). सन् 1865 के हिसाब से महेन्दर मिसिर भिखारी ठाकुर से लगभग बाइस बरिस जेठ हो जात बाड़ें. जदि बटेसर मिसिर, भिखारी ठाकुर आ मंगल सिंह मुखिया के बयान के सही मानल जाए त ब्रजभूषण तिवारी के लिखल जनम साल ज्यादे सही बुझाता. आ एकरा अनुसार महेन्दर मिसिर भिखारी ठाकुर आ रघुवीर नारायण आदि से वरीय कवि-गीतकार ठहरत बाड़ें.

अब रहल महेन्दर मिसिर के औपचारिक पढ़ाई-लिखाई के बात त डॉ. सुरेश मिश्र आ रवींद्र त्रिपाठी के अनुसार उनकर प्रारंभिक पढ़ाई गाँव के पाठशाला में नान्हू मिसिर के देख-रेख में प्रारंभ भइल. नान्हू मिसिर संस्कृत के जानकार रहलें आ महेन्दर मिसिर उनके से संस्कृत भासा आ साहित्य के प्रारंभिक विद्या गरहन कइलें. एकरा बाद उनकर औपचारिक रूप से पढ़ाई-लिखाई में मन ना रमत रहे. ऊ मस्त मन-मिजाज के मनई रहलें. गीत-कवित लीखल-गावल, अखाड़ा में कुस्ती लड़ल, पहलवानी कइल, घोड़सवारी कइल आदि में उनकर अधिका समय बीतत रहे. बाकिर ब्रजभूषण तिवारी के अनुसार ‘ महेन्दर मिसिर संस्कृत कालेज, मुजफ्फरपुर से सन् 1985 ई. में संस्कृत के परीक्षा पास कइले रहस. ‘( अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन के तीसरा अधिवेशन सिवान के स्मारिका के पन्ना-99). एह तथ्य के ओर इसारा करत महेश्वराचार्य लिखले बाड़न कि ‘ ऊ संस्कृत के काव्य तीर्थ परीक्षा पास रहलन. ‘( भोजपुरी सम्मेलन पत्रिका; अंक- जनवरी, 1990; पन्ना- 29). एह तथ्य के बल खुद महेन्दर मिसिर का कुछ नीचे लिखल पंक्तियन के पढ़े से मिल रहल बा जवना में ऊ लिखले बाड़न-

‘ पढ़े छवो शास्त्र औ अठारहो पुरान देखे
वेदों को भी आदि से अंत तक जाना है.
पढ़े शिल्प विद्या और ज्योतिष को भली-भांति
रमल का भी भेद विधिपूर्वक पहचाना है. ‘ आदि

कुछ लोग के इहो मत बा कि ऊ तमाम विद्या, वेद-पुरान, काव्य-साहित्य, गायन-वादन आदि स्वाध्याय से अरजले रहलें. जदि अइसन रहे तब त उनकर महत्व आउर बढ़ जाता. पाण्डेय कपिल, महेश्वराचार्य, अक्षयवट दीक्षित आदि के अनुसार उनका संगीत ज्ञान के गुरु रहले पं. राम नारायण मिसिर. बाकिर उनका काव्य गुरु के उल्लेख केहू नइखे कइले.

उनका काव्य प्रतिभा के उल्लेख करत उनका पर लिखे आ अनुसंधान करेवाला विद्वान लोग के कहनाम बा कि ऊ बालकाल से ही आशुकवि आ सिद्ध गवइया रहस. एगो त उनकर पारिवारिक परिवेश गीत-संगीत आ भजन-कीर्तन वाला रहे. दोसरे उनका भीतर का बालकवि के देख के अइसन अनुमान कइल जाला कि ई प्रतिभा आ साहित्यिक संस्कार पूर्व जनम से उनका में विराजमान रहे. काहे कि ऊ लोक कवि के रूप में जहाँ लोकगीत पूर्वी, कजरी, होरी, सोहर, झूमर, चइता आदि के अलावे चौपाई, दोहा, सोरठा, चौबाला, कवित्त, छप्पै, घनाक्षरी, गजल आदि छंदन में जबरदस्त काव्य रचना कइले बाड़न. एकरा अलावे कई राग आ ताल ; जइसे- खेमटा, दादरा, केदारा, टप्पा, कहरवा, ध्रुपद, ठुमरी, मल्हार, राधेस्याम, विहाग, विभास , झपताल आदि में ऊ केहू के अपना दहिने ना जाए देत रहस. ओइसहीं ऊ हरमुनिया, तबला, मृदंग, ढोलक, पखावज आदि वाद्य यंत्र के सहजता से बजावत रहलन.

एह तरह से महेन्दर मिसिर के व्यक्तित्व बहुआयामी रहे. जवना के दूगो पक्ष काफी चर्चा में रहल. एगो उनकर देस भक्त स्वतंत्रता सेनानी वाला पक्ष आ दूसरका वेस्या उद्धार वाला पक्ष. एह दूनो पक्ष पर विद्वान लोग अपना-अपना जानकारी के हिसाब से आपन बात रखले बा. कुछ लोग के अनुसार मिसिर जी नकली नोट छाप के अपराध कइले रहलें, जवना के सजाय के रूप में उनका जेल भइल रहे. त रामनाथ पाण्डेय, भगवती शरण मिश्र, सुरेश मिश्र , भगवती प्रसाद द्विवेदी आदि के अनुसार ऊ पक्का देस भक्त आ स्वतंत्रता सेनानी रहलें. ऊ अंगरेजी सरकार के अर्थ-बेवस्था पर चोट करे के अलावे आजादी के लड़ाई लड़ रहल क्रांतिकारियन के मदद करें खातिर नोट छापत रहलें. जवना सबूत अनेक स्वतंत्रता सेनानी लोग अपना बयान में देले बा. पूर्व सांसद आ स्वतंत्रता सेनानी स्व. रामशेखर सिंह के अनुसार महेन्दर मिसिर जी सन् 1918 ई. के पहिले से स्वतंत्रता सेनानी लोग के आर्थिक मदद करत रहलें. उनका अनुसार महेन्दर मिसिर के छापल नोट कलकत्ता, बम्बई, मद्रास आदि महानगरन तक पहुँचत रहे. स्वतंत्रता सेनानी तपसी सिंह के चिरांद, छपरा वाला दुआर के चबूतरा पर बिनगाँवा, आरा के देवीदयाल सिंह, डुमरी के राम प्रसाद पाण्डेय, छपरा के जुगल प्रसाद आदि के जुटान होखे. चबूतरा पर मिसिर जी के गीत-कवित्त आ भजन-कीर्तन के आड़ में लड़ाई के जोजना बने. सेनानियन तक पइसा पहुँचावे के बेवस्था कइल जाए. कुछ विद्वान लोग के अनुसार मिसिर के सम्बन्ध कलकत्ता के स्वतंत्रता सेनानी लोग से रहे आ उहँवे से नोट छापे वाला मशीन घरे ले आइल रहस. एकरा पहिले कलकत्ते में नोट छपात रहे, बाकिर जब पकड़ाए के डर सतावे लागल त भाग के मिसरवलिया आ गइल रहलें. डॉ. रवीन्द्र त्रिपाठी के अनुसार ‘ नकली नोट चिरांद के गंगा पाठक ले जास आ असली में बदल के ले आवस. तब जलालपुर थाना ना रहे. छपरा मुफस्सिल थाना रहे. थाना घुस लेके चुप रह जात रहे. ‘( स्व. रामनाथ मिसिर के साक्षात्कार; दिनांक-12.2.1991 उल्लेख- महेन्दर मिसिर का कृतित्व और व्यक्तित्व – शोधप्रबंध)

सन् 1918 ई. में अंगरेजी सरकार के आला अधिकारी सब के एह बात के भनक मिल गइल रहे कि बिहारे में नकली नोट छप रहल बा जवन कलकत्ता, बम्बई आ मद्रास के स्वतंत्रता सेनानियन से होके बाजार में आ रहल बा. मनोहर कहानियां मासिक पत्रिका के नवम्बर,1980 के अंक में एह बात के उल्लेख छपल रहे कि ‘ सरकार के ई पता चलल कि बिहार के छपरा में कहीं नोट छपाता जवन कलकत्ता के कुछ क्रांतिकारियन किहाँ मिलल बा. सन् 1920 के जुलाई अगस्त में पटना के सी आई डी इंस्पेक्टर जटाधारी प्रसाद का सङे सब इंस्पेक्टर सुरेन्द्र नाथ बोस के एह जाँच में लगावल गइल. ( पन्ना- 80). जटाधारी प्रसाद गोपीचंद के छद्म नाम से मिसिर जी का सेवकाई में लाग के अपना अपना मकसद ला प्रयास करे लगलें. धीरे धीरे ऊ मिसिर जी के विश्वासपात्र बने में कामयाब हो गइलें. जब हर तरह से आश्वस्त हो गइलें तब 6 अप्रिल, 1924 चइत अमावस के रात में डी एस पी भुवनेश्वर प्रसाद के अगुआई में मिसिर जी के घर पर छापा पड़ल. दानापुर से आइल पुलिस के गाड़ी गाँव से एक किलोमीटर दूर खड़ा रहे. छापा के समय मिसिर जी अलग पलंग पर सुतल रहलें. उनकर छोट भाई गोरख मिसिर नोट छापत रहलें. नोट छापे में पाँचो भाई धरइलें. ओह में इंस्पेक्टर से गोपीचंद बनल जटाधारियो रहलें. मिसिर के वकील रहलें हेमचंद्र प्रसाद. मुकदमा चलल. एक साल के बाद लोअर कोर्ट छपरा से दस साल के सजा भइल. हाई कोर्ट में अपील कइल गइल त सजा सात साल भइल आ उनका के बक्सर जेल में डालल गइल.

एही प्रसंग में मिसिर जी के कुछ रचना बाड़ी स. इंस्पेक्टर जटाधारी प्रसाद के गोपीचंद बनके विश्वासघात करे पर मिसिर जी छपरा हाजत में कहले रहस- ‘ पाकल पाकल पानवा खिअवले गोपीचनवा. पिरितिया लगाई के भेजवले जेहलखानवा. ‘ एकरा बाद ऊ अपना आप के सम्बोधित करत गुनगुनाइल रहस-

‘ नोटवा के छापी छापी
गिनिया भँजवलऽ हो महेन्द्र मिसिर.
बिरटिस के कइल हलकान.
सगरी जहनवा में कइलऽ बड़ा नाम हो महेन्दर मिसिर.
पड़ल बा पुलिसिया से काम.

जब लोग बाग मिसिर जी से सवाल कइल कि आखिर ऊ ई सब काहे कइलें. ऊ त कवनो कमजोर परिवार के रहस ना. तब ऊ अपना मन के बात खोललें जे हम एह गुलामी के आ एह गोरन का गैर वाजिब हुकुमत आ करतूत के खिलाफ बानी. ई सब हमरा देस के सब धन लूट के इंग्लैंड ले जा रहल बाड़ें. सोना के देस हमार कंगाल होत जा रहल बा. एही संदर्भ में उनकर मसहूर रचना बा- ‘ हमरा नीको नाहीं लागेला गोरन के करनी.

रुपेया ले गइलें, पइसा ले गइलें.
ले गइलें सारा गिन्नी.
ओकरा बदला में दे गइलें ढल्ली के दूअन्नी.
हमरा नीको नाहीं लागेला गोरन के करनी. . ‘

एही तरह के उद्गार भारतेन्दु हरिश्चन्द के रहे –

‘ पै धन विदेस चलि जात, यह है अति ख्वारी. ‘

मिसिर जी पक्का देस भक्त रहस. बाकिर उनकर लड़ाई लड़े के तरीका गुप्त आ अलग रहे. ऊ गीत-कवित्त, भजन-कीर्तन आ कथावाचन के आड़ में रहके तवायफ लोग से खुफिया जानकारी जुटा के क्रांतिकारी लोग तक अंगरेजी प्रशासन के गुप्त जोजना पहुँचवावस आ ओह लोग के आर्थिक मदद का सङे सरकार के आर्थिक नुकसानो पहुँचावस. जवना गोरन के राज में सूरज ना डूबत रहे. जवना के हनक से दुनिया थर्रात रहे. ओह कालखंड का गुलामी के अवस्था में ओह सरकार के आर्थिक बेवस्था के चरमरा देवे के बात सोचल सामान्य साहस वाला क्रांतिकारी अभियान ना रहे.

एही से ऊ आजादी के लड़ाई खातिर आ जनता के जगावे का उद्देश्य से कवनो खास रचना ना कइलें.

जे लोग एह चीज के लेके सवाल उठावेला ओकरा विद्यापति, कबीर, तुलसी, भारतेन्दु आ छायावादियो कवियन आदि पर सवाल उठावे के चाहीं जे अपना समय में मुगल सब के कुशासन आ अंगरेजी सरकार के अन्याय-अत्याचार के खिलाफ खुलके कुछुओ ना लिखलें.

इतिहास गवाह बा कि बक्सर जेल में मिसिर के समय पूजा-पाठ, कविता-गीत आ भजन-कीर्तन लिखे आ गावे में बीतत रहे. उनका से प्रभावित होके जेलर उनका के सम्मान देत अपना कमरा में रहे के बेवस्था कइले रहस. सउँसे जेल में धार्मिक वातावरण बन गइल रहे. ऊ जेले में अनेक गीत-कवित्त आ भजन-निर्गुन के अलावे ‘अपूर्व रामायण’ जइसन गंभीर महाकाव्य के रचना कइलें. जवना के प्रभाव भइल कि उनकर तीन साल के सजा माफ हो गइल आ ऊ चारे साल के बाद जेल से रिहा होके वापस आ गइलें.

गीत- संगीत में अगड़धत, अपना समय के सबसे बड़ गायक-कथावाचक आ अनेक गायिका-गंधर्व लोग के पूजनीय गुरु महेन्दर मिसिर के लेके कई लोग सवाल उठावेला. एह सवालन के जबाब तुलसी दास जी के चउपाई से दिहल जा सकेला-

‘ जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी. ‘ ई सवाल कालिदास, संस्कृत कवि जगन्नाथ, मैथिल कोकिल विद्यापति, भारतेन्दु, जयशंकर प्रसाद आदि से ना कइल जाए आ समाज से उपेक्षित आ पुरुष प्रधान तथाकथित सभ्य समाज का कुकर्म के सिकार नारी जाति के तवायफ वर्ग के गीत-संगीत के ज्ञान देके स्वावलंबी बनावे के उतजोग में लागल गुरु पद प्राप्त व्यक्ति पर तब से अब तक लांछन लगावल जात रहल बा. जवना बेस्या समस्या के ओर ओह समय में ध्यान खींच रहल बाड़े महेन्दर मिसिर, ओह समस्या पर एने आके सरकार के ध्यान गइल बा. एक ओर ऊ ओह तवायफ लोग से अंगरेजन के खिलाफ जासूसी करावत रहलें त दोसरा ओर अपना पहुंच-प्रभाव आ मित्रता के सहारे हलिवंत सहाय दबंग मोख्तार-जमींदार द्वारा रखैल बनाके राखल तवायफ गुलजारी बाई के एगो के पत्नी के रूप में सम्मान दिलवावत बाड़ें.

एह पुरुष प्रधान समाज के तथाकथित संभ्रांत सभ्य कहाये वाला दगाबाज आ रंग मिजाज लोगन का कुकर्म के उघार करत मिसिर जी लिखले बाड़न कि –

करके दगाबाजी पाजी, अब त अमीर बनके
भसक समान फूल बइठे निज दुआर पर.
जाचक के देखते ही कुत्ता अस भूक पड़े
बेस्या दिख जाए तो दउड़े निज आहार पर. .

नाच ओ तमासा में बइठ रहे आंखों राम
कथा ओ पुरान देखी बइठे हो डड़ार पर.
द्विज महेंद्र अइसे पतितन से राम राखे,
पत्थर के मार पड़ी अइसन हतेयार पर. . ‘

जे कवि ई लिख रहल बा जे अइसन अनेत-कुनेत आ कुकर्म करेवाला से राम बचावस आ एह सब पर जम के दुआरे पत्थर के मार पड़ी, ओकरा चरित्र पर अंगुरी उठावल कहाँ तक उचित बा? जवन आदमी आजीवन संन्यासी-बैरागी आ राम भक्त हनुमान के आपन आराध्य मानत होखे आ लाल लंगोटाधारी होखे ओकरा चरित्र पर मात्र एह से अंगुरी उठावल जाए काहेकि ऊ ओह गनिका लोग के संगीत गुरु रहलें. दरअसल मिसिर जी देस के आजादी का सङे तथाकथित सभ्य समाज से पीड़ित-प्रताड़ित आ तिरस्कृत तवायफ नारी जाति के स्वावलंबी बनावे आ सामाजिक सम्मान दिलावेवाला क्रांतिकारी व्यक्ति रहलें. कुछ लोग इहो आरोप लगावेला कि हलिवंत सहाय का मुअला के बाद उनका शीतलपुर बरेजा गाँव के पटी-पटिदार लोग के नजर हलिवंत सहाय का सम्पत्ति पर रहे आ मिसिर जी एह लड़ाई में गुलजारी बाई के मदद करस तब कई तरह के साजिश करके पहिले उनका के गुलजारी बाई से दूर कइल गइल आ फेर उनका नोट छापे का काम के जानकारी मिलते उनका के मुकदमा में फंसाके जेल में बंद करवावल गइल. इंस्पेक्टर जटाधारी प्रसाद कायस्थ रहस आ हलिवंत सहाय का पटिदार लोग के रिश्ता में आवत रहस.

महेन्दर मिसिर आ भिखारी ठाकुर के भेंट-मुलाकात आ भिखारी ठाकुर पर मिसिर जी काव्य गुरु होखे के लेके आज कुछ लोग संवाद आ विवाद कर रहल बा. महेश्वराचार्य के अनुसार भिखारी ठाकुर के कृतित्व पर महेन्दर मिसिर का रचनन के प्रभाव साफ-साफ झलकऽता. उनका सब्दन में, ‘ जो महेन्दर मिसिर ना भइल रहिते त भोजपुरी में भिखारी ना पनपते. उनकर एक एक तर्ज आ धुन ले के, गीतन के एक-एक कड़ी ले के भिखारी भोजपुरी संगीत रूपक के सिरजना कइले बाड़न. भिखारी के रंगकर्मिता आ कलाकारिता के मूल बाड़न महेन्दर मिसिर, जेकर ऊ नाम नइखन लेले. महेन्दर मिसिर भिखारी के रचना गुरु, शैली गुरु बाड़न. ‘( भोजपुरी सम्मेलन पत्रिका; अंक- जनवरी,1990, पन्ना- 29). फेर आगे ऊ लिखत बाड़न- ‘ महेन्दर मिसिर के ई ‘ टुटही पलानी’ भिखारी खातिर ‘ बहरा बहार’ भा ‘विदेसिया’ नाटक के नेंव बन जाता. ——- भिखारी के अधकचरा जानकारी राखेवाला के का पता बा कि उनुकर ‘गहगह करेला अँगनवा हो लाल’ कहाँ से आइल बा आ कहाँ से लिहल बा ‘ एक मन करेला अकेले बतिअइतीं’. महेन्दर मिसिर के रामजी दुलहा के पूरा के पूरा भिखारी जी अपना लेले बाड़न. — भिखारी के ‘जसोदा सखि संवाद’ आ ‘कृस्न लीला’ दूनों आक्रांत बा महेन्दर मिसिर के कृस्न लीला के गीतन से. ‘ महेश्वराचार्य अपना विचार के पक्ष में कई गो उदाहरन प्रस्तुत कइले बाड़न. बाकिर आज दलित समाज आ साहित्य के रहनुमाई करेवाला लोग का महेन्दर मिसिर के भिखारी ठाकुर के रचना गुरु बतावल नागवार गुजरऽता. काहेकि भिखारी ठाकुर कतहीं कवनो रूप में महेन्दर मिसिर के नाम नइखन लेले. अइसे दूनो कवि-गीतकार आ नाटककार एक समय आ एक जवार के रहे लोग. मिसिर जी ठाकुर जी से ढ़ेर जेठ रहलें आ पहिले से उनका प्रसिद्धि मिल चुकल रहे. उनकर रामलीला आ कृस्न लीला सहित भजन-कीर्तन आ राम कथावाचन के धाक जम गइल रहे तब भिखारी ठाकुर कलकत्ता से लौट के रामलीला करे का उतजोग में लगलें आ नाच में जाए लगलें अउर बाद में अपना नाच मंडली बनवलें. उनकर मुख्य सहजोगी बाबूलाल के गाँव महेन्दर मिसिर का गाँव के बगल में रहे. जहँवा ऊ भर बरसात आपन डेरा डालके अपना नाच-नौटंकी के रियाज-रिहल्सल करस. उनका मंडली के कएगो साथी सदस्य मिसिर जी का गाँव के रहलें; जइसे- शिवबालक (बारी) कांही मिश्रवलिया, रामपति राम, भदई राम, तपन राम आदि ( सभे रविदास) नूरनगर, जलालपुर आदि. एह सब लोग के नाम बिहार राष्ट्रभाषा परिषद, पटना से छपल ‘ भिखारी ठाकुर रचनावली ‘ के पन्ना -342 पर छपल बा. 9 अप्रिल,2000 के जब अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन के सतरहवां अधिवेशन के समय साहित्यकार प्रतिनिधि लोग महेन्दर मिसिर के दुआर पर बिटोराइल रहे त भिखारी ठाकुर के मंडली के जीअत सदस्य आ कांही मिश्रवलिया के शिवबालक बारी सभका बीच में बतवलें कि ‘मल्लिक जी मतलब भिखारी ठाकुर जी बरमहल मिसिर बाबा किहाँ आईं. कए कए दिन रूकीं. बाबा से एक एक तर्ज, धुन, आ पाठ का प्रसंग में चर्चा करीं. ‘ इसे बात मिसिर जी के छोट भाई बटेसरो मिसिर बतवलें रहस. ओह प्रतिनिधि मंडल में पाण्डेय कपिल, रामनाथ पाण्डेय, भगवती प्रसाद द्विवेदी, डॉ. प्रभुनाथ सिंह, सुरेश कांटक, डॉ. ब्रज भूषण मिश्र, महेन्द्र सिंह प्रभाकर, निर्भीक जी, व्याकुल जी, विचित्र जी आदि सहित हमहूं रहीं. तुलसी दास अपना ‘रामचरित मानस’ में एक से एक रिसि-मुनि लोग के नाम लेले बाड़न आ जेकरा महाकाव्य के आधार बना के मानस लिखले बाड़न, ओही बाल्मीकि के नाम नइखन लिहले. खाली ‘वंदउ मनिपद कंज रामायन जेहि निरमयउ’ लिखके निकल गइल बाड़न, ओइसहीं भिखारियो ठाकुर ‘ जै सिरी गुरु पुरोहित ज्ञानी. चरन कमल मँह गिरत बानी. . गो द्विज संत सभा पद परिके. लिखत बानी हालत कुछ जोरी के. . ‘ आ ‘साधु-पंडित के डिग जाहीं. सुनि अस्लोक घोखीं मन माहीं. . ‘ का सङे सइंया हो जनि जा तू पूरुबवा’ लिखके ‘पिया मोर गइलें रामा पुरुबी बनिजिया’ के कवि महेन्दर मिसिर के कर जोड़त प्रसाद रूप में उनकर गीत ‘केकरा से आगी मांगब, केकरा से पानी’ लेके अपना मौलिक प्रतिभा के पताका फहरावत आगे बढ़ जात बाड़न. अइसे उनका ‘रामलीला’ आ ‘जसोदा सखि संवाद’ पर भी भोजपुरी लोक के परम्परागत गीतन सहित मिसिर का प्रभाव के झलकावल जा सकेला. एह तरह से महेन्दर मिसिर के भले भिखारी ठाकुर के रचना गुरु ना मानल जाव, बाकिर उनका पर मिसिर जी का काव्य रचना के प्रभाव जरूर नजर आवत बा आ साहित्य जगत खातिर ई कवनो नया बात नइखे. विद्यापति पर जयदेव के, कबीर पर सिद्ध-नाथ सम्प्रदाय के सिद्ध-जोगियन के, तुलसी पर बाल्मीकि सहित अनेक संस्कृत का कवियन के, हिन्दी के छायावादी कवि लोग पर पच्छिम का कवियन के स्पष्ट प्रभाव देखल जाला. अइसे महेन्दर मिसिर आ भिखारी ठाकुर दूनू जने भोजपुरी साहित्य संसार के दूगो नक्षत्र जइसन बा लोग. दूनो कवि आ नाटककार के प्रसिद्धि के आपन आपन मौलिक विशेषता बाड़े स. दूनो आदमी के प्रसिद्धि पर विचार करत ‘भोजपुरी साहित्य का इतिहास’ में डा. कृष्णदेव उपाध्याय लिखले बाड़न कि ‘ एने कुछ बरिसन में ‘पूर्वी गीतन’ के जेतना प्रचार भइल बा ओतना ‘विदेसिया’ के छोड़के कवनो गीत के नइखे भइल. ‘

महेन्दर मिसिर का एही बहुआयामी जीवन-संदर्भन से अपना अपना नजरिया आ सुविधा के खेयाल से अनेक साहित्यकार लोग उपन्यास, नाटक, निबंध आ शोधप्रबंध तइयार कइले बा; जइसे- उपन्यास के रूप में पाण्डेय कपिल के फुलसुंघी, रामनाथ पाण्डेय के महेन्दर मिसिर, डॉ. अनामिका के दस द्वारे का पिंजरा, डॉ. जौहर सफियाबादी के पूर्बी के धाह आदि. नाटक के रूप में यादवचन्द्र पाण्डेय के ‘ अंगुरी में डंसले बिआ नगिनिया’, वैदेही शरण बनियापुरी के ‘ क्रांतिकारी महेन्दर मिसिर’ आदि. निबंध रूप में जगन्नाथ मिश्र के पुरबी पुरोधा महेन्दर मिसिर, संकलित -संपादित पुस्तक रूप में डा. सुरेश मिश्र के कविवर महेन्द्र मिश्र के गीत संसार आ महेन्द्र मिश्र की प्रतिनिधि कविताएं, डॉ. रवीन्द्र त्रिपाठी के शोधप्रबंध ‘ महेन्द्र मिश्र का व्यक्तित्व एवं कृतित्व’ आदि. एकरा अलावे भोजपुरी के कई पत्र-पत्रिका के महेन्दर मिसिर विशेषांक निकलल बा. दर्जनो पत्रिकन में उनका पर उनका कवितन का विविध पक्षन पर शोधपरक निबंध आ आलेख छपल बा. जवना सब का अध्ययन-अनुसंधान के बादे आधिकारिक रूप उनकर सम्यक् मूल्यांकन कइल जा सकेला.

अब जहाँ तक उनका रचना संसार के बात बा त ऊ बहुते विस्तार लेले बा. उनका प्रकाशित आ अप्रकाशित रचनन में प्रमुख बा – महेन्द्र मंजरी(चार भाग), महेन्द्र विनोद, महेन्द्र दिवाकर, महेन्द्र प्रभाकर, महेन्द्र रत्नावली, महेन्द्र चन्द्रिका(तीन भाग), महेन्द्र मंगल (चार भाग), महेन्द्र कुसुमावती, महेन्द्र मंत्रक, भागवत दशम स्कंध, कृस्न गीतावली, अपूर्व रामायण ( सातो कांड ), विनय कवितावली आदि गीति काव्य संग्रह आ भीष्म बध, चीरहरण, उधो वृन्दावन गमन, गोपी विरह, उषा हरण, श्रीमद् भागवत आदि गीति काव्य प्रधान नाटक. एह तमाम रचना संसार के अलावे उनकर बहुत गीत, गजल, सोहर, झूमर, आदि लोक कंठ में बा. जवना के गा गा के केतने जने कवि, गीतकार, कीर्तनकार आ नाटककार बन गइलें. डॉ. सुरेश मिश्र जी ओही गीत-कवित्त सागर से कुछ उपलब्ध रचनन के संग्रह ‘कविवर महेन्द्र मिश्र के गीत संसार’ आ ‘महेन्द्र मिश्र की प्रतिनिधि कविताएं’ सम्पादित कइले बाड़न. एने आके ‘ महेन्द्र मिश्र रचनावली ‘ के प्रकाशित करवावे के दिसाईं बिहार राष्ट्रभाषा परिषद, पटना के सक्रियता बढ़ल बा. जदि मिसिर जी के परिवार ईमानदारी पूर्वक सहयोग आ मेहनत कइलस त अबहिंयों उनका बहुत रचनन के बचावल आ अँजोर में ले आवल जा सकत बा. अइसे डॉ. जवाहर सिंह, महेन्द्र सिंह प्रभाकर, भगवती प्रसाद द्विवेदी, अक्षवट दीक्षित, जगन्नाथ मिश्र सहित अनेक विद्वान मिसिर का रचनन के विविध पक्ष; जइसे- सांगीतिक पक्ष, नारी विमर्श, सिंगार पक्ष, प्रकृति चित्रण के पक्ष, धार्मिक आ आध्यात्मिक पक्ष, भक्ति आ उपदेस पक्ष, काव्य सौष्ठव पक्ष, रस आ अलंकार पक्ष आदि पर आपन कलम चला चुकल बाड़ें. जवन फुटकर रूप में विविध पत्र पत्रिकन में बिखरल बा.

महेन्दर मिसिर जी के कवनो रचना में कहीं भोजपुरी संस्कृति आ जीवन दर्शन का मर्यादा के अवहेलना नइखे कइल गइल. उनका रचनन में कहीं फुहरपन आ मांसलता नजर नइखे आवत. मिसिर जी का एक एक रचनन पर विमर्श हो सकऽता. जवना से नवकी पीढ़ी के उनका आ उनका रचना संसार का एक एक पहलु के जानकारी मिल सकेला.
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– विभागाध्यक्ष-स्नातकोत्तर भोजपुरी विभाग, बी. आर. अम्बेडकर बिहार विश्वविद्यालय,
मुजफ्फरपुर ( बिहार )
पिनकोड-842001
मो. न. -9430014688
राष्ट्रीय महामंत्री, अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन, पटना ( बिहार )
ई-मेल-indjaikantsinghjai@gmail.com

आवासीय पत्राचार-‘प्रताप भवन ‘महाराणा प्रताप नगर
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