मुखपृष्ठ आ मुख्यपृष्ठ : बतकुच्चन-224

मुखपृष्ठ आ मुख्यपृष्ठ : बतकुच्चन-224
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– टीम अंजोरिया

#बतकुच्चन #स्मारिका #मुखपृष्ठ #सारण

अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन के अगिला अधिवेशन सारण के अमनौर में 29-30 नवंबर के होखेा रहल बा. एही से जुड़ल ह्वाट्सअप समूह में पिछला दिने आयोजन के स्मारिका के मुखपृष्ठ देखावल गइल. मुखपृष्ठ परोसत शिवानुग्रह सिंह जी लिखनी कि –

अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन के २८ वॉ अधिवेशन के अवसर पर प्रकाशित होखे वाला स्मारिका लगभग तइयर हो गइल आ एक हप्ता में छपे खातिर प्रेस में चल जाई। एह स्मारिका के प्रकाशन खातिर जे लोग विज्ञापन दे के सहयोग कइलस ह ओह सभे के हृदया से आभार। आभार ओह सज्जन लोग के प्रति भी बा जे सभे निहोरा के बाद दूआर पर बेर-बेर दउरा के भी विज्ञापन ना दिहल।

जय भोजपुरी

एह पर उदय नारायण जी लिखनी कि –

बढ़िया लागता स्मारिका के मुख्य पृष्ठ

 

आ हमरा मिल गइल एह बतकुच्चन के मथैला ! हालांकि हो सकेला कि ई typo होखो जब spell checking का चलते अर्थ के अनर्थ हो जाला.

एगो अउर बात कौशल जी लिखनी कि –

‘इयाद’शबद कहूँ-न-कहूँ स्मार से मेल करत बा।आखिर सब पुरान बात के इयाद हो रहल बा तब एह पोथी में नवहीं दिसा के चरचा कुछ होखी कि ना? अब इयाद से भविष देखे के बा तब स्मारिका त सनद देवे खातिर पहिले से बा। अब हम कहीं कि स्मारिका खातिर नया शबद काहे नइखे आवत?जब-जब सारण में अधिवेशन होखी तब स्मारिका इयाद के शृंखला होखी।मतलब ई कि कवनो नया शबद सारण के साथ ना आई आउर सारण के बेआख्या में कवनो दोसर नया शबद सटीक नइखे होखत।
असल में होले ई कि हर अधिवेशन आपन नया प्रारूप आ उद्देश्य के स्पष्ट करे खातिर शबद चुन के प्रकाश में लावे ला। बाकिर हम पुरान लीक आउर पुरान लकीर में अटकल रहब तब नवसिरजन के उजागर कइसे होखी। बुरा न मानीं तब हमरा ई समझ में आ रहल बा कि कवनो काम के पहिले कार्य समिति से मनगर विचार-विमर्श शाइत नइखे हो पावत। नाहीं त बहुत कुछ बाकिर सभन लोग के सामाजिक संचार माध्यम से पता चल पावत बा आउर बहुत कुछ पहिलही तय हो जात बा।
ई इयाद के तीसर कदम सम्मेलन के विकास-संरचना के परकट करे वाला शबद ले के आवे चाहत रहल ह।बाकिर सब रउअनी जे उचित समझीं।

 

गूगल बतवलसि कि –
“स्मार” के कई अर्थ हो सकते हैं। इसका सबसे आम अर्थ स्मृति या याद से संबंधित है। इसके अलावा, यह कामदेव संबंधी या स्मरण कराए हुए को भी दर्शा सकता है।

अगिला सवाल पर गूगल के जबाब रहल कि –
Souvenir: A souvenir is a thing you buy or keep to remember a holiday or a special event.

आ आदत से मजबूर हम बतकुचनिया आदमी एहमें बतकुच्चन खोजे लगनी. सबसे पहिले त हम एहिमें कन्फ्यूजिआ गइनी कि मुखपृष्ठ आ मुख्यपृष्ठ एके होखेला का? भा एकरा के समानार्थी मानल जा सकेला का? पहिला नजर में लाग सकेला कि मुखपृष्ठ आ मुख्यपृष्ठ कुछ लोग ला अलग अलग हो सकेला आ कुछ लोग ला मुखपृष्ठे मुख्यपृष्ठ हो सकेला. बाकिर चरचा आगे बढ़ावे ला हम कुछ अउरी शब्दन के एह चरचा में ले आइल चाहब जइसे कि मुखपृष्ठ खातिर coverpage आ मुख्यपृष्ठ ला main page. आ अंगरेजी के एह शब्दन के सामने आवते साफ लागे लागल कि मुखपृष्ठ आ मुख्यपृष्ठ देखे वाला का हिसाब से एके हो सकेला बाकिर देखावे वाला का नजर से ना. मुखपृष्ठ आ मुख्यपृष्ठ के समुझे ला व्यक्ति आ व्यक्तित्व के चरचा कइल जा सकेला. कवनो व्यक्ति के रउरा ओकरा मुखपृष्ठ माने कि चेहरा से पहचान सकीलें बाकिर ओकर व्यक्तित्व जाने ला ओकरा के जानल-समुझल जरुरी हो जाई. वइसहीं स्मारिका के मुखपृष्ठ आ मुख्यपृष्ठ के अलग करे ला ओकरा के बाहर से भीतर ले देखला का बादे कहल जा सकेला कि मुखपृष्ठे मुख्यपृष्ठ रह गइल कि मुख्यपृष्ठ कवनो दोसर पृष्ठ बा. मुख्यपृष्ठ ओह स्मारिका के विषयसूची हो सकेला भा संपादकीय, भा ओकरा पीछे के तइयारी में लागल लोगन के विवरण वगैरह. जाके रहि भावना जैसी, प्रभू मूरत देखिन तिन तैसी वाला अंदाज में हर आदमी खातिर मुख्यपृष्ठ अलग अलग हो सकेला बाकिर मुखपृष्ठ पर कवनो विभेद ना आ सके. मुखपृष्ठ मुखपृष्ठे रही हो सकेला कि कुछ लोग ला उहे मुख्यपृष्ठ हो जाव बशर्ते भीतर का पृष्ठन पर कुछ खास ना मिल पावे तब! बाकिर एकरा साथे ‘तब’ के शर्त जुड़ जाई.

एह बतकुच्चन में हम जवन तीन गो वरिष्ठ लोगन के उद्धरण लिहले बानी ऊ तीनो लोग हमरा ला आदरणीय बा. एह बतकुच्चन के मकसद बस बतकुच्चन करे के बा आ बतकुच्चन होखबे करेला बिना बात के बात कइला के भा बिना कवनो आधार के बात कइला के. अधजल गगरी छलकल जाव वाला कारणो हो सकेला बतकुच्चन करे का पीछे कि बुझले-समुझले कुछ ना बाकिर ओकाइल शुरु कर दीहलन.

हँ अबहीं ले इयाद आ स्मार के चरचा छूटल बा त चलत चलत ओकरो के छूअले चलीं. कौशल जी के लिखला में भाव ई बुझाइल हमरा कि उहां के इच्छा रहल कि अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन के अमनौर अधिवेशन के आयोजन समिति में एह बात पर चरचा होखल चाहत रहल कि एह स्मारिका के नाम का दीहल जाव? बहुते खुशी होखीत अगर उहां के कुछ सुझावो दे दिहले रहतीं कि स्मारिका के नाम ‘इयाद’ का बदले अउर का दीहल जा सकत रहुवे. स्मारिका असल में कवनो आयोजन खातिर आर्थिक सहजोग करे वाला लोगन के विज्ञापनन से भरल होखेला. बीच बीच में आयोजक समिति का बारे में, संस्था का बारे में, आयोजन स्थल का बारे में, भा सम्मेलन के उद्देश्य वगैरह का बारे में कुछ कुछ लेखो रहेला जेहसे कि लोग ओह स्मारिका के कुछ दिन ले सम्हार के राखसु. अगर खाली विज्ञापने से भरल रही त ऊ अखबार का तरह हो जाई जवना के कवनो मोल ना रहि जाव अगिला दिने अगर ओहमें राउर खुद के फोटो, रचना, समाचार वगैरह नइखे छपल. अगर छपल बा त ऊ रउरा ला स्मारिका हो जाले आ रउरा ओकरा के स्मारिका का तरह सम्हार के राख लेनी. स्मारिका त जब मिली तब देखल जाई कि ओह में स्मारिका लायक का बा. एक बात त तय बा कि ओहमें बहुत कुछ रचना ना मिली. काहे कि अगर कहीं रचना प्रकाशित करे के सोच लिहलसि आयोजन समिति त ऊ स्मारिका ना रचना कोष बन जाई. आ जहाँ ले जानकारी खोजल जा सकेला एह स्मारिका में रचना नइखे मिले वाला. शुभकामना संदेश आ विज्ञापन जरुर मिलिहें सँ. तबले हमहूं सोचत बानी कि ‘इयाद’ का बदले एकरा ला अउर कवन शब्द इस्तेमाल कइल जा सकत रहुवे जवन “सारण के बेआख्या में कवनो दोसर नया शबद सटीक” बइठे जोग हो जाव.

लेख लमहर हो गइल बाकिर बतकुच्चन का बहाव में ई अक्सर हो जाला. अब चलत चलत एगो पुरनिया कवि (उमिर का असर से आजु उनुकर नाम इयाद नइखे पड़त) के कविता के एगो लाइन से खतम करत बानी कि – एह सार-न से चंपारण हरान बा! ऊ कवि सारण का बहाने ओह सार-न के बात करत रहुवन जेहनी से चंपारण परेशान रहुवे.

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