भोजपुरी भाषा-साहित्य के विकास यात्रा

भोजपुरी भाषा-साहित्य के विकास यात्रा
Development of Bhojpuri language

– – प्रो.(डॉ.) जयकान्त सिंह ‘जय’

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‘भोजपुरी’ भारतीय आर्य भाषा परिवार के जीवन्त बेवहारिक भाषा ह. जवन भारतवर्ष के अलावे नेपाल, मारिशस, फिजी, सुरीनाम, गुयाना, ट्रिनिडाड आ टोबैगो, जमाइका आदि दुनिया का कई देसन में बोले, लिखे आ पढ़े जाए वाली भाषा ह. आज ई दुनिया के पावर लैंग्वेज इंडेक्स, विकिपीडिया आदि के भाषा-सूची में आपन महत्वपूर्ण जगह बना चुकल बा. एकरा गीत-गवनई के संयुक्त राष्ट्रसंघ के युनेस्को से मान्यता प्राप्त हो चुकल बा. कैथी, महाजनी, देवनागरी आ रोमन लिपि में लिखाए-पढ़ाए वाली एह भाषा के लोक साहित्य, लिखित प्राचीन आ आधुनिक साहित्य, व्याकरण, शब्दकोश आ भाषा वैज्ञानिक अध्ययन के दिसाईं उनइसवीं सदी से लेके आज के एकइसवीं सदी तक अनगिनत यूरोपीय आ भारतीय विद्वान लोग द्वारा बहुते महत्वपूर्ण अध्ययन-अनुसंधान, लेखन, संकलन, संपादन आ प्रकाशन के काम भइल बा. सत्तर का दशक से भारत का कई विश्वविद्यालयन, महाविद्यालयन आ विद्यालयन में एकर पढ़ाई-लिखाई हो रहल बा. एने नेपाल आ मारिशस आदि देसनो में लइकन के भोजपुरी भाषा-साहित्य पढ़े-पढ़ावे के सिलसिला प्रारंभ भइल बा. दुनिया के भाषा वैज्ञानिक लोग वर्तमान सदी में दुनिया के कई एक भाषा के मरे के भविष्यवाणी कर रहल बा उहँवे भारत के भाषाविद गणेश प्रसाद देवी अपना हाल के भाषा-सर्वेक्षण के आधार पर बतवले बाड़न कि आज भोजपुरिए दुनिया के एगो अइसन भाषा बा जवन बिना राजाश्रय के अपना भाषा प्रेमी साहित्यकार, कलाकार आदि के रचनात्मक काम-काज के बदौलत बहुत तेजी से बढ़ रहल बा.

भोजपुरी भाषा के क्षेत्र – विस्तार आ जनसंख्या

दुर्गा शंकर प्रसाद सिंह अपना ग्रंथ ‘भोजपुरी के कवि और काव्य’ के दूसरका संस्करण के पृष्ठ संख्या- 2 पर भूमिका में डा ग्रियर्सन का ऐतिहासिक ग्रंथ ‘भारत के भाषा सर्वेक्षण’ ( लिंग्विस्टिक सर्वे आफ इंडिया ) के भाग – 5 के हवाले से बतवले बाड़न कि भोजपुरी भारतवर्ष के लगभग पचास हजार वर्गमीटर भू-भाग में बसे वाली जनता के बेवहारिक भाषा ह. सन् 1901 में भइल भारतीय जनगणना के अनुसार जब भारत के जनसंख्या उनतीस करोड़ चउरानबे लाख छत्तीस हजार रहे तब भोजपुरी भाषी के संख्या दू करोड़ रहे. दुर्गा बाबू के अनुसार जब सन् 1941 ई. में भारत के जनसंख्या अड़तीस करोड़ अस्सी लाख रहे तब भोजपुरी भाषी के जनसंख्या दू करोड़ चउंसठ लाख मतलब भारत के कुल जनसंख्या के के 14.5 प्रतिशत हो गइल रहे. आज भारते में एकर जनसंख्या लगभग अठारह करोड़ के आसपास बा आ नेपाल, मारिशस आदि आउर देसन के संख्या जोड़ दिहल जाए त बीस करोड़ के आसपास पहुंच जाई.

भोजपुरी भाषा के प्राचीनता

भारतवर्ष के सबसे प्राचीन भाषा भोजपुरी के तुलनात्मक अध्ययन-अनुसंधान से विद्वान लोग का एकरा प्राचीनता से जुड़ल अनेक तथ्यात्मक जानकारी उपलब्ध भइल बा.

ई भाषा वैदिक काल में गण भाषा भा जन भाषा, उत्तर वैदिक काल में भोजी, बुद्ध के समय पूर्वी बोली-भाषा कोसली, पाणिनि-पतंजलि के काल में पूर्वी भाषा कोसली आ कारुषी, एगारहवीं-बारहवीं सदी तक पूर्वी भाषा कोसली आ ओकरा बाद ऐतिहासिक राजवंशी भोज आ उनका नाम पर बसावल भोजपुर नगर के बोली ‘भोजपुरी’ के नाम से जानल जाए लागल.

वैदिक भाषा का ध्वनियन के रागात्मक तत्व, सुराघात मतलब ध्वनि-राग, बलाघात, लयात्मकता आदि भोजपुरी में आजुओ मिलेला. ऋग्वेद में ‘जानऽता सङ्ग में महि’ , सायं करत, करदारे, उपनिषद में ‘सत्यं वदऽ, धर्मं चरऽ,’ गीता में अजानऽता महिमांनं आदि आजुओ भोजपुरी में ओही बलाघात, स्वरांत आ स्वराघात के रूप में जानऽता (हिन्दी में – जानता है), संझा करत, कर तारे, सत बदऽ, धरम आचरऽ, आदि प्रयुक्त होला. वैदिक संस्कृत आ लौकिक संस्कृत का शब्दन के त भोजपुरी में भरमार बा. जवन खड़ी बोली हिन्दी में पावलो ना जाए.

अइसहीं ऋग्वेद के य, ष आदि ध्वनि जइसे यजुर्वेद में ज आ ख हो जाला उहे स्थिति भोजपुरियो में पावल जाला. कोसली, पालि, अवधी के प्रधान ध्वनि-प्रकृति ‘न, र, स’ भोजपुरियो में बा जवन मागधी में ना पावल जाए. बहुते विद्वान भोजपुरी के मागधी आ शौरसेनी से अलग मध्यदेशीय भाषा से व्युत्पन्न सिद्ध कइले बाड़न. अइसे डॉ ग्रियर्सन के बिचार से प्रभावित विद्वान लोग भोजपुरी के आधुनिक भारतीय आर्य भाषा के अन्तर्गत पच्छिमी मागधी के बिहारी वर्ग के भाषा मान के मैथिली आ मगही के सङ्गे राखेला. बाकिर एकर ध्वनि आ भाव प्रकृति कोसली आ अवधी से एकर निकटता सिद्ध करेले.

भोजपुरी प्राचीन आ आधुनिक साहित्य

भोजपुरी में लोक साहित्य के अकूत भंडार बा. जवना के लेके यूरोपीय विद्वान बीम्स, हार्नले, ग्रियर्सन आदि से लेके भारतीय विद्वान संकटा प्रसाद, राम नरेश त्रिपाठी, कृष्ण देव उपाध्याय, गणेश चौबे आदि के अनगिनत अध्ययन – अनुसंधान, लेखन, संकलन, संपादन आ प्रकाशन के काम बा.

जहाँ तक लिखित प्राचीन साहित्य के बात बा त शोधी विद्वान लोग के अनुसार सातवीं सदी के भोजपुरी कवि इसानचंद, बेनी भारत, आठवीं – नवीं सदी के सिद्ध आचार्य सरहप्पा, सबरप्पा, भुसुकप्पा, चौरंगिप्पा/ चौरंगीनाथ आदि, दसवीं – एगारहवीं सदी के गोरखनाथ, भरथरी, गोपीचंद, बारहवीं सदी के व्याकरण ग्रंथ ‘उक्ति व्यक्ति प्रकरण’ के रचइया पं. दामोदर शर्मा, अमीर खुसरो, ओकरा बाद के संतकवि स्वामी रामानंद, कबीर, रविदास, धर्मदास, दरिया साहेब आदि उनइसवीं-बीसवीं सदी के साहित्यकार रविदत्त शुक्ल, राम गरीब चौबे, भारतेन्दु हरिश्चंद आदि के बाद भोजपुरी के पद्यात्मक आ पद्यात्मक साहित्य के रचे वाला साहित्यकार लोग के साहित्य के लेके दुर्गा शंकर प्रसाद सिंह के ऐतिहासिक ग्रंथ ‘भोजपुरी के कवि और काव्य’ कृष्ण देव उपाध्याय के ‘भोजपुरी साहित्य का इतिहास’ आदि जइसन दर्जनो ग्रंथ लिखा-छपा चुकल बा.

भोजपुरी के व्याकरण, शब्दकोश आ साहित्य के इतिहास

जहाँ तक भोजपुरी भाषा के व्याकरण आ शब्दकोश सम्बन्धी रचनात्मक काम के बात बा त सन् 1868 ई. में जे आर रीड अपना शोध आलेख ‘नोट्स आन दि डायलेक्ट करेन्ट इन आजमगढ़’ में भोजपुरी भाषा के व्याकरण पर जम के काम कइले बाड़न. सन् 1880 ई. में डा ए एफ रूडोल्फ हार्नले अपना प्रमुख व्याकरण ग्रंथ में पूर्वी हिन्दी के अन्तर्गत भोजपुरी व्याकरण पर महत्वपूर्ण काम कइले बाड़न. भोजपुरी व्याकरण के दिसाईं डॉ ग्रियर्सन के कामो बहुते महत्व के बा. एकरा बाद एजा एम चाइल्ड के ‘ए शार्ट ग्रामर आफ भोजपुरी (1904), शिवदास ओझा के ‘भोजपुरी के ठेठ भासा बेयाकरन (1915) से लेके अब तक लगभग दू दर्जन से अधिक भोजपुरी के मानक व्याकरण छप चुकल बा.

अइसहीं भोजपुरी शब्दकोशन के जहाँ तक सवाल बा त हार्नले आ ग्रियर्सन के सन् 1885 में छपल शब्दकोश ‘ए कम्पेरेटिव डिक्शनरी आफ बिहारी लैंग्वेजे’  सन् 1925 ई. में छपल डॉ ग्रियर्सन के ‘बिहार पिजेंट लाइफ’ सन् 1940 ई. में छपल एल सेंट जोसेफ के ‘भोजपुरी शब्दकोश’ सन् 1959 ई. आ सन् 1966 ई. में छपल वैद्यनाथ प्रसाद आ श्रुतिदेव शास्त्री के क्रमवार छपल ‘कृषिकोश’, सन् 1966 ई. में छपल प्रो. बृजबिहारी प्रसाद के ‘भोजपुरी शब्दकोश’ से लेके अबहीं तक लगभग दू दर्जन से ऊपर भोजपुरी के शब्दकोश छप चुकल बा.

भोजपुरी साहित्य के इतिहास लिखे के परम्परा दुर्गा शंकर प्रसाद सिंह के ‘भोजपुरी के कवि और काव्य’, डॉ. कृष्ण देव उपाध्याय के ‘भोजपुरी साहित्य का इतिहास’ आदि से प्रारंभ होके आज तक जारी बा. जवना के परिणाम ई भइल बा कि अबहीं तक डेढ़ दर्जन के आसपास भोजपुरी साहित्य के इतिहास सम्बन्धी पुस्तक प्रकाशित हो चुकल बा. अइसहीं भोजपुरी भाषा के विकास परम्परा आ भाषा वैज्ञानिक अध्ययन के लेके दर्जनो किताब छप चुकल बा. जवना के अध्ययन से भोजपुरी भाषा – साहित्य का विकास यात्रा के सम्यक् ग्यान – बोध सुलभ हो सकेला.

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– विभागाध्यक्ष – स्नातकोत्तर भोजपुरी विभाग, बी. आर. अम्बेडकर बिहार विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर ( बिहार )
पिनकोड – 842001
मो. न. -9430014688
राष्ट्रीय महामंत्री, अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन, पटना ( बिहार )
ई-मेल – indjaikantsinghjai@gmail.com

आवासीय पत्राचार – ‘ प्रताप भवन ‘ महाराणा प्रताप नगर
मार्ग सं. -1( सी ) भिखनपुरा, मुजफ्फरपुर ( बिहार )
पिनकोड – 842001

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