– डॉ रामरक्षा मिश्र विमल
#पितरपख के महिमा
पितरपख के महिमा
Importancee of PitruPaksha
कवनो नया बात शुरू कइल जाउ बाकिर काकी चारू ओरि से घूमि के पितरपखे पर आ जात रही. लभेरन से कहली कि हमरा के एगो बात बहुत परेशान करतिया कि जे गयाजी में पिंडा पारि दिहल, का अब ओकर छुट्टी हो गइल ? अब ओकरा पिंडा परला के जरूरत नइखे ?
लभेरन कहले – ना ई शास्त्रसम्मत नइखे। गयाजी का महातम में लोग बढ़ि-चढ़ि के कहीं-कहीं लिख देले बाड़न. अब रउवें बताईं, जे चारो तीर्थ क लेले होई, ओकरा मंदिर में ना जाए के चाहीं ? पूजा-पाठ छोड़ि देबे के चाहीं ?
काकी मूड़ी हिलवली – ठीके कहतारऽ. जानतारऽ. आजु-काल्हु लोग बिग्यान का नाँव पर बिना पेनी के बात ढेर बतियावतारे. एगो कहत रहे कि पानी एहिजा दिहल जाई त पितर लो तक कइसे पहुँच जाई ? लभेरन मुसुकइले.
पानी पितर लो तक कइसे पहुँच जाला ?
कहल जाला कि एक बेरि त्रिदंडी देव महाराज के प्रवचन चलत रहे.
श्रोता वर्ग में नास्तिक आ विधर्मियन के भी एगो झुंड ढुक गइल रहे. ओह में से एगो प्रवचन का बीचे में खड़ा भइल आ पूछे लागल – ” स्वामी जी, रउआँ सभ भोरे-भोरे सूर्यदेव के जवन पानी दिहींले, ऊ सूर्य भगवान तक कइसे पहुँच जाला ? अइसहीं पितरपख में जवन पानी दियाला, ऊ पितर लो तक कइसे पहुँच जाला ?”
स्वामी जी जोर से खिसियइलीं – “चल भाग दुष्ट! जरूर तोहार माई-बाप पतित आ पथभ्रष्ट होइहें, तबे तोरा अस संतान भइल होई.”
ऊ मुसुकाइल- “रउआँ त गारी देबे लगलीं.”
अब स्वामी जी के बारी रहे – “हम त ना तोहरा जरी गइलीं हा नु तोहरा माइए-बाप का भीरी, हम त खाली शब्द से प्रहार कइलीं हा आ अतने में तहार पसेना निकले लागल. अब तू ढेर दिन तक हमार गारी भुला ना पइब आ तोहार माइओ-बाप ई घटना सुनी त भूलि ना पाई. अइसहीं हमनी का सद्भावना के, मंत्र आ जल के हमनी के देवता आ पितर ग्रहण कइ लेले.”
काकी कहली – “जेकरा पितर लोग के तर्पण या श्राद्ध कर्म ढोंग लागता, ऊ लोग अपना घर-परिवार आ समाज में, बलुक सोसलो साइट पर एलान क देसु कि हमनी का अपना बादो का पीढ़ी का सङे भविष्य में ना कवनो श्राद्ध कर्म करबि जा, ना पितृपक्ष में तर्पण आ पिंडदान करबि जा. अतने से उनका मन के संतोषो मिल जाई आ उनुका सङे-पीछा चले वाला लोगो निश्चिंत हो जाई.”
लभेरन कनखी पर मुसुकइले. “अपना बेरि चुप हो जाला लोग, मए ग्यान दोसरा खातिर नु छँटाला! पंद्रह दिन के ई समय बरिस में खाली एके बेर आवेला, एहसे सभ के पितरपख में अपना माई-बाप के याद करत तिल के साथ जल के अंजली रोज जरूर देबे के चाहीं आ विक्रम संवत् का अनुसार जवना तिथि के पिता के मृत्यु भइल होखे, ओह तिथि के पिंडदान करे के चाहीं. ओह दिन पिता पुत्र का अगले-बगल होलन अउर उनुका एकर आस लागल रहेला कि हमार बेटा (संतान) हमरा खातिर पिंडदान करी. जो केहूँ जान-बूझके भा गलती से अइसन ना करेला त ऊ लोग महालया माने कुआर के अन्हरिया का अमावस्या के इंतजार करेलन. जो ओहू दिन उनुकर बाल-बच्चा पिंडदान ना कइल त ऊ लोग निराश होके चलि जालन. ई समय संवेदना आ भावुकता के हटे. एह मार्मिक तथ्य के भावुके हृदय वाला लोग बूझि सकता, बुद्धि त एकरा से फरके रहेले. साँच पूछीं त ई ओही लोगन खातिर बा जेकर धरम आ संस्कृति में आस्था बाटे अउर एकरा सङहीं जेकरा हृदय में अपना माई-बाप खातिर जियते-जियत सम्मान रहल बा आ ऊ आपन जिमदारी निभवले बाड़न.” लभेरन के आँखि भींजि गइल.
एगो सत्य कथा सुनीं –
भारत के एगो महान पत्रकार स्व. के. विक्रम राव 11 सितम्बर 2020 के अपना एगो फेसबुक पोस्ट में लिखऽतानी कि श्राद्ध के गंगाजमुनी हिन्दू उपहास करेलन बाकिर बहुतायत में लोग सभ रस्म मन से निभावेलन, ईहे हमरा नीक लागेला. अपना पुरखा लोगन के आदर मरलो के बाद कइल ई देखावता कि नया पीढ़ी कृतघ्न नइखे.
उहाँका पिण्डदान का विषय में भारतीय लोगन के भ्रम दूर करे खातिर लंदन का एगो महान वैज्ञानिक के अनुभव बतवलीं –
एही संदर्भ में लखनऊ विश्वविद्यालय में साइकोलॉजी विभाग के हमार एगो साथी कबो (1959) एगो लेख के उल्लेख कइले रहन, जवन ब्रिटेन के महान भौतिक शास्त्री लार्ड जॉन विलियम्स स्ट्रट रेले लिखले रहन. जॉन विलियम्स के 1904 में भौतिकी के नोबेल पुरस्कार मिलल रहे. ऊ बड़ा धर्मनिष्ठ रहन आ पराविज्ञान में निष्णात रहन. प्लैंशेट (Planchet) पर ऊ अक्सर अपना दिवंगत इकलौता बेटा से संवाद करत रहन.
एक बार बेटा उनुका के बतवलस कि ऊ एगो अत्यंत ज्वलनशील स्थान पर बाटे. बाकिर, भारतीय आत्मा एहिजा से जल्दिए मुक्ति पा लेतारी सन काहेंकि उनकर भूलोकवासी रिश्तेदार आटा, चावल आ तिल से गेंदनुमा ग्रास बनाके कवनो रस्म अदा करत रहन. ई त साफे लागता कि बात पिंडदान के होत रहे.
ए काकी, अब रउएँ बताईं, जेकरा अतनो पर बिसवास ना होई, ओकरा से बतियावल आ देवालि से माथा लड़ावल बराबरे नइखे ?
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