गौतम बुद्ध के भाषा

गौतम बुद्ध के भाषा

–प्रो.(डॉ.) जयकान्त सिंह ‘जय’

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बौद्ध मत के अनुयायी लोग गौतम बुद्ध आ उनका उपदेश के भाषा ‘पालि’ बतावत इहो दावा करेला कि ई भासा संस्कृत से पुरान ह. जबकि भासा के अर्थ में ‘पालि’शब्द के प्रयोग 14वीं सदी से पहिले कहीं ना पावल जाए. सबसे पहिले पालि शब्द के प्रयोग पाँचवी सदी में ‘बुद्ध-वचन ‘खातिर आचार्य बुद्धघोष कइलें. बुद्धघोष के गुरु रहलें मगध के रहेवाला आचार्य रेवत. आचार्य रेवत अपना परम शिष्य बुद्धघोष के ई कहके लंका भेजलें कि ‘गौतम बुद्ध के जीवन कथा आ उपदेश उहाँ के सिंहली भासा में बांचल बा. ओकरा के ले आके लोक-हित में अपना मगध के भासा में अनुवाद करऽ.’

‘कता सिंहलभासाय सींहलेसु पवत्तति.
तं तत्थ गन्त्वा सुत्वा त्वं मा गधानां पवत्तति. . ‘
( महावंस, परि.- 37 )

‘महावंस’लंका के बहुते पुरान आ प्रसिद्ध ग्रंथ ह. एकरा सैंतीसवां परिच्छेद के पचासवां गाथा तक ई ग्रंथ चौथी सदी मतलब गौतम बुद्ध के लगभग एक हजार बरिस बाद लिखाइल. गौतम बुद्ध के जनम ईसा से 623 बरिस पहिले भइल रहे. (अर्ली हिस्ट्री ऑफ इंडिया-बी ए स्मिथ, आक्सफोर्ड, 1924 , पन्ना-49-50, बौद्धधर्म और बिहार-श्री हवलदार त्रिपाठी सहृदय, बिहार-राष्ट्रभाषा-परिषद् पटना दूसरका संस्करण -1998 ई. पन्ना-40)

बाद में धर्मकीर्ति ‘महावंस ‘के परिवर्धित संस्करण तेरहवीं सदी में ‘चूलवंस’ के नाम से छपववलन. जवना में बुद्धघोष के जीवनी बा. एही ‘चूलवंस’ में आचार्य रेवत के आज्ञा आ बुद्धघोष द्वारा बुद्ध का जीवनी आ उपदेश के मगध के भासा में अनुवाद करेके बात आइल बा. एकरा में कहींओ भासा के अर्थ में ‘पालि’ शब्द के उलेख नइखे. चूंकि आचार्य रेवत मगध के रहलें, एह से बिद्वान लोग मानेला कि ऊ बुद्धघोष से अपना मगध के भासा अर्थात् मागधी में बुद्ध के जीवन कथा आ उपदेश के रूपांतरित करके के कहलें. जवन अलग से बतकही के बिसय हो सकेला.

ई बात जरूर बा कि बुद्धघोष सबसे पहिले पाँचवी सदी के अपना एह ग्रंथ ‘विशुद्धिमग्ग’ में बुद्ध-वचन, मूल त्रिपिटक आ ओकरा पाठ के अर्थ में ‘पालि’ शब्द के प्रयोग करत लिखले बाड़न कि ई ना त पालि में लउकऽता आ ना अट्ठकथा में.-‘ने यं पालियं न अट्ठकथायं दिस्सति.’ मतलब ई ना त पालि यानि बुद्धे वचन में मिलऽता आ ना अट्ठकथा सब यानि उनका से जुड़ल आउर कथा सबमें. एह तरह से बुद्धघोष से पालि शब्द के सबसे पहिले प्रयोग कइबो कइलें त भासा के अर्थ में ना करके बुद्ध के वचन के अर्थ में कइलें. बुद्धघोष बुद्ध-वचन का पंक्ति के पालि कहत लिखले बाड़न-‘तन्ति बुद्ध-वचनं पंक्ति पालि. ‘उहँवे इहे कहल बा कि प्रमाणित परखल बुद्ध-वचने पालि ह-‘पारक्खतीति, बुद्धवचनं इति पालि.'( इन्ट्रोडक्शन टू प्राकृत-वूलनर, पन्ना-84) एह तरह से पालि से बुद्ध के वचन, उनका वचन के एक-एक पंक्ति चाहे परखल-प्रमाणित उपदेश, मूल त्रिपिटक के बोध होता कवनो भासा के ना.

चउदहवीं सदी के पहिले भासा के अर्थ में पालि शब्द का प्रयोग के प्रमाण नइखे मिलत. कुछ बिद्वान पालि के भासा के अर्थ में प्रयोग करत एकर अपना-अपना ढ़ंग से व्युत्पत्ति बतवले बा. भिक्षु जगदीश काश्यप पालि शब्द के विकास परियाय चाहे पलियाय से मनले बाड़न. बाकिर परियाय शब्द त संस्कृत का पर्याय शब्द के तद्भव रूप ह. कुछ लोग के अनुसार बुद्ध का उपदेश खातिर पर्याय शब्द के प्रचलन रहे. फेर पर्याय से परियाय, परियाय से पलियाय आ पलियाय से पालि शब्द के व्युत्पत्ति भइल. बाकिर डॉ. भगीरथ मिश्र एह निरुक्ति के काल्पनिक अधिका आ यथार्थ कम मनले बाड़न. काहे कि मगध के भासा मागधी में र के जगह पर ल के प्रयोग अधिक भइला से पलियाय शब्द हो सकऽता, परियाय ना.

भिक्षु सिद्धार्थ पालि शब्द के व्युत्पत्ति संस्कृत के पाठ शब्द से मानत लिखले बाड़न-पाठ से पाल आ पाल से पालि.

पं. विधुशेखर भट्टाचार्य पंक्ति से पालि शब्द के व्युत्पत्ति बतवले बाड़न-पंक्ति से पंत्ति, पंत्ति से पति, पति से पट्ठि, पट्ठि से पालि. अइसे बुद्धघोष भी बुद्ध-वचन का पंक्ति के पालि कह चुकल बाड़न. एह तरह से भासा के अर्थ में एह पालि शब्द के व्युत्पत्ति आ विकास के लेके केहू के स्पष्ट मत नइखे.

अइसहूं पालि कवनो क्षेत्र के भासा रहे, एह चीज के लेके बिद्वान लोग में एक राय नइखे. बौद्ध पंथ के अनुयायी बिद्वान के अलावे मैक्सवेलेसर, चाइल्ड्स, ग्रियर्सन आदि एकरा मगध के भासा मनले बा. बाकिर मगध के भासा मागधी आ पालि के ध्वनि-प्रकृति आ भाव-प्रकृति में समानता से अधिका असमानता नजर आवेला; जइसे-पालि स ध्वनि प्रधान भासा ह त मागधी श ध्वनि प्रधान. पालि र ध्वनि प्रधान भासा ह त मागधी ल ध्वनि प्रधान.

डॉ. मैक्समूलर आ ओल्डनवर्ग पालि के कलिंग के आधार पर विकसित मनलें त वेस्टर गार्ड आ ई. कुह्न ओकर उद्गम स्थल उज्जैन बतवले बाड़न. डॉ. स्टेन कोनो पालि के विंध्याचल क्षेत्र के भासा कहलें त डॉ. कीथ, प्रो. टर्नर, डॉ. उदय नारायण तिवारी, डॉ. बाबूराम सक्सेना, डॉ. धीरेन्द्र वर्मा आदि एकरा के मध्य-देश के भासा कहले बा. जवना के स्पष्ट खंडन करत डॉ. रामविलास शर्मा के कहनाम बा कि ‘बुद्ध पालि में उपदेश दिहलें-पहिले एकरे कवनो साक्ष्य नइखे. फेर पालि के मागधी प्राकृत नइखे कहल जा सकत. जवना हद तक ऊ प्राकृत भासा बा-कृत्रिम प्राकृत ना-ओह हद तक ओकर सम्बन्ध मध्यदेश से बा. ‘( भाषा और समाज-डॉ. रामविलास शर्मा, पन्ना-152)

पालि डिक्शनरी में पालि के कोसल के भासा मानल बा. काहे कि सिद्धार्थ बुद्ध अपना के कोसल खत्तिय (क्षत्रिय) कहत रहलें आ उनकर जनम धरती कपिलवस्तु रहे. बुद्ध के काल में कपिलवस्तु, पिप्पली कानन (चम्पारन), वज्जि क्षेत्र वैशाली, मल्ल क्षेत्र (गोरखपुर, सारन आदि), भोजपुर, गया, कासी क्षेत्र कुल्ह कोसलराज के अधीन छोट छोट राज-रजवाड़ा रहे. कोसल क्षेत्र के बोली-कोसली कहात रहे. बुद्ध जनम, ज्ञान, उपदेश आदि देवे के मुख्य क्षेत्र कोसलराज के अधीन क्षेत्र रहे. एह से ऊ आपन उपदेश कोसली भासा में ही दिहलें. जवना में अध्यात्म, दर्शन, गूढ़ सिद्धांत आ आचार-बिचार से जुड़ल संस्कृत का शब्दावली के जोड़ के एगो कृत्रिम भासा तइयार कइल गइल. जवना के बिद्वान लोग बुद्ध-वचन आ उपदेश के भासा पालि कहल. अइसे हिड्स डेविड अपना ‘बुद्धिस्ट इंडिया ‘में कहले बा भारत का एह बड़ मध्यदेशीय भूभाग के भासा कोसली से बारहवीं सदी आवत-आवत दूगो भासा आपन अलग अस्तित्व कायम कइली स. कोसली के पूरबी रूप भोजपुरी कहाइल आ पच्छिमी रूप अवधी. एह तरह से कुछ स्थानीय रूप आ प्रयोग-भेद के बावजूद भोजपुरी आ अवधी में बहुत हद तक समानता बा. आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी पालि के भोजपुरी के प्राचीन रूप होखे के संभावना व्यक्त कइले बाड़न.

अब तक के अध्ययन-अनुसंधान के आधार पर कहल जा सकत बा कि पालि शब्द के पहिले प्रयोग बुद्धघोष बुद्ध-वचन, उपदेश आ मूल त्रिपिटक खातिर चाहे बुद्ध का प्रामाणिक उपदेश का पंक्तियन खातिर. बाकिर चउदहवीं सदी के बाद कोसली बोली-भासा में अध्यात्म, दर्शन, सिद्धांत आदि खातिर पहिले से बेवहार में आवत संस्कृत भासा का शब्दन के मिला के एगो कृत्रिम भासा के रूप गढ़ाइल, जवना के बिद्वान लोग पालि कहल. जवना के अध्ययन के माध्यम से ही बुद्ध के जीवन, उपदेश, दर्शन आदि के जानल जा सकत बा.
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– विभागाध्यक्ष-स्नातकोत्तर भोजपुरी विभाग, बी. आर. अम्बेडकर बिहार विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर ( बिहार )
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मो. न. -9430014688
राष्ट्रीय महामंत्री, अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन, पटना ( बिहार )
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आवासीय पत्राचार-‘प्रताप भवन ‘महाराणा प्रताप नगर
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