पचकोसवा के लिट्टी-चोखा

– – डॉ. रामरक्षा मिश्र विमल

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सोस्ती सिरी पत्री लिखी पटना से-15
आइल भोजपुरिया चिट्ठी
पचकोसवा के लिट्टी-चोखा नाहीं बिसरी
LittiChokha-from-Pachkosi-Buxar

काकी आजु खिझियाइल रहली. “का हो लभेरन, तू पचकोस के मेला कइसे भुला गइलऽ हा, हमनी के मन ना परवलऽ हा?” लभेरन कान पकड़ले. “चुनाव का चक्कर में हमहूँ लिट्टी-चोखा भुला गइल रहलीं हा, ना त ई भुलाएवाली चीज हटे?”
माई बिसरी भले बाबू बिसरी
पचकोसवा के लिट्टी-चोखा नाहीं बिसरी.

ओ दिन बगसर में चारू ओरि फुटेहरिए फुटेहरी लउकेले. ददरी के मेला का बाद हमनी के बहुत बऽड़ मेला होला पचकोस के मेला.

“अच्छा, चलऽ ठीक बा, अब एह बच्चन के पचकोस के मेला का बारे में कुछ बताव. ” काकी के आदेश सुनिके लभेरन बतावे शुरू कइले.

पंचक्रोशी परिक्रमा के पचकोस के परिकरमा कहल गइल आ ओकरे से पचकोस के मेला फेमस भइल. ओइसे त पंचक्रोशी परिक्रमा बनारसो में होला बाकिर बक्सर में लागेवाला पचकोस के मेला विश्वविख्यात हो गइल बा. बक्सर के एह मेला के लोग ‘लिट्टी-चोखा मेला’ का नामो से जानेला. शास्त्रीय मान्यता का अनुसार अगहन महीना के अन्हरिया का पंचमी से मेला के शुरुआत होले. पंचक्रोशी परिक्रमा के पौराणिक महत्त्व बाटे. ई परिक्रमा भारत का सभ तीर्थन में श्रेष्ठ मानल गइल बा. मानल जाला कि त्रेता युग में भगवान श्रीराम बक्सर में जाके राक्षसी ताड़का के बध कइले रहन. ओकरा बाद भगवान श्रीराम लक्ष्मण आ महर्षि विश्वामित्र सहित 84 हजार ऋषि लोग का सङे पाँच कोस वाला सिद्धाश्रम बक्सर के परिक्रमा कइले रहलन. पंचकोसी यात्रा के परंपरा त्रेते युग से चलत आ रहल बा. अइसन मान्यता बाटे कि विधि-विधान से परिक्रमा कइला से आध्यात्मिक शक्ति आ भगवान के प्रति भक्ति के प्राप्ति होला.

पचकोस के परंपरा का मोताबिक हर पड़ाव पर रात भर विश्राम कर के अलग-अलग पाँच किसिम के व्यंजन ग्रहण करे के परंपरा बाटे. कहल जाला कि सिद्धाश्रम बक्सर में विश्वामित्र ऋषि का आग्रह पर भगवान श्रीराम जब ताड़का आ सुबाहु जइसन राक्षसन के संहार कइलन, तब कुछ कारणन से ऊ कुछ ऋषि लोग से मिल ना पवले. बाद में ओही ऋषि लोगन से मिले खातिर ऊ पाँच दिन का यात्रा के कार्यक्रम बनाके उहाँ सभ का आश्रम में गइले. ओहिजा रात भर विश्राम करके उनकर आशीर्वाद प्राप्त कइले. मुनि लोग का भीरी जवन कुछ रहे, ओही से ऊ लोग स्वागत कइल. ओह घरी ऋषि लोग भगवान श्रीराम का स्वागत में जवन भोजन पदार्थ भेंट कइले रहन, ओही के अनुसरण कइके आजुओ एह पाँचो पड़ाव पर अलग-अलग प्रसाद के वितरण होला. भगवान राम का एही यात्रा के याद करत ओकरा के उत्सव का रूप में मनावे के परंपरा बन गइल. वर्तमान में हर साल लागेवाला पचकोस मेला का पीछे ऊहे परंपरा चलल आवतिया.

पहिला पड़ाव- गौतम ऋषि के आश्रम

पचकोस के पहिला पड़ाव बक्सर से सटले अहिरौली स्थित गौतम ऋषि के आश्रम हटे, जहँवा गौतम ऋषि का श्राप से अहिल्या पत्थर हो गइल रहली आ भगवान राम का चरण छुअवला से पत्थर बनल अहिल्या जी श्राप से मुक्त हो गइली. एहिजा अहिल्या मंदिर पर मेला लागेला. एहिजा आवेवाला श्रद्धालु लोग पुआ-पकवान आ जलेबी के प्रसाद पावेलन.

दोसरका पड़ाव- नदाँव में

पचकोस मेला के दोसरा पड़ाव नदाँव में लागेला. एहिजा कबो नारद मुनि के आश्रम रहे. एह गाँव में स्थित नर्वदेश्वर महादेव के मंदिर आ नारद पोखरा आजुओ भक्तिमय आकर्षण के केंद्र बाटे. अइसन मान्यता बा कि नारद आश्रम में भगवान राम आ लक्ष्मण जी के स्वागत खिचड़ी-चोखा से कइल गइल रहे. एहसे एहिजा आवेवाला श्रद्धालु लोग खिचड़ी-चोखा बनाके खालन.

तीसरा पड़ाव- भभुअर

पचकोस मेला के तीसरा पड़ाव भभुअर में लागेला. प्राचीन काल में एहिजा भार्गव ऋषि के आश्रम रहे. कहल जाला कि एहिजा भगवान तीर चलाके पोखरा के निर्माण कइले रहन. एहिजा भार्गवेश्वर महादेव के मंदिर बाटे. इनकर पूजा कइला का बाद लोग चूड़ा-दही के प्रसाद ग्रहण करेलन.

चौथा पड़ाव- बड़का नुआँव में

पचकोस मेला के चौथा पड़ाव बड़का नुआँव में लागेला. प्राचीन काल में एहिजा उद्दालक मुनि के आश्रम रहे. कहल जाला कि एहिजे माता अंजनी आ हनुमान जी रहत रहे लोग. एहिजा अंजनी पोखरा बा. एहिजा सतुआ आ मुरई के प्रसाद ग्रहण कइल जाला.

पाँचवा पड़ाव- चरित्रवन में

पचकोस मेला के पाँचवा पड़ाव बक्सर का चरित्रवन में लागेला. प्राचीन काल में एहिजा विश्वामित्र मुनि के आश्रम रहे. एहिजा लिट्टी-चोखा खाके मेला के समापन होला.

कुछऊ कहीं, पाँचो जगह के महत्त्व त बड़ले बा, बाकिर बगसर के पचकोस का मेला के कुछु पावेवाला नइखे. जहें देखीं ओहिजे ‘फुटेहरी’ आ लिट्टी-चोखा लागता. आँखि में धुँआ लागता तबो केहूँ के उत्साह कम होखे के नाँव नइखे लेत.

काकी के नतिया पूछे लगले सन- चाचा, फुटेहरी का होला? लभेरन बतावे शुरू कइले-
‘फुटेहरी’ माने गोइँठा पर बनेवाली लिट्टी, जवन गोल होले आ पकला प साबुत ना रहे. जइसे लावा फूटेला, ओइसहीं ईहो जब फूटि जाले तब काँच ना मनाले. एकरा के तूरि के ना, फोरिके खाइल जाला. एकरा सङे घीव, आलू-भंटा के चोखा आ सजाव दही के जब संजोग हो जाला त संसार के मए व्यंजन ओकरा सामने फीका लागेला.
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संपर्क : डॉ. रामरक्षा मिश्र विमल, निकट- पिपरा प्राइमरी गवर्नमेंट स्कूल, देवनगर, पोल नं. 28
पो.- मनोहरपुर कछुआरा, पटना-800030 मो. 9831649817
ई मेल : rmishravimal@gmail.com

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