बेमन के बियाह, कनपटिए सेनुर

सोस्ती सिरी पत्री लिखी पटना से-19
आइल भोजपुरिया चिट्ठी

बेमन के बियाह, कनपटिए सेनुर

– – डॉ. रामरक्षा मिश्र विमल

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आजु दुपहरिया में घाम नीमन भइल बा. काकी भीरी पड़ोस के चार-पाँच गो मेहरारू जुटल बाड़ी सँ आ बिहार का चुनाव पर गरमागरम बहस चालू बा. लागत बा जइसे कुल्हि मेहरारू नारी शक्ति के झंडा उठा लेले होखऽ सँ. उहनी के कहनाम रहे कि एह चुनाव में महिला वर्ग का एकवटि गइला का कारन सोचलो से बढ़िके परिनाम आइल. काकी का मुँह से अचानक निकलल – बेमन के बियाह कनपटिए सेनुर. मए मेहरारू अकबका के काकी के देखे लगली सन. तब ले लभेरनो पहुँचि गइले.

काकी लभेरन के गवाही लिहल चहली – “का हो लभेरन, ए पारी के बिहार का चुनाव में विपक्ष सीरियस लउकल हा? एक जना एकाध गो रैली कइले आ गड़हा में मछरी मारे खातिर कूदि गइले आ ऐन मोका पर बहरा घूमे निकलि गइले. अब का एही करनी प जनता हरहरा के भोट दिही? एक जना घर-परिवार का लोगन के अनराज कइके अकेलहीं विधान सभा का मए सीट पर प्रचार करे निकलि गइले. अब बतावऽ, दू सइ से अधिका मंच पर अतना कम समय में अकेलहीं भाषण दिहल संभव बाटे? एहिजा पब्लिक भाषण सुने खातिर बइठल बिया आ इहाँका दू मिनट में भोट माङि के आपन पिंड छोड़ा लिहलीं. ‘पवित्रः पवित्रो वा’ कहिके पानी छिरिकला से भोट मिली? विपक्ष भीरी नेता आ रणनीति के बहुत अभाव रहे. एही से हम कहलीं हा कि चाहे ओभर कंफिडेंस कहीं भा लइकाही, एह पारी के विपक्ष बिना मन के प्रचार कइलस आ ई बड़हन कारन रहे विपक्ष का शर्मनाक हार के. ”

लभेरन मूड़ी हिलवले – “ठीके कहतानी. मनवे त मेन बा. कहल गइल बा कि मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः. मए काम का पाछा मने बा आ जब बेमन से केहूँ काम करी त सफलता कइसे मिली?” काकी हँ में हँ मेरवली आ फेरु मुसकात बोलली- “तहार तुलसी बाबा एह मन पर का बोलतारे?”

अब लभेरन के त नीमन टॉपिक मिल गइल. बोलल शुरू हो गइले – “मए रामायन त मने के खेल बा काकी. मने त हिरदय भा दिल हटे, मन के बात माने दिल के बात. गोस्वामी जी आ उनुका से पहिले जे-जे रामायन लिखले बा, ऊ का रउरा ओरिजिनल लागता? एकर रचना भगवान शंकर जी कइले रहीं.

रचि महेस निज मानस राखा. पाइ सुसमउ सिवा सन भाषा॥

महादेव जी पूरा रामायन रचिके अपना मन में रखले रहीं आ नीमन समय देखिके पार्वती जी से कहलीं. गोस्वामी जी कहतानी कि रामचरितमानस का सुनला से कान के शांति मिलेला. विषय रूपी दावानल में जरत मन रूपी हाथी, जो एह रामचरितमानस रूपी सरोवर में उतरि जाई त सुखी हो जाई.
मन करि बिषय अनल बन जरई. होई सुखी जौं एहिं सर परई॥

गोस्वामी जी संत समाज के संसार में चलत-फिरत तीर्थराज प्रयाग कहले बानी आ बतावतानी कि जवन मनुष्य एह संत समाज रूपी तीर्थराज का प्रभाव के खुश होके मन से सुनी आ समझी अउर फिर अत्यन्त प्रेमपूर्वक एहमें गोता लगाई, ऊ एह शरीर का अछते धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष- चारों फल पा जाई. माने मनवे सभका केंद्र में बा, बेमन के कवनो काम अनुकूल परिणाम ना दिही.
सुनि समुझहिं जन मुदित मन मज्जहिं अति अनुराग.
लहहिं चारि फल अछत तनु साधु समाज प्रयाग॥

रामचरितमानस में जवना मानस सर के व्याख्या कइले बानी गोस्वामी जी, ओकरा में नहाइल आसान नइखे. ओहिजो मने के खेला बा. जो ओहमें नहाए के मन बा त सतसंग कइल अनिवार्य बाटे आ ओहू में शर्त ई बा कि ऊ मन से कइल जाए के चाहीं.
जो नहाइ चह एहि सर भाई. सो सतसंग करउ मन लाई॥

गोस्वामी जी ठीके कहतानी. काकी बोलली – कवनो काम मने से करेके चाहीं ना त काम अधबिजुल हो जाला. आजु-काल्हु त एगो अइसन मोबाइल आ गइल बा जे मन के पगला के ध देले बा. खाइल-पियल मए अकारथ हो गइल बा. खातो खा लोग थरिया में कम देखतारे, ढेर मोबाइले में अझुराइल रहतारे. हाथ थरिया में आ मन मोबाइल में. ‘का खातानी, ओहमें कतना रस बा’ से कवनो मतलब नइखे, भोजन के एगो रोटीन वाला काम सपरवला से मतलब बा. अब का ऊ अंगे लागी? केहू किहाँ गइलो-अइला के कवनो मतलब नइखे रहि गइल. सभ के खुदबुदी धइले रहता कि ई लोग कब जाई कि हम सोफा पर पसरि के मोबाइल में ढुकि जाईं. हदे हो गइल बा, मए शिष्टाचार ताखा पर धरा गइल बा.

लभेरन जोरले – अब मनवो त दस-बीस गो नइखे नू, एगो बा त मोबाइले में अँटकल बा. लइकन के त पोथिए पढ़ल छूटि गइल बा. किताबि धइल बा, ओकरा से ज्यादा गूगल बाबा विश्वसनीय हो गइल बाड़े. ओइसहूँ किताबि में कुछ खोजे के भा शिक्षक से पूछे के अब धैर्य कहाँ रहि गइल बा? नेट पर सभ अभलेबल बा. ‘मन के हारे हार है मन के जीते जीत’ से विश्वास उठि गइल बा. लोग-बाग के ई नइखे बुझात कि उनुकर मन बेमार होत जा रहल बा, जबकि मने ठीक ना रही त बाँचल का, ठीक का रही?
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संपर्क : डॉ. रामरक्षा मिश्र विमल, निकट- पिपरा प्राइमरी गवर्नमेंट स्कूल, देवनगर, पोल नं. 28
पो.- मनोहरपुर कछुआरा, पटना-800030 मो. 9831649817
ई मेल : rmishravimal@gmail.com

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