नवोढ़ा – ब्यथा

नवोढ़ा – ब्यथा

– प्रो.(डॉ.) जयकान्त सिंह ‘जय’

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प्रोफेसर जयकान्त सिंह 'जय'
सबके सुननीं सभकर सहनीं
मन के मरनीं कबो ना कहनीं
जियनीं जवन जवानी में।
लीपन – पोतन, बरतन – बासन
चुल्हा चउक चुहानी में।।

गइल उतारल डोली से दउरा में डेग डलाइल
बानीं बेटी हरजोता के हमरा चले ना आइल
नइहर के सब तारन दिहलें
हिया हरदस हलकानी में।।

कुलदेवी बंदी का घर में ले जा सब बइठावल
अंजूरी में अच्छत भर के ऊपर का मुँहे छिटावल
घरवा भरे के रीति रसम ई,
कोहबर गीत गवानी में।।

नइहर में देखले रहनीं जब भउजी आइल रहली
हांड़ी छूई सवा साल ना बहुआ माई मोर कहली
उहे दुलार इहँवा हम पाएब
सपना रहे बचकानी में।।

आस अरमान आकासे से सीधे भूइंया प भहराइल
एकरे हाथ के खाना खाएब जेठ के हुकुम सुनाइल
छनर – मनर सङ्ग खोबसन के रुख
देखनीं जबे जेठानी में।।

मड़वा पर का सात सपथ के मन से कबो ना टरलीं
जब – जब जारी से जहुअइनीं पियऊ के मन परनीं
इनका बेरोजगारी के फल
पवनीं गाभी बानीं में।।

सुनले रहनीं सासु जी के सासत में रहे सँसरी
ननद के मारल मेहना लागे जइसे गर के फँसरी
बाकिर इनके लाड़ प्यार से
दम रहे दूनु परानी में।।

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– विभागाध्यक्ष-स्नातकोत्तर भोजपुरी विभाग, बी. आर. अम्बेडकर बिहार विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर ( बिहार )
पिनकोड-842001
मो. न. -9430014688
राष्ट्रीय महामंत्री, अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन, पटना ( बिहार )
ई-मेल-indjaikantsinghjai@gmail.com

आवासीय पत्राचार-‘प्रताप भवन ‘महाराणा प्रताप नगर
मार्ग सं. -1( सी ) भिखनपुरा, मुजफ्फरपुर ( बिहार )
पिनकोड-842001

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