ना नव मन तेल होई, ना राधा नचिहें

– – डॉ. रामरक्षा मिश्र विमल

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सोस्ती सिरी पत्री लिखी पटना से-10
आइल भोजपुरिया चिट्ठी

ना नव मन तेल होई, ना राधा नचिहें

Radhe Radhe

हमनी का समय में राधेकृष्ण, सीताराम, शिवशंभो, हरेराम, हरेकृष्ण जइसन भगवान का नाम के उच्चारण ज्यादा प्रचलन में रहे. आजु-काल्हु त जेनिए देखऽ, लोग राधे-राधे बोलत लउकता. राधा माई सभकर कल्यान करसु, बाकिर हमरा ई ना बुझाइल कि कवना घरी राधा नाचे से मना क देले रही कि लोग कहे लागल- ना नव मन तेल होई, ना राधा नचिहें. हमरा समाज में ई कहाउत आजुओ खूब कहाला, काहें ? काकी आपन चिंता प्रकट कइली.

लभेरन तनी गंभीर भइले आ कहे लगले- अइसन बात नइखे काकी. एकरा पीछे दोसर कारन बा. कहाउत वाली राधा भगवान कृष्ण का सङे याद कइल जाएवाली भगवती राधा ना हई. हमेशा बेदे पुरान के बात ना फइलेले, कबो-कबो साधारनो बात बड़ा तेजी से फइलि जाले. फइले के त अइसनो बात फइलि जाले, जवना के कवनो ओर-छोर ना होखे. काकी जिज्ञासु भइली- जइसे ?

लभेरन कहले- जइसे टेढ़ी खीर. खीर के जहाँ राखि दीं, ऊ ओकरे आकार में ढल जाई, छीपा में छीपा नियन गोल, चौकोर कटोरी में चौकोर, नीचे गिरा दिहीं त टेढ़-मेढ़ पसरि जाई, बाकिर ओकरा के टेढ़ काहें कहल जाला ? का खीर कबो सोझ ना होखे ?

काकी हुँकारी भरली- ठीके कहतार. अब आगे के बात बताव.

लभेरन तनी देंहि सोझ कइले आ कहले- ‘ना नव मन तेल होई, ना राधा नचिहें’ तब बोलल जाला जब कवनो काम में अइसन शर्त लागल होखे कि ओकर पूरा होखल असंभव होखे भा बहुत कठिन होखे. माने ना ऊ शर्त पूरा होई, ना ऊ काम होई. कहल जाला कि कतहीं राधा नाँव के एगो नर्तकी रहे, जवन नाचे खातिर बहुत प्रसिद्ध हो गइल रहे, बाकिर सच्चाई कुछ अउर रहे. ऊ सुन्नर त बहुत रहे, बाकिर नाचे में बहुत कमजोर रहे. नाचे ना अइला का चलते नाचे से भागत-फिरत रहे. डेराइल रहत रहे कि भेद खुल जाई त बदनाम हो जाइबि. एही से जब केहूँ ओकरा के नाचे खातिर बोलावे त ऊ एगो शर्त राखि दे. ऊ कहे कि नव मन तेल के दीया जरइबऽ लोग तब नाचबि. अब लोग ना नव मन तेल के जोगाड़ कर पावसु, नु इनका के नाचे के बोला पावसु. एही में ई कहाउत बनि गइल. अउर कवनो बात नइखे. एह कहाउत में भगवान कृष्ण का राधा से कवनो मतलबे नइखे.

काकी के संतोष भइल. कहली कि एगो अउरी कहाउत पर हमार मन रहि-रहिके अँटकि जाला- कहाँ राजा भोज, कहाँ भोजवा तेली. ई त समझ में आवता कि भोज नाँव के एगो राजा रहलन, जेकरा नाँव पर भोजपुर गाँव बनल बाकिर भोजवा तेली के नाँव काहें अतना फेमस हो गइल ? ऊ बहुत गरीब रहलन का ?

लभेरन मुसकइले- अइसन बात नइखे. एह कहाउत के अउरी प्रभावशाली बनावे खातिर लोग ‘भोजवा तेली’ नाँव बाद में जोरि दिहल. असली कहाउत रहे- कहाँ राजा भोज, कहाँ गंगू तेली. ईहे कहाउत पूरा देश भर में चलेले. गंगू के असली नाँव कलचुरि नरेश गांगेय रहे, बोले में सुविधा खातिर भा उनुका के कमजोर बतावे का अंदाज में लोग ‘गंगू’ बोले लगलन. अइसहीं चालुक्य नरेश तैलंग के छोट आ कमजोर देखावे खातिर ‘तेली’ शब्द प्रचलित भइल, एकर तेली जाति से कवनो संबंध नइखे. एक बेर गांगेय आ तैलंग मिलके राजा भोज का नगरी धार पर आक्रमण कइले, बाकिर दूनों राजा लोग के राजा भोज हरा दिहले. एकरा बादे से धार के लोग गांगेय आ तैलंग के हँसी उड़ावत बोले शुरू कइ दिहले कि ‘कहाँ राजा भोज, कहाँ गंगू तेली. ‘

काकी संतुष्ट भइली. चलऽ अब ददरी जाए के तेयारी में लागीं. लभेरन टुभुकले- अबहिंए ? ददरी के मेला कातिक का पुरनवासी के नु होला… दीया-दियरी माने सोराहीं के बाद ? लभेरन फेरु एगो कहाउत सुनवले. पहिले लोग ददरी का मेला के दिन अङुरिये प जोरि लेत रहन-
दस दिन दसईं
पाँच दिन असहीं
सोरह दिन सोराहीं
छउवें छठ, नउवें मेला.

लभेरन पुछले- तब, राउर का पलान बा काकी ?

काकी कहली- कई बरिस हो गइल गइला हो! बचपन में जात रहीं जा, बियाह का बाद जब से ससुरा अइलीं, कहाँ बेंवत मिलल कि आदमी मेला जाउ. ए पारी के मन बनवले बानी. पतोहि खातिर एगो भखवटी मङले रहीं, शिवजी पूरा क दिहले. ओकरे खातिर बड़का सिंघनपुरा के बुढ़वा शिवजी का मंदिर में जाए के बा. सोचले बानी कि ओनिए से नियाजीपुर निकलि जाइबि. नियाजीपुर का ददरी मेला के गरम-गरम गुरही जलेबी के स्वाद अबहिंयो मन से नइखे उतरत.

लभेरन माथा प हाथ धइ लिहले‌. रउआँ कवना दुनिया में बानी काकी ? नियाजीपुर के मेला बन्न भइला दस बरिस से बेसी हो गइल. ददरिए के मेला का टाइम पर ओहिजो गाइ-बैल के मेला लागत रहे, बाकिर ददरी के असली मेला उत्तर प्रदेश का बलिया में नु लागेला! एकर शुरुआत गंगा नहान से होला. एहमें गाइ, बैल, भइँस, घोड़ा आदि के व्यापार का सङहीं खूब गानो-बजाना होला. ददरी मेला के ऐतिहासिक महत्त्व बाटे. ई महर्षि भृगु आ उनकर शिष्य दर्दर मुनि से जुड़ल बाटे.

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संपर्क : डॉ. रामरक्षा मिश्र विमल, निकट- पिपरा प्राइमरी गवर्नमेंट स्कूल, देवनगर, पोल नं. 28
पो.- मनोहरपुर कछुआरा, पटना-800030 मो. 9831649817
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