बरखा के हथिया नछत्तर

 – डॉ. रामरक्षा मिश्र विमल

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सोस्ती सिरी पत्री लिखी पटना से-9
आइल भोजपुरिया चिट्ठी

बरखा के हथिया नछत्तर

काकी रोज-रोज का बरखा से अनसा गइल रही. कहली कि अभी कब तक बरखा होई ए लभेरन ? लभेरन समुझवले कि बस कुछे दिन अउर. हथिया नछत्तर चढ़ल बा त पानी त होइबे नु करी ? बस उतरते सभ पटा जाई, चिंता जनि करीं. लभेरन आपन बात जारी रखले – घाघ कहले बाड़े कि “हथिया पुरवइया पावे. लवटे चउमास लगावे.” हथिया के हलके में नइखे लिहल जा सकत. पुरवइया के साथ मिलते मानसून अतना बहकि जाई कि बरसात चार महीना खातिर लवटि आई. धरती का तवे खातिर मृगडाह (मृगशिरा) आ ठंढावे खातिर हथिया नछत्तर प्रसिद्ध बा. खेती से लेके आदमी का स्वास्थ्य तक दूनों नछत्तर के खुराक पूरा भइल जरूरी हटे. हथिया नछत्तर के चार गो चरन बतावल गइल बा- लोहा, तांबा, रूपा आ सोना. कहल जाला कि हथिया का पानी से ढेर दिन तक खेत में नमी बनल रहेला. खास कर सोना नछत्तर में बरखा भइला के मतलब होला कि किसान के बहार आ गइल.

घाघ त अतना कहि गइले बड़े कि
आदि न बरसे आदरा, हस्त न बरसे निदान।
कहै घाघ सुनु घाघिनी, भये किसान-पिसान।।

माने आर्द्रा नक्षत्र का आरंभ आ हस्त नक्षत्र का अंत में बरखा ना भइल त किसान संकट में अतना पिसाई कि आटा बनि जाई माने एकरा बाद ऊ भूलियो के किसान वाला पेशा में ना आई.

काकी के रुचि बढ़े लागल- बरखा का बारे में घाघ अउर का-का बतवले बाड़े ? अउरियो कवनो जरूरी बात कहले होइहें त ऊहो बतइह. लभेरन का मन लाएक प्रश्न मिल गइल रहे. ऊ बतावे शुरू कइले –

घाघ-भड्डरी- दूनों के कहाउत प्रसिद्ध बाटे. पहिले बरसात वाला कुछ कहाउत सुनीं –

चैत मास दसमी खड़ा, जो कहुँ कोरा जाइ।
चौमासे भर बादरा, भली भाँ‍ति बरसाइ।।

माने चइत महीना के अँजोरिया का दशमी के जो आसमान में बदरी ना लउके त मान लेबे के चाहीं कि एह साल चौमासा में बरसात नीमन होई.

आसाढ़ी पूनो दिना, गाज, बीज बरसन्त।
नासै लक्षण काल का, आनंद माने सन्त।।

माने आषाढ़ महीना के पुरनवासी के जो आसमान में बादल गरजे आ बिजुरी चमके त बरखा ढेर होई अउर सज्जन लोग आनंदित होइहें.

सावन केरे प्रथम दिन, उगत न ‍दीखै भान।
चार महीना जल परै, याको है परमान।।

माने जो सावन के अन्हरिया का एकम के आसमान में बदरी लागल रहे अउर भोर भइला पर सुरुज के दरसन ना होखे त निस्चे मनिह कि चार महीना तक जोरदार बरखा होई.

घाघ के हई दोहा त बहुते प्रसिद्ध बा –

रोहिनि बरसे मृग तपे, कुछ दिन अदरा जाय।
कहे घाघ सुनु घाघिनी, स्वान भात नहिं खाय।।

घाघ कहतारे कि सुनऽ ए घाघिन! जो रोहिणी नछत्तर में पानी बरसे आ मृगशिरा तपे अउर अदरा नक्षत्रो के कुछ दिन बीत गइला पर बरखा होखे त पैदावार अतना नीमन होई कि कुकुरो भात खात-खात उबिया जइहें सन आ जो चित्रा नछत्तर में बरखा होई त मए खेती नष्ट हो जाई.

जब बरखा चित्रा में होय. सगरी खेती जावै खोय।।

अइसहीं घाघ-भड्डरी के कुछ अउर रचना सुनीं –

उत्तर चमकै बीजुरी, पूरब बहै जु बाव।
घाघ कहै सुनु घाघिनी, बरधा भीतर लाव।।

जो उत्तर दिशा में बिजुरी चमकत होखे अउर पुरुआ हवा बहत होखे त अपना बैलन के घर का भितरी बान्हि द, काहेंकि बरखा जल्दिए होई.

उलटे गिरगिट ऊँचे चऽढ़ै।
बरखा होइ भूइँ जल बूड़ै।।

जब पेड़ पर गिरगिट उलटा चढ़त लउके त बुझिह कि अतना बरखा होई कि धरती पानी से बूड़ि जाई.

करिया बादर जिउ डरवावै।
भूरा बादर पानी लावै।।

करिया बदरी खाली डेरवावे के काम करेले, बाकिर जो भूअर बदरी घेरि आवे त पक्का पानी बरिसबे करी.

चमके पच्छिम उत्तर कोर. तब जनिहऽ पानी के जोर।।

जब पच्छिम आ उत्तर का कोना पर बिजुरी चमके, तब बूझि जइहऽ कि बरखा बहुत तेज होखेवाली बिया.

माघ में बादर लाल घिरै. जनिहऽ साँचो पथरा परै।।

जो माघ का महीना में लाल रंग के बदरी घेरे लागे त पक्का जनिह कि बनउरी के पथार लागि जाई.

एकरा अलावे स्वस्थ जीवनो खातिर घाघ-भड्डरी के बहुत रचना बाड़ी सन. जइसे, सूते जागे के सही समय ई होला –

पहिले जागै पहिले सोवे,
जो वह सोचे ऊहे होवै।

भोरे उठते पानी पीके फराकित होखे जाए के चाहीं –

प्रातकाल खटिया से उठि के पिये तुरंते पानी।
वाके घर में बैद न आवे बात घाघ के जानी।।

हई त याद राखे लाएक बा –

सावन हर्रे भादों चीता, क्वार मास गुड़ खाहू मीता।
कातिक मूली अगहन तेल, पूस में करे दूध सो मेल
माघ मास घी खिचरी खाय, फागुन उठि के प्रात नहाय।
चैत मास में नीम सेवती, बैसाखहि में खाय बसमती।
जैठ मास जो दिन में सोवे, ताको जुर असाढ़ में रोवे

सावन में हर्रे, भादो में चिचिड़ा, कुआर में गुड़, कातिक में मुरई, अगहन में तेल, पूस में दूध, माघ में खिचड़ी, फागुन में भोरे नहाइल, चइत में नीम आ बइसाख में चावल खइला अउर जेठ में दुपहरिया में सुतला से स्वास्थ्य ठीक रहेला, ओकरा बोखार ना लागे.

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संपर्क : डॉ. रामरक्षा मिश्र विमल, निकट- पिपरा प्राइमरी गवर्नमेंट स्कूल, देवनगर, पोल नं. 28
पो.- मनोहरपुर कछुआरा, पटना-800030 मो. 9831649817
ई मेल : rmishravimal@gmail.com

विमल जी के लिखल ई स्तम्भ महाराष्ट्र के हिन्दी समाचार पत्र यशोभूमि में मंगल का दिने छपल करेला. हमरा निहोरा पर विमल जी एह सामग्री के एहिजो अंजोर करे ला भेजत रहब. 

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