– टीम अंजोरिया
#standardisation-of-bhojpuri #भोजपुरी-मानकीकरण
बिर्हनी का छत्ता पर ढेेला मारल

आजु के लेख केे मथैैला बहुत पहिले एगो भोजपुरी विद्वान से भइल बातचीत का दौरान उनुकर सलाह सेे लीहल गइल बा. ओह दिन हम उहाँ सेे एह विषय पर बात करत रहीं कि भोजपुरी के मानक तय ना रहला का चलतेे हमरा जइसन मनई के बहुते मुसीबत झेले केे पड़त बा. साहित्य से हमार हितई बहुत दूर के ह आ इंटर का बाद साहित्य से कवनो संपर्केे नइखे रहल. आ शुरु कर दिहले बानी दुनिया मेें भोजपुरी के पहिलका वेेबसाइट anjoria.com. विद्वान लोग के रचना आवेेला आ हम दुस्साहस देखावत ओह लेग का रचना में आपन कलम चला दिहिलेें आ थोड़ बहुत बदलाव कर दिहिलेेंं. अधिकतर लोग त एहसे अनसाव ना बाकिर कुछ विद्वान लोग से मथकुच्चन हो जाला. त ऊ विद्वान हमरा केे सलाह दिहनीं कि जइसे चलत बा चलावत रहीं, चलत रहे दीं ना त ई बिर्हनी का खोता पर ढेला मरला जइसन हो जाई आ रउरा आपन बचाव कइल मुश्किल हो जाई. तब त हम एह बात के ओहिजेे रोक दिहले रहीं. बाकिर जब तब ई कीड़ा कुलबुलाए लागेला आ मन बेचैन हो जाला भोजपुरी के मानक बनवावेे खातिर. व्याकरण आ साहित्य सेे हमार भवह-भसुर वाला नाता हवेे से हम चाहत बानी कि कबो कवनो संस्था भा सम्मेलन एह विषय पर एगो बड़हन कार्यशाला आयोजित करो आ भोजपुरी के मानक तय कर लीहल जाव. एह से कृत्रिम विद्वता (artificial intelligence) आ सभका ला सुभीता हो जाई. भोजपुरी के मानक तय हो जाव त एकरा प्रकाशन में एकरुपता आवेे लागी.
मानकीकरण ना रहला का चलते होखत समस्या आ मानकीकरण के ज़रूरत
भोजपुरी दुनिया भर में करोड़ों लोग के बेेवहार में आवे वाली भाषा ह. भारत, नेपाल, मॉरीशस, सूरीनाम, फिजी से लेके कैरेबियन आ खाड़ी देशन तक भोजपुरी बोलइयन केे समुदाय पसरल बा. आ तीन कोस पर पानी बदले पाँच कोस पर बानी वाला सिद्धान्त मानत भोजपुरी के अतना स्वरुप हो जाला कि आम आदमी ला मुश्किल हो जाला. ई एगो बड़हन कारणो बा जवना चलते भारत में आजु ले भोजपुरी के संवैधानिक मान्यता नइखे मिल पावल. अब एकरा पाछा भोजपुरिए इलाकन केे हिन्दी साहित्यकारन के साजिश का बारेे में चरचा दोसरा तरफ ले के चल जाई. एहसे आजु अपना का मानकीकरण के विषये ले सीमित राखब.
मानक तय ना रहला से होखत समस्या
भाषा जवना लिपि में लिखल जाला ऊ ओकर एगो बड़हन पहचान होखेला. पुरनका जमाना में भोजपुरी कैथी लिपि में लिखात रहुवेे. अपना लइकाईं में देेखत रहीं कि हमार बाबा कैथी में लिखल चिट्ठी आराम से पढ़ लेेत रहीं जबकि हमरा कुछऊ ना बुझा पावत रहुवेे. अब भोजपुरी देवनागरी लिपि मेेंं लिखाए लागल बा जइसे कि संस्कृत, हिन्दी, मराठी, अवधी, मगही, वज्जिका, अंगिका, मैथिली वगैरह लिखालेे.
भोजपुरी इलाका बहुते बड़हन विस्तार मेें पसरल बा आ एह चलते एकर शब्द-भंडार मेें आ उच्चारण मेंं विविधता देखे के मिलेला. बनारस, गोरखपुर, छपरा, आरा, बलिया, चंपारण, नेपाल तराई—सभे इलाका में भोजपुरी के अलग-अलग ठाठ बा. आ सभे के अपना वाला भोजपुरी से छोह बा. बाकिर एकरा चलते किताब, समाचार आ परीक्षा में एकरूपता ना मिल पावे.
मानक तय ना रहला का चलते भोजपुरी भाषा के शैक्षणिक उपयोगो में समस्या आवेेला. कई एक विश्वविद्यालयन में भोजपुरी पढ़ावल जाला बाकिर उहो लोग आजु ले तय नइखे कर पावल कि भोजपुरी के कवना स्वरूप के मानक मानल जाव भा मानक भोजपुरी केे स्वरुप का होखे. मीडिया आ प्रकाशनो में समस्या आवेेला. अखबार, पत्रिका, रेडियो भा टीवी कार्यक्रम में अलग-अलग उच्चारण आ लेखन-पद्धति का चलतेे पाठक/श्रोता कन्फ्यूज हो जालेें.
मानक ना रहला का चलते भाषा के सरकारी मान्यता का राह में बड़हन रोड़ा आ जाला. जब ले भाषा के एगो मानकीकृत रूप तय ना होखी, सरकार भा संवैधानिक संस्थानो ओकरा के “शिक्षण आ प्रशासन” के भाषा माने में संकोच करिहेे।
मानकीकरण से होखे वाला फायदा
मानकीकरण हो गइला का चलते भोजपुरी बोलइयन सभे के बीच एगो साझा पहचान बनी जवना चलते भोजपुरी भाषा के वैश्विक मंच पर मजबूती मिले लागी.
अगर एगो तयशुदा व्याकरण, शब्दकोश आ लिपि होखी, त भोजपुरी में किताब लिखल आसान हो जाई आ विद्यार्थियन आ शोधकर्तन केे काम सहज हो जाई.
मीडिया आ तकनीक में भोजपुरी के उपयोग केे विस्तार होखे लागी. एआई का जमाना में भोजपुरी डिजिटल मीडिया में तबहियेंं टिकी पाई जब एकर एगो मानक तय हो जाव. हो सकेला कि भोजपुरी विद्वान लोग ताकते रहि जाव आ एआई वाला सभ मिल के एगो मानक तय कर लीहें. कम से कम हमरा त एहसे बहुत खुशी होखी. सही भा गलत हम बाकिर हम शुरु सेे एह दिसाईं सचेत रहल बानी कि पूरा अंजोरिया पर भोजपुरी केे एकही अन्दाज देखे केे मिलेे.
आखिर में —
भोजपुरी सभ्यता आ संस्कृति के गहिरा जड़ वाला भाषा ह. अगर हमनीं चाहतानी कि ई भाषा आवेे वाली पीढ़ियन ले जिन्दा रहेे, मजगर बनल रहे, आ एकर विस्तार होखत रहेे त सबले पहिले भोजपुरी के मानकीकरण पर काम कइला केे जरुरत बा. अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन, 2025 केे आयोजकन से हमार निहोरा बा कि लिपि (देवनागरी), व्याकरण आ शब्दकोश पर विद्वान लोग आपसी सहमति बनावे. एकरा ला एगो कार्यशाला के आयोजन होखेे. सभका एह दिसाईं सोचला आ काम कइला के ज़रूरत बा. एह काम में विश्वविद्यालय, साहित्यकार, मीडिया आ समाज – सभे के साझा पहल जरूरी बा.

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