पइसल आ पसार (बतकुच्चन – 203)

बात के खासियते होला कहीं से चल के कहीं ले चहुँप जाए के. कहल त इहो जाला कि एक बार निकलल ध्वनि हमेशा खातिर अंतरिक्ष में मौजूद हो जाले. आजु पइसार आ पसार के चरचा करे बइठल हम त पसोपेश में बड़ले बानी कि कहाँ से शुरु कइल जाव. काहे कि...

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