Tag: बतकुच्चन

साहब बुझले पियाज, सहबाइन बुझली अदरख (बतकुच्चन-201)

साहब बुझले पियाज, सहबाइन बुझली अदरख. ना ना, बतावे के कवनो जरूरत नइखे कि हम गलत कहाउत कहत बानी. असल कहाउत हमरो मालूम बा बाकिर सेकुरल कब कवना बात प बवाल मचा दीहें केहु ना बता सके. आ मतलब बात समुझवला से बा, कहाउत के माने भा ओकरा...

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पइसार आ पसार के चरचा (बतकुच्चन – 200)

बात के खासियते होला कहीं से चल के कहीं ले चहुँप जाए के. कहल त इहो जाला कि एक बार निकलल ध्वनि हमेशा खातिर अंतरिक्ष में मौजूद हो जाले. आजु पइसार आ पसार के चरचा करे बइठल हम त पसोपेश में बड़ले बानी कि कहाँ से शुरु कइल जाव. काहे कि...

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फार, फारल भा फरला से लगवले फरिअवता भा फरिआवल के चरचा : बतकुच्चन – 197

फार, फारल भा फरला से लगवले फरिअवता भा फरिआवल के चरचा करे चलनी त नीर-क्षीर विवेक के बात धेयान में आ गइल. कहल जाला कि हंस नाम के पक्षी में अतना ज्ञान होला कि ऊ पानी आ दूध के अलग क के दूध त पी बाकिर पानी छोड़ देला. एही से कहल जाला...

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बतकुच्चन – ३१

आजु जब बतकुच्चन लिखे बइठनी त सोचले रहीं कि आजु तेहो आ तेहा वाली बाति के तहियाएब जहाँ पिछला हफ्ता छोड़ले रहनी. तले चालू टीवी से कान में आवाज आइल कुछ तेहो लोग के, जे एह बाति पर तेहाइल बा कि देश में दोसरा केहू के महात्मा काहे कहल जा...

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बतकुच्चन – ३०

आजु दू अक्टूबर ह, गांधी बाबा आ लालबहादुर शास्त्री के जन्मदिन. दुनु सादगी से भरल. संजोग से आजु दुर्गापूजा के नवराति के छठवाँ दिन ह. एह धूमधाम, उत्साह, उछाह भरल मौका पर सोचत बानी कि काहे ना व्रत, उत्सव, तेहवार, पर्व तकले अपना के...

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