– संतोष कुमार पटेल
जे सोना के चम्मच लेहले जनमल
ऊ का जानि गरीबी का हऽ?
काथी हऽ लाचारी,
बेकारी का हऽ,
काथी हऽ बेमारी?
जेकर जनम
एयर कंडीसन में भईल
ऊ का जानी
पूस के रात का हऽ,
टटाइल भात का हऽ,
का हऽ रोटी झूराइल,
का हऽ भूख से अझुराइल?
जेकरा न कपकपिये बुझाइल
ना जेठ के दुपहरी
ऊ का बुझी गरीबी के शीतलहरी?
जे जनमल महल अटारी में
ओकरा झोपड़ी के पीड़ा का बुझाई?
का बुझाई
बिन छानी छप्पर के दुःख,
फाटल बेवाई के टीस,
अभाव के पुरवाई के खीस?
ओकरा सब हरिअरे लउकेला
काहे की ऊ सोना चानी में छउकेला
ऊ बलि नियर बलवान बा
भगिया के पहलवान बा
तबे नू ओकरा के लोग कहेला
भगवान
ऊ हसेला
आ रोवेला हिंदुस्तान.
पटेलजी, नमस्कार। बहुते यथार्थ अउर चिंतनीय रचना। साधुवाद।।
आपके पढ़ल काफी अच्छा लागल। लिखत रहीं। सादर।।