– डॉ. कमल किशोर सिंह

बहे बड़ी बिमल बयरिया हो रामा ,
चल बइठे के बहरिया .
पोर,पोर टूटेला गतरिया हो रामा ,
मन लागे ना भीतरिया .

रतिया के रमनीय चइत के  चंदनिया ,
बाहरे बिछाव सेजरिया हो रामा ,
सूतऽ तानी के चदरिया .

सांझ सबेर नीक लागे सिहरावन ,
आलस जगावे दुपहरिया हो रामा ,
चल बइठे के छहरिया.

कोमल किसलय में फुदुके चिरैया ,
झाँकेली झरोखा से बहुरिया हो रामा ,
जैसे झांपि के नजरिया .

टहनी प आइल टूसवा टिकोरवा,
प्रकृति लागेली लोरकरिया हो रामा ,
झूमी गावेली सोहरिया .

लागे सिरगरम दरिया सगरावा,
छपकेली सजल सुंदरिया हो रामा ,
चल पानी के किनरिया.


डा॰कमल किशोर सिंह के अंजोरिया पर पहिले के रचना

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