साधन के दरिद्र इंसानियत के धनी

डा॰ आर निरंजन गोपी

हम अपना संगे टहले वाला दोस्तन के १९७० का गरमी में मिलल एगो अनुभव के किस्सा सुनावत रहनी. हम एक हफ्ता खातिर बिहार के बोकारो, रसियन सहायता से नया नया बसावल औद्योगिक नगरी, गइल रहनी. हमरा एगो दोस्त के बाबूजी ओहिजा के स्टील फैक्टरी में बड़हन ओहदेदार रहलन, आ हम उनके हियां ठहरल रहनी.

एक दिन भोर में हमनी का दामोदर नदी घाटी के सैर करे निकलनी सन. दुपहरिया बाद करीब तीन बजे हमनी का एगो धार का किनारे पर रहनी सन. घर से अपना दोस्त के माई के प्यार से पकावल सैण्डविच आ दोसर खाना तब ले खतम हो गइल रहे. पानियो खतम हो गइल रहे. हारल थाकल पियासल हमनी का कुछ अन्दाज ना मिलत रहे कि घरे वापिस लवटे खातिर कवनो सवारी कहाँ से मिली. ओहि असमंजस में हमनी का धारा के पार कर गइनी जा आ ओह पार एगो पगडण्डी धर के एगो छोट मोट गांव में चहुंप गइनी जा. ओहिजा एगो टूटही मड़ई में कुछ सामान बेंचत दूकानदार से हमार दोस्त पूछलसि,

एहिजा चाय बेंचेलऽ का ?

ना. सोझ जवाब मिलल.

त कुछ खाये के मिल जाई का?

हँ, ऊ भेंटा जाई.

फेर हमनी का सामने राखल बेंच पर बईठ गइनी जा आ नाश्ता पानी कर लिहनी जा. करीब बीसेक मिनट बाद, जब कुछ थकान उतरल बुझाईल आ मिजाज ताजा हो गइल रहे, हमनी का उठिके ओह तरफ बढ़नी जा जेने बस आवे का बारे में ऊ दूकानदार बतलवले रहुवे. पइसा देके जब चले के भइनी जा त ऊ अचकचा के पूछलसि, रुकीं सभे, कहाँ जात बानी जा? रऊरा सभे चाय मंगले रहीं नू? हमार दोस्त जवाब दिहलसि, हँ, बाकिर तूंही नू कहुवऽ कि चाय ना बेंचऽ.

हँ, से त ठीक बा.बाकिर ई त ना कहले रहीं कि चाय ना मिली. तनी बईठीं जा, चाय आवते बा. हमनी का लगे कवनो विकल्प ना रहे से दुबारा बईठ गइनी जा. दू मिनट भीतरे दूकान का पाछा एगो दरवाजा खुलल, आ एगो औरत आपन चेहरा साड़ी के पल्लू से तोपले चाय के दू गो चुक्कड़ राखल तश्तरी बढ़वलसि. ऊ शायद ओह दूकानदार के मेहरारू रहुवे. दूकान वाला ऊ तश्तरी तब हमनी का सोझा कइलसि. हिन्दुस्तान में चाय सर्वप्रिय पेय मानल जा सकेला आ हमनी का ऊ चाय पी के आऊरी तरोताजा हो गइनी जा.

बाकिर अबहीं कुछ आउरी देखल बाकी रहे! जब धन्यवाद देके चलत घरी हमार दोस्त कुछ पइसा निकाल के दिहलसि त ऊ दूकानदार पइसा लेबे से साफ नकार गइल. कहलसि कि चाय बेंचे खातिर ना रहल हऽ. ई त रऊरा लोग खातिर हमार एगो छोट भेंट रहल हा.

जब हम इ कहानी सुना चुकनी त हमार संहतियन में से एक आदमी बोल उठल, इहे कहाला साधन के दरिद्र बाकिर इंसानियत के धनी! आ बाकी सभे एह बात से सहमत लउकल.

ई तब के बातिर हुवे जब एको पइसा के मोल रहुवे आ एगो गरीब गंवई खातिर चार पइसा बहुते रहुवे. तबहियो ऊ हंसि के ऊ तेयाग दिहलसि. बाकिर आजु हमनी का समाज में चारो तरफ जे हो रहल बा ओकरा के इहे कहल जा सकेला कि साधन के धनी इंसानियत के दरिद्र. बहुते उदाहरण सुनावल लोग अपना अपना अनुभव से आ आजु का मीडिया में नियमित रुप से आ रहल खबरन से.

जब एह बाति पर विचार कइल जाव त साफे बुझाई कि आजु सामाजिक तानाबाना एकदमे से टूट गइल बा. कवनो नैतिक मूल्य नइखे रहि गईल लोगन का लगे. एक दोसरा से कवनो मतलब नइखे रहि गइल बुझात. सड़क दुर्घटना का बगल से अकसरहां लोग धीरे से कगरिया के निकल जाला. के थाना कचहरी का फेर में पड़ो. अबहीं कुछ दिन पहिलहीं एगो अखबार में पढ़ले रहनी कि कईसे कुछ कालेजिया लड़िका लड़िकियन के एगो होटल से निकलत घरी पीट पाट के लूट लिहलन स. का हो गइल बा हमनी के सामाजिक मूल्यन के? हमनी का बुझात नइखे कि ई गिरावट कइसे रोकल जाव आ सामाजिक मूल्यन के फेर से स्थापित कइल जाव.

कुछ विचारक पुरनका जमाना के स्वर्णिम युग का रुप में पेश करीहनत कुछ लोग कही कि अइसनका बात से हमनी के वैज्ञानिका तरीका के विकास का राह पर ना चल पायेम. बाकिर का हमनी का पुरनका बीतल जमाना के ईयाद ना आवे. कुछ लोग कही कि अब कलियुग के आखिरी चरण चलि रहल बा

आ फेर से ऊ जमाना लवटि के आवे वाला बा.

बाकिर हम त अबहीँ ओही सुखद क्षण का ईयाद में डूबल बानी जवन बिहार के ओह गांव में मिलल रहे.

मारीशस टाइम्स में प्रकाशित लेख के भावानुवाद.