जनमदिन पर विशेष

अस्सी बरिस के बाँका : बाबू वीर कुँअर सिंह

प्रभाकर गोपालपुरिया

'लह-लह धरती खूब अघइली,
भइल सोर जोरे मयदान,
उ तेइस अपरिल महीना,
बिजय पताका उड़े असमान.'

एह कवित्त में लोककवि हीरा प्रसादजी जवने बिजय पताका के बात क रहल बानीं ओके लहरावेवाला बाबू कुँअर सिंहजी रहनीं. 80 बरिसहा बाँका, बीर, गबड़ू जवान बाबू कुँअर सिंहजी 1857 में आजादी क लड़ाई में अपना बीरता अउरी कूटनीति से अंगरेजन के दाँत खट्टा क देले रहनीं.

माई भारती के एह बीर सपूत के जनम 1777 में बिहार का आरा जिला के जगदीशपुर गाँव में भइल रहे. इहाँ के बाबूजी बाबू साहबजादा सिंहजी एगो जमींदार रहनी अउरी इहाँ की उदारता के सब केहू कायल रहे. इतिहास क पन्नन में इहाँ के बरनन राजा भोज क बंसज का रूप में मिलेला.

बाबू कुँअर सिंह का परिवार में देशभक्ति कूट-कूट के भरल रहे. इहाँ का अपना भाईयन में सबले बड़ रहनीं. इहाँ के तीनूँ छोट भाईओ, अमर सिंह, दयालु सिंह आ राजपति सिंह, आजादी खातिर अंगरेजन से सदा लोहा लेत रहि गइल लोग, अउरी कबो पीछे ना हटल लोग.

1857 का गदर नाम से मशहूर आजादी का लड़ाई के बिगुल बीर भोजपुरिया मंगल पांडे फूँक दिहले रहलन अउरी ई रणभेरी देश का दोसरो हिस्सन में गूँजे लागल रहे. मंगल पांडे के दिल के आगि दानापुर, बैरकपुर, रामगढ़ वगैरह छावनी में सैनिकन का दिल में लुकारा बनि के जरे लागल रहे. देश क कई बड़-छोट शहर गाँवन में अंगरेजन के दाँत खट्टा क देहल गइल; ओ लोगन के छट्ठी के दूध ईयाद दिला देहल गइल. झाँसी, मेरठ, लखनऊ वगैरहो जगहा भारत माई के ललना आजादी पावे खातिर कमर कसि के अंगरेजन से लोहा लेबे लगले.

अइसने समय में अस्सी बरिस के बाँका जवान बाबू कुँअर सिंह बिहार में अपना अगुआई में सैनिकन के एगो जत्था तईयार क के अंगरेजन क खिलाफ कमर कसि लिहने अउरी अपना बहादुरी के परिचय देत 27 अप्रिल के आरा पर कब्जा क लिहने.

ई बीर जवान मरते दमतक अंगरेजन से लोहा लेत रहि गइल. आरा, जगदीशपुर आदि पर अंगरेजन के दुबारा कब्जा भइले का बाद एह बीर जवान के आपन घर छोड़े के पड़ि गइल. बाकिर भारत माई के ई असली लाल रुके के कहाँ जाने, झुके के कहाँ जाने ! ई त बस भारत माई खातिर आजादी लेबे के जाने. घर छूटला क बाद ई अस्सी बरिसहा बीर बनारस, बलिया, बाँदा, गोरखपुर आदि में आजादी के मशाल जरवले रहे अउरी छापामार शैली के लड़ाई क क के अंगरेजन के दबिएवले रहे, ओ लोगन के छक्का छोड़ावले रहे.

एह भोजपुरिया जवान में गजब के चुस्ती अउरी फुर्ती रहे. भारतीय सेनानियन के चहेता अउरी नेता ई अस्सी बरिसहा गबड़ू जवान अपना सूझबूझ से अंगरेजन के जीअल काल क देहलसि अउरी भारती सेनानियन की दिल में आजादी के दीप जरवले रहे.

प्रसिद्ध कवि नारायण सिंहजी, ए बीर, बाँका जवान के बहादुरी के बरनन करत कहतानीं :-
'भोजपुरी के टप्पा जागि चलल,
मस्ती में गावत राग चलल,
बाँका सेनानी कुँअर सिंह,
आगे फहरावत पाग चलल'.

भारत माई के ई सपूत अपने जीवन की अंतिम लड़ाई में अंगरेजन के दाँत त खट्टा क देहलसि पर खुदे घवाहिल हो गइल. गोली का घाव से सड़ रहल एगो बाँहि अपने तलवार से काट के फेंक दिहलसि. बाकिर हार नामनलसि. 26 अप्रिल 1858 के माई भारती के ई अमर बीर सपूत सदा-सदा खातिर माई क गोदी में सुति गइल बाकि अपना करनी से अंगरेजन के दहला गइल अउरी भारती सेनानियन में जोश अउरी देशभक्ति भरि गइल.

एह भोजपुरिया जवान का बारे में अंगरेजी इतिहासकार होम्स लिखले बाड़े, 'It was matter of chance that at the time of war Kunwar Singh was eighty years old, had he been young, British have to leave india in 1857'.

अतने नाहीं. एह 80 बरिसहा बाँका जवान की चरित से, काम से प्रभावित होके कवनो भारतीय कवि अपना दिल के उदगार रखले बा :-
'धन भोजपुर, धन भोजपुरिया पानी,
असियो बरिस में जहाँ, आवेला जवानी'.

माई भारती के एह अमर शहीद के, बाँका जवान के हम हार्दिक नमन करतानी, बंदन करतानी अउरी साथे-साथे नमन-बंदन करतानी भोजपुरिया माटी के, भारत माई के.

बोलीं सभे बीर बाँका बाबू कुँअर सिंह की जय, भोजपुरिया माटी की जय, भारत माई की जय!

(Posted on 23 Apr 2009)


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