मोक्षदायिनी काशी के ऐतिहासिक आ पौराणिक घाट शुक का रात शरद पूर्णिमा के मौका पर दीपोत्सव के साक्षी बनले. दीपोत्सव के ई कार्यक्रम कार्तिक पूर्णिमा तक चलत रही. एह मौका पर बांस की डोलियन मे दीयन के लड़ी आकाश मे झिलमिलाए लगली स. केहू देवी देवता के नाम पर त केहू पुरखन का नाम पर आकाशदीप जरावल. अब एक महीना ले आकाशदीपन के झिलमिलाहट देश आ दुनिया भर से आवे वाला पर्यटकन के लुभावत रही.
परम्परा का मोताबिक आकाशदीप जरावे ला घाटन पर ऊंच ऊंच बांस में रस्सी के सहारे टोकरी बान्ह दीहल जाले. साँझ सबेरे रस्सियन का सहारे एह टोकरियन के उतारल जाला आ दीया में तेल भर के आ बाती जरा के फेरु उपर क दिआला.
धार्मिक दृष्टि से काशी मे एह आकाशदीपन के खास महत्व होला. कहल जाला कि शरद पूर्णिमा पर भगवान श्रीकृष्ण महारास के आयोजन कइले रहले. तब ई आयोजन चन्द्रमा के प्रकाश से आलोकित त रहबे कइल आकाशदीपो से एकरा के रौशन कइल रहे.
कहल जाला कि एह मौका पर नेपालो से लोग आवेला आ भर महीना काशी में रह के आकाशदीप जरावेला. पौराणिक मान्यता ह कि कार्तिक भर तीर्थराज प्रयाग समेत तमाम देवी देवता वाराणसी के पचगंगा घाट पर नहाए ला आवेले. एह देवी देवता लोग के राह में आकाशदीप से उजियार कइल जाला.
कारगिल मे शहीद भारतीय जवानन का याद में दशाश्वमेध घाट पर भर महीना दीया जरावल जाला. एह परम्परा से सेना के जुडाव कारगिल युद्ध का बाद भइल.
(वार्ता)
0 Comments