माई रे, अपना घर के ऊ आँगन कहाँ गइल

गरमी के छुट्टी : जमाना के फेर

इयाद बा जब हमनी के स्कूल में जब गरमी के छुट्टी होखे त सगरी लइका लइकी आपन कापी किताब बस्ता अलगा फेंकत सौधे गँवई जिनगी में घुस जात रहलें. खेत में चलल, आम के बगइचा में झूला झूलल, लुका-छिपी खेलल, पोखरा में भा बोरिंग पर नहाइल – ई सब छुट्टी के मुख्य आकर्षण रहल.

दादी-नानी के कहानी, बाबा के जीवन ज्ञान, आ माई के हाथ से बनल आम पना, लस्सी, सतुआ… अहा! कतना मीठा याद बा.

बिजली ना रहे तबो उमंग रहे. छत पर सूतला, टेबल फैन के नीचे आ झींगुर के आवाज का बीचे सूतला के अलगे आनन्द रहुवे. असल बात ई रहल कि तब मोबाइल के जमाना ना रहल. गाँव मुहल्ला में जेकरा घरे टेलीफोन रहुवे ओकरा भर गाँव के लोग के सनेसा पठवावे के पड़ै, कबो लइकन के भेज के बोलवाहूं के पड़े बात करे ला. तब टेलीफोन आदमी के हैसियत के निशानी रहल. बाकिर जब से मोबाइल आइल बा तब से आदमी के जिनिगी ‘जी हुजूर’ वाली हो गइल बा. अब त साहब के जबे मन करे फोन कर के हुकुम सुना देबे के सुभीता हो गइल बा. एक तरह से देखीं त मोबाइल गुलामी के निशानी बन गइल बा आ आदमी के सगरी आजादी छीन लिहले बा.

📱 अब के गरमी छुट्टी : मोबाइल, एसी आ डिजिटल जिनिगी

मोबाइल आइल त बचवन के छुटपने से लकम लगा दीहल जात बा. जब नन्हका भा नन्हकी चलहूं लायक ना होखे तबे से ओकरा के मोबाइल थमा के महतारी आपन काम निपटावे में लागल रहेली. गवे-गँवे सगरी बचवन के मोबाइल के नशा लाग गइल बा. एह चलते अब जब छुट्टी होखत बा त सगरी छुट्टी मोबाइल फोन, वीडियो गेम, Netflix, आ इंस्टाग्राम रील्स देखे सुने में बीत जात बा. मैदान में जा के खेलल त गिनले चुनल लइका लइकिन के काम रह गइल बा.

तब के जमाना में गार्जियनो लोग चहेट देत रहुवे कि भर दिन घरहीं में लुकाइल रहत बाड़ऽ. जा खेलऽ कूद. आ अगर से कहीं देरी ले खेले कूदे में रह जात रहीं जा त उहे गार्जियन कहे लागसु कि खेलोगे कूदोगे होगे खराब, पढ़ोगे लिखोगे तो बनोगे नबाब ! अब के तरह देर रात ले मोबाइल देखत ना बीतल करे ओह जमाना में. बाबू जी रेघरियावत रहसु कि अर्ली तू बेड एण्ड अर्ली टू राइज. मेक्स ए मैन हेल्दी वेल्दी एण्ड वाइज !

अब के गार्जियन डेराइल रहेलें कि बबुआ के घाम मत लाग जाव, बाहर निकल के गलत संगत में मत पड़ जाव. लालू के जमाना त खैर अब रहल ना. ना त ओह जंगल राज में किडनैपिंग भा पकड़उवा बिआह के चलन हो गइल रहुवे.

🎯 सवाल बा – का ई सब के अब बदलल जा सकेला ?

बदलाव समय के मांग होला, ई साँच बा. विज्ञान, टेक्नोलॉजी, सुविधा – सब बढ़ल बा. लेकिन मन के सुकून, समाजिकता, खेलकूद के भावना – ई सब कहाँ गइल ?

बचवन के मोबाइल से अलगा राखे के जिम्मेदारी केकर होखे के चाहीँ ? पहिले दादी काकी कहानी सुनावल करे लोग अब के बच्चा यूट्यूब पर कोकोमेलन, इन्फोबेल्स, ओलिवर, पेपा पिग, फ्रोजेन मूवी पर समय बितावल करेलें. बचवा कवन चैनल देखत बा एकरा से पता लाग जाला कि ऊ गँवे गँवे बढ़ल जात बा.

हमार संस्कृति हमेशा से संतुलन सिखवलसि. अगर बच्चा मोबाइल चलावत बा त ठीक बा, लेकिन ओकरा साथे झूला झूलल, माटी में खेले के आजादी ओ चाहीं. भगवान बुद्ध के उपदेश का अनुसार सम्यक के पालन होखे के चाहीं. अति कवनो बात के खराब होला. ना अति बरखा, ना अति धूप. ना अति बोलता ना अति चूप !

गरमी छुट्टी के मतलब खाली खेले कूदे, होम वर्क निपटावे में ना बिता के नया नया कौशल सीखल सिखावलो ओतने जरुरी होखे के चाहीं.

🛶 सुझाव – आधुनिकता आ परंपरा के मेल

बच्चा लोग से कहीं कि कुछ दिन खातिर मोबाइल साइड कर के खेत में चले लोग, गांव में घुमे लोग, दादी-नानी से कहानी सुनावे के परंपरा जियवले राखसु. बच्चा अगर Coding सीख रहल बा, त एक दिन माटी में गढ़ल घरो बनावे के सीखे. ई मिलन जरूरी बा – डिजिटल आ देसी संस्कार के.

अगर बच्चा कहलसि, “हमरा छुट्टी में कुछ नया करे के मन करेला.” त जवाब मिले के चाहीं – “जा बेटा, एक दिन पेड़ लगावऽ, एक दिन कहानी लिखऽ, एक दिन माई के साथ खाना बनावे के सीखऽ.” ओह बच्चा के खुशी देख के रउरो लागी कि असली छुट्टी त एही में बा.

🌿 छुट्टी – शरीर के ना, आत्मा के राहत

गरमी छुट्टी के असली मकसद बा – मन के शांति, शरीर के आराम, आ आत्मा के नया ऊर्जा से भरल. बच्चा के खाली नंबर ना, संस्कारो मिलल जरूरी बा.

आ सब से इहे कहब – समय के संग चलीं, लेकिन संस्कृति के जिन भुलाईं. बच्चा के ई सिखाईं देश के धरोहर का बारे में, इतिहास का बारे में, हमहन के संस्कृति आ संस्कारन का बारे में.

🌟 आ आखिर में इहे कहब कि …

अबकी गरमी का छुट्टी में, संकल्प करीं – बचवन के रोज एगो लोकगीत सुनाईं, माई भासा के ज्ञान दीं. बगइचा में घुमाईं. कम से कम एक दिन ओकरा के बिना मोबाइल के जिये के सिखाई`. बाकिर का रउरा अबहिंयो गाँव से संपर्क रखले बानीं ?

अगर गाँव से राउर संपर्क जिन्दा बा त अपना बचवन से कहीं कि एगो लेख “हम आ हमार गाँव” विधय पर लिख के अंजोरिया पर अंजोर करे ला भैज देव. भेजल बहुते आसान बा, एही लेख का नीचे टिप्पणी वाला कालम में लिख भेजीं. हर टिप्पणी पहिले हम देखिलें आ ओकरा बादे उजागर होखेला. एहसे हर लेख के अलगा राख लेब आ जवन अँजोर करे जोग रही तवना के शान का सथे उजागर करब. हर लेख का साथे लेखक के फोटो आ गाँव के एगो फोटो जरुर होखे के चाहीं.

ई अगो अलगे होमवर्क होखी.

आ एह लेख के लिखे दौरान इयाद पड़ल मनोज भावुक के एगो गजल

बचपन के हमरा याद के दरपन कहाँ गइल
माई रे, अपना घर के ऊ आँगन कहाँ गइल

खुशबू भरल सनेह के उपवन कहाँ गइल
भउजी हो, तहरा गाँव के मधुवन कहाँ गइल

खुलके मिले-जुले के लकम अब त ना रहल
विश्वास, नेह, प्रेम-भरल मन कहाँ गइल

हर बात पर जे रोज कहे दोस्त हम हईं
हमके डुबाके आज ऊ आपन कहाँ गइल

बरिसत रहे जे आँख से हमरा बदे कबो
आखिर ऊ इन्तजार के सावन कहाँ गइल

ई गजल उनुका गजल संग्रह तस्वीर जिन्दगी के के पहिलका गजल ह. पूरा गजल संग्रह पढ़ के देखीं, आनन्द आ जाई.

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