अन्हरिये बनल रहीत

– अभयकृष्ण त्रिपाठी

बढ़िया रहीत दुनिया में अन्हरिये बनल रहीत
करिया चेहरा दुनिया से दरकिनार रहीत.

याद आवेला जब सारा जग उजियार रहे,
सोन चिरईया के नाम जग में बरियार रहे,
मुँह में मिश्री आँखिन में आदर भरमार रहे,
स्वर्ग से सुन्दर हमार देश सारा संसार कहे,
स्वर्ग के लुटेरन के चलनी सबमें ना बहीत,
बढ़िया रहीत दुनिया में अन्हरिये बनल रहीत

रंज ईहे बा कि अब अपने लूट रहल बा,
ब्रिटिश, मुगल के क्रूरता भी दहल रहल बा,
चार के जगह दू रोटी भी रोटी कहात रहे,
बचवन के दाना में छिपकली ना नहात रहे,
समुन्द्र मंथन में इंसानियत त ना महीत,
बढ़िया रहीत दुनिया में अन्हरिये बनल रहीत

आगे रहे में सब दे रहल बा दुसरा के मात,
एक दुसरा के लूटे में सबही लगवले बा घात,
राजा रहे डाल प त परजा अभय चबाये पात,
आग लगा के जमालो मीडिया बनके नरियात,
मुँह में राम बगल में छुरी केहु ना कहीत,
बढ़िया रहीत दुनिया में अन्हरिये बनल रहीत

कबीर के दोहा बुरा जो देखन हमरा याद बा,
भला जो देखन मैं चला करे के फरियाद बा,
अब त कुदरत भी हो चलल बा पूरा बेईमान,
रंग बदले में मात खा रहल बा गिरगिटान,
ग्लोबल वार्मिंग के नारा से ई जग ना पाटीत,
बढ़िया रहीत दुनिया में अन्हरिये बनल रहीत

बढ़िया रहीत दुनिया में अन्हरिये बनल रहीत
करिया चेहरा दुनिया से दरकिनार रहीत.

2 Comments

  1. omprakash amritanshu

    Tripathi Ji Raur Kavita Bari Nik Lagal.Aasha
    Ba Aage Bhi Padhe Ke Mili.
    GeetKar
    O.p.Amritanshu

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  2. दिवाकर मणि

    त्रिपाठी जी, का बात कहनीं….
    बढ़िया रहीत दुनिया में अन्हरिये बनल रहीत
    करिया चेहरा दुनिया से दरकिनार रहीत.

    थोड़ा कटु किन्तु यथार्थ चित्रण वाली ई रचना बिया…

    Reply

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